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यूरोपीय संघ एंव यूरोपीय संघ की समीक्षा | European Union and European union review in Hindi

यूरोपीय संघ एंव यूरोपीय संघ की समीक्षा |  European Union and European union review in Hindi
यूरोपीय संघ एंव यूरोपीय संघ की समीक्षा | European Union and European union review in Hindi

यूरोपीय संघ के प्रदेशों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।

यूरोपीय संघ

यूरोपीय संघ (यूरोपीय यूरोपीयन) कुल 25 यूरोपीय देशों का प्रभावशाली क्षेत्रीय संगठन है। क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग की दिशा में यह विश्व का सर्वाधिक व्यापक और सशक्त संगठन है। यह संघ 1 नवम्बर 1993 से पूर्णरूपेण अस्तित्व में है। इस संघ में पश्चिमी यूरोप, पूर्वी यूरोप तथा दक्षिणी यूरोप के कुल 25 देश सम्मिलित हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं- फ्रांस, इटली, जर्मनी, बेल्जियम, नीदरलैण्ड, लग्जेम्बर्ग, यूनाइटेड किंगडम, आयरलैण्ड, डेनमार्क, यूनान, पुर्तगाल, स्पेन, आस्ट्रिया, स्वीडन, फिनलैंड, इस्तोनिया, लाटबिया, लिथुआनिया, पोलैण्ड, चेक गणराज्य, हंगरी, स्लोवाकिया, माल्टा, साइप्रस और स्लोबेनिया ।

यूरोप में आर्थिक एकात्मकता के भीतर सामाजिक एवं सांस्कृतिक विविधता एवं तदनुरूप विखण्डन का एक लम्बा इतिहास रहा है। यद्यपि पश्चिमी यूरोप ही औद्योगिक क्रांति का जन्मस्थल और आधुनिक अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का जनक रहा है किन्तु यहाँ राजनीतिक सांस्कृतिक गतिविधियां इसे लम्बे समय तक क्षेत्रीय विखण्डन के लिए भी प्रेरित करती रहीं यूरोप में विलग सांस्कृतिक तथा सामुदायिक चेतना बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध तक इतनी बलवती रही कि यूरोप विशेष रूप से पश्चिमी यूरोप अलग-अलग अनेक राष्ट्रों में विभक्त रहा और सम्पूर्ण यूरोप आर्थिक एकता और सामाजिक-सांस्कृतिक विखण्डन के मध्य झूलता रहा। द्वितीय विश्व युद्ध के पहले तक यूरोप के सभी राष्ट्रों ने अपनी विलग जातीय पहचान बनाये रखने की यथासंभव प्रयास किया। इतना ही नहीं, इन देशों ने अपनी अलग भाषा, धार्मिक पूर्वाग्रह और युद्ध को सुरक्षित रखा। विभिन्न देश अपनी सीमाओं के विस्तार अथवा अपने अस्तित्व की रक्षा के प्रति समर्पित और सजग रहे जिसका अंतिम परिणाम द्वितीय विश्व युद्ध था।

जनवरी 1958 में स्थापित यूरोपीय आर्थिक समुदाय के छः संस्थापक देशों-बेल्जियम, फ्रांस, पश्चिमी जर्मनी, नीदरलैण्ड, लग्जेमबर्ग और इटली की कुल संख्या यथावत बनी रहीं। 1 जनवरी 1973 को यूनाइटेड किंगडम, डेनमार्क (ग्रीनलैण्ड सहित) तथा आयरलैण्ड भी इस समुदाय में सम्मिलित हो गये। डेनमार्क से स्वतंत्रता पाने के पश्चात् फरवरी 1982 में ग्रीनलैण्ड ने इसकी सदस्यता छोड़ दी। 1 जनवरी 1981 को यूनान और 1 जनवरी 1986 को स्पेन और पुर्तगाल भी इसके सदस्य बन गये।

यूरोपीय आर्थिक समुदाय (EEC ) लगभग 5 दशक तक कार्यरत रहां पश्चिमी यूरोप के आर्थिक एकीकरण स्थापित करने में इसकी भूमिका सराहनीय रही है। पश्चिमी ययूरोपीय देशों द्वारा आर्थिक, औद्योगिक तथा व्यापार के क्षेत्र में सत्वर लाभ प्राप्त करने में यह अत्यंत महत्वपूर्ण साधन सिद्ध हुआ। इसका महत्व इससे समझा जा सकता है कि जिस ब्रिटेन ने 1958 में इस समुदाय में सम्मिलित होने से इन्कार कर दिया था, उसने इससे आकर्षित होकर 1973 में इसकी सदस्यता स्वीकार कर ली।

यूरोपीय एकीकरण की दिशा में ‘मेसिट्रच संधि’ का विशेष महत्व है। दिसम्बर 1991 में मेस्ट्रिच (नीदरलैण्ड) नामक स्थान पर यूरोपीय आर्थिक समुदाय के 12 सदस्य देशों का सम्मेलन हुआ और सभी ने एक संधि पर हस्ताक्षर किया। इस संधि के द्वारा सम्पूर्ण यूरोप के लिए समान अर्थव्यवस्था, एक मुद्रा, एक बाजार तथा एक सुरक्षा व्यवस्था का मार्ग प्रशस्त हो गया। इस संधि के अनुसार यूरोपीय देशों का एक मौद्रिक संघ बनाने का निश्चय किया गया और प्रस्ताव किया गया कि इन देशों के लिए एक संयुक्त मुद्रा ‘यूरो मुद्रा’ (Euro Currency लागू की जायेगी।

मेस्ट्रिच संधि के अनुसार 7 फरवरी 1992 यूरोपीय आर्थिक समुदाय ‘यूरोपीय संघ’ (यूरोपीय यूनियन) के रूप में परिवर्तित हो गया और अनुमोदन के पश्चात् इस संघ ने 1 नवम्बर 1993 से कार्य करना आरंभ कर दियां 1 जनवरी 1995 को आस्ट्रिया, स्वीडन और फिनलैण्ड ने भी यूरोपीय संघ की सदस्यता ग्रहण कर ली जिससे सदस्य देशों की संख्या बढ़कर 15 हो गयी। मेस्ट्रिच संधि को लागू करते हुए। जनवरी 2002 से यूरोप के 12 सदस्य देशों में युरो मुद्रा लागू कर दी गयी किन्तु यूनाइटेड किंगडम, डेनमार्क और स्वीडन में अभी यह नहीं लागू हो पायी। इस ऐतिहासिक घटना ने 11 यूरोपीय मुद्राओं की संयुक्त करके उन्हें एक मुद्रा का स्वरूप प्रदान करने का विलक्षण कार्य किया है। इसी संधि के अनुसार 7 यूरोपीय देशों-फ्रांस, जर्मनी, स्पेन, पुर्तगाल, लग्जमेबर्ग, बेल्जियम तथा नीदरलैण्ड ने 1 अप्रैल 1995 से और यूनान,” इटली तथा आस्ट्रिया (तीन देशों) ने 1 जून 1995 से सदस्य देशों के लिए बीसा प्रणाली समाप्त कर दिया है। इससे यूरोप के राजनीतिक एकीकरण के प्रयास में मजबूती आयी है।

दक्षिणी यूरोप के 10 अन्य देश भी इससे सम्मिलित हो गये। ये देश है-चेकगणराज्य, पोलैण्ड, यूरोपीय संघ की सफलता तथा उपधब्धियों आकर्षित होकर 1 मई 2004 को पूर्वी तथा हंगरी, स्लोवाकिया, स्लोवेनिया, माल्टा, साइप्रस, इस्तोनिया, लाटविया और लिथुआनिया। इस प्रकार मई 2004 तक यूरोपीय संघ के सदस्य देशों की कुल संख्या 25 हो चुकी थी। इस प्रकार यूरोपीय संघ के अंतर्गत कुल जनसंख्या लगभग 45.5 करोड़ और विश्व के कुल अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में इसकी हिस्सेदारी लगभग 20 प्रतिशत है। वर्तमान समय में क्षेत्रीय स्तर के व्यापारिक संगठनों में यूरोपीय संघ सबसे विशाल व्यापारिक इकाई है जिसका विस्तार संयुक्त राज्य अमेरिका से भी अधिक है।

यूरोपीय संघ की समीक्षा

यद्यपि यूरोपीय संघ का तात्कालिक उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को अधिक और सुगम व्यापार बनाने के लिए संघ के समस्त देशों में एक साझी मुद्रा को प्रचलित करना था जो 2002 से 12 देशों में लागू हो गयी है किन्तु इसका अंतिम उद्देश्य यूरोप का राजनीति एकीकरण है। इस दिशा में संघ को निरन्तर सफलताएं मिल रही है। संघ की सबसे बड़ी सफलता यह है कि कई दशकों पश्चात् पहली बार साम्यवाद के समर्थक रहे देशों को पूँजीवाद के झण्डे के नीचे लाया गया है। तीन बाल्टिक राज्य- इस्तोनिया, लाटविया और लिथुआनिया जो 1991 तक (विघटन के पूर्व) सोवियत संघ के घटक राज्य थे, इस संघ में सम्मिलित हो गये है। इसी प्रकार पोलैण्ड, हंगरी, चेक गणराज्य एवं स्लोवाकिया जो कई दशकों तक साम्यवादी शासन के अंतर्गत थे, वे भी इसके सदस्य बन गये हैं। यूगोस्लाविया के विघटनोपरान्त स्वतंत्र देश बने स्लोवेनिया और भूमध्य सागर स्थिर माल्टा एवं साइप्रस जैसे द्वीपीय देश भी यूरोपीय संघ के अंग बन गये हैं।

आर्थिक-राजनीतिक समीक्षकों के अनुसार यदि यूरोपीय संघ के क्रमिक विस्तार होते रहने से यूरोप का आर्थिक तथा राजनीतिक एकीकरण हो जाता है तो इसके विश्व राजनीति पर व्यापक प्रभाव पड़ सकते हैं। इससे यूरोप एक महान आर्थिक एवं राजनीतिक शक्ति के रूप में उभर सकता है। यूरोप के एकीकरण से वर्तमान एक ध्रुवीय (संयुक्त राज्य अमेरिका केन्द्रित) व्यवस्था समाप्त हो जायेगी और विश्व में आर्थिक राजनीतिक शक्ति के अनेक केन्द्र विकसित होंगे जिनके बीच पुनः प्रतिस्पर्धाएं प्रारंभ हो जायेगी जिससे सम्पूर्ण विश्व का राजनीतिक परिदृश्य प्रभावित हो सकता है। यूरोपीय देशों की राष्ट्रवादी भावनाओं तथा राष्ट्रों के मध्य आपसी विवादों को देखते हुए यह निष्कर्ष निकालना कठिन है कि यूरोप का एकीकरण निकट भविष्य में हो जायेगा।

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