राजनीतिक सिद्धान्त-कार्य व उपयोगिता
कोल के शब्दों में, “हम चाहे राजनीति की परवाह न करें, राजनीति हमारी परवाह अवश्य करती है। आधुनिक काल में जिन अनेक राजनीतिक सिद्धान्तों व मान्यताओं का विकास हुआ है, उन्होंने परम्परागत राजनीतिक विचारों को सामूल ध्वस्त कर दिया है।”
अपने कार्यों तथा उपयोगिता के कारण राजनीतिक सिद्धान्त का अत्यधिक महत्व है। यह महत्व निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-
(1) एक अनुशासन के रूप में- राजनीतिक सिद्धान्त राजनीति विज्ञान के लिए अत्यावश्यक है। सिद्धान्त के अभाव में कोई भी विज्ञान आधारहीन ही रहता है। राजनीतिक सिद्धान्त पर राजनीति विज्ञान का एकीकरण, सामंजस्यता, पूर्व कथनीयता, शोध विभाजन आदि निर्भर रहती हैं। राजनीतिक सिद्धान्त अनुशासन के व्यवहार संग्रह व शोध के मार्ग को दिखलाता है।
(2) अवधारणात्मक विचारबंध के रूप में- राजनीतिक सिद्धान्त तथ्य के संग्रह व शोध को प्रेरणा व दिशा प्रदान करता है। यह एक चलनी के रूप में पर्यवेक्षित तथ्यों का चयन करने के लिए उपयोगी रहता है। यह एक दिशा-सूचक की भाँति दिशा निर्देशन करता है तथा एक मापक के रूप में किसी विशिष्ट समय में विज्ञान प्राप्त विकास की अवस्था पर प्रकाश डालता है। इसमें लोचशीलता रहती है जो नवीन संकलित तथ्यों के प्रकाश में सिद्धान्त के स्वरूप में परिवर्तन करती रहती है।
(3) वैज्ञानिक व्याख्या- सिद्धान्त वैज्ञानिक व्याख्याएँ प्रस्तुत करने में सहायक होता है। यह राज विज्ञान को सामान्यीकरणों पर आधारित करके राजनीतिक व्यवहार का एक विज्ञान बनाने का प्रयास करता है। यह नवीन क्षेत्रों को खोजता है। नवीन सामान्यीकरणों व उपागमों की उपलब्धि करता है और नवीन सिद्धान्तों को निर्मित करता है। राजनीतिक वैज्ञानिक राजनीतिक सिद्धान्त के आधार पर ही भविष्य में होने वाली घटनाओं और प्राप्त होने वाले परिणामों के सम्बन्ध में पूर्व कथन कर सकते हैं।
(4) राजनीतिज्ञों, नागरिकों, प्रशासकों, राजनेताओं, राजनयिकों आदि के लिए राजनैतिक सिद्धान्त का महत्व- राजनैतिक सिद्धान्त, राजनीतिज्ञों, नागरिकों प्रशासकों, राजनेताओं, राजनयिकों आदि के लिए भी महत्वपूर्ण है। यह उन्हें वास्तविक राजनीति के स्वरूप का ज्ञान देता है। इससे उन्हें उपयुक्त व सही निर्णय लेने में सहायता मिलती है। कभी-कभी लोग कहते हैं कि राज-सिद्धान्त एक आडम्बर मात्र है, इसकी कोई आवश्यकता नहीं होती। ये कथन मिथ्या हैं। जो राजनीतिज्ञ यह कहते हैं कि वे किसी भी राजनैतिक सिद्धान्त का प्रयोग नहीं करते हैं वे राजनीति से सम्बन्धित धारणाओं का निर्माण करते हैं, निष्कर्ष व परिकल्पनाएँ निकालते हैं व मूल्यांकन तथा आवश्यक होने पर सुधार करते हैं।
(5) मानव समाज की राजनैतिक, संवैधानिक व वैधानिक प्रगति के लिए आवश्यक-राजनैतिक सिद्धान्त मानव समाज की राजनैतिक, संवैधानिक व वैधानिक प्रगति में आवश्यक सहायता देता है। यह अनन्त अनुभवों का संक्षिप्तीकरण, नवीन तथ्यों का ज्ञान, आने वाली समस्याओं के पूर्वानुमान में सहायता देता है। एक अच्छा सिद्धान्त सिद्धान्तीरण में पर्याप्त गति देता है। वर्तमान युग विज्ञान का युग है। विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति की दृष्टि से राजनैतिक सिद्धान्त और अधिक उपयोगी हो गया है। हान्स मार्गेन्थाऊ ने कहा है कि परमाणु युग में शक्ति पर नियन्त्रण रखने का मार्गदर्शन आनुभाविक सिद्धान्त द्वारा ही प्राप्त होता है।
(6) राजनैतिक, मनोवैज्ञानिक व नैतिक कार्य – राबर्ट डहल के अनुसार, राजनैतिक सिद्धान्त के अनेक कार्य होते हैं, जैसे राजनैतिक, मनोवैज्ञानिक व नैतिक कार्य आदि।
(7) सभी पक्षों का आत्म-विश्वास, सन्तोष व बोध- राजनीतिक सिद्धान्त सभी पक्षों को आत्म-विश्वास, सन्तोष व बोध प्रदान करता है। लेनिन ने इस पर प्रकाश डालते हुए कहा था कि “क्रान्तिकारी सिद्धान्त ही साम्यवादी आन्दोलन को विश्वास, निर्देशन तथा विभिन्न घटनाओं को जोड़ने के अन्तः सूत्र प्रदान करते हैं।
(8) राजनैतिक वास्तविकता को समझने में सहायक- वैज्ञानिक राजनैतिक सिद्धान्त राजनैतिक वास्तविकता को समझने में सहायता देते हैं। वे अपनी वैज्ञानिक विषय-सामग्री के द्वारा अनुशासन में एकरूपता, सम्बद्धता व संगति के तत्वों को विकसित कर उसे समृद्ध बनाते हैं। इससे अनुशासनात्मक स्तर उच्चतम बनता है एवं घटनाओं का वास्तविक रूप प्रकट हो जाता है तथा विभिन्न भ्रान्तियाँ एवं अन्धविश्वास भी दूर हो जाते हैं।
(9) शासन प्रणाली व शासकों का औचित्य – राजनीतिक सिद्धान्त शासन प्रणाली और शासकों को जनता की दृष्टि में औचित्य प्रदान करता है। विशिष्ट वर्ग अपने प्रभुत्व को रखने के लिए इसका प्रयोग करता है। बनाए
(10) समस्याओं के समाधान में सहायक- वैज्ञानिक सिद्धान्त का उपयोग शान्ति, विकास तथा बाहुल्य की समस्याओं के समाधान के लिए किया जा सकता है। ईस्टन व वी. ओ. के. के अनुसार केवल तथ्यों का ज्ञान मात्र कोरी विद्धता है। अतः महत्वपूर्ण तथ्यों का चयन व उन्हें व्यापक क्रियात्मक रूप देने के लिए एक संगतिपूर्ण सिद्धान्त अति आवश्यक है। सिद्धान्त के द्वारा मानव उच्चतर शक्तियों जैसे युद्ध, सम्प्रभुतात्मक राष्ट्रवादिता, प्रजातिवाद आदि को नियन्त्रित कर सकता है अन्यथा भौतिक, तकनीकी संहार शक्तियाँ मनुष्य पर प्रभुत्व स्थापित कर लेंगी जो कि अत्यन्त हानिकारक सिद्ध होगा।
(11) राजनीतिक तथ्यों, घटनाओं, अध्ययन पद्धतियों व मानव मूल्यों के मध्य गत्यात्मक सन्तुलन — राजनीतिक तथ्यों, घटनाओं, अध्ययन पद्धतियों और मानव मूल्योंके मध्य गत्यात्मक सन्तुलन वैज्ञानिक राजनीतिक सिद्धान्त ही स्थापित कर सकता है। विभिन्न प्रश्न जैसे मूल्यांकन करने के उद्देश्य से क्या घटित हो रहा है एवं अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए किन-किन विकल्पों का चयन किया जा सकता है।
इसे भी पढ़े…
- भारत के संविधान की प्रस्तावना एवं प्रस्तावना की प्रमुख विशेषताएँ
- भारतीय संविधान की विशेषताएँ
- नागरिकता से क्या आशय है? भारत की नागरिकता प्राप्त करने की प्रमुख शर्तें
- राज्यपाल की शक्तियां और कार्य क्या है?
- राज्य शासन में राज्यपाल की स्थिति का वर्णन कीजिए।
- राज्य शासन क्या है? राज्य शासन में राज्यपाल की नियुक्ति एवं पद का उल्लेख कीजिए।
- राज्यपाल की शक्तियां | राज्यपाल के स्वविवेकी कार्य
- धर्म और राजनीति में पारस्परिक क्रियाओं का उल्लेख कीजिए।
- सिख धर्म की प्रमुख विशेषताएं | Characteristics of Sikhism in Hindi
- भारतीय समाज में धर्म एवं लौकिकता का वर्णन कीजिए।
- हिन्दू धर्म एवं हिन्दू धर्म के मूल सिद्धान्त
- भारत में इस्लाम धर्म का उल्लेख कीजिए एवं इस्लाम धर्म की विशेषताएँ को स्पष्ट कीजिए।
- इसाई धर्म क्या है? ईसाई धर्म की विशेषताएं
- धर्म की आधुनिक प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिए।
- मानवाधिकार की परिभाषा | मानव अधिकारों की उत्पत्ति एवं विकास
- मानवाधिकार के विभिन्न सिद्धान्त | Principles of Human Rights in Hindi
- मानवाधिकार का वर्गीकरण की विवेचना कीजिये।