भारतीय संविधान के प्रमुख संशोधन
संशोधन संख्या एव वर्ष- 42वां संशोधन अधिनियम, 1976- (सबसे महत्त्वपूर्ण संशोधन इसे लघु संविधान के रूप में जाना जाता है। इसमें स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों को प्रभावी बनाया)
संविधान के संशोधित प्रावधान
1. तीन नए शब्द जोड़े गए (समाजवादी, धर्म निरपेक्ष एवं अखंडता)
2. नागरिकों द्वारा मूल कर्त्तव्यों को जोड़ा गया (नया भाग IV) क)
3. राष्ट्रपति को कैबिनेट की सलाह के लिए बाध्यता ।
4. प्रशासनिक अधिकारणों एवं अन्य मामलों पर अधिकरणों की व्यवस्था (भाग XIV राज्य क जोड़ा गया)
5. 1971 की जनगणना के आधार पर 2001 तक लोकसभा सीटों एवं विधानसभा सीटों को निश्चित किया गया।
6. सांविधानिक संशोधन को न्यायिक जांच से बाहर किया गया।
7. न्यायिक समीक्षा एवं रिट न्याय क्षेत्र में उच्चतम एवं उच्च न्यायालयों की शक्ति में कटौती।
8. लोकसभा एवं विधानसभा के कार्यकाल में 5 से 6 वर्ग की बढ़ोत्तरी ।
9. निदेशक तत्वों के कार्यान्वयन हेतु बनाई गई विधियों को न्यायालय द्वारा इस आधार पर अवैध घोषित नहीं किया जा सकता कि ये कुछ मूल अधिकारों का उल्लंघन हैं।
10. संसद को राष्ट्र विरोधी कार्यकलापों के संबंध में कार्यवाही करने के लिए विधियां बनाने की शक्ति प्रदान की गयी और ऐसी विधियां मूल अधिकारों पर अभिभावी होंगी।
11. तीन नए निदेशक तत्त्व जोड़े गए अर्थात समान न्याय और निःशुल्क विधिक सहायता, उद्योगों के प्रबंध में कर्मकारों का भाग लेना, पर्यावरण का संरणक्ष तथा संवर्धन और वन तथा वन्य जीवों की रक्षा।
12. भारत के किसी एक भाग में राष्ट्रीय आपदा की घोषणा ।
13. राज्य में राष्ट्रपति शासन के कार्यकाल में एक बार में छह ग्राह से एक साल तक बढ़ोत्तरी ।
14. केंद्र को किसी राज्य में कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने के लिए सैन्य बल भेजने की शक्ति।
15. पांच विषयों का राज्य सूची के समवर्ती सूची में स्थानांतरण, जैसे वन, वन्य जीवों एवं पक्षियों का संरक्षण, नाप-तौल और न्याय प्रशासन एवं उच्चतम और उच्च न्यायालय के अलावा सभी न्यायालयों का गटन और संगठन । शिक्षा,
16. संसद और विधानमंडल में कोरम की आवश्यकता की समाप्ति।
17. संसद को यह निर्णय लेने में शक्ति प्रदान की कि समय-समय पर अपने सदस्यों एवं समितियों के अधिकार एवं विशेषाधिकारों का निर्धारण करें।
18. अखिल भारतीय विधिक सेवा के निर्माण की व्यवस्था ।
19. सिविल सेवक को दूसरे चरण पर जांच के उपरांत प्रतिवेदन के अधिकार को
समाप्त कर अनुशसनात्मक कार्यवाही को छोटा किया गया (प्रस्तावित दण्ड के मामले में)
44वां संशोधन अधिनियम, 1978
(42वां संशोधन के तहत कुछ मामलों को रद्द करने के संदर्भ में जनता सरकार द्वारा प्रभावी)
1. लोकसभा एवं राज्य विधानमंडल के कार्यकाल को पूर्ववत् रखा गया (5 वर्ष)।
2. संसद एवं राज्य विधानमंडल में कोरम के उपबंध को पूर्ववत रखा।
3. संसदीय विशेषाधिकारों के संबंद में ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स के संदर्भ को हटा दिया गया।
4. संसद एवं राज्य विधानमंडल की कार्यवाही की रिपोर्ट के समाचार पत्र में प्रकाशन के लिए सांविधानिक संरक्षण प्रदान किया गया।
5. कैबिनेट की सलाह को पुनर्विचार के लिए एक बार भेजने की राष्ट्रपति को शक्ति, परन्तु पुनर्विचार के बाध्य यह बाध्यकारी होगी।
6. अध्यादेश जारी करने में राष्ट्रपति, राज्यपाल एवं प्रशासक की संतुष्टि के उपबंध को ‘समाप्त किया गया।
7. उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय की कुछ शक्तियों को फिर से प्रदान किया गया।
8. राष्ट्रीय आपात के संदर्भ में आंतरिक अशांति ‘शब्द के स्थान पर ‘सशस्त्र विद्रोह’ शब्द रखा गया।
9. राष्ट्रपति के लिए यह व्यवस्था बनाई गई कि वह केवल केबिनेट की लिखित सिफारिश पर ही आपातकाल घोषित कर सकता है।
10. राष्ट्रीय आपात और राष्ट्रपति शासन के मुद्दे पर सुरक्षा की दृष्टि से कुछ और व्यवस्थाएं बनाईं।
11. मूल अधिकारों की सूची से संपत्ति का अधिकार समाप्त किया गया और इसे केवल विधिक अधिकार बनाया गया।
12. अनुच्छेद 20 और 21 द्वारा प्रदत्त मूल अधिकारों को राष्ट्रीय आपातकाल में निलंबित नहीं किया जा सकता।
13. उस उपबंध को हटाया गया जिसने न्यायालय के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और लोकसभा अध्यक्ष के निर्वाचन संबंधी विवाद मामलों पर निर्णय देने की शक्ति छीन ली थी।
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