मापन का महत्व
भौतिक तथा मनोवैज्ञानिक क्षेत्र में मापन का अत्यधिक महत्व है। भौतिक क्षेत्र में, किसी वस्तु की लम्बाई, चौड़ाई, ऊँचाई, गहराई, एक स्थान से दूसरे स्थान की दूरी, किसी वस्तु का व्यास अथवा मात्रा आदि मापन के माध्यम से ही अभिव्यक्त किये जा सकते हैं। भौतिक वस्तुओं को परिमाणात्मक स्वरूप देने के साथ ही, व्यक्ति के व्यवहार परिवर्तन से सम्बन्धित विभिन्न गुणों का मापन भी, मापन के द्वारा किया जा सकता है। यद्यपि यह सत्य है कि इस प्रक्रिया के द्वारा व्यक्ति के समग्र व्यक्तित्व अथवा सम्पूर्ण व्यवहार का मापन नहीं किया जा सकता है तथा मनोवैज्ञानिक मापन की प्रक्रिया, अपेक्षाकृत कठिन भी होती है, परन्तु साथ ही यह भी सत्य है कि मनोवैज्ञानिक मापन के क्षेत्र में तीव्र गति से निरन्तर प्रगति हुई है। वे साधन जो मनोवैज्ञानिक मापन में सहायक होते हैं, सत्ता रूप से निर्मित एवं विकसित किये जा रहे हैं। बुद्धि, रूचि, अभिवृत्ति, मूल्य आदि से सम्बन्धित इस प्रकार के अनेक परीक्षण, आज हमारे सामने हैं और इनके द्वारा प्राप्त होने वाले परिणाम वैध होते हैं।
मापन का महत्व, एक अन्य दृष्टि से भी है और वह यह कि वह प्रक्रिया विभिन्न गुणों व अभिवृत्तियों का विकास करने से सम्बन्धित प्रतिकारकों को ज्ञात करने में सहायक होती है। डॉ० विपिन आस्थाना के अनुसार “मनोवैज्ञानिक व्यक्तित्व गुणों का अध्ययन तथा मापन करने का इच्छुक रहता है और उनका उद्देश्य रहता है-व्यक्ति के व्यक्तित्व का संगठन एवं सर्वतोन्मुखी विकास करना। संगठित एवं सर्वतोन्मुखी विकास के लिए ऐसे गुणों तथा अभिवृत्तियों का विकास करना आवश्यक है जो व्यक्ति को समाज कल्याण की ओर अग्रसर कर सके। इन गुणों एवं अभिवृत्तियों का विकास करने वाले कारकों का पता लगाना आवश्यक होता है। मापन इस दृष्टि से अत्यधिक उपयोगी है।
भौतिक जीवन में मापन के विभिन्न उदाहरणों का उल्लेख करते हुए डॉ० अस्थाना लिखते है- “हम मापन पर किस सीमा तक निर्भर रहते हैं, इसे समझने के लिये एक उदाहरण लीजिये। मान लीजिये एक व्यक्ति बस स्टेशन से 15 मील की दूरी पर रहता है। वह जानता है कि दूरी 15 मील है, क्योंकि उसे इसका माप ज्ञात है। ठीक समय पर स्टेशन पहुँचने के लिये वह अपनी घड़ी देखता है, क्योंकि उसकी घड़ी समय का मापन करती है। कार में लगा गतिमापक गति का मापन करता है। टिकट खरीदते समय वह कुछ धनराशि अदा करता है, जैसे- रूपये और पैसे इनका भी यह निश्चित इकाइयों में मापन करता है सच कहिये तो हमारी सभ्यता का सम्पूर्ण विकास ही, किसी न किसी प्रकार के मापन पर निर्भर है।
वस्तुतः अपने दैनिक जीवन में उठते, बैठते, चलते, खरीदते तथा किसी से बात करते, हम मापन का कितनी ही बार उपयोग करते हैं। यदि दैनिक जन-जीवन के मापन से अलग कर दिया जाये तो सम्पूर्ण विश्व की व्यवस्था कुछ ही समय में अस्त-व्यस्त हो जाये। यहाँ तक कि विश्व का अस्तितव ही संकट में पड़ जायेगा। विभिन्न साधनों, तत्वों, वस्तुओं विषयों आदि की जो कुछ प्रगति हम देख रहे हैं, इस प्रगति का महत्वपूर्ण आधार मापन ही है। भी
मापन की विशेषताएँ
मापन की कुछ प्रमुख विशेषाएँ निम्नलिखित हैं-
(1) मापन के अन्तर्गत, प्रमापीकृत परीक्षणों का प्रयोग भी किया जाता है। इन परीक्षणों के निष्कर्ष पूर्णयता वैध होते हैं।
(2) इस प्रक्रिया के आधार पर न केवल किसी वस्तु का मापन किया जा सकता है, बल्कि किसी व्यक्ति अथवा घटना से सम्बन्धित चरों का मूल्यांकन भी किया जाता है।
(3) मापन के द्वारा व्यक्ति के व्यवहार से सम्बन्धित विभिन्न चरों अथवा शीलगुणों का अध्ययन किया जाता है। इस प्रकार के कुछ शीलगुण हैं- प्रेरक, रुचियाँ, मूल्य, अभिवृत्तियाँ, योग्यतायें, कौशल, उपलब्धियाँ आदि ।
(4) मापन के माध्यम से प्राप्त होने वाले निष्कर्ष, विश्वसनीय और वस्तुनिष्ठ होते हैं। इनमें किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया जा सकता है।
(5) मापन का क्षेत्र अत्यत्त व्यापक है।
(6) मापन को एक प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जाता है।
(7) शुद्ध निष्कर्ष प्रदान करने के अतिरिक्त, ये सरल और मितव्ययी भी होते हैं।
(8) मापन की कुछ सीमायें भी हैं, परन्तु इसके पश्चात् भी इस प्रक्रिया का अत्यधिक महत्व है।
(9) वर्तमान युग में मापन का इतना अधिक महत्व है कि आधुनिक युग को मापन के युग के रूप में भी सम्बोधित किया जा सकता है।
(10) मापन की प्रक्रिया के आधार पर प्राप्त निष्कर्षों अथवा परिणामों को दूसरों के समक्ष भी प्रस्तुत किया जा सकता है क्योंकि ये परिणाम अपरिवर्तनीय होते हैं।
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