समानता से आप क्या समझते हैं? इसके प्रकार बताइये। अथवा समानता के स्वरूप का वर्णन कीजिये।
समानता (Equality)
(अ) समानता का अर्थ एवं परिभाषा–
साधारण रूप से समानता का अर्थ सब व्यक्तियों का समान दर्जा माना जाता है। यह कहा जाता है कि सब का जन्म होता है, सभी मरते हैं और सबकी एक-सी इन्द्रियाँ होती इसलिए ऊँच-नीच, धनी-निर्धन, शिक्षित-अशिक्षित, सबल-निर्बल का भेद नहीं होना चाहिए। परन्तु समानता का यह अर्थ भ्रमपूर्ण है। सभी इस प्रकार समान नहीं । प्रकृति ने सभी को समान नहीं बनाया है। वे स्वभाव, बुद्धि, क्षमता आदि में असमान होते हैं। इससे स्पष्ट है कि जैसे समानता प्राकृतिक है वैसे असमानता भी प्राकृतिक है। अतएव समानता का अर्थ सबकी बराबरी लगाना उचित नहीं है। अब प्रश्न यह उठता है कि समानता का अर्थ क्या होना चाहिए? प्रो० लॉस्की ने समानता को स्पष्ट करते हुए लिखा है “समानता का यह मतलब नहीं कि प्रत्येक व्यक्ति के साथ एक जैसा व्यवहार किया जाय अथवा प्रत्येक व्यक्ति को समान वेतन दिया जाय। यदि ईंट ढोने वाले का वेतन एक प्रसिद्ध गणितज्ञ अथवा वैज्ञानिक के बराबर कर दिया गया तो इससे समाज का उद्देश्य ही नष्ट हो जायेगा। इसलिए समानता का यह अर्थ है कि कोई व्यक्ति अधिकार वाला वर्ग न रहे और सबको उन्नति के समान अवसर प्राप्त हों।”
इससे स्पष्ट है कि प्रो. लॉस्की समानता के दो अर्थ लगाता है। समानता का पहला अर्थ यह है कि किसी को विशिष्ट अधिकार न दिये जायें। नागरिक होने के नाते प्रत्येक जिन अधिकारों के योग्य है वे अधिकार उसे भी उस सीमा तक और उसी दृढ़ता के साथ प्राप्त होने चाहिए। इससे स्पष्ट है कि समानता से युक्त समाज में राज्य और समाज की ओर सेसभी को समान अधिकार दिये जाते हैं। समानता का दूसरा अर्थ यह है कि सभी नागरिकों को अपनी उन्नति के लिए समान अवसर प्राप्त होते हैं। सभी को अपने व्यक्तित्व के विकास का पूर्ण अवसर मिलता है।
(ब) समानता के प्रकार-
समानता के निम्नलिखित भेद बताये गये हैं :-
(1) नागरिक समानता – इस प्रकार की समानता का अर्थ यह है कि सभी नागरिकों को अपने उत्तरदायित्व के निर्वाह के लिए समान अधिकार प्राप्त होना चाहिए। सभी को नागरिक अधिकारों का उपयोग करने का अवसर मिलना चाहिए। कानून की दृष्टि से सभी बराबर होने चाहिए। जाति, रंग, वर्ण, धर्म, जन्म स्थान आदि के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए।
(2) राजनीतिक समानता- राजनीतिक समानता का अर्थ यह है कि सभी नागरिकों को शासन मं समान रूप से भाग का अवसर प्राप्त होना चाहिए। सभी को मत देने, पद के लिए उम्मीदवार होने और सरकारी पद आदि को प्राप्त करने का अधिकार होना चाहिए। योग्यता अथवा अपराध के अधिकार पर किसी को किसी कार्य से वंचित किया जा सकता है। परन्तु लिंग, जाति या धर्म के आधार पर किसी को किसी राजनीतिक अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।
(3) सामाजिक समानता – सामाजिक समानता का अर्थ यह है कि समाज में जाति, धर्म, वर्गगत भेदों का अभाव अर्थात जब किसी समाज में धनी-निर्धन, छूआ-अछूत, ऊँच-नीचे के भेदभाव नहीं होते तो हम यह कहते हैं कि वहाँ सामाजिक समानता विद्यमान हैं समाज को रंग, जाति, वर्ग या वंश के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करना चाहिए।
(4) प्राकृतिक समानता- प्राकृतिक समानता के समर्थक इस तथ्य पर बल देते हैं कि प्रकृति ने मनुष्य को समान बनाया है। अतएव किसी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए परन्तु यह धारणा भ्रामक है। सामाजिक समानता के सिद्धान्तों की प्रवृत्ति भले ही प्राकृतिक समानता की बात करें, परन्तु व्यवहार में देखने में यह आता है कि प्रत्येक बुद्धि, बल और प्रतिभा की दृष्टि से समान नहीं होते। कोल ने ठीक ही लिखा – “मनुष्य शारीरिक बल-पराक्रम, मानसिक योग्यता, सृजनात्मक प्रवृत्ति, सामाजिक सेवा की भावना और सम्भवतः सबसे अधिक कल्पना शक्ति में एक-दूसरे से मूलतः भिन्न है।” इस स्थिति में प्राकृतिक समानता के विचार को अधिक से अधिक इस रूप में रख सकते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति के व्यक्तित्व को समझा जाना चाहिए और एक व्यक्ति के व्यक्तित्व का प्रयोग दूसरे व्यक्ति के व्यक्तित्व के साधन के रूप में नहीं किया जाना चाहिए।
(5) आर्थिक समानता – आर्थिक समानता का विचार आधुनिक है। समाजवादियों और साम्यवादियों ने उसे आधारभूत सिद्धान्त के रूप में अपनाया है। आर्थिक समानता का अर्थ यह है कि सब मनुष्यों को आवश्यकतानुसार धन की प्राप्ति हो। किसी के पास इतना धन न हो कि वह दूसरे का शोषण कर सके। आर्थिक समानता का अर्थ यह नहीं है कि सभी के पास बरबार धन हो। बल्कि इसका अर्थ यह है कि सम्पत्ति और धन का उचित वितरण होना चाहिए। कोई भी व्यक्ति भूखा न मरे और कोई भी इतना अधिक धन न जमा कर से कि वह दूसरों का शोषण करने लगे।
समानता का स्वरूप ( Nature of Equality )
समानता के अर्थ को समझ लेने के उपरान्त उसके स्वरूप पर विचार करने की आवश्यकता है। समानता की स्थापना के लिए निम्नलिखित स्थितियों की विशेष आवश्यकता है-
1. माँगों और प्रार्थना-पत्रों पर समान रूप से विचार (Right to Equal Consideration ) – इसका आसय यह है कि सार्वजनिक कर्त्तव्यों का निर्वाह करते समय अधिकारियों को निष्पक्षता से कार्य करना चाहिए। दूसरे शब्दों में, उन्हें अपनी व्यक्तिगत पसंद या नापसंदगी से काम नहीं लेना चाहिए। अपने निजी जीवन में प्रत्येक व्यक्ति राग-द्वेष से काम ले सकता है। उसे अधिकार है कि वह होली या दिवाली पर जिससे चाहे मिले और जिससे न चाहे, न मिले। इसी प्रकार उसे यह भी अधिकार है कि वह किसी भूरे बाल वाली में सेविका (Maid Servant) बनाकर रखे या न रखे किन्तु एक सरकारी अधिकरी के रूप में वह रोग-द्वेषपूर्वक काम नहीं कर सकता। सभी नागरिकों का यह समान अधिकार है कि उनकी माँगों और प्रार्थना पत्र पर उचित ध्यान दिया जाये। एक व्यक्ति का प्रार्थना पत्र इसी आधार पर निरस्त न किया जाये कि वह अमुक जाति या अमुक धर्म का अनुयायी है।
2. सभी के लिए समान अवसरों की व्यवस्था ( Equal opportunities are laid open to all ) – लास्की के मतानुसार, “समानता का अर्थ यह है कि सभी व्यक्तियों को अपनी योग्यता और शक्ति के विकास का उचित अवसर प्राप्त होना चाहिए।” अवसरों के अभाव में किसी की प्रतिभा नष्ट नहीं होनी चाहिए। प्रायः मजदूरों और गरीबों के बच्चों को शिक्षा की उचित सुविधाएँ नहीं मिल पातीं। समाज या सरकार का दायित्व है कि इन वर्गों के लिए निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की जाये।
3. भेद-भाव का कोई उचित आधार होना चाहिए ( Discrimination must be based on relevant grounds )- समानता का सिद्धान्त ‘अवसरों की समानता’ पर तो बल देता ही है किन्तु इसका आसय यह नहीं है कि अशक्त और अक्षम लोगों (Handicapped Persons) बच्चों महिलाओं और युग-युग से चले आ रहे शोषित वर्ग के लिए विशेष व्यवस्थाएँ न की जायें। प्रकृति तथा समाज ने जो अयोग्यताएँ एक वर्ग-विशेष के लिए उत्पन्न कर दी हैं, उन्हें वह तभी लांघ सकेगा जब उसके लिए कुछ विशेष सुविधाएँ उपलब्ध करायी जायेंगी। समानतावादी लेखक विशेष सुविधाओं (Special Privileges) का खण्डन करते हैं किन्तु यहाँ जिन विशेष सुविधाओं की वे चर्चा कर रहे हैं, वे ऐसी है जो विषमता बढ़ाने में नहीं बल्कि समानता लाने में सहायक बनती है। समाज में अनेक वर्ग ऐसे हैं, जैसे-अपंग व अन्ये व्यक्ति, जिनके लिए विशेष सुविधाएँ जुटायी जानी चाहिए। समानता के नाम पर हम उनके लिए खुली प्रतियोगिता (Open Competition) का समर्थन नहीं कर सकते क्योंकि खुली दौड़ में तो ये निश्चय ही दूसरों से बहुत अधिक पिछड़ जायेंगे।
4. मूलभूत आवश्यकताओं की बराबर सन्तुष्टि (Right to the Equal Satisfaction of Basic Needs)- लास्की के मतानुसार कोई भी व्यक्ति या वर्ग उस समय तक विशेष सुविधा या ऐश्वर्य भोगने का अधिकारी नहीं बन सकता जब तक कि समाज के सभी लोगों की न्यूनतम आवश्यकताएँ पूरी नहीं हो जातीं। मेरी आवश्यक आवश्यकताएँ-रोटी, कपड़ा व मकान – उतनी ही महत्वपूर्ण हैं जितनी अन्य किसी व्यक्ति के लिए हैं किन्तु इसका आसय यह नहीं है कि सबके पास एक-सा मकान व बराबर सम्पत्ति हो किन्तु इसका यह अर्थ अवश्य है कि भूख और वस्त्र के अभाव में लोग मरें नहीं। जीवन के अधिकार का केवल यही तात्पर्य नहीं है कि कोई किसी की हत्या न कर सके, उसका अर्थ यह भी है कि भूख या ठण्ड किसी की मृत्यु का कारण न बने।
आवश्यक आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के साथ-साथ और भी वस्तुओं की आवश्यकता होती हैं। विद्वान को पुस्तकें चाहिए, वैज्ञानिक को विज्ञान सम्बन्धी उपकरण चाहिए तथा सभी को आराम व विश्राम चाहिए। ये वस्तुएँ मात्र व्यक्तिगत विकास के लिए ही नहीं बल्कि इसलिए भी आवश्यक हैं जिससे व्यक्ति अपने सामाजिक दायित्वों को पूरा कर सके। अतएव समान अधिकारों व समान अवसरों के अन्तर्गत इनको सम्मिलित किया जाना आवश्यक है।
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