निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिये-
- पूर्व प्राथमिक शिक्षा परिषद
- पूर्व प्राथमिक शिक्षा का ग्रामीण क्षेत्रों में विस्तार
- नर्सरी शिक्षा की सामग्री
- बालवाड़ी
(i) पूर्व प्राथमिक शिक्षा परिषद् –
एक पूर्व प्राथमिक शिक्षा परिषद् बनाई जाए जो कुशल सलाहकार संस्था का कार्य करे। इसके निम्नलिखित कार्य होने चाहिए-
1. पूर्व प्राथमिक शिक्षा के विकास में सरकार को सलाह देना।
2. समय-समय पर योजना का मूल्यांकन करना जिससे यह निश्चय किया जा सके कि परिणाम सन्तोषजनक है और इस योजना का लाभ राज्य के सभी भागों में समान रूप से हो रहा है और इस सम्बन्ध में विस्तृत ब्यौरा सरकार के समक्ष रखना ।
3. बच्चों को उपयुक्त पुस्तकें उपलब्ध कराने के लिए सरकार को सुझाव देना।
4. राज्य के विभिन्न क्षेत्रों के विशेष स्कूलों का निरीक्षण करके उनकी दशा तथा आवश्यकताओं की जानकारी प्राप्त करना ।
5. पाठ्यक्रम, उपकरणों, भवनों, कर्मचारियों और ऐसे अनुभव, जो योजना के लागू करने में प्राप्त हुए हैं, के सम्बन्ध में सरकार को सुझाव देना।
6. समाज कल्याण परिषद्, शिक्षा विभाग आदि जैसी पूर्व प्राथमिक शिक्षा से सम्बन्धित संस्थाओं में समन्वय स्थापित करने के उद्देश्य से सरकार को सुझाव देना।
7. पूर्व प्राथमिक शिक्षा से सम्बन्धित सभी विषयों से सरकार को अवगत कराना और सुझाव देना।
8. अध्यापकों के चुनाव और प्रशिक्षण के सम्बन्ध में सरकार को सुझाव देना ।
(ii) पूर्व प्राथमिक शिक्षा का ग्रामीण क्षेत्रों में विस्तार-
पूर्व प्राथमिक शिक्षा का विस्तार ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार को एक निश्चित योजना द्वारा करना चाहिए। इस उद्देश्य की घोषणा करने के साथ-साथ जनता को भी इस दिशा में तैयार करना चाहिए।
स्कूल-भोजन की व्यवस्था ग्राम पंचायतें और तालुके बोर्ड करें और सरकार इनकी सहायता करे। पंचायतें और तालुके बोर्ड वस्तु रूप में अनुदान प्राप्त करें क्योंकि धन के रूप में प्राप्त अनुदान से काम नहीं चलेगा। ग्रामीण क्षेत्रों में पूर्व प्राथमिक कक्षाओं का सम्बन्ध स्कूलों से स्थापित किया जाए। उन्हें अतिरिक्त स्थान दिया जाए। पूर्व प्राथमिक विभाग अपने विशेष प्रशिक्षण प्राप्त अध्यापक के अधीन अपनी शिक्षण-पद्धति द्वारा अपने उद्देश्य प्राप्त करने के लिए स्वतन्त्र रूप में कार्य करें। पूर्व प्राथमिक कक्षाओं के कार्य के निरीक्षण का भार शिक्षा विभाग के निरीक्षकों पर रहे। इन निरीक्षकों को बाल शिक्षा का विशेष प्रशिक्षण दिया जाए। सरकार द्वारा अध्यापकों को वेतन दिया जाए।
गाँवों के पूर्व-प्राथमिक स्कूलों के अध्यापकों की नियुक्ति पंचायत द्वारा की जाए परन्तु शिक्षा विभाग इस कार्य में उनकी सहायता करें जिससे सही व्यक्ति चुने जा सकें। इस प्रणाली द्वारा ऐसे अध्यापक मिल सकेंगे जो गाँव में कार्य करना चाहते हैं। स्थानीय व्यक्ति होने के कारण ये लोग अध्यापक होने के साथ-साथ समाज-सेवक का कार्य भी कर सकेंगे।
अन्य सब बातों के सामान्य होते हुए अध्यापिकाओं को नियुक्त किया जाए। जहाँ अध्यापिकाएँ उपलब्ध न हों वहाँ अध्यापक नियुक्त किए जाएँ।
अध्यापिका की न्यूनतम शिक्षा इन्टरमीडिएट होनी चाहिए। यदि प्रामीण क्षेत्रों में इन योग्यता की लड़कियाँ नहीं मिलती हैं तो मिडिल या हाई स्कूल पास बड़ी लड़कियों, जो अध्यापिका का कार्य करना चाहती हैं, उन लड़कियों को छात्रवृत्ति के अधीन छात्रवृत्ति देकर शिक्षा को पूरा करने का अवसर देना चाहिए। इस छात्रवृत्ति में शर्त यह होनी चाहिए कि वे हार सैकण्डरी शिक्षा में शिक्षा अथवा गृह विज्ञान ऐच्छिक विषय लेंगी। इसके पश्चात् उन्हें पूर्व प्राथमिक शिक्षा का प्रशिक्षण दिया जाए।
(iii) नर्सरी शिक्षा की सामग्री (Equipment for a Nursery School)
नर्सरी स्कूल में पाठ्यक्रम का अर्थ विभिन्न प्रकार की क्रियाओं से है। इस स्तर पर परम्परागत विषयों के स्थान पर व्यावहारिक क्रियाएँ विशेष महत्व रखती हैं। अतः, बालकों के भावात्मक, मानसिक, भाषायी, सौन्दर्यात्मक, रचनात्मक, सामाजिक तथा भौतिक विकास के लिए इस प्रकार की सामग्री की आवश्यकता पड़ती है।
1. चाक-कई रंगों के, 2, चित्रकारी का सामान, 3. अंगुली चित्रण का सामान, 4. चिकनी मिट्टी, 5. गुंधा हुआ आटा, 6. पानी के खेल का सामान—जैसे टब, बोतलें आदि। 7. सभी आकारों की ईंटें, 8. गुड़ियों के खेल का सामान, 9. मेज कुर्सियाँ आदि, 10. अस्पताल का सामान जैसे डाक्टर का स्टेथेस्कोप, 11. फैंसी ड्रेस के कपड़े, 12. घरेलू खेल, 13. रगड़ कर साफ करने का सामान, 14. लकड़ी के औजार, 15. पुस्तक कक्ष का सामान, 16. संगीत का सामान, 17. बाह्य खेल का सामान, 18. स्वच्छता सम्बन्धी सामान, 19. भाषा और अंकगणित सिखाने का शिक्षण यन्त्र तथा 20. ज्ञानेन्द्रियों की शिक्षा का सामान
1. चाक- चमकीले रंगों के बड़े-बड़े चाक। पेस्टल पैंसिलें छोटे बच्चों के लिए ठीक नहीं रहतीं। बड़े बच्चे प्राय: कलम और स्याही पसन्द करते हैं। बच्चों को जितनी अलग-अलग तरह की चीजें दी जायें उतना ही अच्छा है।
2. चित्रकारी का सामान- चित्रकारी के विभिन्न रंग जैसे सिन्दूरी, पीला, लाखा, हल्का लाल, गाढ़ा नीला या फिरोजी, पीला-खाकी, मूँगिया, काले और सफेद रंग के पाउडर, भिन्न प्रकार के कागज तथा बुश
3. अंगुलि चित्रण का सामान- इसके लिए गोंद में मिले रंगों के पाउडर होने चाहिएं। ये घोल लेई की तरह उमदा और गाढ़ा होने चाहिए। न सोखने वाले कागज के बड़े तख्ते (पहले इस कागज पर पीला स्पंज फेर लें) या बहुत छोटे बच्चों के लिए, जो अपनी चित्रकला की चीजें सुरक्षित नहीं रख सकते, ‘आयल क्लाथ’ ताकि उसे धोकर फिर इस्तेमाल किया जा सके।
बच्चों के लिए एक से अधिक रंगों का घोल काफी मात्रा में होना चाहिए। वे अपनी उंगलियों, हाथ, भुजाओं, मुट्ठियों और अंगुलि-संधियों आदि का प्रयोग करना चाहते हैं।
4. चिकनी मिट्टी– चिकनी मिट्टी प्लास्टीसीन के मुकाबले बेहतर है, क्योंकि इससे बच्चों को बड़े-बड़े टुकड़े मिल जाते हैं और वह खराब भी नहीं होती। मिट्टी को बिस्कुट के बड़े डिब्बे या किसी अन्य डिब्बे में प्लास्टिक के थैले में रखा जा सकता है।
5. गुंधा हुआ आटा- आटा और नमक बराबर अनुपात में लें और उसमें इतना पानी मिलायें कि वह लचीला बन जाये। चिपचिपा न हो। इसे वानस्पतिक रंगों में रंगा जा सकता है।
(iv) बालवाड़ी
बालवाड़ी का अर्थ एवं महत्व – बालवाड़ी (फुलवाड़ी) की संज्ञा प्रायः ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी क्षेत्रों के किंडरगार्टन से दी जाती है। इसका उद्देश्य बच्चों की शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मूल सुविधाएँ प्राप्त कराना है।
बालवाड़ी के विशेष कार्य
1. बालक के शारीरिक विकास में निम्न साधनों द्वारा सहायता करना।
- डिप्थीरिया, काली खांसी, टाइफाइड, टी० बी०, हैजा, चेचक आदि रोगों का टीका लगवाना।
- बालवाड़ी प्रवेश के समय स्वास्थ्य जाँच।
- समीपवर्ती स्वास्थ्य केन्द्र से चिकित्सा सम्बन्धी अनुसरण कार्य (Follow up work)।
- घरेलू परिस्थितियों का अध्ययन करके बालकों को सन्तुलित भोजन और पौष्टिक आहार में सहायक सामग्री प्रदान करना ।
- लाभकारी मनोरंजन |
2. स्पर्श, स्वाद, गन्ध, दृष्टि और शब्द इन इन्द्रियों के विकास में सहायता करना ।
3. सामाजिक परिस्थितियों के अनुसार दूसरे बच्चों और बड़ों से अच्छे सम्बन्ध स्थापित करने में सहायता देना।
4. बच्चे को स्वावलम्बी बनाने और अच्छी आदतें डालने में और प्रवृत्तियों को उत्साहित करने में प्रशिक्षित करना।
5. बच्चे के बौद्धिक स्तर का विकास करना और अपने वातावरण में खोज और प्रयोग करने के अवसर प्रदान करना।
6. अनुशासन, नियमितता और एकाग्रता का प्रशिक्षण देना और भाषा तथा अंकों का प्रारम्भिक शिक्षण देना।
7. आसपास की वस्तुओं का प्रयोग करने और विभिन्न प्रकार की सामग्री द्वारा शारीरिक योग्यता प्राप्त करने में उत्साहित करना ।
8. विद्यालय पूर्व की आयु के बच्चों की दैनिक देखभाल करना ।
बालवाड़ी के बच्चों की आयु सीमा-बालवाड़ी में दाखिले के समय बालक की न्यूनतम आयु ढाई वर्ष होनी चाहिए और उसे 6 वर्ष की आयु तक उसमें लगातार रखा जाना चाहिए। परन्तु ग्रामीण बालवाड़ियों में इन सीमाओं का संकीर्ण रूप से पालन नहीं किया जा सकता। ग्रामीण समाज की आवश्यकताओं के अनुसार इसमें छोटा-मोटा परिवर्तन किया जा सकता है।
बालवाड़ी के बालकों की निर्धारित संख्या-बालवाड़ी का कार्य सुचारू रूप से और मितव्ययिता से चलाने के लिए इसमें कम से कम 25 और अधिक से अधिक 40 बच्चे होने चाहिएँ। बीमारी, बालक की अरुचि या अन्य पारिवारिक कारणों से हुई अनुपस्थिति की ओर अधिक सख्ती नहीं बरतनी चाहिए। जब पर्याप्त सुविधायें उपलब्ध हों और अधिक बच्चे बालवाड़ी में आना चाहें तो एक यूनिट और खोला जा सकता है।
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