पर्यावरणीय शिक्षा के प्रसार में शिक्षक की भूमिका
पर्यावरण संरक्षण एवं सुधार के अभियान को व्यापक तौर पर चलाने के लिए पूरे समाज की जिम्मेदारी है किन्तु शिक्षक समाज का एक महत्त्वपूर्ण उत्तरदायित्वयुक्त सदस्य है। इसलिए इस लक्ष्य की प्राप्ति में उसकी भूमिका विशेष रूप से मानी गयी है। शिक्षक का सम्बन्ध विभिन्न आयु वर्ग के छात्रों से होता है। एक पथ-प्रदर्शक की भाँति वह समाज की विविध समस्याओं से उन्हें अवगत कराकर उनका नवीन एवं सफल समाधान ढूँढ़ने हेतु छात्रों को प्रेरित करता है। आज के समय में ‘पर्यावरण प्रदूषण’ एक ज्वलन्त समस्या है जो प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप में पूरे विश्व को उसके भौतिक, सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक स्वरूपों में विकृति लाकर प्रभावित कर रही है। अतः समाज के बुद्धिजीवी वर्ग से शिक्षक इस समस्या विशेष के प्रति संवेदनशीलता विकसित करने में विशेष भूमिका निभा सकता है क्योंकि वह समाज की समस्याओं का विद्यालय जैसी प्रयोगशाला में संशोधन करने वाला एक संवेदनशील एवं जिम्मेदार नागरिक होता है जो अपने छात्रों में अपने वातावरण या पर्यावरण, भौतिक, सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक के प्रति चेतना विकसित करने के लिए विविध कार्यक्रमों का आयोजन कर सकता है।
(1) पाठ्य सहगामी क्रियाओं के आयोजन द्वारा पर्यावरण चेतना विकसित करने हेतु पर्याप्त भूमिका निभाई जा सकती है। पाठ्य सहगामी क्रियाओं के अन्तर्गत छात्रों द्वारा निम्नांकित क्रियाएँ करवाई जा सकती हैं जिससे पर्यावरण में सुधार हो सकेगा। शिक्षक स्वयं अपनी उपस्थिति में उन्हें उत्प्रेरित कर भौतिक पर्यावरण की वर्तमान स्थिति को सुधारने में मदद कर सकता है क्योंकि शिक्षक विद्यालय में विभिन्न विषयों का ज्ञान विद्यार्थियों को देता है। इसलिए उस विषय के साथ विभिन्न तरह के पर्यावरण की जानकारी सहज ढंग से दे सकता है।
1. वृक्षारोपण, हरी-भरी वाटिकाओं का संरक्षण करना तथा कराना ।
2. पार्कों एवं जलाशयों की सफाई करवाना तथा स्वच्छता के प्रति जन साधारण को जागरूक बनाने हेतु स्थान-स्थान पर छात्रों द्वारा स्पष्ट एवं सुन्दर अक्षरों में लिखे हुए संदेश पट्टिकाओं को लगवाना।
3. अपशिष्ट पदार्थों, कूड़ों इत्यादि को उपयुक्त स्थान पर रखने की आदत विकसित करना प्रायः शिक्षित समाज में आज भी ये कमियाँ दिखायी देती हैं।
4. छात्रों को पर्यावरण को स्वच्छ रखने के प्रति जागरूक बनाने की शिक्षा देना साथ ही क्रियात्मक रूप में गन्दी बस्तियों एवं गाँवों में उन्हें ले जाकर ऐसे कार्यक्रम प्रस्तुत करवाना जिससे जन सामान्य पर्यावरण सुधार के प्रति सजग हो सके और इसे सुधारने के लिए सभी वर्ग के लोगों का सहयोग ले सके।
(2) पर्यावरण के तीनों स्वरूपों- भौतिक, सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक में उत्पन्न प्रदूषण व विकृतियों के स्वरूपों को विश्लेषित एवं मूल्यांकित करने में भी शिक्षक की सहायता महत्त्वपूर्ण हो सकती है।
(3) पर्यावरण सम्बन्धी फिल्मों, निबन्धों, लेखों एवं रिपोर्टों को सूचित करने तथा पूर्व निर्मित सामग्रियों में अपेक्षित सुधार लाकर उन्हें सूक्ष्म रूप से समझने में छात्रों की सहायता कर सकता है।
(4) पर्यावरण चेतना विकसित करने में विशेष भूमिका- पर्यावरण के सकारात्मक एवं नकारात्मक पक्षों का गहराई में अध्ययन करने की दृष्टि से छात्रों के प्रति एवं विशेष रूप से एक विशेष प्रतिनिधि के रूप में शिक्षक विशेष भूमिका निभा सकता है। भौतिक, सामाजिक एवं समाज के मनोवैज्ञानिक विषयों से सम्बन्धित शिक्षक छात्रों को इन क्षेत्रों से सम्बन्धित नवीन जानकारियों से अवगत कराकर पर्यावरण सुधार के प्रति क्रान्ति ला सकता है।
(अ) शिक्षक वैज्ञानिक की भाँति समस्याओं की पहचान कराकर उनके सकारात्मक व नकारात्मक प्रभावों को अपने छात्रों के समक्ष विश्लेषित कर सकता है तथा प्रत्येक तथ्य की तर्कपूर्ण व्याख्या कर सकता है जिससे छात्रों का मन मस्तिष्क प्रत्यक्ष एवं सक्रिय रूप में प्रभावित हो सकेगा।
(ब) चूँकि शिक्षक समाज का प्रतिनिधि सदस्य है। शिक्षक का महत्त्वपूर्ण दायित्व उसके कन्धों पर है। उसका प्रत्यक्ष सम्पर्क सामाजिक क्षेत्र से होता है। अतः सामाजिक पर्यावरण में उत्पन्न भयावह “स्थिति, विकृति को कम करने में वह विशेष भूमिका निभा सकता है क्योंकि वह समाज का एक जिम्मेदार एवं संवेदनशील व्यक्ति विशेष होता है।
(स) शिक्षक मनोवैज्ञानिक की भाँति छात्रों की संवेदना, कुण्ठा के प्रति जागरूक होकर एक मित्र की भाँति उनकी विक्षिप्तताओं को समझकर उपयुक्त संसाधन ढूँढ़ कर सामान्य स्थिति में ला सकता है तथा उनमें प्रजातांत्रिक दृष्टिकोण का विकास कर सकता है जिससे वे अपनी कुण्ठाओं को समाज पर आरोपित न करें वरन् विद्यालय में ही उसका अशोधन किया जाए एवं एक स्वस्थ मानसिक स्थिति वाला जिम्मेदार नागरिक का सृजन कर सकें।
(5) पर्यटन द्वारा शिक्षा – छात्रों को भ्रमण एवं पर्यटन के माध्यम से विशिष्ट स्थलों एवं आत्म-विकृतियों तथा प्रदूषणों के दृष्टान्त प्रस्तुत कराकर शिक्षक विशेष भूमिका निभा सकता है। ऐसे स्थलों पर वह प्रदूषण द्वारा पड़े प्रभावों का निरीक्षण करने में अपने अनुभवों द्वारा छात्रों की सहायता कर सकता है।
(6) सम्पर्क कार्यक्रमों के आयोजन में विशेष भूमिका – शिक्षक प्रसार शिक्षा के माध्यम से एक कार्यकर्ता की भाँति गाँवों, शहरों में अभिभावकों तथा सामान्य लोगों के बीच जाकर पर्यावरण प्रदूषण एवं उनके दुष्परिणामों की जानकारी दे सकता है।
आयाम का उद्देश्य जन-जन में हलचल पैदा करना, किसी निश्चित लक्ष्य के प्रति कार्य करने के लिए प्रेरित करना होना आवश्यक है।
संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि पर्यावरण शिक्षा के कार्य सुचारू रूप से पूरा करने, पर्यावरण सम्बन्धी समस्याओं के बारे में जन-जागरण लाने तथा उनसे उत्पन्न मानवीय संकटों को समझने में हमारे शिक्षकों की बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। शिक्षक अपने प्रभाव से प्राथमिक स्तर से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक पर्यावरण सुधार में क्रान्ति ला सकता है।
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