भाषा पर आधारित अल्पसंख्यक
भारत में भाषायी अल्पसंख्यक, धार्मिक अल्पसंख्यकों से भिन्न हैं। बंगाली बोलने वालों में हिन्दू और मुसलमानों दोनों ही पाये जाते हैं। संविधान के अनुच्छेद 29 व 30 में भाषायी अल्पसंख्यकों को संरक्षण दिया गया है। भारत में सर्वाधिक लोग हिन्दी भाषा का प्रयोग करने वाले हैं। यहाँ 189 भाषाएं तथा 544 बोलियां प्रचलित हैं। उन्हें अपनी विशेष भाषा, लिपि और संस्कृति को बनाये रखने का अधिकार है। संविधान के अनुच्छेद 347 के अनुसार राष्ट्रपति किसी राज्य के अच्छे खासे भाग के द्वारा बोली जाने वाली भाषा को उस राज्य के द्वारा सरकारी रूप में मान्यता देने का निर्देश दे सकते हैं। अनुच्छेद 350 में प्रावधान है कि प्रत्येक राज्य इस बात का प्रयत्न करेगा कि अल्पसंख्यकों के बच्चों को प्राथमिक स्तर की शिक्षा उनकी मातृभाषा में दी जाए। संसद में सदस्य अपनी मातृभाषा में विचार अभिव्यक्त कर सकते हैं। संविधान के अनुच्छेद 350 के अनुसार भाषायी अल्पसंख्यकों के लिए एक विशेष पदाधिकारी नियुक्त करने की व्यवस्था है।
इन सुविधाओं के बावजूद भी भारत में भाषायी अल्पसंख्यकों में असन्तोष विद्यमान रहा है। भाषायी अल्पसंख्यकों की ओर से भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की मांग की गई। भाषा के आधार पर ही आन्ध्र, गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब और हरियाणा राज्यों का निर्माण किया गया। डी.एम. के. दल ने पृथक द्रविड़स्तान की मांग की। उर्दू बोलने वालों में भी व्यापक असन्तोष रहा है। उनकी संख्या काफी अधिक है, वे देश के विभिन्न भागों में फैले हुए हैं, किन्तु किसी भी राज्य में उर्दू को सरकारी भाषा का दर्जा नहीं दिया गया है। असम में भाषायी आधार पर आन्दोलन हुआ और उन्होंने बंगालियों को असम से बाहर निकालने की मांग की। भाषायी अल्पसंख्यकों की शिकायत है कि राजकीय सेवाओं एवं भारतीय लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित प्रतियोगी परीक्षाओं में हिन्दी भाषी लोगों को ही अधिक लाभ मिलेगा। लिपि के प्रश्न को लेकर हिन्दी और उर्दू बोलने वालों में विशेष मतभेद पाया जाता है। भाषायी अल्पसंख्यकों की यह भी मांग है कि विश्वविद्यालयों आदि में क्षेत्रीय भाषाओं में अध्ययन अध्यापन किया जाना चाहिए। दक्षिण के गैर-हिन्दी राज्य हिन्दी भाषा का विरोध करते रहे हैं और वे हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं।
अल्पसंख्यकों को समस्याओं के समाधान हेतु सरकार द्वारा किये गये प्रयत्न
धार्मिक एवं भाषायी अल्पसंख्यकों की समस्याओं के समाधान हेतु सरकार के अनेक प्रयास किये हैं। भारतीय संविधान में अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिए अनेक प्रावधान किये गये हैं। संविधान के अनुच्छेद 14, 15 व 16 में कानून के समक्ष समानता और विधि के में समान संरक्षण का आश्वासन दिया गया है। किसी भी व्यक्ति के साथ धर्म, जाति, मूलवंश आदि के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा। अनुच्छेद 16 में सार्वजनिक सेवाओं में समान अवसर देने का प्रावधान है। अनुच्छेद 25 में प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी धर्म को स्वीकार करने, उसका प्रचार करने की छूट दी गई है। अनुच्छेद 26 धार्मिक मामलों का प्रबन्ध करने, अनुच्छेद 27 वर्म के प्रचार प्रसार हेतु कर वसूल करने तथा अनुच्छेद 28 में सरकारी शिक्षण संस्थाओं में धार्मिक उपासना में भाग न लेने की छूट दी गई है।
अनुच्छेद 29 में नागरिकों को अपनी विशेष भाषा, लिपि एवं संस्कृति को बनये रखने, सरकारी शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश पर धर्म, मूलवंश, जाति एवं भाषा के आधार पर भेदभाव न बरतने का प्रावधान किया गया है। अनुच्छेद 30 धर्म और भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यकों को शिक्षण संस्थाएं स्थापित करने एवं उनका प्रशासन करने का अधिकार देता है।
संवैधानिक प्रावधानों को लागू करने, उनका पुनरावलोकन करने के लिए सरकार ने कई विशिष्ट अधिकारियों एवं आयोग की नियुक्ति की है। सन् 1978 में ‘अल्पसंख्यक आयोग’ की स्थापना की जिसका एक अध्यक्ष एवं सदस्य अल्पसंख्यक समुदायों में से होते हैं। यह कमीशन अन्य कार्यों के अतिरिक्त संवधान में किये गये संरक्षण प्रावधानों का मूल्यांकन करने, उन्हें प्रभावी रूप से लागू करने के लिए सुझव देने, केन्द्र एवं राज्य सरकारों की नीतियों को लागू करने, शिकायतें सुनने, सर्वेक्षण एवं अनुसंधान करने तथा अल्पसंख्यकों के कल्याण हेतु समय समय पर रिपोर्ट देने का कार्य करता है। भाषायी अल्पसंख्यकों के लिए पृथक से एक कमीशन है जो संविधान में भाषायी अल्पसंख्यकों के लिए दिये गये प्रावधानों के बारे में जांच-पड़ताल करता है, उनसे सम्बन्धित शिकायतें सुनता है और उन्हें दूर करने का प्रयास करता है।
सन् 1983 में केन्द्रीय सरकार ने पृथक से एक ‘अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ’ की स्थापना की जो प्रधानमन्त्री के 15 सूत्री कार्यक्रम का एक भाग है। यह प्रकोष्ठ अल्पसंख्यकों के द्वारा राष्ट्रीय जीवन में पूरी तरह भाग लेने, अल्पसंख्यकों की शिकायतों को दूर करने एवं उनके कल्याण कार्यों को देखरेख करता है। कुछ राज्यों ने भी ऐसे प्रकोष्ठों की स्थापना की है। प्रधानमन्त्री के 15 सूत्री कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य साम्प्रदायिक हिंसा को रोकना एवं साम्प्रदायिक सद्भाव को बढ़ाना देना, अल्पसंख्यकों की शिक्षा की आवश्यकता पर जोर देना, सेवाओं में उनकी भर्ती के लिए प्रयत्न कनरा तथा 20 सूत्री कार्यक्रमों सहित अन्य विकास कार्यक्रमों के लाभों में उन्हें अपना हिस्सा दिलाना आदि है। सन् 1987 में न्यायमूर्ति एम. एच. बेग की अध्यक्षता में गठित अल्पसंख्यक आयोग ने अपनी रिपोर्ट में राष्ट्रपति को अनेक सुझाव दिये हैं। उनमें से एक सुझाव धर्म को राजनीति से पृथक रखन का है। आयोग का मत है कि सब प्रकार की आर्थिक एवं राजनीतिक मांगों को धर्म-निरपेक्ष दलों द्वारा ही सही ढंग उठाया जा सकता है। अल्पसंख्यकों को राष्ट्र की मुख्यधारा से जोड़ने के सम्बन्ध में वे सभी उपाय अपनाए जाने चाहिए जो राष्ट्रीय एकीकरण समिति ने समय-समय पर दिये हैं।
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