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मीरा बाई का संक्षिप्त साहित्यिक परिचय | मीराबाई की साहित्यिक रचनाएं

मीरा बाई का संक्षिप्त साहित्यिक परिचय
मीरा बाई का संक्षिप्त साहित्यिक परिचय

मीरा बाई का संक्षिप्त साहित्यिक परिचय | भक्तिकालीन कवित्व में मीराबाई के महत्त्व

भक्तिकाल हिन्दी साहित्य का सर्वाधिक क्रान्तिकारी और अनेक महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों का काल हैं। संस्कृत और अपभ्रंश की जगह पर लोक भाषाओं की प्रतिष्ठा, समाज के सदियों से पद दलित निम्न जनों में आत्म- गौरव के प्रसार सभी प्रकार की रूढ़ियों के विरोध, मनुष्य की महत्ता के आख्यान आदि सभी दृष्टियों से हिन्दी साहित्य का यह कालखण्ड अतीत महत्त्वपूर्ण है।

हिन्दी का यह भक्तिकाल भारतीय इतिहास का मध्यकाल है। इस समय सामान्य रूप से पूरे देश में और विशेष रूप से मीराबाई के जन्म प्रान्त राजस्थान में सामन्तवाद अपनी पूरी शक्ति के साथ प्रतिष्ठित था । भक्ति काव्य इन्हीं सामन्ती रूढ़ियों के विरुद्ध विद्रोह भाव लेकर अवतरित हुआ था। इस विद्रोह भाव का सबसे महत्त्वपूर्ण प्रकटीकरण भाषा के क्षेत्र में दिखायी दिया। पुरोहितों ने सारा ज्ञान विज्ञान संस्कृत की पोथियों में कैद कर रखा था। साधारण जनता इससे पूरी तरह वंचित थी। भक्त कवियों ने अपनी प्रबल जन पक्षधरता का परिचय देते हुए जनता की भाषाओं में ही अपने काव्य की सर्जना की। उनकी स्पष्ट उद्घोष था ।

का भाषा का संस्कृत, प्रेम चाहिए साँच।

काम जो आवै कामरी, का ले करै कुमाँच।

इस प्रकार भक्त कवियों ने सामन्तों-राजाओं के स्थान पर अपने काव्य में साधारण जन की वेदना की प्रतिष्ठा की।

मीराबाई का काव्य भक्ति-काव्य की एक अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण इकाई है। जिसमें सदियों की पददलित और अवमानित भारतीय नारी का दर्प और आत्मविश्वास अत्यन्त ही प्रांजल रूपों से उभरकर हमारे सामने आया है। भक्ति और माधुर्य भाव की प्रतिष्ठा की दृष्टि से मीराबाई का योगदान अन्यतम है। सम्पूर्ण भक्ति काव्य में वह एक ऐसी कवयित्री हैं जिसमें नारी के आहत हृदय की परिपूर्ण व्यंजना देखने को मिलती है। काव्य-कला की दृष्टि से भी मीराबाई का काव्य सभी प्रकार से प्रशंसनीय और महार्ध है।

इस प्रकार निर्विवाद रूप से हम कह सकते हैं कि भक्तिकाल के भीतर मीराबाई अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान की अधिकारिणी हैं।

मीराबाई की साहित्यिक रचनाएं

मीराबाई की रचनाओं में ‘नरसीजी का मायरा, राम गोविन्द, राग सोरठ के पद, गीतगोविन्द की टीका, मीराबाई की मल्हार, राग विहाग एवं फुटकर पद तथा गरवा गीत आदि मीरा की प्रसिद्ध साहित्यिक रचनाएं हैं।

मीरा जिन पदों को गाती थी, तथा भाव-विभोर होकर नृत्य करती थी, ही गेय पद उनकी रचना कहलाए ।

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