राजनीतिक दल के रूप में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1885 में जिस भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई थी, उसके द्वारा 1968 ई. तक भारत के राजनीतिक रंगमंच की सबसे बड़ी शक्ति के रूप में कार्य किया गया, किन्तु स्वतन्त्रता के पूर्व कांग्रेस एक राजनीतिक दल नहीं, वरन् राष्ट्रीय स्वतन्त्रता के लिए कार्य करने वाला एक आन्दोलन था, जिसमें वे सभी व्यक्ति शामिल थे, जिनका लक्ष्य भारत के लिए राष्ट्रीय स्वतन्त्रता को प्राप्त करना था। स्वतन्त्रता के पूर्व राष्ट्रीय कांग्रेस में सभी विचारधारा वाले व्यक्ति सम्मिलित थे और स्वतन्त्रता के बाद भी राष्ट्रीय कांग्रेस का वह स्वरूप बना रहा।
सन् 1948 में महात्मा गांधी तथा 1950 ई. में सरदार पटेल के देहावसान के बाद कांग्रेस पर पं. नेहरू का एकछत्र नेतृत्व स्थापित हो गया। 1964 में पं. नेहरू के निधन के बा भी कांग्रेस ही भारत का सबसे प्रमुख दल बनी रही। 1969 में कांग्रेस का दो दलों- सत्ता कांग्रेस और संगठन कांग्रेस में विभाजन हुआ। संगठन कांग्रेस की शक्ति में उत्तरोत्तर कमी होती चली गई।
1978 ई. में कांग्रेस विभाजन और इन्दिरा कांग्रेस की स्थापना- 1977 में सत्ताच्युत होने के बाद सत्ता कांग्रेस में गुटबन्दी पहले की तुलना में और भी बढ़ गयी थी। इस गुटबन्दी के परिणामस्वरूप जनवरी 1978 में सत्ता कांग्रेस का दो दलों में विभाजन हो गया; रेड्डी कांग्रेस और इन्द्रिरा कांग्रेस। इस प्रकार वह विभाजन व्यक्तियों पर ही आधारित था और सत्ता राजनीति का एक अंग था, किन्हीं सिद्धान्तों पर आधारित नहीं था। रेड्डी कांग्रेस का अस्तित्व लगभग चार-पांच वर्ष तक ही रहा। इन्दिरा कांग्रेस की भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की उत्तराधिकारी के रूप में प्रतिष्ठित हुई, 1994 में इन्दिरा कांग्रेस ने पुनः वैधानिक रूप में ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस नाम को धारण कर लिया।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस नीति तथा कार्यक्रम – 1977-79 तथा 1989 90 के अपवाद स्वरूप समय को छोड़कर कांग्रेस 1996 के मध्य तक भारत का शासक दल रहीं हैं, लेकिन ग्यारहवी लोकसभ्ना के चुनावों (1996) में कांग्रेस ने सत्ता खो दी और बारहवी तथा तेरहवीं लोकसभा के चुनावों में कांग्रेस दल की शक्ति में और कमी हुई। 1998 से अप्रैल 2004 तक कांग्रेस भारत का मुख्य विपक्षी दल था। चौदहवीं लोकसभा चुनावों के आधार पर कांग्रेस ने लोकसभा के सबसे बड़ दल और कांग्रेस गठबन्धन ने सबसे बड़े गठबन्धन की स्थिति प्राप्त कर ली है। आज कांग्रेस केन्द्र में एक मिलीजुली सरकार ‘संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन’ में की सरकार का नेतृत्व कर रहीं है।
कांग्रेस की नीति तथा कार्यक्रम का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है:
राजनीतिक नीति और कार्यक्रम- देश की एकता और अखण्डता की रक्षा तथा सुरक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ करना कांग्रेस ने सदैव ही अपना प्रमुख लक्ष्य बताया है। कांग्रेस द्वारा जारी किये गये घोषणापत्रों में पड़ोसी देशों के साथ सम्बन्ध सुधारने के लिए लगातार प्रयास करने का वचन दिया गया है। कांग्रेस सदैव ही स्वयं की धर्मनिरपेक्षता का प्रबल समर्थक बताती रही है: लेकिन जब नरसिंह राव शासन (कांग्रेस सरकार) काल में 6 दिसम्बर, 1992 को हिन्दुत्ववादी तत्वों में बाबरी मस्जिद ढहा दी: तब कांग्रेस की धर्मनिरपेक्षता या धर्मनिरपेक्षता की रक्षा करने की क्षमता पर संदेह खड़ा हो गया। इस स्थिति के सम्बन्ध में बारहवीं लोकसभा के लिए जारी घोषणापत्र में कहा गया कि ” ऐसी घटनाएं भविष्य में नहीं होने दी जाएंगी तथा कांग्रेस अयोध्या के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का सम्मान करेगी।” तेरहवी तथा चौदहवी लोकसभा चुनावों के लिए जारी घोषणापत्रों में इस बात को दोहराया गया। इसके बाद ही यह भी कहा गया कि ‘1991 में कांग्रेस शासन द्वारा पारित कानून के तहत सभी पूजा स्थलों की 15 अगस्त, 1947 के आधार पर यथास्थिति बनी रहेगी।
आर्थिक कार्यक्रम- कांग्रेस परम्परागत रूप से समाजवाद और मिश्रित अर्थव्यवस्था की समर्थक रहीं है लेकिन 1980 के बाद से ही कांग्रेसी शासन का झुकाव धीर-धीरे उदारवादी अर्थव्यवस्था की ओर होता चला गया और दो वर्ष के अन्तराल के बाद 1991 में सत्ता प्राप्त करने के बाद आर्थिक संकट पर पार पाने के लिए स्पष्ट और खुले तौर पर ‘उदारवादी अर्थव्यवस्था’ को अपना लिया तथा उसी समय से घोषित अघोषित रूप में कांग्रेस की यह नीति रहीं है। चौदहवीं लोकसभा के लिए जारी घोषणापत्र में ‘आर्थिक उदारीकरण’ और ‘आर्थिक सुधारों को मानवीय स्वरूप के साथ’ लागू करने की बात कही गई है। इसके साथ ही कहा गया कि गरीबी और बेरोजगारी हमारी मुख्य दुश्मन है। पार्टी गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों को तत्परता से लागू करेगी, कृषि को उद्योग का दर्जा देगी तथा बुनियादी क्षेत्रों में पूंजी निवेश बढ़ाएगी।
प्रशासनिक व्यवस्था- पार्टी स्थानीय निकायों के वित्तीय और अन्य अधिकारों में वृद्धि करेगी तथा न्यायिक प्रक्रिया को सरल बनाकर अदालतों में लम्बित सभी मुकदमें तीन वर्ष में निबटाने के उपाय करेगी। लोकपाल का गठन कर प्रधानमन्त्री तथा मुख्यमन्त्री भी उसके दायरे में लाए जाएंगे, भ्रष्टाचार को जन्म देने वाले तत्वों का सफाया किया जाएगा।
पार्टी प्रशासनिक सुधार आयोग का गठन करेगी तथा व्यापक चुनाव सुधार विधेयक लायेगी। सूचना का अधिकार प्रदान करने के लिए भी विधेयक लाया जाएगा। पार्टी सत्ता में आने पर जनसंख्या नियोजन कार्यक्रमों को नई ताकत और संकल्प के साथ लागू करेगी।
अल्पसंख्यकों और कमजोर वर्गों के लिए नीति और कार्यक्रम- पार्टी का कहना है कि लोक सेवाओं और सरकारी ऐजेन्सियों में अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधित्व के मुद्दे की जांच के लिए, एक उच्च स्तरीय आयोग गठित किया जाना चाहिए तथा चौदहवीं लोकसभा के लिए जारी किए गए घोषणापत्र में वायदा किया गया कि पार्टी संविधान कर अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थाओं के लिए एक आयोग गठित करेगी तथा ‘उपासना स्थल, 1991 को ढंग से लागू करेगी।
पार्टी का कहना है कि वह समस्त अनुसूचित जाति-जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग की लड़कियों के लिए स्कूल से विश्वविद्यालय तक मुफ्त शिक्षा अनुसूचित जाति जनजाति के किसानों के लिए विशेष अदालतें, विशेष सिंचाई व्यवस्था एवं उन पर अत्याचारों से रक्षा सम्बन्धी को लागू करने के लिए विशेष अदालतें बनाएगी।
पार्टी संसद और विधानमण्डलों में महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित करने हेतु संविधान में संशोधन करने के पक्ष में है तथा पार्टी ने वायदा किया है कि वह पुलिस बल, न्यायपालिका और प्राथमिक स्कूलों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाएगी।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का संगठनात्मक ढांचा- कांग्रेस के संगठन का ढांचा कम-से कम दिखावे में पूर्णरूपेण जनवादी है तथा इसकी इकाइयां देश के प्रत्येक क्षेत्र में विस्तृत हैं। कांग्रेस की सदस्यता दो प्रकार की है: प्रारम्भिक और सक्रिय। कम-से-कम 18 वर्ष की आयु वाला कोई भी व्यक्ति, जो कांग्रेस के उद्देश्यों में आस्था रखता है, कांग्रेस का सदस्य बन सकता है, यदि वह किसी अन्य दल का सदस्य न हो। वह व्यक्ति जो दो वर्षों तक लगातार कांग्रेस का प्राथमिक सदस्य रह चुका है तथा जिसकी आयु कम-से-कम 21 वर्ष है, 100 रुपयों का चन्दा देकर अथवा 25 प्राथमिक सदस्यों की भर्ती करके कांग्रेस की सक्रिय सदस्यता प्राप्त कर सकता है। कांग्रेस का अध्यक्ष तथा उसकी कार्यकारिणी अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के प्रति उत्तरदायी होते हैं, जिनके सदस्य प्रान्तीय कांग्रेस समितियों द्वारा निर्वाचित होते हैं। केन्द्रीय कार्यकारिणी समिति कांग्रेस का सर्वोच्च नीति नियन्ता समिति है। दिसम्बर 1998 में किए गए संशोधन के अनुसार अब केन्द्रीय कार्यकारिणी में कांग्रेस अध्यक्ष व संसदीय दल के नेता के ‘अतिरिक्त 23 सदस्य होंगे। कांग्रेस के संसदीय मण्डल तथा चुनाव समिति में अब 9 सदस्य होंगे। कांग्रेस का संसदीय मण्डल दल के संसदीय कार्यों का निर्देशन करता है तथा इसकी निर्वाचन समिति संसद तथा राज्यों के विधानमण्डलों के लिए उम्मीदवारों का चयन करती है। युवक कांग्रेस, महिला कांग्रेस और कांग्रेस सेवा दल इसके सम्बन्ध संगठन हैं। मजदूर आन्दोलन के क्षेत्र में कांग्रेस के सहयोगी संगठन संगठन के रूप में ‘इण्टक” (INTUC- Indian National Trade Union Congress) कार्य करती है, जिसकी कुल सदस्यता लगभग 10 लाख है।
1998 में सोनिया गांधी कांग्रेस अध्ययक्ष के पद पर आसीन हुई तथा 2000ई0 में और 2003 ई0 में वे इस पद पर पुनर्निर्वाचित हुई हैं। इसके साथ ही कांग्रेस दल के संविधान में संशोधन कर उन्होंने ‘कांग्रेस संसदीय दल के अध्यक्ष पद को भी धारण किया है। हाल ही के वर्षों में, विशेषतया 1984-2006ई0 के वर्षों में कांग्रेस की संस्कृति में भारी परिवर्तन आया है। आज कांग्रेस की संस्कृति कांग्रेस के परम्परागत मूल्यों से अलग हटकर है।
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