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नगरीय प्रशासन की संरचना | नगरपालिका की शक्तियाँ, प्राधिकार, उत्तरदायित्व

नगरीय प्रशासन की संरचना
नगरीय प्रशासन की संरचना

नगरीय प्रशासन की संरचना एवं उत्तरदायित्व

नगरीय प्रशासन से आशय नगरी निकायो से है। संविधान के अनुच्छेद 243 (घ) के अनुरूप उत्तर प्रदेश में केवल निम्न 3 प्रकार के नगरीय निकाय गठित होगे।

(i) नगर पालिका निगम- वृहत्तर नगरीय क्षेत्रों में,

(ii) नगर पालिका परिषद – वृहत्तर नगरीय क्षेत्रों में,

(iii) नगर पंचायत– संक्रमणशील क्षेत्रों में (नगरीय प्रकाश के ग्रामीण क्षेत्रों में) ।

वृहत्तर, लघुत्तर तथा संक्रमणशील क्षेत्र अधिसूचित करने की शक्ति राज्यपाल में निहित की गई है। यह प्रावधान किया गया है कि उक्त प्रकार के क्षेत्र अधिसूचित करते समय राज्यपाल द्वारा क्षेत्र की जनसंख्या, उसमें जनसंख्या की सघनता, नगरीय प्रशासन हेतु उत्पन्न राजस्व, कृषि से भिन्न क्रिया-कलापों में नियोजन की प्रतिशतता का ध्यान रखा जायेगा। आर्थिक महत्व तथा अन्य ऐसे नगरीय क्षेत्र में उपर्युक्त प्रकार के नगरीय निकायों को गठित करने के स्थान पर राज्यपाल द्वारा उसे औद्योगिक नगरी के रूप में भी विनिर्दिष्ट किया जा सकता है, यदि यह पाया जाता है कि ऐसे क्षेत्र में औद्योगिक स्थापन या ऐसे स्थानों के किसी समूह द्वारा नगरपालिका सेवाएं दी जा रही हैं या दी जानी प्रस्तावित है। नगरपालिका अधिनियम के प्रावधानों में संक्रमणशील क्षेत्र को भी परिभाषित किया गया है। संक्रमणशील क्षेत्र वे होंगे जो ग्रामीण क्षेत्रों से नगरीय क्षेत्रों में परिवर्तित हो रहे हैं, लघुत्तर नगरीय क्षेत्र परिभाषित नहीं किये गये हैं। किस जनसंख्या वाले क्षेत्र को वृहत्तर नगरीय क्षेत्र और किस जनसंख्या वाले क्षेत्र को लघुत्तर नगरीय क्षेत्र या संक्रमणशील क्षेत्र अधिसूचित किया जा सकेगा ऐसा कोई स्पष्ट मापदण्ड न तो संविधान में निर्धारित किया गया है और न ही राज्य के नगर पालिका अधिनियम में प्रावधानित है।

नगर निकायों की संरचना (Structure of Local Bodies)

अनुच्छेद 243 (द) के अनुसार किसी नगर पालिका में सभी स्थान नगरपालिका क्षेत्र में निर्वाचन क्षेत्रों (वार्डो) से प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुने हुए व्यक्तियों द्वारा भरे जायेंगे। एक नगर पालिका निगम में निम्न सम्मिलित होंगे।

वार्डों से प्रत्यक्ष निर्वाचित पार्षद नगर निगमों की स्थिति में अधिक से अधिक 6 व्यक्ति, नगर पालिकाओं की स्थिति में अधिक से अधिक 4 व्यक्ति और नगर पंचायतों की स्थिति से अधिक से अधिक 2 व्यक्ति तथा लोकसभा विधान के सदस्य जो उन निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिनमें कोई नगरीय निकाय पूर्णतः या अंशतः समाविष्ट है, और राज्य सभा के सदस्य जो नगरपालिका क्षेत्र के भीतर निर्वाचकों के रूप में पंजीकृत हों। नगरीय प्रशासन में सभी को स्थान प्रदान करने की दृष्टि से उत्तर प्रदेश में नगरीय निकायों के अधिनियम में वार्डों के सम्बन्ध में आरक्षण सम्बन्धी प्रावधान भी किया गया है। इनमें अनुसूचित जाति, जनजाति तथा पिछड़ा वर्ग एवं महिलाओं के लिए वार्ड आरक्षित है।

कार्यकाल – प्रतयेक नगरपालिका का कार्यकाल प्रथम अधिवेशन से पाँच वर्ष की अवधि तक होगा। यदि 5 वर्ष से पूर्व किसी प्रक्रिया द्वारा नगरीय संस्था को विघटित कर दिया जायेगा तो विघटन से पहले नगर पालिका को उचित अवसर दिया जायेगा तथा 6 माह के अन्दर शेष अवधि हेतु पुनर्निर्वाचन आवश्यक होगा।

निर्वाचन प्रक्रिया – सन् 1994 में नगरीय तथा ग्रामीण निकायों के चुनाव के लिए राज्य निर्वाचन आयोग गठित किया गया है। निर्वाचित पार्षदों का कार्यकाल 5 वर्ष रखा गया है। मतदान गुप्त होता है। 21 वर्ष की आयु की मतदाता पार्षद होने के योग्य होता है।

महापौर/अध्यक्ष (Major Charirman ) – नगरीय प्रशासन के इतिहास में पहली बार नगर निकायों के महापौर पद तथा नगरपालिकाओं व नगर पंचायतों के अध्यक्ष पद अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, पिछड़े वर्गों तथा महिलाओं के लिए आरक्षित करने की व्यवस्था की गई है।

नगर प्रशासन तन्त्र – नगर निगम में आयुक्त और नगरपालिका व नगर पंचायतों में मुख्य नगरपालिका अधिकारी होते हैं। नगर निगमों में 7 परामर्शदात्री समितियाँ होती हैं। प्रत्येक में कम से कम पाँच और अधिक से अधिक सात पार्षद होते हैं। जैसे— जनकार्य समिति, सार्वजनिक स्वास्थ्य तथा बाजार समिति, शिक्षा समिति और सार्वजनिक सम्बन्ध समिति ।

आयुक्त- नगरपालिका निगम हेतु आयुक्त की नियुक्ति राज्य शासन द्वारा 5 वर्ष के लिए की जाती है। आयुक्त निगम का मुख्य कार्यपालक अधिकारी होता है, अन्य अधिकारी उसके अधीन होते हैं। आयुक्त किसी समिति की बैठक में भाग ले सकता है, बोल सकता है किन्तु मत नहीं दे सकता।

प्रशासन व्यवस्था – नगर पालिका निगमों में आयुक्त छोड़कर शेष सभी पदों पर नियुक्ति / पदोन्नति का अधिकार आयुक्त व स्थाई समिति को होता है। प्रत्येक निगम में एक नगर मन्त्री, एक स्वास्थ्य अधिकारी, एक राजस्व अधिकारी एक नगर पालिका सचिव और एक लेखा पदाधिकारी की नियुक्ति आवश्यक है। इसके अतिरिक्त अन्य अधिकारी व कर्मचारी भी होते हैं।

नगरीय निकायों हेतु राज्य स्तर पर एक ‘संचालनालय नगर प्रशासन स्थापित है, जिसका मुख्यालय लखनऊ में है तथा संभागीय स्तर पर भी इसके कार्यालय है। इसके अन्तर्गत नगरीय निगमों को देय अनुदान, ऋण, पर्यवेक्षण जाँच आदि के प्रकरण व्यवहारित होते हैं।

कार्य- नगर निगमों नगरपालिकाओं तथा नगर पंचायतों के लिए निर्धारित कार्य दो प्रकार के हैं—

1. अनिवार्य कार्यों के अन्तर्गत मुख्य रूप से सफाई, सड़क नाली, मार्ग प्रकाश व्यवस्था, जल व्यवस्था सार्वजनिक शौचालय, मूत्रालय, सार्वजनिक बाजारों तथा वध शालाओं की व्यवस्था करना।

2. विवेकाधीन कार्यों के अन्तर्गत अस्वास्थ्यकर बस्तियों का पुनरुद्धार, सार्वजनिक, उद्यम, पुस्तकालय, वाचनालय, स्नानघरों की व्यवस्था आदि कार्य ।

इन कार्यों के अतिरिक्त नगरीय योजना भवनों का निर्माण, सामुदायिक भवनों का निर्माण, आर्थिक और सामाजिक विकास योजना, नगरीय वानिकी, पर्यावरण का संरक्षण समाज के दुर्बल वर्गों, विकलांगों के हितों की रक्षा करना भी सम्मिलित है।

नगरपालिका की शक्तियाँ, प्राधिकार, उत्तरदायित्व

भारतीय संविधान की अनुसूची 12 में निम्नलिखित 18 विषय हैं जिन पर नगरपालिकाओं को विधि निर्माण की स्वायत्त शक्ति प्रदान की गई है।

12वीं अनुसूची-1. नगरीय योजना जिसके अन्तर्गत शहरी योजना भी है।

2. भूमि उपयोग का विनिमय और भवनों का सन्निर्माण।

3. आर्थिक और सामाजिक विकास की योजना ।

4. सड़के और पुल।

5. घरेलू औद्योगिक वाणिज्यिक आयोजनों के लिए जल प्रदाय ।

6. लोक स्वास्थ्य, स्वच्छता सफाई और कूड़ा-कड़कट प्रबन्ध ।

7. अग्निशमन सेवाएं।

8. नगरीय वानिकी, पर्यावरण संरक्षण और पारिस्थितिकी पहलुओं की अभिवृद्धि ।

9. समाज के दुर्बल वर्गों के विकलांग एवं मन्दबुद्धि व्यक्तियों के हितों का संरक्षण

10. गन्दी बस्ती सुधार और उन्नयन।

11. नगरीय निर्धनता कम करना ।

12. नगरीय सुख-सुविधाओं; जैसे- पार्क, उद्यान, खेल मैदान की व्यवस्था करना।

13. सांस्कृतिक, शैक्षणिक और सौन्दर्यपरक पहलुओं की अभिवृद्धि ।

14. शव गाढ़ना, कब्रिस्तान, शवदाह और शमशान तथा विद्युत शवदाह गृह की व्यवस्था करना 

15. कॉजी हाउस की व्यवस्था एवं पशुओं के प्रति क्रूरता कम करना ।

16. जन्म, मृत्यु सांख्यिकी का रजिस्ट्रीकरण।

17. लोक सुख-सुविधाएं जिसके अन्तर्गत पथ प्रकाश, पार्किंग स्थल, बस स्टाक और अन्य जन सुविधाएं ।

18. पशु वध शालाओं और चर्मशोधन शालाओं का विनियमन ।

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