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शिक्षा के उद्देश्य- जीविकोपार्जन, आध्यात्मिक विकास, शारीरिक विकास, शारीरिक विकास

शिक्षा के उद्देश्य
शिक्षा के उद्देश्य

शिक्षा के उद्देश्य

शिक्षा के जीविकोपार्जन के उद्देश्य

अस्तित्व की रक्षा के लिये आवश्यक है कि मनुष्य अपनी जीविका कमाने के योग्य बने। यदि वह स्वयं को संसार में समायोजित करना चाहता है अथवा समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त करना चाहता है तो जीविका कमाना आवश्यक है, अन्यथा जीविका रहित मनुष्य समाज पर एक बोझ होता है। केवल ज्ञान की प्राप्ति, शारीरिक विकास, चारित्रिक विकास ही सब कुछ नहीं है। अत: शिक्षा ऐसी हो जो सभी उद्देश्यों की पूर्ति के साथ-साथ मनुष्य को जीविका कमाने के योग्य बनाये। केवल जीविका प्रा त कर लेना ही सबकुछ नहीं क्योंकि अपनी भूख पशु भी शान्त कर लेते हैं। मानव तो विवेकशील है। अत: उसके सामने रोटी-दाल की समस्या नहीं है बल्कि मानवीय गुणों का विकास भी महत्त्वपूर्ण है।

(1) जॉन डीवी (John Dewey) के अनुसार-“यदि एक व्यक्ति अपनी जीविका प्राप्त करने में असमर्थ है तो इस बात की आशंका रहती है कि वह कहीं चरित्रहीन न हो जाय और दूसरों को हानि न पहुँचाये।” “If an individual is not able to earn his own living there is great danger that he may deprive himself and injure other.”

(2) एच. एच. हॉर्न (H. H. Horne) के शब्दों में- “मानव रोटी के बिना नहीं रह सकता है। साथ ही केवल रोटी पर ही मानवीयता और आध्यात्मिकता के बिना नहीं रह सकता।” “Man can not live without bread and he can not live humanly and spiritually by bread alone.”

शिक्षा के आध्यात्मिक विकास के उद्देश्य

शिक्षा के आध्यात्मिक विकास के उद्देश्य का अग्रांकित महत्त्व है-

(1) आध्यात्मिक विकास से आदर्शों के निर्धारण में सहायता मिलती है। (2) इस उद्देश्य के द्वारा विचारों में शुद्धता आती है। (3) इससे आध्यात्मिक दृष्टिकोण का विकास होता है। (4) इसके द्वारा बालक में चिन्तन तथा कल्पना-शक्ति का विकास होता है। (5) बालक में भाई-चारा, प्रेम-सहयोग, परोपकार आदि सदगुण विकसित होते हैं। (6) बालक के ज्ञान क्षेत्र में वृद्धि होती है। (7) इसके आधार पर मानसिक शान्ति एवं सन्तुष्टि प्राप्त होती है। (8) यह उद्देश्य मानवीय सम्बन्धों को बढ़ाकर वैमनस्य एवं शत्रुता को समाप्त करता है। (9) इससे सहकारिता को महत्त्व मिलता है। (10) आपसी मैत्री का प्रचार होता है।

शिक्षा के शारीरिक विकास के उद्देश्य

शिक्षा के शारीरिक विकास के उद्देश्य का महत्त्व निम्नलिखित प्रकार से है- (1) शारीरिक विकास शिक्षा की आरम्भिक अवस्था से सम्बन्धित है। (2) शारीरिक विकास ही अन्य सभी उद्देश्यों का आधार है। (3) स्वस्थ नागरिक अपने देश, समाज तथा परिवार के रक्षक होते हैं। (4) शारीरिक विकास मनुष्य के मस्तिष्क को बलिष्ठ बनाता है। (5) शिक्षा की प्रक्रिया सुचारु रूप से संचालित करने के लिये बालकों के स्वास्थ्य को ठीक रखना अत्यन्त आवश्यक हो जाता है। अतः शिक्षा द्वारा बालकों में शारीरिक स्वास्थ्य सम्बन्धी चेतना आ जाती है। (6) अस्वस्थता समाज के लिये कलंक होती है। इसमें समाज की कमजोरी की झलक आती है। अतः शिक्षा का उद्देश्य शारीरिक विकास होना चाहिये। (7) स्वास्थ्य मनुष्य की इच्छा, आत्म-विश्वास एवं साहस का आधार होता है।

स्वास्थ्य शिक्षा को पाठ्यक्रम में इसलिये स्थान दिया जाता है क्योंकि बालकों के ज्ञान के साथ-साथ स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना आवश्यक है। स्पार्टा राज्य में शिक्षा का उद्देश्य केवल बलवान सैनिक पैदा करना था। भारतीय शिक्षा में भी वीर पुरुषों की कहानियाँ तथा इतिहास को इसीलिये स्थान दिया जाता है, जिससे बालकों के मन में शारीरिक स्वास्थ्य के प्रति सकारात्मक भावना का विकास हो और वे स्वयं को बलिष्ठ एवं साहसी नागरिक बना सकें।

शिक्षा के ज्ञान सम्बन्धी उद्देश्य

विवेकशील पुरुष का सर्वत्र सम्मान होता है। शिक्षा का उद्देश्य बालक को विभिन्न विषयों के बारे में विस्तृत ज्ञान प्रदान करना है। संसार के प्रसिद्ध दार्शनिक ज्ञानार्जन पर अत्यधिक दल देते हैं। कुछ प्रकृति से सम्बन्धित ज्ञान को महत्त्वपूर्ण समझते हैं तो कुछ आध्यात्मिक एवं धार्मिक ज्ञान को अत्यधिक महत्त्वपूर्ण समझते हैं, जबकि प्रयोजनवादी ज्ञान के व्यावहारिक पहलू को महत्त्व देते हैं

(1) सुकरात (Socrates) के अनुसार- “जिस व्यक्ति को सच्चा ज्ञान है वह सद्गुणी के सिवाय और कोई नहीं हो सकता।” “One who had true Knowledge could not be other then virtuous.”

(2) हुमायूँ कबीर (Humayun Kabir) के शब्दों में- “शिक्षा का उद्देश्य भौतिक संसार और समाज के विचारों तथा आदर्शों का ज्ञान प्राप्त करना है। इस प्रकार का ज्ञान प्राप्त करना निजी उन्नति और समाज सेवा के लिये आवश्यक है।” “The aim of education is to secure knowledge of the physical world as well as of the ideas and ideals of society possession of such knowledge is a condition of both personal development and service to society.”

शिक्षा के वैयक्तिक उद्देश्य

उत्तर सर्वप्रथम किसी विषय का अध्ययन करने से पूर्व यह जान लेना आवश्यक है कि उसका उद्देश्य क्या है? शिक्षा का प्रमुख केन्द्र-बिन्दु व्यक्ति को ही माना जाता है तो उससे सम्बन्धित कारणों पर भी शिक्षा का प्रभाव पड़ना आवश्यक है। सांस्कृतिक एवं वैज्ञानिक उन्नति के साथ-साथ शिक्षा के उद्देश्यों की व्यापकता और बढ़ गयी है। शिक्षा के सभी दर्शनों में से व्यक्ति के विकास से सम्बन्धित व्यक्तिगत उद्देश्यों की किसी ने भी अवहेलना नहीं की है। इस सम्बन्ध में कुछ विचार निम्नलिखित प्रकार से हैं-

(1) रस्क (Rusk) के अनुसार, “शिक्षा का उद्देश्य व्यक्तित्व को ऊँचा उठाना या गुण सम्पन्न करना है। इस व्यक्तित्व का मुख्य लक्षण सार्वभौमिक मूल्यों से युक्त होना है।”

(2) रूसो (Rousseau) के मत में, “शिक्षा को इन्द्रियों का उचित प्रयोग करके ज्ञान का द्वार खोलना है।”

(3) फ्रॉबेल के अनुसार, “शिक्षा को मनुष्यों का पथ-प्रदर्शन इस प्रकार करना चाहिये कि उन्हें अपने आपको प्रकृति का सामना करने का और ईश्वर से एकता स्थापित करने का स्पष्ट ज्ञान हो जाय।”

शिक्षा के सामाजिक उद्देश्य

शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य व्यक्ति का सर्वांगीण विकास करना है। व्यक्ति का समाज से अटूट सम्बन्ध है। अतः व्यक्ति के साथ-साथ अप्रत्यक्ष रूप से समाज का भी विकास होता है। कुछ विद्वान् इससे सहमत नहीं हैं वे कहते हैं कि व्यक्तिगत शिक्षा में केवल व्यक्ति को अत्यधिक महत्त्व दिया जाता है। शिक्षा के सामाजिक उद्देश्य के अन्तर्गत व्यक्ति को नहीं बल्कि समाज को अधिक महत्त्व दिया जाता है। सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति करने वाली शिक्षा को ही पूर्ण समझा गया है। समाज ही एक ऐसा समुदाय है जो व्यक्ति के लिये आवश्यक है। अतः समाज का विकास व्यक्ति के विकास का आधार है। मनुष्य समाज में जन्म लेता है। आरम्भ से ही वह अपने माता-पिता, भाई-बहन, पड़ोस, देश तथा वातावरण से कुछ न कुछ सीखता है। अत: समाज़ का विकास नहीं होगा तो उसकी शिक्षा भी दोषपूर्ण ही होगी। इस प्रकार समाज के अभाव में व्यक्ति का जीवन पाशविक ही रह जाता है। समाज के ऋण से मुक्त होना उसके लिये असम्भव एवं कठिन कार्य है। सामाजिक शिक्षा नागरिकता का आदर्श पाठ पढ़ाती है। शिक्षा के इस उद्देश्य को नागरिकता का उद्देश्य (Aim of Citizenship) भी कहा जाता है। विद्यालय में व्यक्ति के चरित्र के साथ-साथ समाज की श्रेष्ठता का भी ध्यान रखना चाहिये।

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