आधुनिक समय में लोक प्रशासन का महत्त्व
लोक प्रशासन का महत्त्व हमारे दैनिक जीवन में निरन्तर बढ़ता जा रहा है। पिछली शताब्दी में राज्य ‘पुलिस राज्य’ माना जाता था और उसका कार्य क्षेत्र सीमित था। वह केवल निषेधात्मक कार्य (Negative Functions) किया करता था। राज्य के निषेधात्मक कार्य थे-न्याय प्रदान करना, शान्ति बनाये रखना, सम्पत्ति की रक्षा करना, वैध समझौतों को लागू करना, आदि। किन्तु 20वीं एवं 21वीं शताब्दी की बदली हुई परिस्थितियों के साथ-साथ राज्य की प्रकृति में आमूल-चूल परिवर्तन हुआ। आज ‘पुलिस राज्य’ की निषेधात्मक अवधारणा का स्थान ‘जनकल्याणकारी राज्य की सकारात्मक अवधारणा में से लिया है। वर्तमान में राज्य के कार्यों में लगातार वृद्धि होती जा रही है। हमारे जीवन का शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र हो, जो राज्य की क्रियाओं से प्रभावित न होता हो। राज्य की समस्त क्रियाओं एवं गतिविधियों का क्रियान्वयन व संचालन लोक प्रशासन द्वारा ही होता है। अतः राज्य के बढ़ते हुए दायित्वों एवं गतिविधियों के साथ लोक प्रशासन का महत्त्व भी बढ़ता जा रहा है।
आधुनिक राज्य को ‘प्रशासकीय राज्य’ कहा गया है जहाँ ‘झूले से लेकर कब्र’ तक व्यक्ति जीवन के प्रत्येक मोड़ पर व्यक्ति लोक प्रशासन से सम्बन्धित रहता है। लोक प्रशासने व्यक्ति के जन्म से पूर्व ही उसमें रुचि लेने लगता तथा उसकी मृत्यु के उपरान्त भी अपनी अभिरुचि बनाये रखता है। गर्भवती माता के समुचित आहार एवं दवाइयों की व्यवस्था करना, व्यक्ति की मृत्यु का सरकारी अभिलेख में उल्लेख करना, बेरोजगारी, अभाव, प्राकृतिक संकट, महामारी, इत्यादि के प्रकोप के समय नागरिकों की सहायता करना लोक प्रशासन के महत्त्व को दर्शाता है।
राज्य की नीतियों को कार्यान्वित करने का उत्तरदायित्व लोक प्रशासन पर ही होता है। राज्य की नीतियाँ चाहे कितने ही अच्छी क्यों न हो, उसके परिणाम तभी अच्छे निकल सकते हैं, जब उन्हें कुशलतापूर्वक एवं सत्यनिष्ठा के साथ लागू किया जाये। वस्तुतः राज्य के कार्यों के सफल संचालन के लिए कुशल प्रशासनिक अधिकारियों का सहयोग अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। सरकार एक आकार है जिसमें प्रशासक एक चित्रकार की भांति रंग भरता है, उसको उपयोगी एवं प्रभावशाली बनाता है। प्रशासन सरकार का व्यक्तित्व है, सरकार के हाथ, पैर और चक्षु हैं, सरकार की सफलता का रहस्य है। दूषित प्रशासन सरकार के लिए राजरोग से कम नहीं है। कभी भी प्रशासनिक अव्यवस्था, अदक्षता एवं अयोग्यता के विरुद्ध विस्फोट हो सकता है और सरकार की व्यवस्था धराशायी हो सकती है। इसलिए वर्तमान युग को प्रशासनिक राज्य का युग’ कहा गया है। डिमॉक के शब्दों में, “प्रशासन प्रत्येक नागरिक के लिए महत्व का विषय है क्योंकि जो सेवाएँ उसे मिलती हैं, जो कर वह देता है और जिन व्यक्तिगत स्वतन्त्रताओं का वह उपभोग करता है प्रशासक के सफल और असफल कार्यकरण पर निर्भर करता है। आधुनिक युग की बहुत-सी महत्त्वपूर्ण गहन सामाजिक समस्याएँ जैसे, स्वतन्त्रता और संगठन में समन्वय कैसे हो, प्रशासन के नौकरशाही क्षेत्र के इर्द-गिर्द घूमती रहती है। यही कारण है कि लोक प्रशासन राजनीतिक सिद्धान्त और दर्शन का मुख्य विषय बन गया है।”
आधुनिक युग में लोक प्रशासन सामाजिक परिवर्तन तथा सुधार संशोधन का एक महान् अभियान है। महान् सामाजिक परिवर्तनों को नियोजित तथा व्यवस्थित रूप में क्रियान्वित करने का भार देश के लोक प्रशासन के कन्धों पर ही है। हमारे देश में बेरोजगारी, गरीबी, बीमारी, छुआछूत मिटाने के लिए राज्य दृढ़ संकल्प लिये हुए हैं। नीति-निदेशक सिद्धान्तों को अमल में लाने के लिए, समाजवादी समाज के निर्माण और लोककल्याणकारी आदर्शों के यथार्थ क्रियान्वयन के लिए राज्य कटिबद्ध है। यदि लोक प्रशासन इन कार्यों में असफल हो जाता है तो उसका -मयंकर विकल्प केवल हिंसा ही रह जाती है। वास्तव में, राज्य की क्रियाओं की सफलता या असफलता लोक प्रशासन पर ही निर्भर रह जाती है। प्रो. डोनहम के शब्दों में “यदि हमारी सभ्यता असफल होती है तो ऐसा मुख्यालय प्रशासन के पतन के कारण होगा।” “सभ्यता का अस्तित्व को नहीं पर विकास प्रशासन के विज्ञान और व्यवहार पर निर्भर करता है।”
लोक प्रशासन का क्षेत्र
“लोक प्रशासन का क्षेत्र तथा पहचान एक शैक्षिक अध्ययन शास्त्र एवं क्रियाशील सरकार दोनों ही रूप में, सदैव से सतत संवाद एवं विवाद के विषय रहे हैं।” वाल्डो ने एफ.एम. मार्क्स की आशंकाओं के विषय में कहा है कि लोक प्रशासन इतना, व्यापक हो गया है और सीमान्त समस्याओं में अपने को इतना उलझा चुका है कि “एक अध्ययन के मान्य केन्द्र के रूप में इसके पूर्णतः विलुप्त हो जाने का संकट आ खड़ा हुआ है।” में लोक प्रशासन के क्षेत्र के सम्बन्ध में मोटे रूप से चार दृष्टिकोण प्रचलित हैं :
1. व्यापक दृष्टिकोण, 2. संकुचित दृष्टिकोण, 3. पोस्डकोर्ब दृष्टिकोण तथा 4. लोककल्याणकारी दृष्टिकोण अपनाया है
1. व्यापक दृष्टिकोण
इस दृष्टिकोण के अनुसार लोक प्रशासन सरकार के तीनों अंगों कार्यपालिका, व्यवस्थापिका एवं न्यायपालिका से सम्बन्धित है। इस दृष्टिकोण के अनुसार लोक प्रशासन के क्षेत्र में वे सभी क्रिया-कलाप सम्मिलित हैं जिनका प्रयोगजन लोक नीति को पूरा करना या क्रियान्वित करना होता है।
2. संकुचित दृष्टिकोण
कतिपय विद्वानों जैसे, साइमन, लूथर गुलिक, आदि ने लोक प्रशासन के क्षेत्र के सम्बन्धित शासन की केवल कार्यपालिका शाखा से है। साइमन लिखते हैं, “लोक प्रशासन से अभिप्राय उन क्रियाओं से है जो केन्द्र, राज्य तथा स्थानीय सरकारों की कार्यपालिका शाखाओं द्वारा सम्पादित की जाती है।” लूथर गुलिक के अनुसार, “इसका विशेष सम्बन्ध कार्यपालिका से है।” सिमोन, आदि लेखक लोक प्रशसान के कार्यक्षेत्र की व्याख्या इस प्रकार करते हैं कि वह निष्पादक या प्रशासकीय शाखा के क्रिया-कलापों के ही अनुरूप हो। संक्षेप में, लोक प्रशासन में कार्यपालिका के संगठन, उसकी कार्य प्रणाली एवं कार्य-पद्धति का अध्ययन किया जाना चाहिए।
इस दृष्टि से लोक प्रशासन के क्षेत्र में निम्नलिखित बातें आती हैं (i) कार्यरत कार्यपालिका का अध्ययन। (ii) सामान्य प्रशासन का अध्ययन । (iii) संगठन सम्बन्धी समस्याओं का अध्ययन। (iv) संविवर्ग की समस्याओं का अध्ययन। (v) सामग्री प्रदाय सम्बन्धी समस्याओं का अध्ययन (vi) वित्त सम्बन्धी समस्याओं का अध्ययन (vii) प्रशासकीय उत्तरदायित्व का अध्ययन।
3. पोस्डकोर्ब दृष्टिकोण
क्या लोक प्रशासन का सम्बन्ध मात्र सरकार की ‘कैसे’ से ही है? ‘कैसे’ का अर्थ है प्रक्रिया या प्रक्रियाएँ। लोक प्रशासन ‘प्रशासन’ की ‘प्रक्रियाओं’ का अध्ययन है। लोक प्रशासन के कार्य क्षेत्र के सम्बन्ध में लूथर गुलिक ने जिस मत को प्रतिपादित किया है उसे ‘पोस्डकोर्ब’ कहा जाता है। लूधर गुलिक से पहले उर्विक, हेनरी फेयोल, इत्यादि विद्वानों ने भी ‘पोस्डकोर्ब’ दृष्टिकोण अपनाया था, परन्तु इन विचारों को सुव्यवस्थित ढंग से प्रस्तुत करने का श्रेय गुलिक को ही जाता है। ‘पोस्डकोर्ब’ शब्द अंग्रेजी के सात शब्दों के प्रथम अक्षरों को मिलाकर बनाया गया है। वे शब्द इस प्रकार हैं-
P-Planning=योजना बनाना O-Organizing=संगठन बनाना S-Staffling=कर्मचारियों की व्यवस्था करना D-Directing=निर्देशन करना Co-Co-ordination=समन्वय करना R-Reporting=रपट देना B-Budgeting=बजट तैयार करना |
4. लोक कल्याणकारी दृष्टिकोण
लोक प्रशासन के क्षेत्र से सम्बन्धित एक अन्य दृष्टिकोण लोककल्याणकारी दृष्टिकोण है। इसे आदर्शवादी दृष्टिकोण भी कहा जाता है। इस दृष्टिकोण के समर्थक राज्य और लोक प्रशासन से अधिक अन्तर नहीं मानते। उनके मतानुसार वर्तमान समय में राज्य लोककल्याणकारी है, अतः लोक प्रशासन भी लोककल्याणकारी है। दोनों का लक्ष्य एक ही है—जनहित अथवा जनता को हर प्रकार से सुखी बनाना। “प्रशासन का मतलब जनता की सेवा करना है और इस बुनियादी आवश्यकता से अधिक महत्त्व और किसी बात को नहीं मिलने देना चाहिए।” इस दृष्टिकोण के समर्थक कहते हैं कि “आज लोक प्रशासन सभ्य जीवन का रक्षक मात्र ही नहीं, वह सामाजिक न्याय तथा सामाजिक परिवर्तन का भी महान् साधन है।” इससे स्पष्ट होता है कि लोक प्रशसान का क्षेत्र जनता के हित में किये जाने वाले सभी कार्यों तक फैला हुआ है। एल.डी. व्हाइट लोक प्रशासन को ‘अच्छी जिन्दगी’ के लक्ष्य की प्राप्ति का साधन मानते हैं।
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