धर्म निरपेक्ष समाज की प्रमुख विशेषताएं
धर्मनिरपेक्ष समाज में कुछ ऐसी विशेषताएं पायी जाती हैं जो उसे पवित्र समाज से पृथक् करती हैं। पवित्र समाज (Sacred Society) में परम्परागत धार्मिक व्यवस्था जीवन के सभी पहलुओं को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है। ऐसे समा में परपरागत मान्यताओं तथा स्वीकृत आदर्श नियमों के आधार पर नियन्त्रण और संगठन बनाए रखा आतां है। इस देश में हिन्दू, मुसलमान और ईसाई आदि समूह पवित्र समाज के अन्तर्गत आते हैं। ऐसे समाज में परम्पराओं, कर्मकाण्डों, धार्मिक विश्वासों, रीति-रिवजों एवं स्वीकृत आदर्श-नियमों का विशेष महत्त्व होता है। इस प्रकार के समाजों में प्राकृतिक शक्तियों, जादू-टोने और अन्ध विश्वासों को काफी महत्त्व दिया जाता है। ऐसे समाज में किसी भी प्रकार के परिवर्तन को अच्छा नहीं समझा जाता, जैसे हिन्दू समाज में किसी समय लोग सती प्रथा, दास प्रथा बाल-विवाह पर प्रतिबन्ध लगाए जाने एवं विधवा पुनर्विवाह की आज्ञा देने के विरोधी थे। मुस्लिम समाज के लोग आज भी ‘परिवार नियोजन कार्यक्रम’ (Family Planning Programme) एवं विवाह के क्षेत्र में सरकार द्वारा किसी प्रकार का कोई कानून बनाए जाने के पक्ष में नहीं हैं। इसका कारण यह है कि व अपनी धार्मिक परम्पराओं में किसी प्रकार का कोई हस्तक्षेप नहीं चाहते हैं। धर्म निरपेक्ष समाज में पवित्र समाज से विपरीत प्रकार की विशेषताएं पायी जाती हैं। ऐसे समाज की विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
(1) धार्मिक स्वतन्त्रता- धर्मनिरपेक्ष समाज में सभी को धार्मिक स्वतन्त्रता होती है। कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म को मान सकता है, उसका प्रचार और प्रसार कर सकता है। आज धर्म और उससे सम्बन्धित विश्वासों को सामूहिक घटना नहीं मानकर व्यक्तिगत घटना माना जाने लगा है। अतः एक धर्मनिरपेक्ष समाज में व्यक्तियों को अपनी इच्छानुसार धार्मिक जीवन व्यतीत करने की स्वतन्त्रता होती है।
(2) सभी धर्मानुयायियों के साथ समान व्यवहार- धर्मनिरपेक्ष समाज में विभिन्न धर्मों के मानने वाले लोगों के साथ समानता का व्यवहार किया जाता है। इसका कारण यह है कि समाज अथवा राज्य किसी भी रूप में किसकी विशेष धर्म को बढ़ावा नहीं देता है। अतः धर्मनिरपेक्ष समाज में सभी व्यक्तियों को समान माना जाता है, उनके साथ एक ऐसा व्यवहार किया जाता है, चाहे उनका धर्म कोई भी क्यों न हो। ऐसे समाज में सभी को समान दृष्टि से देखा जाता है।
(3) किसी विशेष धर्म से सम्बन्धित नहीं- धर्मनिरपेक्ष समाज का किसी एक धर्म के साथ कोई विशेष सम्बन्ध नहीं पाया जाता है। ऐसे समाज का अपन कोई धर्म नहीं होता, यद्यपि यह धर्म विरोधी या अधार्मिक भी नहीं होता। ऐसा आज मानवोचित गुणों जैसे सत्य, अहिंसा, त्याग, समानता, बन्धुत्व एवं प्रेम आदि को प्रधानता देता है। डॉ. राधाकृष्णन के अनुसार धर्मनिरपेक्ष होने का अर्थ अधर्मी होना या संकुचित धार्मिकृता पर चलना नहीं होता, बल्कि पूर्णतया आध्यात्मिक होना है। इतना अवश्य है कि ऐसा समाज या राज्य अपने को किसी धर्म-विशेष के साथ नहीं जोड़ता है।
(4) धार्मिक हस्तक्षेप नहीं- धर्मनिरपेक्ष समाज में धर्म को एक व्यक्तिगत मामला समझकर राज्य या समाज के द्वारा लोगों के धार्मिक जीवन में साधारणतः किसी प्रकार कोई हस्तक्षेप नहीं किया जाता। इतना अवश्य है कि कभी-कभी जन-कल्याण को ध्यान में रखते हुए सामाजिक कुरीतियों से छुटकारा प्राप्त करने के उद्देश्य से राज्य विशेष परिस्थितियों में धार्मिक मामलों में भी हस्तक्षेप कर सकता है, परन्तु ऐसा करने पर किसी समाज के धर्मनिरपेक्ष होने पर किसी प्रकार की कोई आंच नहीं आती। भारत के सन्दर्भ में यह बात सही है।
(5) विवेक व तर्क पर आधारित- आदिम समाज या पवित्र समाज के लोग सभी सामाजिक घटनाओं को धर्म एवं अलौकिक शक्ति के साथ जोड़ते रहते हैं। लेकिन धर्मनिरपेक्ष समाज में ऐआसा नहीं है। ऐसे समाज में कार्य-कारण सम्बन्धों पर जोर दिया जाता है, विवेक के आधार पर निर्णय लिए जाते हैं, किसी भी वस्तु, कार्य या व्यवहार के गुण-दोषों पर तार्किक ढंग से विचार किया जाता है। ऐसी स्थिति में जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में धर्म का प्रभाव घटता है और तार्किक व्यवहार का महत्त्व बढ़ता है।
(6) जनकल्याण पर विशेष जोर- ऐसे समाज में धार्मिक संकीर्णताओं या धार्मिक कट्टरता को अच्छा नहीं समझा जाता। साथ ही धर्म के पारलौकिक पक्ष के बजाय लौकिक पक्ष पर विशेष जोर दिया जाता है। लौकिक पक्ष के अन्तर्गत मानव जाति की सेवा आती है। ऐसे समाज में पूजा-पाठ तथा देवी-देवताओं की आराधना पर उतना जोर नहीं दिया जाता जितना जोर सार्वजनिक कल्याण की वृद्धि पर दिया जाता है। धर्मनिरपेक्ष समाज में ऐसे कार्यं पर विशेष ध्यान दिया जाता है जिनसे सामाजिक समस्याओं से छुटकारा प्राप्त किया जा सके और जनकल्याण हो सके।
(7) प्रजातन्त्रात्मक व्यवस्था में विश्वास- धर्मनिरपेक्ष समाज प्रजातान्त्रिक मूल्यों में विश्वास करता है। प्रजातन्त्र समानता और स्वतन्त्रता पर आधारित है। धर्मनिरपेक्ष समाज में भी सबकी समानता और स्वतन्त्रता में विश्वास किया जाता है। ऐसे समाज में धार्मिक, सहिष्णुता को प्रधानता दी जाती है और विभिन्न धर्मानुयायियों को एक-दूसरे के साथ अनुकूलन करने पर जोर दिया जाता है। ऐसे समाज में व्यक्ति वंश, जाति, रंग, धर्म, भाषा या अन्य किसी प्रकार के अन्तर पर ध्यान दिए बिना सभी को समान समझा जाता है। गांधीजी के अनुसार विश्व के सभी धर्म एक विशाल वृक्ष के समान हैं तथा सभी धर्मों के अनुयायी एक-दूसरे के साथ अपने मुख्य या गौण भेदों पर जोर दिए बिना प्रसन्नतापूर्वक साथ-साथ रह सकते हैं। धर्म निरपेक्ष समाज में इस प्रकार की प्रजातन्त्रात्मक समाज व्यवस्था में विश्वास किया जाता है।
(8) धार्मिक शिक्षा के बजाय धर्मनिरपेक्ष प्रकार की शिक्षा पर जोर- धर्म निरपेक्ष समाज में राज्य के द्वारा किसी प्रकार की कोई धार्मिक शिक्षा प्रदान नहीं की जाती है। इसके अलावा राज्य ऐसी किसी शिक्षण संस्था को भी आर्थिक सहायता नहीं देता जो किसी धर्म विशेष से सम्बन्धित हो। धर्मनिरपेक्ष समाज में तो ऐसी शिक्षा पर जोर दिया जाता है तो नैतिकता और चरित्र निर्माण को प्रधानता देती हो, साथ ही ऐसी शिक्षा अपने में विभिन्न धर्मों के आदर्शों को सम्मिलित कर सामाजिक एकीकरण का प्रयास भी करती है।
धर्मनिरपेक्ष समाज में समाज की सारी शक्ति जनता के सामान्य प्रतिनिधियों में निहित होती है, परन्तु पवित्र समाज में यही शक्ति पुरोहित वर्ग के हाथ में केन्द्रित होती है। धर्मनिरपेक्ष समाज की एक अन्य विशेषता यह है कि यह पवित्र समाज की तुलना में नवीन परिवर्तनों को सुगमता से अपना लेता है। ऐसे समाज में उन्हीं परम्पराओं को बनाए रखा जाता है जो तर्क की कसौटी पर खर उतरती हैं, उपयोगी सिद्ध होती हैं।
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