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मलिक मुहम्मद जायसी का संक्षिप्त जीवन परिचय, साहित्यिक व्यक्तित्व तथा कृतियाँ

मलिक मुहम्मद जायसी का संक्षिप्त जीवन परिचय, साहित्यिक व्यक्तित्व तथा कृतियाँ
मलिक मुहम्मद जायसी का संक्षिप्त जीवन परिचय, साहित्यिक व्यक्तित्व तथा कृतियाँ

मलिक मुहम्मद जायसी का संक्षिप्त जीवन परिचय दीजिए।

जीवन परिचय-प्रेम का पीर के अमर गायक कवि मलिक मुहम्मद जायसी का जन्म संवत् 1549 अर्थात् 900 हिजरी (सन् 1492 ई.) के लगभग हुआ था। उन्होंने ‘आखिरी कलाम’ ग्रंथ में अपने जन्म का संकेत देते हुए लिखा है-“भा अवतार मौर नो सदी।”

कुछ विद्वानों ने जायसी का जन्म-स्थान गाजीपुर को और कुछ के जायसनगर को माना है। “जायस नगर मोर अस्थानू” कहकर जायसी ने स्वयं जायस को ही अपना निवास-स्थान कहा है। उनके पिता का नाम शेख ममरेज था। उनकी माता का नाम अभी तक भी ज्ञात नहीं हो पाया है। बाल्यकाल में ही उनके माता-पिता की मृत्यु हो गई थी ओर यह अनाथ बालक साधु-सन्तों की संगति में ही पला। सूफी सम्प्रदाय के प्रसिद्ध पोर शेख मोहदी उनके गुरु थे । जायसी की शिक्षा के सम्बन्ध में कुछ अधिक ज्ञात नहीं हो पाया है परन्तु इतना निश्चित है कि जायसी बहुत विद्वान् थे। उन्हें वेदान्त, ज्योतिष, दर्शन, रसायन तथा हठयोग का पर्याप्त ज्ञान था ।

जायसी कुरूप थे। चेचक के प्रकोप से इनकी बाई आँख और कान बचपन में ही चले गये थे। कहा जाता है कि एक बार बादशाह शेरशाह उनके रूप को देखकर हँस पड़ा था। शेरशाह के इस अपमानपूर्ण व्यवहार से दुःखी होकर उन्होंने कहा था- “मोहि का हँससि के कोहरहि ?” अर्थात् तुम मुझ पर हँसे हो अथवा उस कुम्हार (ईश्वर) पर, जिसने मुझे बनाया है। यह सुनकर बादशाह बहुत लज्जित हुआ।

जायसी गाजीपुर और भोजपुर के आश्रय में रहते थे। बाद में वे राजा अमेठी के राजा मानसिंह के निमन्त्रण पर उनके दरबार में चले गए थे। वे अमेठी के पास के वन में ही रहते हैं। संवत् 1599 (सन् 1542 ई.) के लगभग उन्होंने अपने पार्थिव शरीर को त्याग दिया।

जायसी के साहित्यिक व्यक्तित्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए ।

मलिक मुहम्मद जायसी को प्रेममार्गी निर्गुण-भक्ति शाखा के कवियों में प्रतिनिधि कवि माना जाता है। अब तक जायसी द्वारा रचित ‘पद्मावत‘, ‘अखरावट, ‘आखिरी कलाम’, ‘चित्ररेखा’, ‘कराहनामा’, ‘मसलानामा’ आदि रचनाएँ प्राप्त हुई हैं।

इन ग्रन्थों में ‘पद्मावत’ सर्वोत्कृष्ट रचना है। वास्तविकता यह है कि जायसी की काव्य-प्रतिभा का विकसित रूप ‘पद्मावत’ में ही मिलता है ।

जायसी निर्गुण ब्रह्म के उपासक थे और उसकी प्राप्ति के लिए ‘प्रेम’ की साधना में विश्वास रखते थे। उन्होंने अपने काव्य में इस ‘प्रेममार्ग’ के लिए विरहानुभूति पर सर्वाधिक बल दिया है। ईश्वर से वियोग की तीव्र प्रेमानुभूति ही भक्त को साधना-पथ पर अग्रसर होने के लिए प्रेरित करती है। यह भक्ति-भावना ‘पद्मावत’ में प्रभावशाली रूप से व्यक्त हुई है। जायसी का विरह वर्णन और विरह-भावना की अनुभूति अत्यन्त मर्मस्पर्शी है। यदि यह कहा जाए कि सौन्दर्य – विरह की अभिव्यक्ति में जायसी हिन्दी-काव्य – जगत के सर्वाधिक प्रतिभाशाली कवि थे। तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। जायसी एक रहस्यवादी कवि थे। इन्होंने ‘पद्मावत’ में स्थूल पात्रों के माध्यम से सूक्ष्म दार्शनिक भावनाओं को अभिव्यक्त दी है। इसमें ईश्वर एवं जीव के पारस्परिक प्रेम की अभिव्यंजना दाम्पत्य भाव से की गई है।

मलिक मुहम्मद जायसी की कृतियाँ

जायसी की रचनाओं के विषय में विद्वानों में पर्याप्त मतभेद उपलब्ध तथ्यों के आधार पर जायसी द्वारा रचित निम्नलिखित ग्रन्थ स्वीकार किए जा सकते हैं-

(1) पद्मावत – इसमें चित्तौड़ के राजा रत्नसेन और सिंहल द्वीप के राजा गन्धर्वसेन पुत्री पद्मावती की प्रेम-कहानी का वर्णन है। यह एक प्रेमाख्यानक काव्य है, जिसका पूर्वार्द्ध काल्पनिक ओर उत्तरार्द्ध ऐतिहासिक है।

(2) अखरावट- इस ग्रंथ में ईश्वर, जीव, सृष्टि आदि पर जायसी के सैद्धान्तिक विचार व्यक्त हुए हैं।

(3) आखिरी कलाम- इसमें कयामत (प्रलय) का वर्णन किया गया है। इनके अतिरिक्त जायसी की कई अन्य रचनाएँ भी स्वीकार की जाती हैं, किन्तु वे अभी तक अनुपलब्ध हैं।

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