समाजवाद के प्रमुख प्रकार
समाजवाद के आज अनेक रूप देखने को मिलते हैं। हर देश ने अपनी सुविधा के अनुसार उसमें परिवर्तन कर अपने ही ढंग से समाजवाद की व्याख्या की है। इसलिए ही सी०एम० जोड़ कहते हैं, समाजवाद एक ऐसे टोप के समान है जिसकी आकृति बिगड़ चुकी है क्योंकि हर व्यक्ति इसे पहनता है (Socialism is like ans hat, which has losts shape, because everybody wears it ) । कुछ लोग कहते हैं, समाजवाद गिरगिट की तरह रंग बदलता है, तो कुछ का कहना है कि यह शेषनाग की भांति कई मुंह वाला है। स्पष्ट है कि समाजवाद के आज अनेक रूप पाए जाते हैं, किन्तु इनमें सहकारी समाजवाद राज्य समाजवाद, मार्क्सवादी समाजवाद, स्वप्नलोकीय समाजवाद, समष्टिवादी समाजवाद, प्रजातान्त्रिक समाजवाद, साम्यवादी समाजवाद, श्रम संघवाद, फेबियनवाद श्रेणी संघवादी समाजवाद आदि प्रमुख हैं। इनमें से कुछ का हम यहां संक्षेप में उल्लेख करेंगे।
1. सहकारी समाजवाद ( Co-operative Socialism ) — इस प्रकार के समाजवाद में मजदूर अपनी सहकारी समितियां बनाकर उद्योगों का संचालन करते हैं। वे स्वयं उद्योग के मालिक भी होते हैं और मजदूर भी। इस प्रकार का समाजवाद स्केण्डिनेविया में पाया जाता है।
2. राज्य समाजवाद (State Socialism ) – इसमें राज्य को बुराई के रूप में नहीं मान कर उत्तम वितरण की व्यवस्था करने वाली संस्था माना जाता है। इसमें उत्पादन के साधनों का राष्ट्रीयकरण कर दिया जाता है, राज्य को एक कल्याणकारी संस्था माना जाता है, व्यक्ति को राज्य के एक अंग के रूप में स्वीकार किया जाता है। यह प्रजातन्त्र में विश्वास करता है, स्वतन्त्रता एवं समानता में विश्वास करता है और समाज का आधार वर्ग-संघर्ष नहीं वरन वर्ग सहयोग मानता है।
3. फेबियनवाद (Fabianism ) – फेबियनवादी समाजवाद को धीरे-धीरे एवं प्रजातन्त्रीय ढंग से लाने में विश्वास करते हैं। वे क्रान्ति एवं रक्तपात में विश्वास नहीं करते। फेबियनवाद का उद्देश्य भूमि और उद्योग में होने वाले मुनाफे का लाभ समस्त समाज को पहुँचाना है। इसके लिए फेबियनवाद कई उपाय अपनाने का सुझाव देते हैं, जैसे- (i) काम के घण्टे ‘बेकारी, बीमारी, न्यूनतम मजदूरी, सफाई व सुरक्षा से सम्बन्धित कानून बनाना; (ii) सार्वजनिक वस्तुओं पर सरकार का नियन्त्रण स्थापित करना; (iii) उत्तराधिकार में प्राप्त होने वाली सम्पत्ति पर कर लगाना, आदि।
4. प्रजातान्त्रिक समाजवाद (Democratic Socialism ) — इसे विकासवादी समाजवाद भी कहा जाता है। भारत में इसी पद्धति को अपनाया गया है। यह पूंजीवाद के स्थान पर समाजवाद की स्थापना के लिए बल और हिंसा के प्रयोग को अनुचित मानता है। यह इनके स्थान पर शान्तिपूर्ण एवं संवैधानिक तरीकों को अपनाने पर बल देता है।
5. श्रम-संघवाद (Syndicalism ) – श्रम-संघवाद को परिभाषित करते हुए ह्यूवर लिखते हैं, ‘वर्तमान युग में श्रम-संघवाद से अभिप्राय उन क्रान्तिकारियों के सिद्धान्तों और कार्यक्रमों से है जो पूंजीवाद को नष्ट करने तथा समाजवादी समाज की स्थापना करने के लिए औद्योगिक संघों की आर्थिक शक्ति का प्रयोग करना चाहते हैं।’ श्रम-संघवादी राज्य के बिरुद्ध हैं क्योंकि वे राज्य को पूंजीपतियों का मित्र एवं श्रमिकों का विरोधी मानते हैं। ये लोग संघर्ष एवं क्रान्ति में विश्वास करते हैं और प्रजातन्त्र के विरोधी हैं। वे राज्य समाजवाद के पक्ष में नहीं हैं।
6. श्रेणी समाजवाद (Guidl Socialism ) — श्रेणी समाजवादी पूंजीवाद के विरुद्ध हैं। ये समूह तथा व्यक्ति की स्वतन्त्रा के महत्व पर जोर देते हैं तथा उद्योगों में स्वशासन चाहते हैं। ये उत्पादन का प्रबन्धन और नियन्त्रण राज्य द्वारा नहीं चाहते। ये स्थानीय स्तर पर कम्यून स्थापित करना चाहते हैं जिनमें उत्पादकों एवं उपरोक्ताओं का प्रतिनिधित्व हो ।
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