अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर 9/11 के प्रभाव
लैटिन भाषा का शब्द टेरेरे से बना टेरर का अर्थ आतंक या भय है। शुरुआती दौन में टेरर या टेररिज्म (आतंकवाद) के अर्थ में भिन्नता थी। इसे परिभाषित करना काफी कठिन था। क्योंकि भय और आतंक के सहारे किसी समूह द्वारा लक्ष्य प्राप्त कर लेने के बाद उसे स्वतन्त्रता सेनानी मान लिया जाता था। ठीक इसके विपरीत असफलता की स्थिति में उसे आतंकवादी माना जाता था। फिर भी सामान्य रूप से राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए की गयी नियमित हिंसा ही आतंकवाद है। बेंजामिन नेतानयाहू द्वारा दी गयी परिभाषा काफी तर्कसंगत तथा अन्तर्राष्ट्रीय रूप से स्वीकृत है। इस्रायल के पूर्व प्रधानमंत्री के अनुसार राजनीतिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए भय पेदा करने हेतु जानबूझकर क्रमबद्ध रूप से निर्दोषों को धमनी देना, उनका अंग-भंग कर देना या उनकी हत्या कर देना आतंकवाद कहलाता है। इस परिभाषा को 1978 में येरूशलम में आयोजित एक अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में मान्यता प्रदान की गयी।
संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 2(4) के अनुसार किसी देश की क्षेत्रीय अखण्डया या राजनीतिक स्वतन्त्रता के विरुद्ध प्रयोग निषिद्ध है। अनुच्छेद 2 (7) के अनुसार मानवता के आधार पर के अलावा अन्य किसी भी कारण से किसी राष्ट्र के आतंरिक मामलों में दखल देना निषिद्ध है। यह विधि सभी देशों पर बाध्यकारी है। भले ही वे इससे असहमत हो। 1970 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा पारित प्रस्ताव में कहा गया था कि प्रत्येक देश का यह कर्तव्य है कि वह निम्न कार्यों से बचें-
1. किसी विद्रोही सैनय समूह को संगठित या प्रोत्साहित करना तथा किसी देश में भाडत्रे के सैनिकों के घुसपैठ में सहयोग करना।
2. सीमा क्षेत्र विवाद तथा सीमांत राज्यों की समस्याओं सहित किसी भी अन्तर्राष्ट्रीय विवाद को सुलझाने के लिए किसी देश को धमकी देना या विद्यमान अन्तर्राष्ट्रीय सीमा उल्लंघन करते हुए सैन्य कार्यवाही करना।
3. किसी अन्य देश में नागरिक विद्रोह या आतंकवादी गतिविधियों को संगठित करना, सहयोग देना, उकसाना या भागीदार होना अथवा अपने सीमा क्षेत्र में इस प्रकार की गतिविधियों को पनपने देना।
11 सितम्बर 2001 की घटना के बाद संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रस्ताव 1373 पारित किया गया। इस प्रस्ताव के अध्याय 7 में आतंकवादी तथा इन्हें प्रश्रय देने वाले देशों के खिलाफ कार्यवाही करने की बात की गयी है। इस प्रस्ताव के क्षरा सभी सदस्य देशों से कहा गया है कि वे आतंकवादियों को आर्थिक सहायता, समर्थन तथा प्रश्रय देने से बचें।
अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर किए गए आतंकवादी हमलों के बाद विकसित देशों के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र की तन्द्रा टूटी। 11 सितंबर 2001 के बाद नाटों से लेकर ओआईसी तक प्रत्येक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की बैठक में आतंकवादियों एवं उन्हें प्रश्रय देने वाले देशों की स्पष्ट निंदा की गयी। जून 2002 में 16 देशों के संगठन कांफ्रेंस आन इंअरेक्शन एवं कॉन्फिडेंस बिलिंग मेजर्स इन एशिया के सम्मेलन में भी आतंकवाद की निंदा की गयी।
अन्तर्राष्ट्रीय रूप से अब यह स्वीकार किया जाने लगा है कि आतंकवाद को साधारण कानून व्यवस्था की समस्या के रूप में नहीं देखा जा सकता है। आतंकवादी जिस तरह के कुछ देशों से आर्थिक सहायता प्राप्त कर संगठित तरीके से अत्याधुनिक तकनीकों का सहारा लेकर अपराध करते हैं उसे देखते हुए यह निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि इसे रोकने के लिए साधारण कानून अपर्याप्त है। साथ ही सिविल पुलिस भी इसके लिए अक्षम है। भारतीय पुलिस बल तो संख्यात्मक अभाव के साथ-साथ अत्र-शस्त्र तथा सुरक्षात्मक उपकरणों के अभाव से भी जूझ रही है।
वर्तमान में पुलिस बल को कम से कम एक लाख बुलेटप्रूफ जैकैटों की आवश्यकता है जबकि वर्तमान में पुलिस बलि के पास मात्र 11,000 बुलेटप्रूफ जैकेट है। ये जैकेट भी अब पुराने पड़ चुके हैं और अत्याधुनिक मारक शस्त्रों से सुरक्षा देने में नाकाम साबित हो रहे हैं। वर्ष 2007.08 में 1248.70 करोड़ रुपये पुलिस बल के आधुनिकीकरण हेतु आवंटित किए गए थे लेकिन राज्य सरकारें इस धन को पूरी तरह व्यय नहीं कर पायी है। भारतीय पुलिस बल की यह कमी पिछले दिनों मुम्बई में हुए आतंकवादी हमलों के दौरान कई स्थानों पर देखी गयी। आतंकवादियों से मुकाबला करने के लिए भेजे जाने वाले पुलिस कर्मियों के लिए पर्याप्त संख्या में बुलेट प्रूफ जैकेट का न होना, अनेक मौकों पर रायफलों का न चलना इस बात का सबूत हैं।
अनेक देश अब आतंकवाद से लड़ने के लिए नए कानून बना कर पुलिस तथा सुरक्षा बलों को और अधिक अधिकार सम्पन्न बना रहे हैं। वर्ष 2001 यूएस पैट्रियट एक्ट अमेरिका में पारित किया गया है जो सुरक्षा एजेंसियों को टेलीफोन, ई-मेल, वित्तीय तथा अन्य रिकार्डों को देखने एवं खगालने का अधिकार देता है। इसी प्रकार आस्ट्रेलिया में भी पुलिस को ‘रोको और तलाशी लो’ का अधिकार दिया है। आस्ट्रेलिया में तो पुलिस संदिग्ध आतंकवादी को 20 से 42 दिन तक हिरासत में रख सकती है। बांग्लादेश जैसे छोटे अल्पविकसित देश में भी आतंकवाद जैसे मामलों से निपटने के लिए त्वरित अदालतें गठित करने का प्रावधान है।
नवम्बर 2008 को मुम्बई में हुए आतंकी हमलों के बाद केन्द्र सरकार द्वारा समुद्री सुरक्षा के ढांचे में व्यापक फेरबदल किया गया है। ध्यातव्य है कि मुम्बई पर हमला करने वाले आतंकवादी समुद्री रास्ते से ही आये थे औरइससे तटीय सुरक्षा तंत्र की व्यापक खामियां उजागत हुईं। रक्षा मंत्रालय द्वारा तैयार किए गए एक प्रस्ताव को 28 फरवरी, 2009 को मंजूरी हुए केन्द्रीय मंत्रिमण्डल ने तटीय सुरक्षा तंत्र और मजबूत करते हुए समुद्री सीमा की रक्षा की पूरी जिम्मेदारी नौसेना को सौंप दी है। इसके अतिरिक्त देश के आतंरिक सुरक्षा प्रबंधन को और अधिक चुस्त-दुरुस्त करने की दिशा में प्रयास के क्रम में दिसम्बर 2008 में संसद द्वारा राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण विधेयक 2008 में संसद द्वारा राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण विधेयक 2008 पारित किया गया। अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार केन्द्रीय स्तर पर एक अन्वेषण एजेंजी का गठन किया जायेगा। इसे National Investigation Agency- NIA नाम दिया गया है।
विश्व कहने की आवश्यकता नहीं कि वे सर्वथा निरापद और सुरक्षित लगने वाली व्यवस्थाएं समुदाय के बड़े खिलाड़ियों के एि बस कवच का काम करती है। अन्यथा वे जब चाहें इनकी धज्जियां उड़ा कर शान्तिप्रिय छोटे मुल्कों को चकित कर सकती है। दोनों विश्वयुद्धों और फिर लम्बे दौर के कथित शीतयुद्ध का इतिहास बताता है कि महाशक्तियां अपनी विस्तारवादी नीतियों और रणीनतियों में आज आतंकवादी कही जाने वाली बड़ी-बड़ी एजेंसियों को मात देती रही है। बल्कि थोड़े धैर्य के साथ विश्लेषण किया जाय तो मानना पड़ेगा फांसीवाद के विभिन्न चरणों में इन महाशक्तियों ने ही वह जमीन तेयार की, जिस पर आज यह कथित आतंकवाद फल-फूल रहा है। वैश्वीकरण ने इस नये दौर में एकध्रुवीय दुनिया के बेताज बादशाह अमरीका ने 9/11 की घटना के बाद तो संयुक्त राष्ट्र संघ और उसकी सारी व्यवस्थाओं को किराने पर दिया और पूरी दुनिया में उठने वाली शांतिकामी आवाजों को धता बताते हुए पहले अफगानिस्तान को ध्वस्त किया, फिर विश्व शान्ति और लोकतन्त्र की रक्षा के नाम पर इराक को रौंद डाला। सद्दाम हुसैन की जघन्य फांसी वाली परिघटना ने दरअसल आतंकवाद को साम्राज्यवादी राजनीति के वृहत्तर परिप्रेक्ष्य से जोड़ दिया। स्वयं सद्दाम हुसैन की तानाशाही इस राजनीति के सामने बौनी साबित हो गयी।
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