परम्परागत एवं आधुनिक दृष्टिकोण में अन्तर
राजनीति विज्ञान की परिभाषा और क्षेत्र के सम्बन्ध में परम्परागत दृष्टिकोण का प्रतिपादन ब्लंटशाली, गैरिस, गार्नर, सीले, लीकॉक, गैटल और लॉस्की आदि विद्वानों के द्वारा किया गया है। आधुनिक दृष्टिकोण के प्रमुख प्रतिपादक हैं-डेविस, ईस्टनौ, राबर्ट ए. डहल, जी.ई.जी. कैटलिन, मैक्स वेबर और एच.डी. लासवैल आदि । विषय की परिभाषा, प्रकृति और क्षेत्र के सम्बन्ध में आधुनिक दृष्टिकोण निम्न रूपों में परम्परागत दृष्टि से निम्न हैं-
(1) परम्परागत दृष्टिकोण राजनीतिक संस्थाओं अर्थात् राज्य सरकार आदि के अध्ययन पर जोर देता है; लेकिन आधुनिक दृष्टिकोण की मान्यता यह है कि राजनीतिक संस्थाएँ व्यक्तियों से चालित होती है और व्यक्तियों क व्यवहार के माध्यम से ही राजनीतिक जीवन को समझा जाता है। अतः व्यक्तियों के व्यवहार से मानव के मनोवेगों, इच्छाओं, प्रेरणाओं और आकांक्षाओं का अध्ययन किया जाता है।
(2) परम्परागत दृष्टिकोण में राजनीतिक विज्ञान का अध्ययन अनन्यता अर्थात् अलगाव के रूप में किया जाता है और वह यह आपको मात्र राजनीतिक क्रियाओं-प्रति-क्रियाओं तक सीमित कर लेता है लेकिन आधुनिक दृष्टिकोण की मान्यता यह है कि व्यक्ति के राजनीतिक जीवन को सामाजिक जीवन के सन्दर्भों में ही उचित रूप में समझा जा सकता है राजनीतिक अध्ययन में अन्तर- अनुशासनात्मक दृष्टिकोण को अपनाया जाना चाहिए।
(3) परम्परागत दृष्टिकोण मूल्यों से मुक्त और मूल्यों पर आधारित है इसलिए उसमें व्यक्ति निष्ठता आ गयी है और विचार भेद की स्थिति बहुत अधिक प्रबल रूप है। लेकिन आधुनिक दृष्टिकोण अपनाने की चेष्टा की गयी है। इस सम्बन्ध में यह स्मरणीय है कि 1960 के बाद यह स्पष्ट होने लगा कि पूर्णतया मूल्य मुक्त दृष्टिकोण अपनाने पर राजनीति विज्ञान के अध्ययन की कोई सार्थकता नहीं रहेगी अतः राजनीति विज्ञान के आधुनिकतम् अधययन में पुनः मूल्यों को उनका उचित स्थान दिया जाने लगा है।
(4) परम्परागत दृष्टिकोण में राजनीति विज्ञान के आदर्शात्मक पक्ष पर अधिक बल दिया गया है। इसमें इस बात पर अधिक ध्यान दिया गया है कि ‘क्या होना चाहिए’ और इस दृष्टि से राजनीति अध्ययन को नीतिशास्त्र के बहुत अधिक समीप ला देता है, लेकिन आधुनिक दृष्टिकोण आदर्श पक्ष की अपेक्षा यथार्थवादी पक्ष पर अधिक बल देता है और इस प्रकार राजनीतिक विज्ञान को पदार्थ विज्ञानों के निकट लाने का प्रयास करता है।
(5) परम्परागत दृष्टिकोण राजनीतिक संस्थों के अध्ययन पर बल देता है और इस दृष्टि से मात्र औपचारिक अध्ययन बनकर रह गया है लेकिन आधुनिक लेखक राजनीतिक संस्थाओं की अपेक्षा उन साधनों तथा प्रतिक्रियाओं को अधिक महत्त्व देते हैं जिनके आधार पर राजनीतिक संस्थाएँ कार्य करती हैं। इस दृष्टि से आधुनिक राजनीति अध्ययनों में एक वास्तविकता आ गयी है। वस्तुतः आधुनिक अध्ययनों की सत्य की प्राप्ति के, अधिक गम्भीर प्रयत्न कहा जा सकता है।
(6) परम्परागत दृष्टिकोण राजनीति विज्ञान के अध्ययन के लिए परम्परागत ऐतिहासिक, तुलनात्मक और दार्शनिक पद्धतियों का प्रयोग करता है, लेकिन आधुनिक दृष्टिकोण का सर्वप्रथम उद्देश्य राजनीति विज्ञान को अधिक वैज्ञानिकता प्रदान करता है। इस दृष्टि से आधुनिक दृष्टिकोण के मनोवैज्ञानिक प्रयोग एवं पर्यवेक्षण की पद्धतियों तथा सांख्यिकी और नमूना सर्वेक्षण प्राविधियों का अधिकाधिक प्रयोग किया जाता है।
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