बालक की मानसिक अस्वस्थता के कारण (Causes of Child’s Mental ill Health)
मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति में संवेगात्मक अस्थिरता, आत्म-विश्वास की कमी, उलझन, निराशा, अव्यवस्थित व्यक्तित्व दशाएँ होती हैं। दूसरे शब्दों में, मानसिक अस्वस्थता वह स्थिति है जिसमें जीवन की आवश्यकता को सन्तुष्ट करने में व्यक्ति अपने को असमर्थ पाता है और संवेगात्मक असन्तुलन का शिकार हो जाता है। इस प्रकार के व्यक्ति में भग्नाशा, मानसिक द्वन्द्व, तनाव, भावना ग्रन्थियाँ तथा चिन्ता आदि अधिक रूप में पाये जाते हैं जिससे जरा-जरा सी बात में वह असामान्य व्यवहार करता है।
बहुधा जिन कारणों से बालक का मन अस्वस्थ होता है, उनको हम तीन भागों में विभाजित कर सकते हैं-
(अ) परिवार सम्बन्धी कारण
बालक के जीवन का काफी अंश उसके परिवार के साथ बीतता है। उसका प्रारम्भिक जीवन अपने परिवार के साथ ही बीतता है, इसलिए परिवार का प्रभाव बालक के मन एवं स्वास्थ्य पर पड़ना अनिवार्य है। परिवार सम्बन्धी कारणों का उल्लेख यहाँ किया जा रहा है-
(1) माता-पिता की घृणा का प्रभाव- बहुत से माता-पिता ऐसे होते हैं जो अपनी सन्तान में कुछ कमी, जैसे असुन्दरता आदि के कारण उससे घृणा करने लगते हैं। इस घृणा का बालकों के मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ता है। ऐसी स्थिति में बालक अपने माता-पिता के प्रति बुरी भावनाएँ रखने लगते हैं। बदला लेने की सोचने लगते हैं। माता-पिता से तो उसे प्यार मिलता नहीं, इसलिए प्यार की खोज में वह कभी-कभी बुरे आचरण के लोगों से मित्रता कर लेता है। ऐसे बालकों में मानसिक ग्रन्थियाँ बन जाती हैं। वे अपने को समाज और पर्यावरण में समायोजित नहीं कर पाते हैं ।
(2) परिवार की गरीबी का प्रभाव- गरीबी का भी मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। निर्धनता के कारण बालक में हीनता की भावना, व्यक्तित्व में उग्रता एवं असुरक्षा की भावना पैदा हो जाती है। इन भावनाओं से उसका मस्तिष्क बहुत उलझा रहता है, उसे जीवन के सभी क्षेत्रों में मात खानी पड़ती है।
(3) माता-पिता के व्यक्तित्व का प्रभाव- बालक पर माता-पिता के व्यक्तित्व का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। कुछ माता-पिता अपने सिद्धान्त के पक्के होते हैं और भी बालकों के प्रति बड़े कठोर होते हैं। इससे बालकों के मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव पड़ता है, जो कार्य सरलता से किया जा सकता है वह कठोरता से नहीं किया जा सकता। इस कठोरता का परिणाम यह होता है कि बालक का स्नायुतन्त्र रोगग्रस्त हो जाता है और उसके अचेतन मन में भावना-ग्रन्थियों का निर्माण हो जाता है।
(4) माता-पिता का पक्षपाती व्यवहार- बहुधा देखा गया है कि कुछ माता पिता अपने केसी बच्चे को अधिक प्यार करते हैं और किसी को कम। प्यार न पाने वाले बच्चों के अन्दर दो प्रकार की मनोवृत्तियाँ उत्पन्न होती हैं, एक तो यह कि वह बालक अपने माता-पिता और उन बच्चों से ईर्ष्या करने लगता है जिन्हें माता-पिता द्वारा अधिक प्यार दिया जाता है। दूसरी बात यह है कि जिसके बच्चे के जीवन में प्रेम नहीं होता वह झगड़ालू हो जाता है।
(ब) विद्यालय सम्बन्धी कारण
विद्यालय में बालक के मस्तिष्क पर निम्न बातों का प्रभाव पड़ता है-
(1) शिक्षक के व्यक्तित्व का प्रभाव- परिवार में माता-पिता जो स्थान रखते हैं वहीं स्थान अध्यापक विद्यालय में रखता है। यदि शिक्षा का व्यक्तित्व आदर्शपूर्ण है तो इसका बालक पर अच्छा प्रभाव पड़ता है और यदि शिक्षक का व्यक्तित्व ठीक नहीं है तो इसका बालक के मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। वह अपने को विद्यालय के वातावरण में समायोजित नहीं कर पाता।
(2) पाठ्यक्रम का प्रभाव- हमने पहले ही पाठ्यक्रम का उल्लेख किया है। यदि पाठ्यक्रम बालक की योग्यता, रुचि एवं क्षमता के अनुसार नहीं होता तो बालक पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है। रुचि न होने पर बालक विषय को पढ़ना नहीं चाहते और विद्यालय जाते समय डरते हैं कि आज मार पड़ेगी, क्योंकि पाठ तैयार नहीं होता। इन बातों से उसके मन में चिन्ता भर जाती है और मस्तिष्क उलझ जाता है। इससे उसका मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ जाता
(3) विद्यालय का वातावरण- विद्यालय के वातावरण का भी बालक के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है। यदि विद्यालय में बालक पर अत्यधिक नियन्त्रण रखा जाता है, उसकी इच्छाओं का दमन किया जाता है अथवा उसे पाठ्यक्रमेत्तर क्रियाओं में भाग लेने से रोका जाता है तो उसके मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। यदि विद्यालय और कक्षा में सदैव भय का वातावरण रहता है तो बालक सदैव मानसिक रूप से अस्वस्थ रहता है।
(4) अनुपयुक्त शिक्षण विधियाँ- यदि शिक्षक वैयक्तिक भिन्नता का ध्यान न देकर, मनोवैज्ञानिक विधियों का प्रयोग करते हैं तो बालक को ज्ञानार्जन में कठिनाई होती है और जब वह कुछ सीख नहीं पाता तो निराश हो जाता है।
(5) दोषपूर्ण परीक्षा प्रणाली- आधुनिक युग में जो आत्मनिष्ठ परीक्षाएँ प्रचलित हुई हैं उनसे बालक की वास्तविक प्रगति और योग्यता का सही मूल्यांकन नहीं हो पाता। प्रायः परीक्षा के विभिन्न दोषों के कारण योग्य बालकों को कक्षोन्नति नहीं मिल पाती तथा भाग्यवश किन्हीं कारणों से अयोग्य बालक उत्तीर्ण हो जाते हैं। इस स्थिति में योग्य बालक निरुत्साहित होकर आत्म-विश्वास खो देते हैं तथा अयोग्य बालक भी पढ़ने में रुचि नहीं लेते। इस तरह के बालक विद्यालय और समाज में स्वयं को समायोजित नहीं कर पाते।
(6) प्रतिद्वन्द्विता का प्रभाव- अत्यधिक प्रतियोगिता एवं प्रतिद्वन्द्विता के कारण बालक अपने को उच्च सिद्ध करने के लिए अनुचित साधनों का प्रयोग करते हैं। प्रतियोगिता में सफल बालक के अन्दर अहं का विकास हो जाता है। इसके विपरीत जो बालक असफल रह जाते हैं उनमें हीनता और ईर्ष्या की भावना पैदा हो जाती है, जो मानसिक स्वास्थ्य के हित में नहीं होता।
(7) कक्षा की व्यवस्था- यदि कक्षा सुचारु रूप से चलायी जाती है तो बालक पर इसका अच्छा प्रभाव पड़ता है, अन्यथा बालक पढ़ाई से ऊब जाते हैं। शिक्षकों के प्रति उनकी भावनाएँ बिगड़ जाती हैं। इस प्रकार के अध्ययन वे अपनी शिक्षा उचित ढंग से नहीं कर पाते और उनके ज्ञानार्जन में भी काफी बाधा पड़ती है। इसलिए मनोवैज्ञानिक ढंग से ही कक्षा संचालित की जानी चाहिए जिससे कि बालकों के मानसिक स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़े।
(8) नियन्त्रण की अधिकता- अधिक नियन्त्रण का बालक पर बुरा प्रभाव पड़ता है। बालक स्वतन्त्र नहीं रह पाता, जिससे वह खुद कुछ सोचने एवं करने का साहस नहीं कर पाता। कक्षा में बहुत अधिक नियन्त्रण करने पर बालकों को हर समय अपने को शिष्ट ढंग से रखना पड़ता है। इससे उनका मानसिक विकास अवरुद्ध हो जाता है। बालक को कुछ न कुछ समय ऐसा मिलना चाहिए कि वे अपने को स्वतन्त्र महसूस कर सकें, इससे उनके मानसिक स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।
(स) समाज सम्बन्धी कारण
गन्दे समाज में बालक का मानसिक स्वास्थ्य कभी भी उचित रूप से विकसित नहीं हो सकता। बुरे समाज के लोगों में प्रायः लड़ाई-झगड़े होते रहते हैं, उनमें बदला लेने की भावना बनी रहती है। ईर्ष्या, क्रोध, क्रूरता, घृणात्मक कार्य, घमण्ड एवं विद्वेष आदि का बोलबाला रहता है। इन सब कारणों का बालक के मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। वह बुरी आदतों का शिकार हो जाता है जिससे उसका मानसिक स्वास्थ्य विकृत हो जाता है।
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