शिक्षा के लिए अधिगमकर्ता केन्द्रित प्रविधियाँ का वर्णन कीजिए जो विशिष्ट बालकों की शिक्षा के लिए उपयोगी है।
विशिष्ट बालकों की शिक्षा के लिए अधिगमकर्ता केन्द्रित प्रविधियाँ
विशिष्ट बालकों की शिक्षा की व्यवस्था सामान्य बालकों की शिक्षा से अलग करनी पड़ती है, क्योंकि विशिष्ट सामान्य शिक्षा के साथ अपने को समायोजित नहीं कर पाते हैं। यहाँ यह भी ध्यान में रखने की बात है कि एक ही प्रकार की शिक्षा सभी प्रकार के विशिष्ट बालकों को नहीं दी जा सकती है जैसे मानसिक रूप से पिछड़े बालक की शिक्षण प्रविधि में और प्रतिभावान बालक की शिक्षण अवधि में अन्तर होगा। इसी प्रकार शारीरिक रूप से विकलांग बालकों और मानसिक रूप से पिछड़े बालकों की शिक्षण प्रविधियों में अन्तर होगा। यदि हम चाहते हैं कि विशिष्ट बालकों को अपनी क्षमताओं के विकास का पूर्ण अवसर मिले तो उनके लिए विशेष शिक्षा की व्यवस्था करनी पड़ेगी।
यहाँ उन शिक्षण प्रविधियों को वर्णन किया जायेगा जिनके द्वारा विशिष्ट बालकों का अधिगम सुगम और प्रभावशाली होगा।
प्रतिभावान बालक एवं शिक्षण प्रविधियाँ ( Gifted Children and Teaching Techniques ) – प्रतिभावन बालकों के लिए शिक्षण प्रविधि का स्वरूप निम्नांकित होगा –
1. पाठ्यक्रम में समृद्धि (Enrichment of Curriculum) – प्रतिभाशाली बालक को शिक्षा देने का सबसे उत्तम तरीका यह है कि उन्हें वह पाठ्यक्रम नहीं पढ़ाया जाय जो कक्षा के आम बालकों को पढ़ाया जाता है। इसके लिए शिक्षकों को चाहिए कि एक अलग पाठ्यक्रम तैयार करें जो सामान्य पाठ्यक्रम की तुलना में थोड़ कठिन एवं जटिल हो तथा जिसमें अमूर्तता का गुण अधिक हो। ऐसे बालक इस ढंग से समृद्ध पाठ्यक्रम को अधिक लाभकारी एवं अपनी प्रतिभा के अनुकूल भी पाते हैं। इससे उनमें काफी आत्म संतोष होता है।
2. वर्ग उन्नति ( Grade Acceleration ) – प्रतिभाशाली बालकों को शिक्षा देने को एक विधि यह भी है कि कक्षा में ऐसे बालकों को शीघ्र ही अतिरिक्त उन्नति देकर अगले या उससे भी अगले वर्ग में भेज देना चाहिए। उच्चतर वर्ग का पाठ्यक्रम कठिन होने से उसे वे अपनी क्षमता एवं कुशलता के अनुसार योग्य पायेंगे और तब ये कक्षा में ठीक ढंग से समायोजन भी कर लेंगे।
3. विशिष्ट कक्षा का प्रबन्ध (Arrangement of Special classes) – कुछ मनोवैज्ञानिकों ने प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षा के लिए अलग से विशिष्ट कक्षा चलाने का सुझाव दिया है। इन मनोवैज्ञानिकों को कहना है कि चूँकि ऐसी विशिष्ट कक्षा में सिर्फ प्रतिभाशाली बालक ही होते हैं। अतः शिक्षक को एक सम्पन्न ढंग से पढ़ाई जारी रखने में काफी सुविधा होती है और सभी बालकों एक दूसरे से पूर्णतः समायोजित भी रहते हैं। उनमें प्रतियोगिता का उचित भाव भी बना रहता है।
4. निर्देश ( Instruction ) – हेवार्ड एवं औरलैन्सकी ने प्रतिभाशाली बालकों की कक्षा में शिक्षण द्वारा दिये गये निर्देश के तीन प्रकार बतलायें हैं- प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष तथा आत्म निर्देशित। प्रत्यक्ष निर्देश में शिक्षक छात्रों के लिए एक लक्ष्य निर्धारित कर देते हैं। छात्रों द्वारा किये जाने वाले कार्यों को स्पष्ट रूप से परिभाषित कर देते हैं, निष्पादन को मापने की विधियों का उल्लेख कर देते हैं तथा उन कसौटियों को भी उजागर कर देते हैं जिनके आधार पर वह अपनी सफलता की जाँच कर सकता है।
प्रत्यक्ष निर्देश में शिक्षक सभी कार्य वही करते हैं, परन्तु इनमें छात्र कौन सा विषय या एकांश सीखेगा, यह बालक की अभिरूचियों से प्राप्त अनुभवों पर निर्भर करता है। इस दिशा में शिक्षक कुछ भी दिशा निर्देश नहीं देते। आत्म निर्देशित अनुदेश में शिक्षार्थी स्वयं ही एक लक्ष्य निर्धारित करते हैं कार्य या पाठ को परिभाषित करते हैं, सफलता के लिए कसौटी तय करते हैं तथा परिणाम का मूल्यांकन करते हैं।
5. वैयक्तिक विधि ( Independent Method) – प्रतिभावन बालकों को वैयक्तिक विधि से शिक्षा दी जानी चाहिए। इसमें शिक्षक विशेष हस्तक्षेप नहीं करता, वह निरीक्षण मात्र करता है। बालक को एक निश्चित अवधि में कोई कार्य करने को दे दिया जाता है और शिक्षक उसकी प्रगति का ध्यान रखते हुए उसको नए नए कार्य देता रहता है।
6. योग्य एवं प्रभावकारी शिक्षक ( Able and effective teacher ) – प्रतिभावान बालकों को पढ़ाने वाले शिक्षक बौद्धिक रूप से सजग हों, उनमें क्रमबद्धता हो, वे शिक्षण विधियों के प्रयोग में निपुण हो तथा उन्हें विषय का पूर्ण ज्ञान हो।
2. मानसिक दृष्टि से पिछड़े बालक और शिक्षण प्रविधियाँ (Mentally Re tarded children and teaching techinques)
मानसिक दृष्टि से पिछड़े बालकों के लिए शिक्षण प्रविधि का स्वरूप निम्नांकित होगा-
1. पाठ्यक्रम का अनुकूलन (Adaptation of curriculum)- स्कीनर, रिली तथा लेविस ने ऐसे बालकों के लिए एक अलग पाठ्यक्रम जो अधिक सरल एवं मनोरंजक हो तैयार करने की सिफारिश की है। ऐसे बालकों के लिए पाठ्यक्रम में दर्जी का काम, बढ़ई आदि का काम सम्मिलित किया जाना चाहिए।
2. विशेष कक्षा ( Special class) – कई कारणों से मनोवैज्ञानिकों ने मानसिक रूप से मन्द बालकों को विशेष कक्षा में रखकर शिक्षा दीक्षा प्रदान करने की सिफारिश की है। – विशेष कक्षा में रखकर जब ऐसे बालकों को शिक्षा दी जाती है तब इससे उन्हें काफी लाभ होता है क्योंकि ऐसी कक्षा में के लिए उनपर वैयक्तिक रूप से ध्यान देना सम्भव हो पाता है।
3. अध्यापन विधि ( Teaching Method) – मन्दबुद्धि के बालकों को शिक्षा देने की विधि भी सामान्य बुद्धि के बालकों से भिन्न होनी चाहिए। मन्दबुद्धि के बालकों को शिक्षा देने में प्रदर्शन विधि का प्रयोग तथा बालकों को खुद करके किसी चीज या कौशल को सीखने की विधि पर बल डालना चाहिए। अध्ययनों से यह स्पष्ट हो गया है कि ऐसे बालक भाषण विधि से नहीं के बराबर सीख पाते हैं। अतः शिक्षकों को चाहिए कि ऐसे बालकों में शिक्षा देते समय उपयुक्त विधियों का ही सहारा ले। रिली एवं लेविस ने यह बतलाया है कि जब ऐसे बालकों को कोई कौशल प्रदर्शन विधि से अर्थात उस कौशल को सीखने से सम्बन्धित सभी वस्तुओं की कला में शिक्षक द्वारा दिखलाया जाता है, तो इससे ऐसे बालकों का ध्यान उस वस्तु की ओर बना रहता है तथा साथ ही साथ अभिरूचि भी बनी रहती है। इससे वे कौशलता की जल्दी सीख लेते हैं।
4. व्यवहार परिमार्जन ( Behaviour Modification) – व्यवहार परिवर्तन को प्रविधि द्वारा भी मानसिक रूप से मन्द बालकों को शिक्षा दी जाती है। यह एक ऐसी प्रविधि है जिससे पर्यायवाची घटनाओं को शिक्षक द्वारा क्रमबद्ध रूपसे इस ढंग से सुव्यवस्थित किया जाता है कि उससे बालकों के व्यवहार में वांछित परिवर्तन हो जाऐं। इस प्रविधि द्वारा शिक्षा देने में शिक्षक पहले यह तय कर लेते हैं कि उन्हें कौन सा कौशल सिखलाना है। इसके बाद उस कौशलता को कई छोटे- छोटे सरल कदमों में बाँट दिया जाता है और प्रत्येक सरल कार्य को सरलतापूर्वक करने पर उसे पुनर्वलन या कोई पुरस्कार दिया जाता है। इस तरह बालक सभी कदमों को एक के बाद एक करके सीख लेता है और अन्त में वह उस कौशल को पूर्णरूपेण सीख लेता है।
5. विशिष्ट निवासीय स्कूल ( Special residential School) – कुछ मनोवैज्ञानिकों ने मानसिक रूप से मंद बालकों की शिक्षा के लिए एक ऐसे स्कूल की स्थापना का सुझाव दिया है जिसमें वे रह भी सके तथा साथ ही साथ उनकी शिक्षा दीक्षा भी हो सके।
6. खेल विधि (Playway Method) – खेल विधि जो एक रचनात्मक प्रवृत्ति की द्योतक है, मानसिक रूप से पिछड़े बालकों की शिक्षा के लिए उपयुक्त मानी जाती है। इसके द्वारा उन्हें स्वतन्त्रता, स्वाभाविकता तथा सुख आदि का अनुभव होता है और वे आसानी से सीख जाते हैं।
3. शारीरिक विकलांग बालक और शिक्षण प्रविधियाँ ( Physically Handi capped children and teaching techniques )
– शारीरिक विकलांगता कई प्रकार की होती है, इसलिए शिक्षण प्रविधियों का स्वरूप भी विभिन्न प्रकार का होता है। चक्षु विकलांग जो बालक ऐसे चक्षु विकलांग है जिन्हें पूर्णतः दिखलाई नहीं पड़ता है, उनके लिए निम्नलिखित शिक्षण प्रविधियाँ उपयोगी होती हैं.
1. ब्रेल पद्धति – इस पद्धति में पूर्ण दृष्टिहीन छात्रों को ब्रेल पुस्तक, ब्रेल स्लेट आदि द्वारा पढ़ना लिखना सिखलाया जाता है। ब्रेल अक्षरों को छात्र स्टाइलस की सहायता से लिखते हैं। उभरे हुए बिन्दुओं पर छात्र अपनी अंगुली की नोक रखकर ब्रेल अक्षरों को पढ़ते हैं।
2. विशिष्ट आवासीय स्कूल- ऐसे बालकों के लिए अलग से आवासीय विद्यालय होने चाहिए। जो बालक आंशिक दृष्टि से ग्रसित हैं उनके लिए निम्नलिखित शिक्षण प्रविधियाँ उपयोगी हैं
1. निम्न दृष्टि साधन- निम्न दृष्टि वाले छात्रों को दृष्टि सम्बन्धी सहायता पहुँचाने वाले उपकरण देने पर ये शिक्षा से अधिक लाभान्वित होते हैं। इसमें काण्टेक्ट लेंस जिसे पहना जाता है, टेलिस्कोप जिससे दूर की चीजों को देखा जाता है तथा आवर्धक जिसे किताबों के अक्षरों पर रख देने से अक्षर का आकार काफी बड़ा दिखता है, प्रधान है।
2. सुनकर दोहराने का अभ्यास- आंशिक दृष्टि दोष वाले बालकों को दूसरे बालक जो सामान्य दृष्टि के हैं, द्वारा पाठ या विषय को बोल बोलकर दोहराने तथा उसे सुनने का अभ्यास करना चाहिए। टेप रिकार्डर का प्रयोग भी आंशिक दृष्टि दोष वाले बालकों के लिए उपयोगी होता है।
3. विशिष्ट शिक्षण सामग्री- आंशिक दृष्टिदोष वाले बालकों के लिए किताब के अक्षरों के आकार बड़े बड़े हों तो इससे उन्हें शिक्षा ग्रहण करने में काफी आसानी होती है।
श्रवण विकलांग बालक- पूर्ण बहरे बालकों को शिक्षा देने में क्रियात्मक कार्यों को अधिक महत्व देना चाहिए, जैसे बालकों को लकड़ी का सामान बनाना, मिट्टी के बर्तन बनाना, कपड़ा सीना आदि सिखलाया जा सकता है। ऐसे बालकों की शिक्षा में अशाब्दिक संचार की प्रधानता होनी चाहिए। यथासंभव चिन्ह भाषा का प्रयोग किया जाना चाहिए।
जो बालक आंशिक रूप से बहरे हैं उन्हें शिक्षा सामान्य बालकों के साथ एक ही कक्षा में दी जा सकती है बशर्ते उन्हें उपयुक्त आधुनिक श्रवण साधन जैसे इयर फोन आदि का प्रयोग करने दिया जाता है। । कुछ शिक्षाशास्त्रियों ने ऐसे बालकों की शिक्षा के लिए सम्पूर्ण संचार उपागम के प्रावधान पर बल डाला है। इस उपागम में बालकों में भाषा विकास एवं दूसरे की बोली सुनकर अपने विचार की अभिव्यक्ति पर बल डालने के ख्याल से शिक्षक कक्षा में व्याख्यान के दौरान बहुत सारे हस्तसंचार प्रविधियां, जिनमें चिन्ह भाषा, सांकेतिक भाषण, आंगुलिक हिज्जे आदि प्रमुख हैं
वाक् विकलांग बालक- जो बालक भाषा सम्बन्धी दोष से ग्रसित होते हैं, वे कई प्रकारके होते हैं, जैसे- 1. गूंगे बालक, 2. उच्चारण सम्बन्धी दोष वाले बालक, 3. आवाज सम्बन्धी दोष वाले बालक, 4. प्रवाहित सम्बन्धी दोष वाले बालक, 5. व्याख्यान सम्बन्धी दोष वाले बालक। ऐसे बालकों विशेषकर गूँगे बालकों की शिक्षा दीक्षा के लिए अलग आवासीय स्कूल की स्थापना करनी चाहिए, जहाँ रहने के साथ ही साथ उनकी शिक्षा का भी उचित प्रबन्ध हो ।
4. पिछड़े बालक एवं शिक्षण प्रविधियाँ
पिछड़े बालकों के लिए शिक्षण प्रविधि का स्वरूप निम्नांकित होगा-
1. मानसिक क्षमता के अनुकूल शिक्षा – इन बालकों को उनके बुद्धिस्तर के अनुकूल अलग से पाठ्यक्रम तैयार कर उन्हें शिक्षा देनी चाहिए। ऐसी परिस्थिति में पिछड़े बालक उन्नत शिक्षा पा सकेंगे तथा अपनी कक्षा में अन्य लोगों के साथ समायोजन भी ठीक ढंग से कर सकेंगे। जहाँ तक सम्भव हो ऐसे बालकों की शिक्षा व्यवस्था विशिष्ट कक्षा बनाकर या विशिष्ट स्कूल बनाकर दी जानी चाहिए।
2.व्यक्तिगत ध्यान- पिछले बालकों की उचित शिक्षा देने तथा वर्ग में उपयुक्त समायोजन करने में मदद के लिए यह आवश्यक है कि शिक्षक छात्र के पिछड़ेपन पर व्यक्तिगत ध्यान दें तथा साथ ही साथ उनके पिछड़ेपन के कारणों का पता लगाकर उसे दूर करने की कोशिश करें। व्यक्तिगत ध्यान देने से छात्र की असफलता के सही सही कारणों का पता शिक्षक को चल जाता है और तब वे उसी के अनुसार अपना कार्यक्रम तय कर बालकों के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए प्रयत्नशील हो उठते हैं।
3. उपयुक्त वातावरण प्रदान करना – पिछड़े बालकों में उपयुक्त घरेलु एवं स्कूल वातावरण की कमी एक प्रमुख कारण है। अतः शिक्षा मनोवैज्ञानिकों ने इस बात पर बल डाला है कि ऐसे बालकों के घरेलू वातावरण शिक्षा के दृष्टिकोण से उत्तेजक एवं अनुकूल होना चाहिए। कुछ मनोवैज्ञानिकों जैसे हैडफिल्ड एवं क्रो एण्ड क्रो ने यह सुझाव दिया है कि यदि स्कूल में ऐसे बालकों को शिक्षा देने के लिए प्रदर्शन, खेल, उनकी सहभागिता आदि का सहारा लिया जाता है तो इससे वे अधिक लाभान्वित हो पाते हैं।
4. शिक्षकों को चाहिए कि ऐसे बालको की अभिरूचि बनाए रखने के लिए बालकों को विशेषकर छोटे बालकों को खिलौने तथा श्रव्य दृष्टि साधनों का प्रयोग अधिक करना चाहिए। –
5. शिक्षकों को चाहिए कि ऐसे बालकों की शिक्षा के लिए विशिष्ट विधि का सहारा लें जिससे छात्रों की अभिरूचि, रूझान एवं प्रेरणा शिक्षक द्वारा बतलाये गये तथ्यों एवं पढ़ाए गये विषयों में स्वाभाविक हो ।
5. समस्यात्मक बालक और शिक्षण प्रविधियाँ
शिक्षा मनोवैज्ञानिक एवं शिक्षाशास्त्रियों ने समस्यात्मक बालकों के व्यवहार के सन्दर्भ में उपयुक्त शिक्षा एवं समुचित उपचार के लिए निम्नलिखित सुझाव दिया है –
1. अच्छी अध्यापन विधियाँ – शिक्षक को चाहिए कि समस्यात्मक बालकों के बुद्धि स्तर को ध्यान में रखते हुए एक अच्छी अध्यापन विधि अपनायें। एक अच्छी अध्यापन विधि से तात्पर्य ऐसी विधि से होता है जिसमें शिक्षक वस्तु विषय या पाठ की ओर छात्रों को उचित अभिरूचि एवं प्रेरणा बनी रहती है।
2. स्कूल व स्वस्थ एवं अच्छा अनुशासन – समस्यास्यात्मक बालकों की समुचित शिक्षा एवं उपचार के लिए सिर्फ यही आवश्यक नहीं है कि अध्यापन की विधियाँ अच्छी हो बल्कि यह भी आवश्यक है कि स्कूल का अनुशासन न अधिक कठोर एवं सख्त होना चाहिए और न ही अधिक ढ़ीला ढ़ाला बल्कि उसे ऐसा करना चाहिए जिसमें छात्र अपनी इच्छाओं एवं कठिनाइयों की अभिव्यक्ति शिक्षक से खुलकर कर सकें।
3. बौद्धिक क्षमता के अनुकूल शिक्षा- रिली के अध्ययन के अनुसार जब समस्यात्मक बालकों को शिक्षा उनके बौद्धिक स्तर के अनुकूल पाठ्यक्रम तैयार कर के दी जाती है, तब इससे शिक्षा में उसकी अभिरूचि एवं रूझान बढ़ती है तथा इनमें समस्यात्मक व्यवहार की बारंबारता में धीरे धीरे कमी आने लगती हैं।
4. व्यवहार परिमार्जन- समस्यात्मक बालकों के उपचार तथा शिक्षा देने की दिशा में – आजकल व्यवहार परिमार्जन प्रविधियाँ काफी लाभदायक सिद्ध हो रही हैं। इन प्रविधियों के सहारे समस्यात्मक बालकों में समस्यात्मक व्यवहार की जगह अच्छे व्यवहारों को पुनर्वलन के आधार पर सिखलाया जाता है। इस तरह उनके समस्या धीरे धीरे कम होते जाते हैं। और उनकी जगह नए नए सामाजिक व्यवहार सीखते जाते हैं।
6. अपराधी बालक और शिक्षण प्रविधियाँ- अपराधी बालकों का उपचार करने तथा उन्हें समुचित शिक्षा प्रदान करने के लिए मनोवैज्ञानिकों के द्वारा दो प्रकार की प्रविधियों का सुझाव दिया गया है-
1. निरोधात्मक प्रविधियाँ 2. रोगनाशक प्रविधियाँ
1. निरोधात्मक प्रविधियाँ – निरोधात्मक प्रविधि से तात्पर्य उस प्रविधि से होता है जिन्हें ध्यान में रखने से किसी बालक को अपराधी बालक बनने से रोक दिया जा सकता है। इन प्रविधियों का मुख्य विश्वास होता है – “निवारण उपचार से अच्छा होता है।” निरोधात्मक उपायों के अन्तर्गत माता पिता का ध्यान एवं स्नेह, उचित इच्छाओं की पूर्ति, विद्यालय एवं घर का – प्रभावशाली अनुशासन, शासकीय सहायता आदि को सम्मिलित किया जाता है।
2. रोगनाशक प्रविधियाँ- रोगनाशक प्रविधियाँ वैसी प्रविधियों को कहा जाता है जिनके माध्यम से बालक के अपराधी हो जाने पर उसके अपराध में सुधार करने की कोशिश की जाती है। इन प्रविधियों में निम्नांकित प्रमुख है-
1. बाल अपराध न्यायालय, 2. मनोगतिक विधि, 3. व्यवहारात्मक विधि, 4. पुर्नवास विधि,
1. बाल अपराध न्यायालय- बाल अपराधी को सुधारने की यह प्रथा पुरानी है तथा करीब करीब सभी देशों में है। इस प्रथा में अपराधी बालक को बाल अपराध न्यायालय में उपस्थित किया जाता है जहाँ न्यायालय के जज अनौपचारिक ढंग से पूछताछ कर उसकी जाँच करते हैं और वे कोशिश करते हैं कि उनके अपराध के कारणों को वे समझकर उन्हें अपराध न करने में मदद करें।
2. मनोगतिक विधि- इस प्रविधि में मनोवैज्ञानिक, मनोचिकित्सा एवं परामर्श द्वारा – बाल अपराधियों में सूझ बूझ एवं समझ उत्पन्न करके उनके अपराधी व्यवहारों को कम करने का भरसक प्रयत्न करते हैं।
3. व्यवहारात्मक विधि- ऐसा देखा गया है कि बहुत सारे बाल अपराधी मनोचिक्तिसा या परामर्श के लिए तैयार नहीं होते हैं। अतः उनका उपचार व्यवहारात्मक विधि से करना होता है। उपयुक्त पुनर्वलन देकर उन्हें नयें व्यवहारों के साथ अनुबंधन किया जाता है। ताकि पुराने अपराधी व्यवहार की बारम्बारता कम हो जाए। सांकेतिक विधान एवं माडेलिंग आदि की प्रविधि द्वारा उनके व्यवहार में युक्तिसंगत परिवर्तन लाकर उनके अपराध को कम किया जाता है।
4. पुनर्वास विधि – यह एक ऐसी विधि है जिसमें अपराधी बालकों को एक ऐसी मानवीय वातावरण में रखा जाता है जहाँ उनमें स्वतः ही न करने की प्रेरणा तीव्र होने लगती हैं।
7. सुविधावंचित बालक और शिक्षण प्रविधियाँ
सुविधावंचित बालकों की शिक्षा के लिए कुछ प्रमुख सुझाव निम्नलिखित हैं-
1. ऐसे क्षेत्र जहाँ सुविधावंचित बालकों की संख्या ज्यादा हो, वहाँ कुछ विशेष शैक्षिक अभियान चलाना चाहिए। इसका फायदा यह होगा कि इससे वैसे बालक सीधे लाभान्वित हो पाएंगे और उनकी शैक्षिक जागरूकता बढ़ेगी। इस विशिष्ट अभियान में यदि प्रचार के आधुनिक साधनों जैसे रेडियो चलचित्र, टेलीविजन, श्रव्यदृश्य साधनों का प्रयोग किया जाता है तो इससे उस अभियान की उपयोगिता और बढ़ जाएगी।
2. कुछ अध्ययनों के आधार पर यह बतलाया गया है कि सुविधा वंचित बालकों के शैक्षिक उत्थान के लिए आश्रम की तरह के स्कूल की स्थापना की जानी चाहिए।
3. सुविधावंचित बालकों के शिक्षण स्तर को ऊँचा करने के लिए कुछ शिक्षा मनोवैज्ञानिकों ने व्यवहार परिमार्जन की विभिन्न प्रविधियों, प्रत्यक्षात्मक प्रशिक्षण, आकार, विभेद करने की प्रविधियों का विशेष उपयोग करने की सिफारिश की है।
हेविंगहर्स्ट के अनुसार इन प्रविधियों के सहारे सुविधावंचित बालकों के संज्ञानात्मक अपूर्णता को काफी हद तक दूर करने में सहायता मिलती है।
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