वैयक्तिक विभिन्नता के कारण
वैयक्तिक विभिन्नता के कारण- वैयक्तिक विभिन्नता के लिए जो कारण उत्तरदायी निम्नलिखित हैं-
1. आनुवंशिकता- नियतिवादियों के अनुसार, वैयक्तिक विभिन्नता में मुख्य हाथ आनुवंशिकता का होता है। रूसो, पियर्सन और गाल्टन इस विचार के प्रमुख समर्थक हैं। माता पिता जिस प्रकार के होते हैं, वैसी ही उनकी सन्तान भी होती है।
2. पर्यावरण- पर्यावरणविद्यों का कहना है कि वातावरण भिन्नता के कारण ही लोगों की योग्यताओं, गुणों और शारीरिक रचना में भिन्नता दिखायी पड़ती है। व्यवहारवादी विद्वान वाटसन ने भी वैयक्तिक भिन्नता में वातावरण के महत्व को स्वीकार किया है। वुडवर्थ भी इसी विचारधारा के समर्थक हैं। उनके अनुसार “वैयक्तिक भिन्नता वातावरण के कारण पायी जाती हैं।” चार प्रकार का होता हैं- भौगोलिक, सामाजिक, मानसिक, सांस्कृतिक।
3. लिंग भेद – लिंग भेद के कारण लड़के लड़कियों की शारीरिक रचना ही कार्य क्षमता और स्वभाव में पर्याप्त अन्तर दृष्टिगोचर होता है। लड़के कठोर प्रकृति के माने जाते हैं और लड़किया कोमल प्रकृति की लड़कों की रूचि सांहसी कार्यों में एवं लड़कियों की प्रेम कहानियों साधारण और मनोरंजक कार्यों में विद्यालय में कुछ विषयों में लड़के – लड़कियों की अपेक्षा आगे होते हैं और कुछ में लड़कियां लड़कों से आगे होती हैं गणित, विज्ञान, तर्क में लड़के आगे होते हैं। भाषा, हस्त लेख, संगीत, योग्यता स्मृति में लड़कियाँ अच्छी होती हैं। लिंग भेद प्रकृति की ऐसी अनोखी देन है जो अनेक विभिन्नताओं का निर्माण करती है।
4. बुद्धि – प्रकृति द्वारा बुद्धि का वितरण असमान होने के कारण तथा बुद्धि को प्रभावित करने वाले तत्वों के कारण बालकों में बौद्धिक विभिन्नता पायी जाती है। बुद्धि में विभिन्नता के कारण ही बालक के कार्यों और उपलब्धियों में भिन्नता दिखलाई पड़ती है। बुद्धि के ऊपर आनुवंशिकता और वातावरण दोनों का सीधा प्रभाव पड़ता है। इसे जन्मजात गुण माना जाता है। इसलिए कोई बालक प्रतिभाशाली, कोई मंद बुद्धि, श्रेष्ठ बुद्धि और कोई महामूर्ख होता है।
5. विकास और अभिवृद्धि- विकास और अभिवृद्धि की गति में अन्तर वैयक्तिक भिन्नता को जन्म देता है। सभी व्यक्तियों का विकास एक समय ही प्रारम्भ नहीं होता और न ही सभी के लिए एकरूपता से अग्रसर हो सकता है। वास्तव में विकास और अभिवृद्धि की गतियोंमें भिन्नता मानवीय गुणों में भिन्नता उत्पन्न कर देती है।
6. आयु और परिपक्वता – आयु और परिपक्वता में निकट का सम्बन्ध है। आयु में वृद्धि के साथ ही बालक परिपक्वता की ओर बढ़ता है। परिपक्वता का बालकों की शिक्षा से गहरा सम्बन्ध है। आयु में भिन्नता के कारण ही बालकों और बालिकाओं के शारीरिक, मानसिक और संवेगात्मक विकास में अन्तर पाया जाता है।
7. जाति एवं राष्ट्रीयता- जाति और राष्ट्रीयता को वैक्तिक भिन्नता का एक कारण माना जाता है। गाल्टन ने अपने अध्ययन द्वारा यह प्रमाणित किया है कि अंग्रेज नीग्रों की अपेक्षा विभिन्न योग्यताओं में श्रेष्ठ होते हैं किन्तु दूसरे विद्वानों उनके अध्ययन को अप्रमाणिक बतलाया है। वुडवर्थ के अध्ययन के अनुसार, अमेरिका के आदिवासी अन्य अमेरिकी जातियों की तुलना में संवेदनात्मक योग्यताओं को छोड़कर अन्य योग्यताओं में कम होते हैं। भारतवर्ष में जो इस प्रकार के अध्ययन किये गये हैं। उनमें आदिवासियों की बौद्धिक योग्यता अन्य सभ्य जातियों की अपेक्षा कम पायी जाती है।
एक राष्ट्र के लोग दूसरे राष्ट्र के लोगों से रीति रिवाज, रहनसहन भाषा – शिक्षा व विकास की दृष्टि से भिन्न होते हैं। इनका निर्माण उनके भौगोलिक स्वरूप, प्राचीन इतिहास और परिवर्तनों के परिणामस्वरूप होता है।
ऊपर वर्णित कारणों के सम्बन्ध में यह सम्बन्ध में यह ध्यान रखना चाहिए कि कोई एक कारण ही वैयक्तिक भिन्नता नहीं पैदा कर देता है बल्कि वैयक्तिक भिन्नता के पिछे कई कारण विद्यमान होते हैं। यह अवश्य है कि कोई कारण प्रमुख हो सकता है और कोई गौण ।
वैयक्तिक विभिन्नताओं का शैक्षिक महत्व
आधुनिक शिक्षाशास्त्रियों और मनोवैज्ञानिकों के लिए बालकों की वैयक्तिक भिन्नता का सर्वाधिक महत्व है। वे पूरी शिक्षा का स्वरूप इसी भिन्नता के अनुरूप विकसित कर रहे हैं क्योंकि एक ही प्रकार की शिक्षा सभी बालकों के लिए किसी भी दशा में उपयुक्त नहीं होगी। वातावरण में, जैसा कि जे० एस० रॉस ने लिखा है “वैयक्तिक भेद के सिद्धान्त ने शिक्षण से सम्बन्धित शैक्षिक सिद्धान्त को बहुत ही प्रभावित किया है। छात्रों में वैयक्तिक भेद शिक्षा की एक गम्भीर समस्या है इस समस्या का उल्लेख करते हुए ‘स्कीनर’ ने कहा है कि “हमारे विद्यालयों में विद्यार्थी योग्यताओं तथा रूचियों में काफी भिन्न होते हैं, फिर भी हम उनके साथ ऐसा व्यवहार करते हैं. जैसे वे सब एक समान हों” वैयक्तिक भिन्नता की इस समस्या का हल सरल कार्य नहीं है। इसके हल के लिए क्रो. और क्रो. के अनुसार निम्नलिखित बातों का प्रबन्ध आवश्यक है।
1. योग्यता की माप के लिए विश्वसनीय परीक्षणों का निर्माण करना होगा।
2. बालकों को व्यक्तिगत ढंग से सीखने के लिए अवसर प्रदान करने होंगे।
3. बालकों को उचित भौतिक तथा सामाजिक वातावरण प्रदान करना होगा जिसमें उनकी जन्मजात योग्यताओं को विकास का अवसर मिले।
4. विद्यालयों में अच्छी योग्यता वाले प्रशिक्षित अध्यापक हो पाठ्यक्रम वैविध्यपूर्ण हो तथा अधिगम को प्रोत्साहित करने वाली सहायक सामग्रियों की प्रचुरता हो।
5. शिक्षा देने वाली नियमित तथा अनियमित संस्थाओं को विद्यालयों की पूर्ण सहायता करनी होगी जिससे वे व्यक्तिगत रूप से शिक्षा देने का प्रबन्ध कर सकें।
अच्छा अध्यापक वही है जो बालकों के वैयक्तिक भेद को अच्छी प्रकार समझ कर उन्हें व्यक्तिगत रूप से पढ़ाने में रूचि लेता है। उसके लिए प्रत्येक विद्यार्थी प्रयोज्य है और वह एक कुशल प्रयोगकर्ता वैयक्तिक भेद के आधार पर बालक को पढ़ाकर शिक्षक उसका अवर्णनीय हित कर सकता है। इस सम्बन्ध में स्कीनर का यह कथन उल्लेखनीय है-
“यदि अध्यापक सभी प्रकार के योग्यता के बालकों को प्राप्त होने वाली शिक्षा में उन्नयन करना चाहता है, तो उसके लिए वैयक्तिक भिन्नता के स्वरूप का ज्ञान आवश्यक है।
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