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थर्स्टन का समूह कारक सिद्धान्त | थर्स्टन के समूह तत्त्व सिद्धान्त के गुण | थर्स्टन के समूह तत्त्व सिद्धान्त के दोष

थर्स्टन का समूह कारक सिद्धान्त
थर्स्टन का समूह कारक सिद्धान्त

थर्स्टन का समूह कारक सिद्धान्त (Thurston’s Group Factor Theory)

थर्स्टन ने स्पीयरमैन की सामान्य बुद्धि को स्वीकार नहीं किया। उसने यह पाया कि बुद्धि को अनेक प्राथमिक योग्यताओं में विभाजित किया जा सकता है। इस तरह उसने थॉर्नडाइक की भाँति बुद्धि को अनेक योग्यताओं का योगफल माना, परन्तु उसका विचार थॉर्नडाइक के विचार से भी भिन्न था। जहाँ थार्नडाइक ने मानसिक योग्यताओं को पूरी तरह स्वतन्त्र माना वहाँ थर्स्टन ने मानसिक योग्यताओं को पूर्ण रूप से स्वतन्त्र नहीं माना। उसने योग्यताओं को कई समूहों में विभाजित किया और कहा कि इन समूहों के मध्य बहुत कम सम्बन्ध होता है, किन्तु प्रत्येक समूह की अपनी योग्यताओं अथवा तत्त्वों के मध्य उच्च सह-सम्बन्ध होता है। इस तरह थर्स्टन का सिद्धान्त वास्तव में स्पीयरमैन और थॉर्नडाइक के सिद्धान्तों के मध्य एक मध्य मार्ग है।

प्राथमिक योग्यताओं को खोजने के लिए थर्स्टन ने बहुत परिश्रम किया। उसने बहुतत्त्व विश्लेषण विधि (Technique of multiple factor Analysis) का प्रयोग किया। उसने मापकों अथवा परीक्षणों में विभिन्न प्रकार के पदों अथवा एकांशों का व्यवहार किया, यथा एक वर्ग में शाब्दिक बोध के पदों अथवा एकांशों को रखा, दूसरे समूह में अंकगणित संगणना (Arithmetical Computation) के पदों को रखा। इस आधार पर बनाये गये मापकों द्वारा प्राप्त परिणामों का तत्त्व विश्लेषण किया और मौलिक तत्त्वों को खोजने का प्रयास किया। खोजे गये तत्त्वों का सर्वोत्तम प्रतिनिधित्व जिन परीक्षण एकांशों से हुआ उनसे नये परीक्षणों का निर्माण किया गया। इन परीक्षणों का व्यवहार प्रयोज्यों के दूसरे समूह पर किया गया और उनके मध्य अन्तः सह-सम्बन्ध ज्ञात किया गया। अनेक अध्ययनों के पश्चात् थर्स्टन ने इन सात समूह तत्त्वों का उल्लेख किया- (i) शाब्दिक, बोथ (Verbal Comprehension), (ii) शब्द प्रवाह (Word Fluency), (iii) संख्या (Number), (iv) स्थान (Space), (v) स्मरण (Memory), (vi) प्रत्यक्षीकरण- गति (Perceptual Speed) और (vii) विवेक (Reasoning)। इन योग्यताओं को मापने के लिए थर्स्टन ने एक परीक्षण बैटरी का निर्माण किया जिसे प्राथमिक मानसिक योग्यता परीक्षण (Test of primary mental ability) कहा जाता है। इस परीक्षण का व्यवहार आज भी व्यापक रूप से किया जा रहा है।

इस तरह थर्स्टन के अनुसार संज्ञानात्मक कार्यों के मध्य सह-सम्बन्ध का आधार सामान्य तत्त्व नहीं वरन् एक ही समूह की योग्यताएँ हैं। दो कार्यो को करते समय एक समूह की जितनी योग्यताएँ सम्मिलित रहती हैं उनके बीच उतना ही अधिक सह-सम्बन्ध होता है। इसी प्रकार दो कार्यों के मध्य अन्तर का आधार भिन्न समूहों की योग्यताएँ हैं। दो संज्ञानात्मक कार्यों को करते समय एक समूह के अतिरिक्त दूसरे समूह अथवा समूहों की कुछ योग्यताएँ भिन्न-भिन्न सम्मिलित हो जाती हैं। इस कारण कार्यों के मध्य अन्तर उत्पन्न जाता है और सह- सम्बन्ध पूर्ण नहीं हो पाता है। कार्य “अ” तथा कार्य “च” दोनों में सातवें समूह की प्राथमिक योग्यताएँ सहयोग दे रही हैं। अतएव इनके मध्य धनात्मक सह-सम्बन्ध है। इसके साथ ही कार्य “ब” में प्रथम समूह एवं तृतीय समूह की योग्यताएँ भी सम्मिलित हैं। दूसरी ओर कार्य “अ” में चतुर्थ समूह और पंचम समूह की योग्यताएँ भी सम्मिलित हैं। अतएव इन भिन्न योग्यताओं के कारण दोनों कार्यों में अन्तर है जिसके फलस्वरूप पूर्ण सह-सम्बन्ध नहीं हो सका है।

थर्स्टन ने समस्त परीक्षणों में धनात्मक सह-सम्बन्ध (Positive Correlation) की प्रवृत्ति देखी। इस आधार पर उसने किसी सामान्य तत्त्व अथवा तत्त्वों का अनुमान लगाया। इस सामान्य तत्त्व को उसने प्रथम अथवा प्राथमिक तत्त्व कहा। उसका यह प्राथमिक तत्त्व वास्तव में स्पीयरमैन के सामान्य तत्त्व (‘G’ Factor) की तरह है। इस दृष्टि से देखने पर थर्स्टन एवं स्पीयरमैन के सिद्धान्तों के मध्य मात्र इतना अन्तर रह जाता है कि थर्स्टन ने प्राथमिक योग्यताओं के सात समूहों के मध्य कम सह-सम्बन्ध माना तथा प्रत्येक समूह के तत्त्वों अथवा योग्यताओं के मध्य अधिक सह-सम्बन्ध का उल्लेख किया।

थर्स्टन के समूह तत्त्व सिद्धान्त के गुण

थर्स्टन के समूह तत्त्व सिद्धान्त के अनेक गुण हैं जिनका वर्णन यहाँ संक्षेप में किया जा रहा है-

(1) थर्स्टन ने अपने सिद्धान्त में कारक -विश्लेषण (Factor Analysis) के उद्देश्यों को सफलतापूर्वक प्रस्तुत किया। कारक विश्लेषण के उद्देश्य का उल्लेख केवल थर्स्टन के सिद्धान्त में ही स्पष्ट रूप से मिलता है। इसके अनुसार कारक विश्लेषण के तीन उद्देश्य हैं- (i) संज्ञानात्मक कार्यों के मध्य सम्बन्धों की व्याख्या के लिए मौलिक योग्यताओं की खोज करना,. (ii) मौलिक योग्यता की निश्चित मात्रा को निर्धारित करना और (iii) सभी मौलिक योग्यताओं के मध्य प्रतिगमन को निश्चित करना। इस दृष्टिकोण से यह सिद्धान्त काफी अच्छा है।

(2) यह सिद्धान्त स्पीयरमैन के द्वितत्त्व सिद्धान्त और थॉर्नडाइक के बहुतत्त्व सिद्धान्त के मध्य एक समझौता है। स्पीयरमैन ने बुद्धि के केवल दो संरचनात्मक तत्त्वों को मान्यता दी जबकि थॉर्नडाइक के अनेक संरचनात्मक तत्त्वों की कल्पना की, परन्तु थर्स्टन ने अपने समूह तत्त्व सिद्धान्त में सात संरचनात्मक तत्त्वों का उल्लेख कर इन दोनों सिद्धान्तों के मध्य मार्ग को खोज निकाला।

(3) समूहतत्त्व सिद्धान्त इस तथ्य की व्याख्या सफलतापूर्वक करने का दावा करता है कि किसी व्यक्ति के भिन्न-भिन्न संज्ञानात्मक कार्यों के मध्य उच्च सह-सम्बन्ध क्यों होता है।

(4) थर्स्टन के सिद्धान्त के आलोक में इस बात की व्याख्या होती है कि व्यक्ति के भिन्न-भिन्न संज्ञानात्मक कार्यों में थोड़ा-बहुत अन्तर क्यों होता है। थर्स्टन के अनुसार ऐसा इस कारण होता है कि व्यक्ति को भिन्न-भिन्न संज्ञानात्मक कार्यों को नियन्त्रित एवं संचालित करने में एक समूह की योग्यताओं के साथ दूसरे समूह अथवा समूहों की कुछ योग्यताएँ भी सक्रिय रह सकती हैं।

(5) थर्स्टन के सिद्धान्त की अभिधारणा को इस वास्तविकता से बल प्राप्त होता है कि विभिन्न प्राथमिक योग्यताओं के मध्य कुछ-न-कुछ सह-सम्बन्ध अवश्य पाया जाता है। थर्स्टन ने अपने अध्ययन के आधार पर संख्यात्मक योग्यता एवं शब्द प्रवाह के मध्य 46 संख्यात्मक योग्यता एवं शब्दबोध के मध्य 0.38 शब्द बोध एवं शब्द प्रवाह के हेतु 51 एवं शब्द बोध तथा स्मरण के मध्य 39 का सह सम्बन्ध ज्ञात किया ।

थर्स्टन के समूह तत्त्व सिद्धान्त के दोष

थर्स्टन के समूह तत्त्व सिद्धान्त को बुद्धि का संतोषजनक सिद्धान्त कहना कठिन है। अचेक मनोवैज्ञानिकों ने इस सिद्धान्त की आलोचना की है और इसकी त्रुटियों अथवा अवगुणों का उल्लेख किया है-

(1) समूहतत्त्व सिद्धान्त की आलोचना इस आधार पर की जाती है कि इसमें स्थिरता का अभाव है। प्राथमिक योग्यताओं अथवा मौलिक योग्यताओं की संख्या के सम्बन्ध में उसका विचार बदलता रहता है। उसने कभी 9, कभी 8 और कभी 7 योग्यताओं का उल्लेख किया है।

(2) एक्सट्रोस एवं गिलफोर्ड के अध्ययन से समूहतत्त्व सिद्धान्त का खण्डन होता है। उनके अनुसार विभिन्न बौद्धिक योग्यताओं को व्यक्त करने में 20 से 120 कारकों का हाथ माना जाता है, केवल 7 कारकों का नहीं। इस तरह थर्स्टन का यह दावा कि बुद्धि 7 मौलिक योग्यताओं का समूह है, संदिग्ध हो जाता है।

(3) एटकिन्सन के अनुसार थर्स्टन के सिद्धान्त के आधार पर बुद्धि की संरचना एवं उसके स्वरूप की समुचित व्याख्या नहीं हो पाती है।

(4) समूहतत्त्व सिद्धान्त का यह दावा कि व्यक्ति के संज्ञानात्मक कार्यों में समानता का आधार एक ही समूह की योग्यताएँ हैं और भिन्नता का आधार विभिन्न समूहों की योग्यताएँ हैं, संदेहात्मक है।

(5) एटकिन्सन के अनुसार कारक विश्लेषण (Factor Analysis) के आधार पर प्राथमिक योग्यताओं के निर्धारण में थर्स्टन को कई कारणों से पूर्ण सफलता नहीं मिली, पहली बात यह है कि थर्स्टन की प्राथमिक योग्यताएँ पूर्णतः स्वतन्त्र नहीं हैं। वरन् उनके मध्य सार्थक अन्तःसह-सम्बन्ध है, दूसरी यह कि कारक विश्लेषण द्वारा निर्धारित तत्त्वों की संख्या वास्तव में चुने गये परीक्षण एकांशों के स्वरूप पर निर्भर करती हैं।

अतएव बुद्धि के जटिल स्वरूप एवं उसकी संरचना की समुचित व्याख्या थर्स्टन के समूह तत्त्व सिद्धान्त से अपवर्जक रूप में सम्भव नहीं है।

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