अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर शीत युद्ध का प्रभाव
विश्व राजनीति को शीत युद्ध ने अत्यधिक प्रभावित है। इसने विश्व में भय और आतंक के वातावरण को जन्म दिया जिससे शस्त्रों की होड़ बढ़ी। इसने संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी संस्था को पंगु बना दिया और विश्व को दो गुटों में विभक्त कर दिया। शीत युद्ध के प्रभाव निम्न प्रकार हैं-
1. विश्व का दो गुटों में विभाजित होना
शीत युद्ध के कारण विश्व राजनीति का स्वरूप द्विपक्षीय (Bipolar) बन गया। संयुक्त राज्य अमरीका और सोवियत संघ दो पृथक पृथक गुटों का नेतृत्व करने लग गये। अब विश्व की समस्याओं को इसी गुटबन्दी के आधार पर आंका जाने लगा जिससे अन्तर्राष्ट्रीय समस्याएं उलझनपूर्ण बन गयीं। चाहे कश्मीर समस्या हो अथवा कोरिया समस्या, अफगानिस्तान समस्या हो या अरब-इजरायल संघर्ष, अब उस पर गुटीय स्वाथों के परिप्रेक्ष्य में सोचने की प्रवृत्ति बढ़ी।
2. आतंक और अविश्वास के दायरे में विस्तार
शीत युद्ध ने राष्ट्रों को भयभीत किया, आतंक और अविश्वास का दायरा बढ़ाया। अमरीका और सोवियत संघ के मतभेदों के कारण अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में गहरे तनाव, वैमनस्य, मनोमालिन्य प्रतिस्पर्द्धा और अविश्वास की स्थिति आ गयी विभिन्न राष्ट्र और जनमानस इस बात से भयभीत रहने लगे कि कब एक छोटी-सी चिनगारी तीसरे विश्व युद्ध का कारण बन जाये? शीत युद्ध ने ‘युद्ध के वातावरण को बनाये रखा। नेहरू ने ठीक ही कहा था कि हम लोग ‘निलम्बित मृत्युदण्ड’ (Suspended death sentence) के युग में रह रहे हैं।
3. आणविक युद्ध की सम्भावना का भय
1945 में आणविक शस्त्र का प्रयोग किया गया था। शीत युद्ध के वातावरण में यह महसूस किया जाने लगा कि अगला युद्ध भयंकर आणविक युद्ध होगा। क्यूबा संकट के समय आणविक युद्ध की सम्भावना बढ़ गयी थी। अब लोगों को आणविक आतंक मानसिक रूप से सताने लगा। आणविक शस्त्रों के निर्माण की होड़ में वृद्धि हुई। आणविक शस्त्रों के परिप्रेक्ष्य में परम्परागत अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक व्यवस्था की संरचना ही बदल गयी।
4. सैनिक सन्धियों एवं सैनिक गठबंधनों का बाहुल्य
शीत युद्ध ने सैनिक संधियों एवं सैनिक गठबन्धनों को जन्म दिया। नाटो, सीटो, सेण्टो तथा वारसा पैक्ट जैसे सैनिक गठबन्धनों का प्रादुर्भाव शीत युद्ध का ही परिणाम था। इसके कारण शीत युद्ध में उग्रता आयी, इन्होंने निःशस्त्रीकरण की समस्या को और अधिक जटिल बना दिया। वस्तुतः इन सैनिक संगठनों ने प्रत्येक राज्य को द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ‘निरन्तर युद्ध की स्थिति में में रख दिया।
5. निशस्त्रीकरण की अविरल प्रतिस्पर्द्धा
शीत युद्ध ने शस्त्रीकरण की होड़ को बढ़ावा दिया जिसके कारण विश्व शान्ति और निःशस्त्रीकरण की योजनाएं धूमिल हो गयीं। कैनेडी ने कहा था कि ‘शीत युद्ध ने शस्त्रों की शक्ति, शस्त्रों की होड़ और विध्वंसक शस्त्रों की खोज को बढ़ावा दिया है। अरबों डालर शस्त्र प्रविधि और शस्त्र निर्माण पर प्रति वर्ष खर्च किये जाते हैं।”
6. अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का यान्त्रिकीकरण
शीत युद्ध का स्पष्ट अर्थ यह लिया जाता है कि विश्व दो भागों में विभक्त है एक खेमा देवताओं का है तो दूसरा दानवों का, एक तरफ काली भेड़ें हैं तो दूसरी तरफ सभी सफेद भेड़ें हैं। इनके मध्य कुछ भी नहीं। इससे जहाँ इस दृष्टिकोण का विकास हुआ कि जो हमारे साथ नहीं है वह हमारा विरोधी है वहीं अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का एकदम यान्त्रिकीकरण (Mechanistic view) हो गया।
7. अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में सैनिक दृष्टिकोण का पोषण
शीत युद्ध से अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में सैनिक दृष्टिकोण (Military outlook) का पोषण हुआ। अब शान्ति की बात करना भी संदेहास्पद लगता था। अब ‘शान्ति’ का अर्थ’ ‘युद्ध’ के संदर्भ में लिया जाने लगा। ऐसी स्थिति में शान्तिकालीन युग के अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का संचालन दुष्कर कार्य समझा जाने लगा।
8. संयुक्त राष्ट्र संघ को पंगु करना
शीत युद्ध के कारण संयुक्त राष्ट्र संघ जैसे विश्व संगठन के कार्यों में भी अवरोध उत्पन्न हुआ और महाशक्तियों के परस्पर विरोधी दृष्टिकोण के कारण संघ कोई कठोर कार्यवाही नहीं कर सका। यहाँ तक कि कई बार तो संघ की स्थिति केवल एक मूकदर्शक से बढ़कर नहीं रही। संयुक्त राष्ट्र का मंच महाशाक्तियों की राजनीति का अखाड़ा बन गया और इसे शीत युद्ध के वातावरण में राजनीतिक प्रचार का साधन बना दिया। गया। एक पक्ष ने दूसरे पक्ष द्वारा प्रस्तुत प्रस्तावों का विरोध किया जिससे संयुक्त राष्ट्र संघ वाद विवाद का ऐसा मंच बन गया जहाँ सभी भाषण देते हैं, किन्तु सुनता कोई भी नहीं (Debating Society where everybody can talk and nobody need listen) । शीत युद्ध के वातावरण में वाद-विवाद बहरों के सम्वाद (Dialogues of the deaf) बनकर रह गये।
9. सुरक्षा परिषद् को लकवा लग जाना
शीत युद्ध के कारण सुरक्षा परिषद् को लकवा लग गया ( The Security Council was almost paralysed) । सुरक्षा परिषद् जैसी संस्था, जिसके कन्धों पर अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा स्थापित करने का त्वरित निर्णय लेने का भार डाला था सोवियत संघ और अमरीका के, पूरब और पश्चिम के संघर्ष का अखाड़ा बन गयी। इसमें महाशक्तियां अपने परस्पर विरोधी स्वार्थों के कारण विभिन्न शान्ति प्रस्तावों को वीटो द्वारा बेहिचक रद्द करती रहती थीं; वस्तुतः यहां इतना अधिक विरोध और वीटो का प्रयोग दिखायी देता था कि इसे संयुक्त राष्ट्र संघ के स्थान पर विभक्त (Disunited) और विरोधी दलों में बंटा हुआ राष्ट्र संघ कहना अधिक उपयुक्त है।
10. मानवीय कल्याण के कार्यक्रमों की उपेक्षा
शीत युद्ध के कारण विश्व राजनीति का केन्द्रीय बिन्दु सुरक्षा की समस्या तक ही सीमित रह गया और मानव कल्याण से सम्बन्धित कई महत्त्वपूर्ण कार्यों का स्वरूप गौण हो गया। शीत युद्ध के कारण ही तीसरी दुनिया के विकासशील देशों की भुखमरी, बीमारी, बेरोजगारी, अशिक्षा, आर्थिक पिछड़ापन, राजनीतिक अस्थिरता आदि अनेक महत्त्वपूर्ण समस्याओं का उचित निदान यथासमय सम्भव नहीं हो सका, क्योंकि महाशक्तियों का दृष्टिकोण मुख्यतः ‘शक्ति की राजनीति’ (Power Politics) तक ही सीमित रहा।
उपर्युक्त सभी परिणाम शीत युद्ध के नकारात्मक परिणाम कहे जा सकते हैं। शीत युद्ध के विश्व राजनीति पर कतिपय सकारात्मक प्रभाव भी पड़े, जो इस प्रकार हैं- प्रथम, शीत युद्ध के कारण गुटनिरपेक्ष आन्दोलन को प्रोत्साहन मिला और तीसरी दुनिया के राष्ट्रों को उपनिवेशवाद से सही मायने में मुक्ति मिली। द्वितीय, शीत युद्ध के कारण शान्तिपूर्ण सह अस्तित्व को प्रोत्साहन मिला। तृतीय, शीत युद्ध के कारण तकनीकी और प्राविधिक उन्नति, खास तौर से आणविक शक्ति के विकास में तीव्रता आयी। चतुर्थ, संयुक्त राष्ट्र संघ में निर्णय शक्ति सुरक्षा परिषद के बजाय महासभा को हस्तान्तरित हो गयी। पंचम, राष्ट्रों की विदेश नीति में यथार्थवाद का आविर्भाव हुआ। षष्ट, शीत युद्ध से ‘शक्ति-संतुलन’ की स्थापना हुई।
इसे भी पढ़े…
- शीत युद्ध का अर्थ | शीत युद्ध की परिभाषा | शीत युद्ध के लिए उत्तरदायी कारण
- शीत युद्ध के बाद यूरोप की प्रकृति में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए। इस कथन की विवेचना करो ?
- शीतयुद्ध को समाप्त करने वाले प्रमुख कारकों का वर्णन कीजिए।
- शीत युद्ध में अमेरिका और सोवियत संघ की भूमिका की विवेचना कीजिए।
- नवीन शीत युद्ध के स्वरूप एवं परिणामों की विवेचना करो?
- शीत युद्ध के विकास के प्रमुख कारणों की विवेचना करो।
- दितान्त अथवा तनाव शैथिल्य का अर्थ एवं परिभाषा | दितान्त के कारण
- शीत युद्धोत्तर काल के एक ध्रुवीय विश्व की प्रमुख विशेषतायें का वर्णन कीजिए।
- शीतयुद्धोत्तर काल में निःशस्त्रीकरण हेतु किये गये प्रयास का वर्णन कीजिए।
- तनाव शैथिल्य का प्रभाव | अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक व्यवस्था पर दितान्त व्यवहार का प्रभाव
- द्वितीय शीत युद्ध के प्रमुख कारण | नवीन शीत युद्ध के प्रमुख कारण | उत्तर शीत युद्ध के शुरू होने के कारक
- नये एवं पुराने शीत युद्ध में क्या अंतर है स्पष्ट कीजिए?