राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय
हिन्दी साहित्य के गौरव राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का जन्म सं0 1943 वि0 (3 अगस्त, सन् 1886 ई0) में चिरगाँव जिला ललितपुर के एक प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में हुआ था। आपके पिता सेठ रामशरण गुप्त हिन्दी के अच्छे कवि थे। पिता से ही आपको कविता की प्रेरणा प्राप्त हुई। द्विवेदी जी से आपको कविता लिखने का प्रोत्साहन मिला और सन् 1899 ई0 में आपकी कविताएँ ‘सरस्वती’ पत्रिका में प्रकाशित होनी शुरू हो गयीं। वीर बुन्देलों के प्रान्त में जन्म लेने के कारण आपकी आत्मा और प्राण देशप्रेम में सराबोर थे। यही राष्ट्रप्रेम आपकी कविताओं में सर्वत्र प्रस्फुटित हुआ है। आपके चार भाई और थे। सियारामशरण गुप्त आपके अनुज हिन्दी के आधुनिक कवियों में विशेष महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। गुप्त जी की प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई। उसके पश्चात् अंग्रेजी शिक्षा के लिए झाँसी भेजे गये, पर शिक्षा का क्रम अधिक न चल सका।
घर पर ही आपने बँगला, संस्कृत और मराठी का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया। पं० महावीरप्रसाद द्विवेदी के आदेशानुसार गुप्त जी ने सर्वप्रथम खड़ीबोली में ‘भारत भारती’ नामक राष्ट्रीय भावनाओं से पूर्ण पुस्तक की रचना की। सांस्कृतिक तथा राष्ट्रीय विषयों पर लिखने के कारण वे राष्ट्रकवि कहलाये। ‘साकेत’ काव्य पर आपको ‘हिन्दी साहित्य सम्मेलन’ ने ‘मंगलाप्रसाद पारितोषिक’ प्रदान किया था।
गुप्त जी को आगरा विश्वविद्यालय ने डी० लिट् की मानद उपाधि से अलंकृत किया। सन् 1954 ई0 में भारत सरकार ने ‘पद्मभूषण’ के अलंकरण से इन्हें विभूषित किया। वे दो बार राज्य सभा के सदस्य भी मनोनीत हुए। सरस्वती का यह महान उपासक 12 दिसम्बर, सन् 1964 ई० को परलोकगामी हो गया।
मैथिलीशरण गुप्त का साहित्यिक योगदान
मैथिलीशरण गुप्त एक युगपुरुष के रूप में हिन्दी में अवतरित हुए। उन्होंने हिन्दी को अपनी प्रतिभा के स्पर्श से जो संजीवनी शक्ति प्रदान की तथा राष्ट्र की गुप्त चेतना को जगाकर उसे जो वाणी दी, उसी के फलस्वरूप वे जन-मन के सर्वाधिक प्रिय कवि बन गए और उन्हें भारतीय जनता ने सच्चे हृदय से राष्ट्रकवि की महनीय उपाधि से विभूषित किया।
गुप्त जी की रचना में आर्य संस्कृत और मर्यादा का भली-भाँति समर्थन हुआ है। मानव सेवा को ही अपना अभीष्ट मानते हैं। इनका कथन है-
सन्देश यहाँ मैं नहीं स्वर्ग का लाया।
इस भूतल को ही स्वर्ग बनाने आया ॥
गुप्त जी राष्ट्र प्रेमी कवि हैं। इनकी रचनाओं में राष्ट्र प्रेम कूट-कूट कर भरा पड़ा है। इनकी राष्ट्रीयता महात्मा गांधी से प्रभावित है। ‘भारत-भारती’, ‘साकेत’ आदि काव्यों में इनकी राष्ट्रीयता के स्वर पूर्णतः मुखर हुए हैं। ‘साकेत’ में महात्मा गांधी से प्रभावित असहयोग आन्दोलन, सत्याग्रह, अनशन आदि के चित्र मिलते हैं। हिन्दू-मुस्लिम एकता, अछूतोद्धार, विधवा-विवाह का समर्थन, बाल विवाह का विरोध आदि मार्मिक वर्णन भी हुआ है, जो इनके समाज-सुधार विषयक प्रकृति का परिचायक है। ‘वक्र संहार’ में अंग्रेजों के अत्याचारों का सांकेतिक वर्णन है। अधिकारों को प्राप्त करना ये अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानते हैं। प्रकृति के आलम्बन और उद्दीपन – दोनों रूपों का चित्रण किया है। छायावादी प्रभाव के कारण गुप्त जी ने अपने गीतों में प्रकृति के मानवीकरण पर भी जोर दिया है। इनके काव्य में अद्भुत संवेदनशीलता है। मानव हृदय का वास्तविक और सजीव चित्रण करने में गुप्त जी अद्भुत क्षमता रखते हैं। इनमें स्वाभाविकता एवं मर्मस्पर्शिता है। अपने काव्य में गुप्त जी ‘उर्मिला’ और ‘यशोधरा जैसी परित्यक्ता नारियों के जीवन को अत्यन्त ही मार्मिक एवं हृदयस्पर्शी ढंग से चित्रित किया है। यशोधरा के प्रति उनकी सहानुभूति देखिए
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मैथिलीशरण गुप्त की रचनाएँ
मौलिक काव्य – भारत-भारती, जयद्रथ वध, पंचवटी, साकेत, यशोधरा, द्वापर, हिडिम्बा, सिद्धराज, नहुष, रंग में भंग, किसान, काबा और कर्बला, बक संहार, विष्णु-प्रिया, जयभारत आदि ।
अनूदित काव्य-मेघनाथ वध, ब्रजभाषा, विरहिणी, वीरांगना, प्लासी का युद्ध, उमर खय्याम की रूबाइयाँ, स्वप्नवासवदत्ता,
नाटक-तिलोत्तमा, चन्द्रहास, अनघ । प्रतिमानाटकम्, अभिज्ञान शाकुन्तलम् ।
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