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महादेवी वर्मा का जीवन परिचय, साहित्यिक योगदान तथा रचनाएँ

महादेवी वर्मा का जीवन परिचय, साहित्यिक योगदान तथा रचनाएँ
महादेवी वर्मा का जीवन परिचय, साहित्यिक योगदान तथा रचनाएँ

महादेवी वर्मा का जीवन परिचय

युग के आलोचकों ने श्रीमती महादेवी वर्मा को मीरा के समकक्ष रखकर उनके साथ अन्याय किया है। भक्ति-भावना और तन्मयता के प्रसंग में मीरा के साथ महादेवी जी की तुलना गौरव की बात मानी जा सकती है; किन्तु कला की उत्कृष्टता के विचार से महादेवी जी बहुत अधिक समर्थ और कुशल कलाकार हैं।

जीवन परिचय- वेदना की साकार मूर्ति श्रीमती महादेवी वर्मा का जन्म सन् 1907 ई० (सं0 1964 वि०) में फर्रुखाबाद नगर में हुआ। इनके पिता का नाम गोविन्दप्रसाद वर्मा था। महादेवी वर्मा जी की आरम्भिक शिक्षा इन्दौर में हुई। सन् 1916 ई० में आपका विवाह रूपनारायण वर्मा के साथ हो गया। विवाह के पश्चात् ही महादेवी ने मैट्रिक, एफ० ए० तथा एम० ए० की परीक्षाएँ उत्तीर्ण कीं। कुछ समय तक ‘चाँद’ नामक पत्र का सम्पादन किया और इसके पश्चात् ‘प्रयाग महिला विद्यापीठ’ के प्रधानाचार्य पद को सुशोभित किया। आपने ‘साहित्य-संसद’ नामक संस्था की स्थापना

की और इसके माध्यम से हिन्दी लेखकों की सहायता का प्रशंसनीय कार्य किया। महादेवी जी को ‘नीरजा’ पर 500 रु0 का सेक्सेरिया पुरस्कार तथा ‘यामा’ पर 1200 रु0 का ‘मंगलाप्रसाद’ पारितोषिक प्राप्त हुआ था। महादेवी जी उत्तर प्रदेश विधान परिषद् की सदस्य भी रहीं। भारत सरकार द्वारा इन्हें ‘पद्मभूषण’ अलंकरण से अलंकृत किया गया था। सन् 1987 ई० में इनका परलोकवास हो गया।

महादेवी वर्मा का साहित्यिक योगदान

महादेवी वर्मा जी छायावाद तथा रहस्यवाद की प्रमुख कवयित्री हैं। आरम्भ में वे सूर, तुलसी, मीरा के भक्तिपदों से प्रभावित होकर ब्रजभाषा में रचना करती थीं, किन्तु कुछ दिनों के बाद वे अपनी राष्ट्रीय चेतना और वेदना के भावों को लेकर खड़ी बोली में अवतीर्ण हुईं और धीरे-धीरे प्रसाद, पन्त, निराला की भाँति इस युग में प्रविष्ट हो गयीं एवं प्रकृति के नाना रूपों में अपने विभिन्न भावों का समावेश किया।

भावुकतायुक्त कविताओं के कारण अपनी विशिष्ट पहचान बनाने वाली कवयित्री महादेवी वर्मा ने मैट्रिक उत्तीर्ण करने के पश्चात् ही काव्य-रचना शुरू कर दिया था। करुणा एवं भावुकता उनके व्यक्तित्व के अभिन्न अंग थे। जहाँ एक ओर उनके काव्य में इन भावनाओं की अभिव्यक्ति हुई, वहीं दूसरी ओर उनकी ये भावनाएँ सम्पर्क में आनेवाले पीड़ित एवं दुःखी व्यक्तियों को भी उनके प्रेम एवं सहानुभूति से प्रभावित करने लगी।

महादेवी जी का नाम छायावादी काव्यधारा के कवियों की श्रेणी में एक वरिष्ठ कवयित्री के रूप में लिया जाता है। इनकी रचनाएँ सर्वप्रथम ‘चाँद’ नामक पत्रिका में प्रकाशित हुईं। 1933 ई० में इन्होंने ‘प्रयाग महिला विद्यापीठ’ के प्राचार्या पद को सुशोभित किया। काव्यात्मक प्रतिभा के लिए इन्हें ‘सेक्सेरिया’ एवं ‘मंगलाप्रसाद’ पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। भारत सरकार ने इन्हें ‘पद्मभूषण’ की उपाधि से सम्मानित किया। 1983 ई0 में ‘ज्ञानपीठ’ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया इसी वर्ष इन्हें उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से ‘भारत-भारती’ पुरस्कार और गया। महोदवी जी आधुनिक युग की सर्वश्रेष्ठ कवयित्री हैं। उन्होंने रहस्यवाद की सभी भी प्रदान किया शैलियों को अपनाकर वेदना के माध्यम से आत्मा और परमात्मा के सम्बन्ध को जिस कलात्मक ढंग से व्यक्त किया है, वह अनुपम है।

महादेवी वर्मा की रचनाएँ

महादेवी जी ने गद्य तथा पद्य दोनों में श्रेष्ठ रचनाएँ की हैं। इनकी प्रसिद्ध रचनाएँ निम्नलिखित हैं-

1. काव्य-नीहार, रश्मि, नीरजा, सान्ध्य गीत, दीपशिखा, यामा आदि।

2. निबन्ध-संग्रह – अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ श्रृंखला की कड़ियाँ आदि।

3. आलोचनात्मक ग्रन्थ-हिन्दी का विवेचनात्मक गद्य ।

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