राजनीति विज्ञान / Political Science

राष्ट्रीय आपातकाल और राष्ट्रपति शासन के बीच अंतर | राष्ट्रीय आपातकाल और राष्ट्रपति शासन के बीच तुलना 

राष्ट्रीय आपातकाल और राष्ट्रपति शासन के बीच अंतर | राष्ट्रीय आपातकाल और राष्ट्रपति शासन के बीच तुलना 
राष्ट्रीय आपातकाल और राष्ट्रपति शासन के बीच अंतर | राष्ट्रीय आपातकाल और राष्ट्रपति शासन के बीच तुलना 

राष्ट्रीय आपातकाल और राष्ट्रपति शासन के बीच अंतर या तुलना 

राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352) राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद 356)
यह केवल तब उद्घोषित की जाती है जब भारत अथवा इसके किसी भाग की सुरक्षा पर युद्ध, बाह्य आक्रमण अथवा सशस्त्र विद्रोह का खतरा हो । इसकी घोषणा तब की जाती है जब किसी राज्य की सरकार संविधान के प्रावधान के अनुसार के कार्य न कर रही हो और इनका कारण युद्ध, बाह्य आक्रमण व सैन्य विद्रोह न हो ।
इसकी घोषणा के बाद राज्य कार्यकारिणी व विधायिका संविधान के प्रावधानों के अंतर्गत कार्य करती रहती हैं। इसका प्रभाव यह होता है कि राज्य की विधायी एवं प्रशासनिक शक्तियां केंद्र को प्राप्त हो जाती हैं। इस स्थिति में राज्य कार्यपालिका बर्खास्त हो जाती है तथा राज्य विधायिका या तो नलंबित हो जाती है अथवा विघटित हो जाती है। रा ष्ट्रपति, राज्यपाल के माध्यम से राज्य का प्रशासन चलाता है तथा संसद राज्य के लिए कानून बनाती है। संक्षेप में, राज्य की कार्यकारी व विधायी शक्तियां केंद्र को प्राप्त हो जाती हैं।
इसके अंतर्गत, संसद राज्य विषयों पर स्वयं नियम बनाती है अर्थात् यह शक्ति किसी अन्य निकाय अथवा प्राधिकरण को नहीं दी जाती है। इसके अंतर्गत, संसद राज्य के लिए नियम बनाने का अधिकार राष्ट्रपति अथवा उसके द्वारा नियुक्त अन्य किसी प्राधिकारी को सौंप सकती है। अब तक यह पद्धति रही है कि राष्ट्रपति संबंधित राज्य से संसद के लिए चुने गए सदस्यों की सलाह पर विधियां बनाता है। यह कानून ‘राष्ट्रपति के नियम’ के रूप में जाने जाते हैं ।
इसके लिए अधिकतम समयावधि निश्चित नहीं है। इसे प्रत्येक छह माह संसद से अनुमति लेकर अनिश्चित काल तक लागू किया जा सकता है। इसके लिए अधितम तीन वर्ष की अवधि निश्चित की गई है। इसके पश्चात् इसकी समाप्ति तथा राज्य में सामान्य संवैधानिक तंत्र की स्थापना आवश्यक है।
इसके अन्तर्गत सभी राज्यों तथा केंद्र के बीच संबंध परिवर्तित होते हैं। इसके तहत केवल उस राज्य जहां पर आपातकाल लागू हो तथा केंद्र के बीच संबंध परिवर्तित होते हैं।
इसकी घोषणा करने अथवा इसे जारी रखने से संबंधित सभी प्रस्ताव संसद में विशेष बहुमत द्वारा पारित होने चाहिए। इसकी घोषणा करने अथवा इसे जारी रखने से संबंधित सभी प्रस्ताव संसद के सामान्य बहुतम द्वारा पारित होने चाहिए।
यह नागरिक के मूल अधिकारों को प्रभावित करता है। यह नागरिकों के मूल अधिकारों को प्रभावित करते हैं।
लोकसभा इसकी घोषणा वापस लेने के लिए प्रस्ताव पारित कर सकती है। इसमें ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। इसे राष्ट्रपति स्वयं वापस ले सकता है।

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