रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय
जीवन-परिचय-राष्ट्रीय भावनाओं के ओजस्वी गायक रामधारीसिंह ‘दिनकर’ का जन्म बिहार के मुंगेर जनपद के सिमरिया गाँव में 30 सितम्बर, सन् 1908 ई० में हुआ था। आपने पटना विश्वविद्यालय से बी० ए० उत्तीर्ण कर कुछ दिनों तक मुजफ्फरपुर कालेज में हिन्दी विभाग अध्यक्ष रहे। आप 1951 से 1966 तक राज्यसभा के मनोनीत सदस्य रहे। ज्ञानपीठ पुरस्कार पद्म भूषण से अलंकृत श्री दिनकर जी को राष्ट्र कवि होने का गौरव भी प्राप्त है।
दिनकर जी ने भारत सरकार की ‘हिन्दी समिति’ के सलाहकार और आकाशवाणी के निदेशक के रूप में महत्त्वपूर्ण कार्य किया। हिन्दी साहित्याकाश का यह सूर्य 24 अप्रैल, सन् 1974 को सदा के लिए अस्त हो गया।
रामधारीसिंह ‘दिनकर’ का साहित्यिक योगदान
‘दिनकर’ जी दार्शनिकता और निराशा से दूर सामाजिक चेतना को जागृत करने वाले कवि हैं। ‘रेणुका’ और ‘हिमालय’ नामक काव्य-रचनाओं में इनकी क्रान्तिकारी भावनाओं के दर्शन होते हैं। वे शोषक-शोषित समाज का उन्मूलन कर वर्गहीन समाज की स्थापना करने के पक्षपाती हैं। उनकी इस भावना का दर्शन ‘हुंकार’, ‘सामधेनी’ और ‘कुरुक्षेत्र’ नामक काव्य-ग्रन्थों में दिखलाई पड़ता है। इनकी राष्ट्रीयता अतीत के प्रेम में परिवेष्ठित, किन्तु वर्तमान के प्रति विक्षुब्ध ही है। उनके काव्य में राष्ट्र प्रेम के साथ-साथ विश्व प्रेम, प्रगतिवाद, प्रकृति-चित्रण आदि के भी स्वाभाविक एवं मनोहारी वर्णन मिलते हैं। राष्ट्रीयता के साथ-साथ उनके काव्य में युगबोध और प्रकृति-चित्रण का भी सुन्दर समावेश है। इनमें एक ओर द्विवेदी-युग की इतिवृत्तात्मक कला है तो दूसरी ओर छायावाद की मुक्तक गीतात्मकता। द्विवेदी जी स्वयं अपने को द्विवेदीयुगीन और छायावादी काव्य का वारिस मानते हैं। उनका स्वयं का कथन है—“पन्त के सपने हमारे हाथ में आकर उतने मानवीय नहीं रहे, जितने वे छायावादी काल में, किन्तु द्विवेदीयुगीन अभिव्यक्ति की शुभ्रता हम लोगों के पास आकर कुछ रंगीन हो गयी। “
प्रारम्भ में ‘दिनकर’ जी ने कुछ छायावादी रचनाएँ लिखीं; किन्तु जैसे-जैसे वे अपने काव्य के स्वर से परिचित होते गये, काव्यानुभूति पर ही अपनी कविता को आधारित करने का आत्मविश्वास उनमें दृढ़ होता गया। इस प्रकार उत्तरोत्तर उनकी कविता छा बाद के प्रभाव से मुक्त होती गयी और उसने छायावाद को आत्मसात कर उसे नया रंग दिया।
रामधारी सिंह दिनकर की रचनाएँ
दिनकर जी ने अपनी समर्थ लेखनी से गद्य और पद्य दोनों ही क्षेत्रों में सेवा की। प्रण-भंग, रेणुका, हुंकार, धूप-छाँव, बापू, इतिहास के आँसू, रश्मिरथी, नीम के पत्ते, मगध-महिमा, वातायन, इतिहास के आँसू, देव विग्रह, नीलकुसुम, चक्रवाल, नये सुभाषित, परशुराम की प्रतीक्षा, कोयला कवित्त, मृत्तितिलक, आत्मा की आँखें, हारे को हरिनाम, दिल्ली, बारदोली विजय, सीपी और शंख, धूप और धुआँ, सामधेनी, रेती के फूल, विद्रोह, शिक्षा, रसवन्ती, द्वन्द्व गीत, कलिंग-विजय, कुरुक्षेत्र, उर्वशी आपकी काव्य-रचनाएँ हैं। ‘हमारे सामने की हिन्दी कविता’, ‘संस्कृति के चार अध्याय’ आदि इनकी गद्य रचनाएँ हैं।
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