राजनीति विज्ञान / Political Science

आधुनिक आर्थिक व्यवस्था का समाज पर प्रभाव

आधुनिक आर्थिक व्यवस्था का समाज पर प्रभाव
आधुनिक आर्थिक व्यवस्था का समाज पर प्रभाव

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आधुनिक आर्थिक व्यवस्था का समाज पर प्रभाव

आधुनिक आर्थिक व्यवस्था ने समाज के सभी पक्षों को प्रभावित किया है। मार्क्स का तो मत है कि जब आर्थिक संस्थाओं में परिवर्तन आता है, तो समस्त समाज एवं संस्कृति में भी परिवर्तन आता है क्योंकि वे ही समाज एवं संस्कृति की आधारशिला हैं। इस प्रकार के विचारकों को हम आर्थिक निर्धारणवादी कहते हैं। पूंजीवादी एवं समाजवादी अर्थव्यवस्थाएं समाज में विभिन्न प्रकार की सामाजिक संस्थाओं को जन्म देती हैं और समाज पर भी उनका प्रभाव भिन्न भिन्न होता है। आधुनिक आर्थिक संस्थाओं के समाज पर प्रभाव को हम इस प्रकार प्रकट कर सकते हैं।

1. परिवार एवं विवाह पर प्रभाव – औद्योगिक क्रान्ति ने परिवार के कई कार्यों को छीन लिया है। पहले परिवार ही व्यक्ति को व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करता था, किन्त अब इसके लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थान स्थापित किए गए हैं। अब कुछ अपवादों एवं कृषि कार्यों को छोड़कर माता-पिता और वयस्क सन्तानें साथ-साथ काम नहीं करती हैं। इसी कारण परिवार के सदस्यों साथ-साथ काम नहीं करती हैं। इसी कारण परिवार के सदस्यों में पाया जाने वाला घनिष्ठ आर्थिक सम्बन्ध अब शिथिल हो गया है। इससे पारिवारिक दृढ़ता भी कमजोर हुई है।

परिवार के कार्यों में ही नहीं बल्कि उसकी संरचना में भी परिवर्तन आया है। पहले संयुक्त परिवारों की बहुलता थी जिसमें कई पीढ़ियों के व्यक्ति साथ-साथ रहते थे, किन्तु आधुनिक औद्योगिक एवं नगरीय अर्थव्यवस्था में परिवार के सभी लोगों का साथ रहना और कार्य करना सम्भव नहीं रहा है। प्रत्येक व्यक्ति अपनी शिक्षा प्रशिक्षण एवं विशेष ज्ञान के आधार पर अलग-अलग स्थान पर कार्य करता है। ऐसी स्थिति में परिवार की संयुक्तता बने रहना सम्भव नहीं है। परिवार में व्यक्तिवादी विचारों ने जोर पकड़ा और सामूहिकता समाप्त हुई है। वयोवृद्ध व्यक्ति की सत्ता, परम्परां धर्म एवं नैतिकता का प्रभाव भी अब क्षीण हुआ है। आज व्यक्ति पर परिवार का नियन्त्रण शिथिल हुआ है।

परिवार के अलावा विवाह संस्था में भी परिवर्तन हुए हैं। विवाह दो परिवारों का नहीं वरन दो व्यक्तियों का सम्बन्ध मात्र रह गया है। अब यह एक धार्मिक संस्कार के स्थान पर सामाजिक समझौता माना जाने लगा है। अन्तर्जातीय विवाह प्रेम विवाह विधवा पुनर्विवाह, तलाक एवं पृथक्करण में वृद्धि हुई है, बाल विवाह कम हुए हैं, दहेज प्रथा ने जोर पकड़ा है, विवाह तय करने में माता-पिता एवं रिश्तेदारों के स्थान पर लड़के व लड़की की इच्छा का महत्व बढ़ा है।

2. स्त्रियों की स्थिति पर प्रभाव- नवीन आर्थिक संस्थाओं एवं औद्योगीकरण के कारण स्त्रियों में आर्थिक आत्म-निर्भरता पनपी है। वे स्वयं विभिन्न उद्योगों एवं अन्य व्यवस्थाओं में कार्य करने लगी हैं। इससे वे पुरुषों की आर्थिक दासता से मुक्त हुई और घर की चहारदीवारी से निकलकर बाह्य जगत से परिचित हुई हैं। आज वे सामाजिक आर्थिक, राजनीतिक सभी क्षेत्रों में पुरुषों के समकक्ष कार्य करती हैं। उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई है।

3. नए वर्गों का उदय- आधुनिक अर्थव्यवस्था ने पुराने वर्गों के स्थान पर नए वर्गों को जन्म दिया है। कृषि अर्थव्यवस्था में कृषि श्रमिक, कृषक और जमींदारी वर्ग थे, किन्तु औद्योगीकरण ने पूंजीपति वर्ग एवं श्रमिक वर्ग को जन्म दिया है। भारत में परम्परागत अर्थव्यवस्था जाति पर आधारित थी जिसमें प्रत्येक जाति का एक निश्चि व्यवस्था होता था, किन्तु वर्तमान में अनेक नए व्यवसाय पनपे हैं जिन्हें सभी जातियों के व्यक्ति करते हैं। अब जाति के स्थान पर वर्ग-व्यवस्था ने जन्म लिया है। इन वर्गों के हित परस्पर टकराते हैं जिनकी रक्षा के लिए इन्होंने अपने-अपने संगठन बनाए। नयी वर्ग-व्यवस्था ने वर्ग संघर्ष को जन्म दिया। अब आए दिन मजदूर संगठन वेतन वृद्धि, बोनस, चिकित्सा, मकान एवं छुट्टियों की सुविधा आदि को लेकर तोड़-फोड़ हड़ताल, नारेबाजी एवं घेराव करते हैं।

4. औद्योगीकरण- उत्पादन में मशीनों के प्रयोग के कारण औद्योगीकरण पनपा। अब उत्पादन का कार्य मशीनों की सहायता से होने लगा। औद्योगीकरण में उत्पादन बड़ी मात्रा में एवं तीव्र गति से होता है। औद्योगीकरण ने कई समस्याओं को जन्म दिया है।

5. नगरीकरण – आधुनिक अर्थव्यवस्था ने ही आधुनिक नगरों को जन्म दिया है। जहां पर उद्योग केन्द्रित हो जाते हैं, वह स्थान नगर के रूप में परिवर्तित हो जाता है क्योंकि उद्योगों में काम करने के लिए हजारों की संख्या में लोग गांवों से वहां पहुंच जाते हैं। नगरों का जीवन ग्रामों से भिन्न होता है। नगरों में आवास की समस्या के कारण गन्दी बस्तियों का निर्माण होने लगता है।

6. मनोरंजन पर प्रभाव – वर्तमान समय में मनोरंजन का व्यापारीकरण हुआ है। मनोरंजन प्राप्त करने के लिए आज काफी रूपया खर्च करना पड़ता है। मनोरंजन के विभिन्न साधनों एवं कलाकृतियों का उद्देश्य अधिकाधिक धन बटोरना मात्र हो गया है। इससे स्वस्थ मनोरंजन में कमी आयी है।

7. सामाजिक विघटन – नवीन आर्थिक संस्थाओं ने सामाजिक विघटन एवं सामाजिक समस्याओं को जन्म दिया है। आज अपराध, बेकारी, वेश्यावृत्ति, आत्महत्या, शराबवृत्ति, चोरी, डकैती, बाल-अपराध आदि की संख्या में वृद्धि हुई है।

8. नए वादों का उदय- नवीन आर्थिक संस्थाओं ने अनेक वादों को जन्म दिया है जिससे समाज अनेक भागों में बंट गया है। आज पूंजीवादी, साम्यवाद, समाजवाद, व्यक्तिवाद, श्रेणी संघवाद, साम्राज्यवाद, आदि से सम्बन्धित अनेक विचारधाराएं हैं जो संघर्ष एवं टकराव को जन्म देती है।

9. धर्म पर प्रभाव – वर्तमान आर्थिक संस्थाओं ने धर्म के प्रभाव को कम किया है। इससे अपराध एवं स्वच्छन्दता में वृद्धि हुई है। धर्म अब सामाजिक नियन्त्रण का एक सशक्त साधन नहीं रहा है। आज कई लोग धर्म और ईश्वर में आस्था नहीं रखते हैं।

10. राजनीतिक संस्थाओं पर प्रभाव- वर्तमान में राज्य के अधिकारों एवं कार्य-क्षेत्र में वृद्धि हुई है। राज्य व्यापार, वाणिज्य, यातायात, संचार, बाजार, बैंक, माप-तौल,आदि सभी की व्यवस्था करने लगा है। आजकल वह इनसे सम्बन्धित कानूनों का निर्माण भी करता है। राज्य छोटी-से-छोटी आर्थिक क्रिया से लेकर बड़ी से बड़ी आर्थिक क्रियाओं तक के सम्बन्ध में कानून निर्मित करता है।

11. नवीन सभ्यता एवं संस्कृति का उदय – आधुनिक आर्थिक संस्थाओं ने नयी सभ्यता और संस्कृति को जन्म दिया है जिसे हम औद्योगिक एवं नगरीय संस्कृति कह सकते हैं।

इस प्रकार हम देखते हैं कि वर्तमान में आर्थिक संस्थाएं व्यक्ति और समाज के जीवन के विभिन्न पक्षों को अगणित रूपों में प्रभावित करती हैं। अब तो आर्थिक संस्थाओं ने जीवन दर्शन और जीवन पद्धति तक को काफी सीमा तक बदल दिया है।

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