जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय
हिन्दी में छायावादी काव्य के प्रवर्तक जयशंकर प्रसाद का जन्म माघ शुक्ल द्वादशी सं0 1946 वि० (30 जनवरी, सन् 1889 ई०) काशी के धनी, महादानी परिवार हुआ था। आपके पितामह शिवरत्न साहू जी काशी के प्रसिद्ध दानियों में गिने जाते थे। बालक प्रसाद की अवस्था अभी बारह ही वर्ष की ही थी कि आपके पिता श्री देवीप्रसाद जी का स्वर्गवास हो गया। 15 वर्ष की अवस्था में माता तथा 17 वर्ष की अवस्था में बड़े भाई के निधन का दुःख आपने देखा। उस समय प्रसाद सातवीं कक्षा में पढ़ रहे थे। इन सबकी मृत्यु हो जाने पर घर का सारा भार प्रसाद के कन्धों पर आ पड़ा और इनका स्कूल जाना बन्द हो गया। प्रसाद ने तब घर पर ही पढ़ने का प्रबन्ध किया और एकचित्त हो अध्ययन में जुट गये। घर पर ही आपने संस्कृत और हिन्दी का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था। इसी बीच प्रसाद के हृदय ने एक के बाद दूसरी पत्नी को संसार से सदा के लिए विदा किया। विधवा भाभी तथा मातृहीन पुत्र रत्नशंकर को देखकर ये अपने आँसू सँभाल न पाते थे। ‘आँसू’ की ‘उत्तेजित कर मत दौड़ाओ, यह करुणा का थका चरण है’ आदि पंक्तियों में इसी विषाद की गूंज है। उन्नीस वर्ष की अवस्था से ही प्रसाद ने ऐतिहासिक खोजों तथा छायावादी रचनाओं का प्रारम्भ कर दिया था। आपका जीवन अत्यन्त सरल था। स्वभाव से आप हँसमुख, मिलनसार, स्नेहशील और साहसी थे। कठिन से कठिन परिस्थितियाँ ‘प्रसाद’ के जीवन में आयीं, किन्तु उन सबका सामना करते हुए भी आप भगवती भारती की सेवा में निरन्तर जुटे रहे। किशोर अवस्था में ही परिवार का भारी बोझ अपने कन्धों पर सँभाल कर आपने जो उच्च कोटि का ज्ञान प्राप्त किया और उसके फलस्वरूप हिन्दी साहित्य के भण्डार को जिन श्रेष्ठतम कृतियों से भरा, वे आपके अध्यवसाय एवं तीक्ष्ण प्रतिभा के ज्वलन्त उदाहरण हैं। भारतीय दर्शन, इतिहास, संस्कृति साहित्य, विशेषकर बौद्ध साहित्य पर आपका गम्भीर अध्ययन है।
प्रसाद जी का सारा जीवन संघर्षों में बीता। कठोर परिश्रम और संघर्ष के कारण वे राजयक्ष्मा के शिकार हो गये और सं० 1994 वि0 (14 जनवरी, सन् 1937 ई०) में केवल 48 वर्ष की अल्पायु में परलोकवासी हो गये।
जयशंकर प्रसाद का साहित्यिक योगदान
जयशंकर प्रसाद जी आधुनिक हिन्दी साहित्य की गौरवपूर्ण विभूति हैं। ये छायावाद के प्रवर्तक, उन्नायक और प्रतिनिधि कवि हैं। प्रसाद जी ने अपने काव्य में मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठा की है। ‘कामायनी’ में मनु को संकीर्णता के धरातल से ऊपर उठाकर आनन्द की व्यापक़ भूमि तक ले जाया गया है। वे आध्यात्मिक आनन्दवाद के अन्वेषण में चिन्तनशील हैं। उनके काव्य में हृदय की आकुलता है। यह उनके सम्पूर्ण काव्य में विभिन्न रूपों में व्याप्त है। वे फूलों से चल कर मनुष्य तक आते हैं और मानव से उठकर आध्यात्मिक क्रन्दन तक पहुँच जाते हैं। उनके काव्यगत रुदन में आध्यात्मिक निर्मलता की झलक दिखलाई पड़ती है। वे कहते हैं
ये सब स्फुलिंग हैं मेरी, इस ज्वालामयी जलन के।
कुछ शेष चिह्न हैं केवल मेरे उस महा मिलन के ॥
प्रसाद जी सौन्दर्य और प्रेम के गायक कवि हैं। उनके सौन्दर्य-चित्रण में रीतिकालीन स्थूलता और मांसलता का अभाव है। वे आध्यात्मिक सौन्दर्य के उपासक हैं। उनके सौन्दर्य प्रेम में सूक्ष्मता और कोमलता की अभिव्यक्ति हुई है। वे जीवन की पहेली को अपने चिन्तन द्वारा हल करना चाहते हैं। यही प्रायः उनके काव्य का विषय होता है। वे एक आशावादी कवि हैं, दुःख और निराशाओं का निराकरण ही अपने जीवन का लक्ष्य मानते हैं।
जयशंकर प्रसाद की रचनाएँ
प्रसाद जी सर्वतोमुखी प्रतिभा के साहित्यकार थे। आपकी साहित्यिक सेवाओं से हिन्दी साहित्य का कोई भी अंग अछूता नहीं रहा। काव्य, नाटक, कहानी, उपन्यास, निबन्ध आदि साहित्य के समस्त अंगों को आपने अपनी लेखनी से समृद्ध किया है। क
1. काव्य-चित्राधार, कानन कुसुम, करुणालय, महाराणा का महत्त्व, प्रेम पथिक, झरना, लहर, आँसू, कामायनी आपकी काव्य-रचनाएँ हैं।
2. नाटक- सज्जन, कल्याणी, परिणय, राज्यश्री, अजातशत्रु, स्कन्दगुप्त, ध्रुवस्वामिनी, विशाख, कामना, जनमेजय का नागयज्ञ और एक घूंट।
3. कहानी- आकाशदीप, इन्द्रजाल, प्रतिध्वनि,आँधी, छाया।
4. उपन्यास-कंकाल, तितली, इरावती (अपूर्ण)।
5. निबन्ध-काव्य और कला आदि।
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