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प्रारूपण की परिभाषा एंव विशेषताएं | Definition and Characteristics of Drafting in Hindi

प्रारूपण की परिभाषा एंव विशेषताएं
प्रारूपण की परिभाषा एंव विशेषताएं

प्रारूपण की परिभाषा एंव विशेषताएं

आलेखन, प्रलेखन, मासौदा, मसदिा, प्रारूपया या प्रारूपण ये सभी शब्द एक ही अर्थ को द्योतित करते हैं। विभिन्न पुस्तकों में इनके लिये भिन्न-भिन्न नामों का प्रयोग किया जाता है।

प्रारूपण का अर्थ एंव परिभाषा- विद्वान विभिन्न प्रकार के पत्रों के लेखन को ही आलेखन कहते हैं। सामान्यत: आलेखन का अभिप्राय उन पत्रों, परिपत्रों, सूचनाओं आदि के आलेख तयार करने से हैं जिनका उपयोग सरकारी दफ्तरों या व्यावसायिक संस्थानों में प्रतिदिन किया जाता है। आलेख का अर्थ है -जो लिखना है उसका प्रारूप (ढाँचा तैयार करना। दरअसल आ + लिख + ल्युट = से बने आलेखन का अर्थ होता है लिखना, उर्दू में तहरीर करना भी कहते हैं डा. कैलाशचन्द्र भाटिया मेरी उक्त बात को और आधिक प्रमाणिक तथा ठोस सफल अख्तियार कराते कहते हैं कि आलेखन का सीधा सम्बन्ध आलेखनम् आ + लिख + ल्युट् संस्कृत शब्द से है, जिसका अर्थ है लिखना, चित्रण करना। आलेखन के लिए शब्द तहरीर (तहीर) है जिसका अर्थ है हाथ की लिखावट लेखपत्र, लिखत दस्तावेज । इसके लिए प्रयुक्त अंग्रेजी शब्द ‘Drafting’ है, जिसके अन्य अर्थों के अतिरिक्त प्रशासन से सम्बन्धित अर्थ निम्नलिखित हैं-

  1. A rough sketch of writing.
  2. A plan or drawing of a work to be done.
  3. A written order from a person to another.

इधर, आलेखन का ही समानार्थी शब्द प्रारूप का आशय होता है – किसी प्रस्ताव, योजना विधेयक आदि का वह प्राथमिक रूप जो शीघ्रता में तैयार कर लिया जाता है, किन्तु जिसमें बाद में कुछ काट-छाँट या संशोधन की आवश्यकता पड़ती है। इसे मसौदा या प्रार्लख ( प्रीकर्सर Precursor) तथा खरा नाम से भी जाना जाता है। इसी प्रारूप से प्रारूपण शब्द बना है। प्रारूपण लिए अंग्रेजी में ड्राफ्टिग (Drafting) शब्द का प्रयोग किया जाता है। हिन्दी में उसे आलेखन प्रालेखन प्रारूप- लेखन और मसौदा लेखन भी कहते हैं। प्रारूपण से तात्पार्य उस पत्र-लेखन से है जिसमें आदेश निर्देश विज्ञापन अथावा अन्य किसी प्रकार की सामग्री के आधार पर पत्र-लेखन की समस्त बातों को पूरा करते हुए लिखा जाता है आर्थात् टिप्पणी लेखन के पश्चात् और पत्र प्रेषण के पूर्व होने वाले कार्यालयीय कार्यवाही को प्रारूपण कहा जाता है। व्यावहारिक कृष्टि से देखा जाये तो सभी सरकारी गैर-सरकारी कार्यालयों में जो ड्राफ्टिंग की जाती है उसे प्रारूपण ही कहा जाता है। प्रारूप प्रालेख प्रारूप (Draft) जारी करने से पूर्व संबंधित अधिकारी की स्वीकृति आवश्यक होती है। केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय के पारिभाषिक शब्दावली प्रयोग ने ‘Draft’ के लिए प्रारूप और ‘Drafting’ के लिए प्रारूपण समानक शब्द निर्धरित किये हैं और ये शब्द नये होने के बावजूद अर्थव्यंजना में पूर्ण समर्थ है। कार्यालयों में प्रारूप लेखन और मसौदा-लेखन शब्द ही प्रचलित हैं।

परिभाषा- डॉ. विनोद गोदरे लिखते हैं कि, “प्राप्ति पर टिप्पणी कार्य खत्म होने के पश्चात् उसके आधार पर पत्रोत्तर का जो प्रारूप तैयार किया जाता है, वह आलेखन कहलाता है।

विजयपाल सिंह- के अनुसार, आलेखन का अर्थ होता है किसी विषय पर उच्च अधिकारी आदेश अथवा सम्बन्धित पत्रों या उसके सारांश के आधार पर किसी आदेश, सूचना, स्मृति पत्र, प्रस्ताव आदि का प्रारूप मसविदा तैयार करना।

डॉ० महेन्द्र चतुर्वेदी का विचार है कि प्रारूप वस्तुतः प्राकरूप होता है अर्थात् पत्र का अन्तिम रूप और इसे तैयार करने का कार्य प्रारूपण कहलाता है।

डॉ गुलाम मोइनुद्दीन खान मसौदा पर प्रकाश डालते लिखते हैं कि- “दफ्तरों में आवती पर टिप्पणी कार्य समाप्त होने के पश्चात् जो पत्रोत्तर का प्रालेख तैयार किया जाता है, असे मसौदा लेखन कहते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो मसौदा लेखन टिप्पणी कार्य का अन्तिम सोपान है।”

डॉ रामचन्द्र सिंह सागर का कहना है कि- “आवती पर टिप्पणी कार्य समाप्त होने के बाद टिप्पणी के आधार पर आवती का उत्तर देने के लिए जो प्रारूप तैयार किया जाता है, उसी को आलेखन या मसौदा या प्रारूप तैयार करना कहते हैं।

डॉ ईश्वर दत्त शील इसे बहुत बधिक स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि- “सरकारी या निजी संस्थाओं में आये हुए पत्रों के उत्तर देने के लिए और सरकार की नीति-निर्धारण सम्बन्धी सूचनाओं स्मारकों, ज्ञापनों और परिपत्रों आदि के प्रेषण के लिए टिप्पण की यथोचित कार्यवाही के बाद अधिकारियों के आदेश पर अन्य सहायक कर्मचारियों द्वारा प्रालेख (प्राख्य Draft) तैयार किया जाना प्रालेखन कहलाता है।

प्रारूपण या आलेखन की विशेषताएँ

(1) शुद्धता- प्रारूप की शुद्धता से आशय असका हर पहलू से शद्ध होना है। उसकी भाषा व्याकरणिक दृष्टि से सर्वथा शुद्ध होनी चाहिए। पत्र में कुछ तथ्यों का उल्लेख हो उन्हें हर तरह से जाँच लेना चाहिए, जरूरत हो तो उनके स्त्रोतों से उनका मिलान करके देख लेना चाहिए। सभी पत्रांक और दिनांक सही होने चाहिए। न तो कोई वांछनीय तथ्य छूटना चाहिए न अवांछनीय तथ्यों को पत्र में आने देना चाहिए। यदि पत्र में पहले के पत्रों का सारांश देना जरूरी हो तो सारांश तैयार करने में पूर्ण मनोयोग से लगना चाहिए। तनिक-सी असावधानी से सारांश में कोई बात रह गई या अभिप्रेत अर्थ से अलग अर्थ निकालने की गुंजायश रह गई तो पूरे प्रारूप का उद्देश्य ही नष्ट हो जायेगा। प्रारूप की शुद्धता का यह भी एक परख है कि उसका रूप विधान पत्र व्यवहार की परम्परा के अनुरूप हो।

(2) पूर्णता – आलेख को अपने में स्वत: पूर्ण होना चाहिए। ऐसी नौबत नहीं आनी चाहिए कि प्रस्तुत आलेख को समझने के लिए अन्य अनेक पत्रों के पन्ने पलटने पड़ें। यदि आलेख ऐसे पत्र का है जिसे पहली बार कार्यालय से भेजा जाना है तो उसका उद्देश्य स्पष्ट और बोधगम्य हो। प्रेषिती से क्या अपेक्षा की गई है, इसका उल्लेख शिष्टाचार का पालन करते असंदिग्ध भाषा में करना चाहिए। यदि किसी पत्र के उत्तर में आलेख तैयार किया जा रहा है तो प्राप्त पत्र संख्या और दिनांक के साथ उल्लिखित विषय का निर्देश अनिवार्यतः करना चाहिए। प्रस्तुत पत्र किसी लम्बे पत्र व्यवहार की कड़ी से प्राप्त हुआ हो तो कार्यालय की भाषा में से भी इंगित कर देना जरूरी है।

आलेख भेजे जाने वाले पत्र का प्रथम प्रारूप होता है। अत: उसमें निर्गत करने वाले विभाग आदि का नाम, पत्र-संख्या तथा दिनांक भी यथास्थान अंकित कर देना चाहिए। आलेख तैयार करने में यथासंथाव सम्बन्ति अधिकारी द्वारा लिखित या बोले गये शब्दों का ही प्रयोग करना चाहिए।

(3) स्पष्टता – आलेख की स्पष्टता से तात्पर्य है कि उससे वही अर्थ ग्रहण किया जाय जो लेखक का अभीष्ट हो। दूसरी ओर आलेख तैयार करने वाले का उद्देश्य यही होना चाहिए कि वह अपने आलेख में उन्हीं बातों को लिपिबद्ध करे जो संदर्भगत पत्र, प्रसंग या अधिकारी की मांग हो। यह तभी संभव है जब बालेख का लेखक पूरी सावधानी से उन तथ्यों घटनाओं या मन्तव्यों को हृदयंगम कर ले जिन्हें आलेख का रूप में उसे प्रस्तुत करना है। आलेख में स्पष्टता लाने के लिए उसके लेखक का भाषा और उपयुक्त शब्द चयन पर पूरा अधिकार होना चाहिए, तथ्यों के उचित संयोजन पर भी आलेख की स्पष्टता निर्भर करती है। हर बात को सथास्थान, तर्कपूर्ण ढंग से कहना जरूरी है अन्याथा अर्थ-ग्रहण में कठिनाई हो सकती है। अनावश्यक विस्तार भी कभी कभी आलेख को उलझन-भरा बना देता है। शुद्ध भाषा सरल शैली में, सभी अपेक्षित तथ्यों को तर्क पूर्ण पूर्वापर सम्बन्ध में बाँधते हुए लिपिबद्ध कर देना स्पष्ट आलेख की निशानी है।

(4) संक्षिप्तता- अच्छे आलेख की एक प्रमुख विशेषता उसकी संक्षिप्तता है। संक्षिप्तता का अर्थ है किसी बात को पूरी तरह से कम से कम शब्दों में कह देना। ध्यान देने की बात है कि केवल संक्षिप्तता लाने के लिए बात को पूरी तरह कहने में कोताही करना अच्छे आलेख का गुण नहीं कहा जा सकता। संक्षिप्तता पूर्णता के मूल्य पर वांछनीय नहीं है। यह सर्वथा संभव है कि जो बात कई वाक्यों में कही जा रही है उसे एक वाक्य में कह दिया जाय। इसके लिए अभ्यास की आवश्यकता है, भाषा और अभिव्यक्ति की क्षमता अर्जित करने की आवश्यकता है। संक्षिप्तता पर ऐसा आग्रह नहीं होना चाहिए कि आलेख अपूर्ण रह जाय या आवश्यकता है संषिप्तता पर ऐसा आग्रह नहीं होना चाहिए कि आलेख अपूर्ण रह जाय या अबोधगम्य बन जाय।

(5) शिष्टता और विनम्रता- आलेख चाहे जैसे भी पत्र का तैयार किया जा रहा हो उसकी भाषा सदैव शिष्ट और विनम्र होनी चाहिए। इससे कोई अंतर नही आता कि एक उच्च सरकारी अधिकारी अपने अधीनस्थ अधिकारी के लिए लेख का आलेख तैयार करने को कहता है। वरन् इससे पत्र का मूल्य बढ़ जाता है, यदि उसकी भाषा और विनम्र हो।

(6) शुद्धता- जब किसी आलेखन में निर्देश, संख्या, दिनांक तथा कथन शुद्ध समीचीन तथा प्रासंगिक रहते हैं तब वह आलेखन शुद्ध माना जाता है। इन गुणों से रहित होने पर पुनरावलोकन की भी आवश्यकता पड़ सकती है। किसी प्रकार की छोटी-सी भूल भी भविष्य में उलझन उत्पन्न कर सकती है इसे पत्र-व्यवहार में देर लग सकती है और अधिकारी को असुविधा भी हो सकती है। इस प्रकर जिस व्यक्ति ने आलेखन तैयार किया है, उसकी निपुणता में अधिकारी को सन्देह होगा। यदि दोष अनदेखा ही रह गया तो भविष्य में और भी कष्टदायक सिद्ध हो सकता है। अंकों तथा तिथियों में गलती होना सम्भव है। जहाँ गलती होने की सम्भावना है उन अंशों को बड़ी सावधानी से जाँच कर लेनी चाहिए। इस प्रकार के दोष मुख्यतः सारांश सम्बन्धी, भाषा सम्बन्धी व रूपरेखा सम्बन्धी हो सकते हैं।

(7)उचित रूपरेखा- प्रारूप सदैव उसकी अपनी निर्धारित रूपरेखा के तैयार किया जाना चाहिए। ऐसा करने से उसमें कुछ छूट जाने की आशंका नहीं रहती।

(8) भाषा- अपनी बात पूर्णता और स्पष्टता के साथ कहने के लिए भाषा पर पूर्ण अधिकार होना अपेक्षित है।

(9) शैली- प्रारूप लिखने की एक निश्चित और मान्य शैली है। उसमें अकारण किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया जाना चाहिए। सरकारी पत्राचार के अन्तर्गत विविध प्रकार के पत्रों की अलग-अलग अपनी शैली अथवा रूप-विधान होता है।

https://youtu.be/iy4zN5mCfFw

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