राजनीति विज्ञान / Political Science

पंचायत सदस्य की योग्यताएं, कार्यकाल, पंचायतों के निर्वाचन, शक्तियाँ, प्राधिकार और दायित्व

पंचायत सदस्य की योग्यताएं
पंचायत सदस्य की योग्यताएं

पंचायत सदस्य की योग्यताएं

पंचायत का सदस्य निर्वाचित होने के लिए निम्न योग्यताएं आवश्यक होगी-

(क) नागरिक ने 21 वषर की आयु प्राप्त कर ली हो।

(ख) वह व्यक्ति प्रवृत्त विधि के अधीन राज्य विधानमण्डल के लिए निर्वाचित होने की योग्यता (आयु के अतिरिक्त अन्य योग्यताएं) रखता हो।

(ग) वह सम्बन्धित राज्य विधानमण्डल द्वारा निर्मित विधि के अधीन पंचायत का सदस्य निर्वाचित होने के योग्य हो।

कार्यकाल

पंचायत राज संस्थाओं का कार्यकाल 5 वर्ष होगा। किसी पंचायत के गठन के लिए चुनाव (क) पांच वर्ष की अवधि के पूर्व और (ख) विघटन की तिथि से 6 माह की अवधि समाप्त होने के पूर्व करा लिया जाएगा।

पंचायतों के निर्वाचन

पंचायतों के लिए निर्वाचक नामावली तैयार करने और पंचायती के सभी निर्वाचनों के संचालन का अधीक्षण निर्देशन और नियन्त्रण राज्य निर्वाचन आयोग में निहित होगा। इस कार्य के लिए राज्य में एक राज्य निर्वाचन आयुक्त की जा सकती है।

शक्तियाँ, प्राधिकार और दायित्व

इस संविधान के उपबन्धों के अधीन रहते हुए राज्य का विधानमण्डल विधि द्वारा पंचायतों को ऐसी शक्तियां और प्राधिकार प्रदान कर सकता है जो उन्हें स्वायत्त शासन की संस्थाओं के रूप में कार्य करने योग्य बना सकें। ग्यारहवीं अनुसूची में कुल 29 विषयों का उल्लेख है, जिन पर पंचायतों को विधि बनाने की शक्ति प्रदान की गई है। कुछ प्रमुख विषय हैं कृषि एवं कृषि विस्तार, भूमि सुधार, चकबन्दी, लघु सिंचाई, पशु पालन, पेयजल, ईंधन, चारा, प्राइमरी और माध्यमिक विद्यालय परिवार कल्याण, और बाल विकास आदि। स्त्री

वित्त आयोग की नियुक्ति 

इस अधिनियम की एक महत्वपूर्ण बात यह है कि अब प्रत्येक प्रांच वर्ष बाद राज्य स्तर पर एक ‘वित्त आयोग का गठन होगा। यह वित्त आयोग राज्य सरकार और पंचायती राज संस्थाओं के बीच धन के बंटवारे के सम्बन्ध में सिफारिशें करेगा। आयोग यह सभी तय करेगा कि राज्य के संचित कोष से पंचायतों को कितना धन दिए जाएगा।

73वें संवैधानिक संशोधन उपलब्ध संघ राज्य क्षेत्रों पर भी लागू होंगे, लेकिन ये उपबन्ध उत्तर-पूर्वी भारत के कुछ राज्यों और पं० बंगाल के दार्जिलिंग जिले के पर्वतीय क्षेत्र पर लागू नहीं होंगे।

उत्तर प्रदेश में पंचायत राज व्यवस्था उत्तर प्रदेश पंचायत विधि अधिनियम, 1994

1993 में भारतीय संविधान में जो संवैधानिक संशोधन किया गया, मूलभूत रूप में उसे दृष्टि में रखते हुए राज्य सरकारों को अपने-अपने राज्य के लिए पंचायती राज की व्यवस्था करनी है। उत्तर प्रदेश राज्य में यह व्यवस्था उत्तर प्रदेश पंचायत विधि अधिनियम, 1994 के आधार पर की गई है। इस अधिनियम द्वारा पंचायत राज के सम्बन्ध में जो व्यवस्था की गई है, उसका एक संक्षिप्त विवरण अग्र प्रकार है।

ग्राम सभा की रचना 

ग्राम सभा पंचायत राज व्यवस्था की मूलभूत इकाई है। पंचायत विधि अधिनियम, 94 के अनुसार एक पंचायत क्षेत्र के लिए ग्राम सभा होगी। राज्य सरकार यथासम्भव एक हजार की जनसंख्या पर एक पंचायत क्षेत्र का गठन

करेगी। यदि किसी ग्राम की जनसंख्या एक हजार से कम है, तब ग्रामों के एक समूह को ‘पंचायत क्षेत्र’ घोषित किया जाएगा। ऐसी स्थिति में ग्रामों के उस समूह में सबसे अधिक जनसंख्या वाले ग्राम का नाम ही उसे पंचायत क्षेत्र तथा उस ग्राम सभा का नाम घोषित किया जाएगा।

ग्राम सभा ग्राम के स्तर पर प्रत्यक्ष लोकतन्त्र की स्थिति है। ग्राम में उसे वही स्थिति प्राप्त है, जो स्थिति राज्य की समस्त व्यवस्था में व्यवस्थापिका को प्राप्त होती है। ग्राम के सभी वयस्क व्यक्ति, जिनका नाम ग्राम की निवारचक सूची में सम्मिलित है, ग्राम सभा के सदस्य होंगे।

प्रधान और उप-प्रधान

ग्राम सभा अपने सदस्यों में से एक प्रधान और एक उप-प्रधान चुनती है। प्रधान का कार्यकाल 5 वर्ष व उप-प्रधान का एक वर्ष होता है, परन्तु नव निर्वाचित प्रधान और उप-प्रधान के कार्य भार सम्भालने तक ये अपने पदों पर कार्य करते रहेंगे। ग्राम सभा अपनी विशेष बैठक में उपस्थित सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से प्रधान या उप प्रधान को हटा सकती है। विशेष बैठक की सूचना 15 दिन पहले देना आवश्यक होता है। प्रधान या उप-प्रधान के रिक्त पद को नए चुनाव द्वारा भर दिया जाता है।

प्रधान ग्राम सभा की बैठकों की अध्यक्षता करता है। उसकी अनुपस्थिति में यह कार्य उप-प्रधान करता है। प्रधान या उप प्रधान वही हो सकता है, जिसने 21 वर्ष की आयु प्राप्त कर ली हो ।

कार्य 

ग्राम सभा निम्नलिखित कार्यों का सम्पादन करेगी-

(क) सामुदायिक कल्याण कार्यक्रमों के लिए स्वैच्छिक श्रम और अंशदान जुटाना

(ख) ग्राम से सम्बन्धित विकास योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए हिताधिकारी की पहचान

(ग) ग्राम से सम्बन्धित विकास योजनाओं के क्रियान्वयन में सहायता पहुंचाना। इसके अतिरिक्त ग्राम सभा निम्नलिखित मामलों पर विचार करेगी और ग्राम पंचायत और अपनी सिफारिशें तथा सुझाव देगी।

(क) ग्राम पंचायत के खातों का वार्षिक विवरण, पूर्ववर्ती वित्तीय वर्ष की प्रशासन की रिपोर्ट और अन्तिम लेखा परीक्षा टिप्पणी और उस पर दिए गए उत्तर, यदि कोई हों

(ख) पूर्ववर्ती वर्ष से सम्बन्धित ग्राम पंचायत के विकास कार्यक्रमों और चालू वित्तीय वर्ष के दौरान लिए जाने के लिए प्रस्तावित विकास कार्यक्रमों की रिपोर्ट लिए जाने के लिए प्रस्तावित विकास कार्यक्रमों की रिपोर्ट

(ग) ग्राम में समाज के सभी वर्गों के बीच एकता और समन्वय में अभिवृद्धि (घ) ग्राम के भीतर प्रौढ़ शिक्षा का कार्यक्रम

(ङ) ऐसे अन्य मामले, जो नियत किए जाएं।

ग्राम पंचायत ग्राम सभा की सिफारिशों और सुझावों पर सम्यक विचार करेगी।

त्रिस्तरीय ढांचा – अधिनियम के आधार पर पंचायत राज व्यवस्था में त्रिस्तरीय ढांचे को अपनाया गया है। ये तीन स्तर है।

ग्राम के स्तर पर ग्राम पंचायत, विकास खण्ड या मध्यवर्ती स्तर पर क्षेत्र पंचायत, जिला स्तर पर जिला पंचायत ।

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