शिक्षण में पाठ्यपुस्तक की उपयोगिता
प्राचीन कला में शिक्षा व्याख्यान प्रणाली से प्रदान की जाती थी। शिक्षक बोलता था तथा छात्र सुनता था। धीरे-धीरे पुस्तक लेखन व मुद्रण से पुस्तक रचना कार्य प्रारम्भ हुआ। भाषा की पाठ्यपुस्तक की सबसे पहले रचना का श्रेय कॉमेनियम को जाता है।
पाठ्य पुस्तकों के विषय में सी.पी. हिल ने परामर्श दिया है कि, “पाठ्य-पुस्तकें तथ्यों के संकलन के रूप में प्रयुक्त नहीं की जानी चाहिए, जिनको छात्र हृदयगम कर सके, वरन् वे मौलिक सूचनाओं के भण्डार के रूप में प्रयुक्त की जाए, जिनको छात्र विभिन्न सक्रिय ढंगों से प्रयोग में ला सके।” इसी प्रकार टेक्स्ट बुक कमेटी ऑफ सेन्ट्रल एडवाइजरी बोर्ड ऑफ एड्यूकेशन की रिपोर्ट के अनुसार, “वर्तमान शिक्षा प्रणाली की पाठ्यपुस्तक विहीन अवस्था की कल्पना ठीक वैसी ही है जैसी ‘डेनमार्क के राजकुमार’ के बिना ‘हैमलेट’ की कल्पना करना।” वास्तव में पाठ्य पुस्तकें सहायक साधनों के रूप में अपना विशिष्ट स्थान रखती है। में सभी विषयों के शिक्षण कार्य में पाठ्यपुस्तकें एक सफल सहायक और उचित मार्ग निर्देशक के रूप में कार्य करती आ रही है। भारत व विदेशो के अधिकांश स्कूलों में शिक्षा प्रक्रिया एक सूत्र में कही जाती है कि “जैसा पाठ्यपुस्तक में है, वैसा पढ़ाओ व सिखाओं” परन्तु वर्तमान में लिखी जा रही पाठ्यपुस्तके न तो स्तरानुसार तथा न ही छात्रों की रूचि व आवश्यकता के अनुसार ही संगठित की जाती है। “
पाठ्यपुस्तक की उपयोगिता
(1) इनके उपयोग से छात्र तथा अध्यापक दोनो का समय बचता है।
(2) तथ्यों का ज्ञान छात्र स्वंय कर लेते है।
(3) कम मूल्य पर छात्र महत्वपूर्ण तथ्य तथा सूचनाएँ प्राप्त कर लेते है।
(4) पाठ्यपुस्तक वह साधन है जिसके माध्यम से अध्यापक किसी विशेष को कक्षा के सामने प्रस्तुत करने में समर्थ होता है। मैक्स वैल (Max Well) इस विषय मे लिखते है- “It is at least the medium through which the teacher presents a subject to the class.”
(5) पाठ्य-पुस्तक में वैज्ञानिक विषय संगठित रूप में प्रस्तुत किये जाते है।
(6) उचित चुनाव की गई पाठ्य पुस्तक छात्रों को प्रेरणा का अवसर देती है।
(7) पाठ्य-पुस्तकें छात्रों को स्वाध्याय की प्रेरणा देती है।
(8) पाठ्य-पुस्तकें पाठ की तैयारी में विशेष सहायक होती है।
(9) गृह-कार्य के लिए पाठ्यपुस्तकों का उपयोग विशेष रूप से लाभदायक सिद्ध होता है।
(10) डल्टन तथा योजना प्रणाली में पाठ्य पुस्तकों की विशेष आवश्यकता होती है।
(11) इससे शिक्षण-उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायता मिलती है।
(12) विषय-वस्तु की सीमा ज्ञात हो जाती है।
(13) अगला पाठ क्या होगा, सरलता से पता लग जाता है।
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट हो जाता है कि उत्तम पाठ्य-पुस्तक आधारभूत ज्ञान की प्राप्ति का साधन है। वैज्ञानिक चिन्तन के लिए पाठ्य-पुस्तक एक मार्ग दर्शिका का काम करती है।
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