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समाजशास्त्र शिक्षण में सामुदायिक स्त्रोतो का उपयोग करने की विधियाँ बताइये।

सामुदायिक स्त्रोतो का उपयोग करने की विधियाँ
सामुदायिक स्त्रोतो का उपयोग करने की विधियाँ

अपने वातावरण का ज्ञान बालक स्थानीय समुदाय में रहकर करता है। जहाँ वह जीवनयापन का प्रथम पाठ पढ़ता है। समुदाय का यह चित्र बालक के मस्तिष्क में समय के अनुसार विकसित होता चला जाता । समाज शास्त्र का ज्ञान इसी विकसित क्षेत्र का अध्ययन करता है। अपने समुदाय का ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् ही बालक उस ज्ञान के आधार पर अन्य समुदाय में व्यवस्थित होना सीखता है। जितना अधिक और सुखद बालक को अपने समुदाय का ज्ञान होगा, उतना ही अच्छा ज्ञान उसे अन्य समुदाय का होगा।

सामुदायिक साधन से तात्पर्य सामुदायिक जीवन से सम्बन्धित सभी तत्वों से है वास्तव में ये सभी तत्व पाठ्यक्रम के अन्य पक्षों से भी सम्बन्धित हो सकते है, क्योंकि समाज शास्त्र को प्रभावित करने वाले वे तत्व है, जो मानव सम्बन्धों की व्याख्या करते है। ये तत्व भौगोलिक, ऐतिहासिक, राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक आदि होते है।

सामुदायिक स्त्रोतो का उपयोग करने की विधियाँ (Methods for use of community resources)

सामुदायिक स्त्रोतो का उपयोग करने की निम्नलिखित दो विधियाँ प्रचलित है-

(1) विद्यालय को समुदाय के निकट ले जाना (Taking the school nearer to the community)।

(2) समुदाय को विद्यालय के निकट ले जाना (Taking the community nearer to the school)।

(1) विद्यालय को समुदाय के निकट ले जाना :- ( Taking the school nearer to the community ):- अध्यापक विद्यालय को सामुदायिक जीवन का केन्द्र बनाने के लिए तथा विद्यालय को समुदाय के निकट ले जाने के लिए निम्नलिखित प्रयास करता है-

(A) समाज सेवा कार्यक्रम (Social Service Programme )- विद्यालय में अनेक प्रकार की समाज-सेवा क्रियाओं का आयोजन किया जा सकता है।

(i) साक्षात्कार ( Interview ):- प्रत्यक्ष ज्ञान की प्राप्ति के लिए साक्षात्कार आधार का कार्य करते है। बच्चे समुदाय के विभिन्न लोगो का साक्षात्कार करके विभिन्न प्रकार की सूचनाएँ प्राप्त कर सकते है। साथ ही समुदाय के बहुत लोग उनको प्रकाशित साहित्य, श्रव्य दृश्य सामग्री प्रदान करके महत्वपूर्ण सूचनाएँ प्रदान कर सकते है।

(ii) क्षेत्र पर्यटन (Field Trips ) :- क्षेत्रीय पर्यटनों के माध्यम से छात्रों को समुदाय में ले जाया जा सकता है। पर्यटन का उद्देश्य मन-बदलाव के लिए कक्षा से बाहर लाना नही होना चाहिए, वरन् विषय के स्पष्टीकरण या समस्या का समाधान खोजना होना चाहिए। पर्यटनों के माध्यम से छात्र स्थानीय स्थितियों का प्रत्यक्ष रूप से निरीक्षण करने में समर्थ होते है।

(iii) समुदाय सेवा का आयोजन (Arrangement of Community ):- समुदाय सेवा प्रोजेक्ट्स द्वारा विद्यार्थी समुदाय की सेवा करते समय अनेक नवीन अनुभव प्राप्त करते हैं, तो ये और भी स्थायी होते हैं। इससे विद्यार्थियों का सर्वांगीण विकास होता है। राष्ट्रीय सेवा योजना जो कि देश के सभी महाविद्यालयों में अपनाई गई है। सेवा भावना का विकास करने के लिए यह उत्तम रास्ता है। पाठशालाओं में भी इसी प्रकार के कार्य प्रारम्भ किये जा सकते है। जैसे- विद्यालय फुलवाड़ी की देखभाल। इसी प्रकार विद्यालय के बाहर भी विद्यार्थी कुछ प्रोजेक्ट्स ले सकते है। जिससे एक तो विद्यार्थी को स्कूल की चारदीवारी से बाहर समुदाय के सदस्यों से मिलने का अवसर मिल सकेगा और मनोरंजन के अतिरिक्त वे वास्तविक शिक्षा भी ग्रहण करेगें। विद्यालय समुदाय में कुछ इस प्रकार के प्रोजेक्ट्स भी ले सकते है। जैसे- वृक्षारोपण करना, प्रौढ़ शिक्षा, कुओं, परिवार कल्याण का प्रचार।

(iv) सामाजिक सर्वेक्षण क्लबो का संगठन:- के.जी. सैयद के अनुसार, ‘अध्यापक को विद्यालय में सामाजिक सर्वेक्षण क्लब संगठित करने चाहिए, जो अपने आस पास के सामुदायिक जीवन की कुछ तात्कालिक आवश्यकताओं तथा उपर्युक्त उपायों के माध्यम से विद्यालय समुदाय के पास और समुदाय विद्यालय के निकट आ सकता है।”

( 2 ) समुदाय को विद्यालय के निकट ले जाना (Taking the community nearer to the school):- इस विधि के अन्तर्गत समुदाय के मानवीय एंव प्राकृतिक स्त्रोतों को कक्षा-कक्ष में लाकर विषय वस्तु का स्पष्टीकरण अध्यापक द्वारा किया जाता है, इसके अग्रलिखित प्रकार है

(i) मेले एंव पर्व:- मेलो में जाकर बालाकों को सामाजिक उत्तरदायित्व के कार्यों के संचालन का महत्व बताया जा सकता है और समाज सेवा के व्यावहारिक अनुभव देते हुए अनेक लाभों को प्रकट किया जा सकता है। इसी प्रकार सांस्कृतिक एंव राष्ट्रीय पर्वो पर अनेक आयोजन स्थलों पर ले जाकर बालकों को तत्सम्बन्धी इतिहास, संस्कारो, संस्कृति, परम्परा आदि की जानकारी दी जा सकती है। ये मेल व उत्सव निम्नलिखित प्रकार के होते हैं

(a) शैक्षिक समारोह ।

(b) राष्ट्रीय समारोह।

(c) धार्मिक उत्सव ।

(d) विद्यालय उत्सव।

(ii) अनुरंजनात्मक सामुदायिक प्रवृतियाँ:- कुछ अवसरों पर सामाजिक जीवन में इस प्रकार की सामुदायिक विभिन्न प्रवृतियों का आयोजन होता है, जिनमें शिक्षार्थियों को सम्भागी बनाकर उन्हें सामाजिक व्यवहारिक वृत्तियों को अपनाने की सहज प्रेरणा दी जा सकती है। समाज के अधिकांश लोग ‘ प्रदर्शनी एंव नाट्य’ देखने के लिए उत्सुक होते है। यदि विद्यालयों में प्रदर्शनी एंव नाटकों का आयोजन किया जाए तो बालकों को मनोरंजन होगा, उनकी अभिरूचियाँ विकसित होगी। साथ ही अभिभवाको को विद्यालय को समझने में सहायता मिलेगी।

पंचायत, नगरपालिका, डाकघर और प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र- पंचायत नगरपालिका, डाक घर, प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र आदि में ले जाकर कार्य प्रणाली, व्यवस्था एंव सुविधा आदि सम्बन्धित जानकारी स्पष्ट और प्रभावोत्पादक परिस्थितियों में करायी जा सकती है।

(iii) विशिष्ट व्यक्तियों की वार्त्ताएँ:- सामुदायिक शिक्षण स्त्रोतों में समाज के विशिष्ट व्यक्तियों की सामाजिक तथ्यों पर आधारित वार्त्ताओं के आयोजन का भी प्रमुख स्थान है। विशिष्ट व्यक्तियों को आमन्त्रित कर नागरिक शास्त्र विषय के किसी व्यावहारिक पक्ष पर वार्ताएँ आयोजित कर विद्यार्थियों के अनुभवो को सामुदायिक जीवन की वास्तविक परिस्थितियों के बारे में समृद्ध किया जा सकता है। छात्रों को सामुदायिक उत्तरदायित्व निभाने के लिए तैयार किया जा सकता है।

(iv) चिड़ियाघर और संग्रहालय:- चिड़ियाघर में ले जाकर विभिन्न औद्योगिक प्रदेशो के पर्यावरण और उसके प्राणियों पर पड़ने वाले प्रभावो का बड़ा रूचिकर परिस्थितियों में ज्ञान कराया जा सकता है। संग्रहालय में ले जाकर अपने राज्य की इतिहास सम्बन्धी बातों एंव लोक-जीवन तथा सांस्कृतिक जीवन के विभिन्न पक्षों के बारे में बताया जा सकता है। सार्वजनिक पुस्तकालय एंव वाचनालय विद्यालय शिक्षा की दृष्टि से सार्वजनिक पुस्तकालय एंव वाचनालय का सामुदायिक शिक्षण स्त्रोत के रूप में उपयोग किया जाना यथेष्ट है यथा- सामयिक घटनाओं, एंव पारस्परिक मेल-जोल आदि वृत्तियों का विकास।

(v) रेडक्रॉस, स्काउट एंव गाइड्स:- स्कूल में रेडक्रॉस स्काउट एंव गाइड्स की व्यवस्था होती है। यदि ये संगठन समुदाय द्वारा मनाए जाने वाले कार्यक्रम में भाग ले तो समुदाय और विद्यालय के सम्बन्ध मधुर बनेंगे।

(vi) अभिभावक शिक्षक संघ:- विद्यालयों को सामुदायिक जीवन का केन्द्र बनाने हेतु विद्यालय में अभिभावक शिक्षक संघ स्थापित किए जा सकते है। यह समुदाय के साधन के रूप में शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है। अतः स्पष्ट है कि विद्यालय एंव समुदाय के आपसी सहयोग से ही समुदाय और विद्यालय का अस्तित्व सुरक्षित है, इसके लिए अध्यपक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है।

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