मकतब व मदरसा शिक्षा
मुस्लिम कालीन शिक्षक केन्द्र के रूप में मकतब तथा मदरसे प्रचलित थे। मध्यकाल में प्रारम्भिक शिक्षा की व्यवस्था मकतब में होती थी तथा मदरसों में उच्च शिक्षा की व्यवस्था की गई थी।
मकतब-
मकतब अरबी भाषा का शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है उसने लिखा अर्थात् वह स्थान जहाँ लिखने-पढ़ने की शिक्षा दी जाती है। मकतब प्रायः मस्जिदों से जुड़े होते हैं। मकतब में बालक का प्रवेश 4 वर्ष, 4 माह 4 दिन का हो जाने पर ‘बिसमिल्लाह’ रस्म के साथ होती थी। मौलवी के निर्देशन में कुरान की कुछ आयतों को बालक से कहलाया जाता था। इस रस्म के साथ ही बालक की शिक्षा प्रारम्भ हो जाती थी।
मकतब की शिक्षा व्यवस्था-
मकतब में बालकों को वर्णमाला के अक्षरों का ज्ञान कराया जाता था। लिपि का ज्ञान हो जाने के उपरान्त उसे कुरान की आयतें कण्ठस्थ कराई जाती थी। उच्चारण की शुद्धता तथा सुलेख पर विशेष ध्यान दिया जाता था। अरबी, फारसी भाषा के साथ-साथ व्याकरण का ज्ञान कराया जाता था। बालकों को अंकगणित, पत्र-लेखन, अर्जीनवीसी तथा बात-चीत के तौर-तरीकों की शिक्षा दी जाती थी। नैतिक शिक्षा के रूप में बालकों को सेख सादी की प्रसिद्ध पुस्तकों गुलिस्ताँ तथा बोस्ता की किताबें पढ़ाई जाती थीं। पैगम्बरों तथा मुस्लिम फकीरों की कहानियाँ सुनाई जाती थी। सहजादों तथा लड़कियों की शिक्षा प्राय: घरों पर ही होती थी।
शिक्षण विधि-
मकतबों की शिक्षा प्रायः मौखिक ही होती थी। रटने पर विशेष जोर दिया जाता था। सर्वप्रथम बालकों को कलमा और कुरान की आयतें कंठस्थ कराई जाती थी। पिछला पाठ कंठस्थ हो जाने के बाद ही अगला पाठ पढ़ाया जाता था। गिनती तथा पहाड़ों को जोर-जोर से बोलकर सामूहिक रूप से कंठस्थ कराया जाता था।
मदरसे की शिक्षा व्यवस्था
मध्यकालीन शिक्षा में मदरसे उच्च शिक्षा के केन्द्र थे, तत्कालीन मदरसे उच्च शिक्षा के केन्द्र थे मदरसा अरबी भाषा के ‘दरस’ शब्द से बना है। जिसका अर्थ है ‘भाषण देना’ इस प्रकार मदरसा का अर्थ हुआ वह स्थान जहाँ भाषण या व्याख्यान दिया जाता हो। मदरसों में बड़े-बड़े पुस्तकालय होते थे और छात्रावास होते थे। राज्य द्वारा संचालित मदरसों में अध्यापकों की नियुक्ति शासकों की ओर से की जाती थी।
पाठ्यक्रम-मदरसों में धार्मिक तथा लौकिक दोनों प्रकार की शिक्षा दी जाती थी। धार्मिक पाठ्यक्रम के अन्तर्गत कुरान, मुहम्मद साहब की परम्परा, इस्लामी इतिहास, इस्लामी कानून तथा सूफी मत के सिद्धान्त पढ़ाये जाते थे। लौकिक शिक्षा के अन्तर्गत अरबी, फारसी साहित्य, व्याकरण, दर्शन, तर्कशास्त्र, प्रमुख नीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र, कानून, इतिहास, भूगोल, गणित, चिकित्सा शास्त्र, कृषि और ज्योतिष इत्यादि विषयों का ज्ञान कराया जाता था। इसके अतिरिक्त मदरसों में वस्तु-कला, चित्रकला तथा संगीत की उच्च कोटि की शिक्षा दी जाती थी।
शिक्षण विधि-मकतबों की भाँति मदरसों की शिक्षण विधि भी मौखिक ही होती थी। यहाँ प्रायः व्याख्यान प्रणाली का प्रयोग किया जाता था। धर्म दर्शन, तर्कशास्त्र तथा गणित आदि विषयों के पठन-पाठन में तर्क विधि का प्रयोग किया जाता था। हस्तकला, संगीत को प्रायोगिक विधि द्वारा पढ़ाया जाता था। कक्षा राजकीय प्रणाली का प्रयोग भी किया जाता था।
शिक्षा का माध्यम-शिक्षा माध्यम के रूप में अरबी, फारसी भाषाएँ प्रयोग में की जाती थीं। सरकारी नौकरी पाने के लिए फारसी का ज्ञान होना आवश्यक था। इसके अतिरिक्त हिन्दी तथा उर्दू भाषा को भी माध्यम के रूप में प्रयुक्त किया जाता था। अकबर ने हिन्दी भाषा को तथा औरंगजेब ने उर्दू भाषा को प्रोत्साहन दिया था।
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