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शिक्षण सूत्र से क्या अभिप्राय है? सामाजिक अध्ययन विषय के अध्यापक को अपने विषय के शिक्षण में किन शिक्षण सूत्र को महत्व देना चाहिए।

शिक्षण सूत्र से क्या अभिप्राय है?
शिक्षण सूत्र से क्या अभिप्राय है?

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शिक्षण सूत्र से क्या अभिप्राय है?

शिक्षण की प्रक्रिया में व्याप्त जटिलताओं को दूर करने के लिये शिक्षा-शास्त्रियों ने समय-समय पर अनेक उक्तियों तथ्यों को खोजा जिनसे शिक्षण कार्य अधिक सरल और रोचक बन जाता है। उन तथ्यों को शिक्षण सूत्र कहा जाता है।

इस प्रकार शिक्षण को प्रभावी बनाने हेतु निम्नांकित शिक्षण सूत्र का उल्लेख किया है-

(i) ज्ञात से अज्ञात की ओर:- बालक अपने पूर्व ज्ञान के आधार पर बालक के सामने नई विषय वस्तु, प्रस्तुत करने से पूर्व इस बात का पता लगावे कि बालक को उस पाठ के बारे में प्रारम्भिक ज्ञान कितना है उस ज्ञान को आधार मानकर नवीन विषय वस्तु का ज्ञान प्रदान करना चाहिए।

(ii) सरल से जटिल की ओर:- पाठ्यवस्तु के सरल भागों का पता लगाना इसके पश्चात् धीरे-धीरे विषय वस्तु के जटिल भागों को प्रस्तुत कर पाठ का विकास करना चाहिए।

(iii) सरल से कठिन की ओर:- जिस पाठ्यवस्तु में मानसिक प्रक्रिया सरल हो उसे प्रस्तुत किया जाना चाहिए और गुढ व कठिन मानसिक क्रियाओं वाले अंश उत्तरोतर प्रस्तुत किये जाने चाहिए।

( iv ) स्थूल से सूक्ष्म की ओर:- कोई सूक्ष्म विचार बताने से पहले कोई स्थूल विचार बताएँ जो शैक्षणिक दृष्टि से उपयोगी हो, इसमें बालकों की रूचि, भावना तथा विचारो के साथ तात्कालिक सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। हरबर्ट स्पेन्सर ने कहा है कि, “पहले पाठ स्थूल वस्तुओ से प्रारम्भ होने चाहिये और सूक्ष्म बातों में समाप्त होना चाहिए।”

(v) विशेष से सामान्य की ओर:- इसमें पाठ्यवस्तु की विशेष बातें पहले रखी जाती है उनके आधार पर सामान्य नियमों का निरूपण कर शिक्षण किया जाता है।

(vi) अधिगम अनुभव से तर्क की ओर:- बालक के अनुभव को आधार बनाकर निरीक्षण व परीक्षण द्वारा उनकी तर्क शक्तियों का विकास इस सूत्र द्वारा किया जाता है।

(vii) पूर्ण से अंश की ओरः- पूर्ण पाठ्य वस्तु या तथ्य को एक साथ प्रस्तुत कर धीरे-धीरे उसके अंशो के ज्ञान की ओर अग्रसर होना ही इस सूत्र का उद्देश्य है।

(viii) अनिश्चित से निश्चित की ओर:- कई विषयों से बालक के मस्तिष्क में अनिश्चित या अस्पष्ट जानकारी होती है अध्यापक इसकी जानकारी कर उसके अनिश्चित विचारो को जब निश्चित आधार प्रस्तुत करता है तो उसका ज्ञान परिपक्व हो जाता है।

(ix) विश्लेषण से संश्लेषण की ओर:- जटिल समस्या को सुलझाने में या जटिल विषय को समझाने में आध्यापक को उसके तत्वों का विश्लेषण करना आवश्यक होता है इन तत्वों को समझ लेने पर संश्लिष्ट रूप में समग्र समस्या को हल कराया जाता है।

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