गोस्वामी तुलसीदास की संक्षिप्त जीवन-परिचय
जीवन परिचय- गोस्वामी तुलसीदास के जीवन से सम्बन्धि तथ्यों के सम्बन्ध में विद्वानों के विचारों में बहुत अधिक भिन्नता देखने को मिलती है। विभिन्न विद्वानों ने इनके सम्बन्ध में विभिन्न साक्ष्यों के आधार पर भिन्न-भिन्न तथ्यों को प्रस्तुत किया है। महात्मा रघुबरदास द्वारा रचित ‘तुलसी-चरित’ में इनका जन्म संवत् 1583 (सन् 1497 ई.) में हुआ बताया गया है। ‘शिवसिंह- सरोज’ में इनका जन्म संवत् 1583 (सन् 1526 ई.) में स्वीकार किया गया है। मिरजापुर के प्रसिद्ध रामभक्त पं. रामगुलाम द्विवेदी ने जनश्रुति के आधार पर इनका जन्म संवत् 1589 (सन् 1532 ई.) में माना है। विद्वानों ने इनके जन्म से सम्बन्धित इसी संवत् को सबसे अधिक उपयुक्त माना है।
संवत् 1680 (सन् 1623 ई.) में, काशी में इनका निधन हो गया।
गोस्वामी तुलसीदास की कृतियाँ
श्रीरामचरितमानस, विनय पत्रिका, कवितावली, गीतावली, श्रीकृष्णगीतावली, दोहावली, जानकी मंगल, पार्वती – मंगल, वैराग्य- सन्दीपनी तथा बरवै – रामायण आदि ।
महाकवि तुलसीदास के साहित्यिक व्यक्तित्व
महाकवि तुलसीदास एक उत्कृष्ट कवि ही नहीं, मान् लोकनायक और तत्कालीन समाज के दिशा-निर्देशक भी थे। इनके द्वारा रचित महाकाव्य ‘श्रीरामचरितमानस’; भाषा, भाव, उद्देश्य, कथावस्तु, चरित्र चित्रण तथा संवाद की दृष्टि से हिन्दी साहित्य का एक अद्भुत ग्रंथ हैं। इसमें तुलसी के कवि, भक्त एवं लोकनायक रूप का चरम उत्कर्ष दृष्टिगोचर होता है। ‘श्रीरामचरितमानस’ में तुलसी ने व्यक्ति, परिवार, समाज, राज्य, राजा, प्रशासन, मित्रता, दाम्पत्य एवं भ्रातृत्व आदि का जो आदर्श प्रस्तुत किया है, वह सम्पूर्ण विश्व के मानव समाज का पथ-प्रदर्शन करता रहा है।
इनके एक अन्य ग्रंथ ‘विनयपत्रिका’ में ईश्वर के प्रति इनके भक्त-हृदय का समर्पण दृष्टिगोचर होता है। एक भक्त के रूप में तुलसी ईश्वर के प्रति दैन्यभाव से ही अपनी अभिव्यक्त करते हैं। ‘विनयपत्रिका’ में उनके अति भावुक स्वरूप की झाँकी मिलती है।
गोस्वामी तुलसीदास की काव्य-प्रतिभा का सबसे विशिष्ट पक्ष यह है कि ये समन्वयवादी थे। इन्होंने ‘श्रीरामचरितमानस’ ने राम को शिव का और शिव को राम का भक्त प्रदर्शित कर वैष्णव एवं शैव सम्प्रदायों में समन्वय के भाव को अभिव्यक्त किया। निषाद एवं शबरी के प्रति राम के व्यवहार का चित्रण कर समाज की जातिवाद पर आधारित भावना की निस्सारता (महत्त्वहीनता) को प्रकट किया और ज्ञान एवं भक्ति में समन्वय स्थापित किया ।
संक्षेप में तुलसीदास एक विलक्षण प्रतिभा से सम्पन्न तथा लोकहित एवं समन्वय भाव से युक्त महाकवि थे । भाव-चित्रण, चरित्र-चित्रण एवं लोकहितकारी आदर्श के चित्रण की दृष्टि से इनकी काव्यात्मक प्रतिभा का उदाहरण सम्पूर्ण विश्व – साहित्य में भी मिलना दुर्लभ है।
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