राजनीति विज्ञान / Political Science

भूमंडलीकरण का अर्थ या वैश्वीकरण का अर्थ | वैश्वीकरण की विशेषतायें | वैश्वीकरण का प्रभाव

भूमंडलीकरण या वैश्वीकरण का अर्थ
भूमंडलीकरण या वैश्वीकरण का अर्थ

भूमंडलीकरण या वैश्वीकरण का अर्थ

भूमण्डलीयकरण शब्द वर्तमान में अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में सुनाई देने लगा है। यह शब्द व्यापार अवसरों की जीवन्तता एवं उनके विस्तार विकास का परिचायक है। भूमण्डलीकरण वास्तव में व्यापारिक क्रिया-कलापों, विशेषकर विपणन सम्बन्धी क्रियाओं का अन्तर्राष्ट्रीयकरण करना है जिसमें सम्पूर्ण विश्व बाजार को एक ही क्षेत्र के रूप में स्वीकार किया जाता है। दूसरे शब्दों में भूमण्डलीयकरण वह प्रक्रिया है जिसमें विश्व बाजारों के बीच पारस्परिक निर्भरता पैदा होती है और व्यापार देशों की सीमाओं में सीमित न रहकर विश्व व्यापार में विद्यमान तुलनात्मक लागत लाभ अवस्थाओं का विदोहन करने की दिशा में अग्रसर होता है।

वर्तमान में सर्वाधिक प्रयुक्त होने वाले शब्द ‘वैश्वीकरण’ को लेकर विद्वानों में काफी मतभेद पाया जाता है। विद्वानों ने अपने-अपने दृष्टिकोण के आधार पर वैश्वीकरण को परिभाषित करने का प्रयत्न किया है-

एडवर्ड एस. हसन के अनुसार वश्वीकरण विभिन्न सीमाओं के आर-पार कार्पोरेट (कम्पनियों) के विस्तार की एक सक्रिय प्रक्रिया भी है तथा साथ ही पार सीमा सुविधाओं और आर्थिक सम्बन्धों की एक संरचना भी है जिसका निरन्तर विकास हो रहा है तथा जो जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है वैसे-वैसे परिवर्तित हो रही है।”

वैयलिस तथा स्मिथ के शब्दों में- “वैश्वीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा अपेक्षाकृत सामाजिक सम्बन्धी दूरी विहीन तथा सीमा विहीन गुण ग्रहण करते हैं।”

डॉ. विमल जालान के अनुसार- “भूमण्डलीकरण शब्दों का प्रयोग अनेक प्रकार से हुआ है एक अर्थ तो शाब्दिक है कि अब राष्ट्रों के मध्य भौगोलिक दूरी अर्थहीन हो चुकी है। दुनिया बहुत सिमट गई है और कोई भी देश अपनी हानि करके ही शेष विश्व से स्वयं को अलग-थलग रख सकता है। भूमण्डलीकरण का दूसरा अर्थ पूर्णतः विपरीत निकाला जा रहा है। इसके अनुसार यह देशी हितों के स्थान पर दूसरे देशों और बहुराष्ट्रीय निगमों के हितों को सर्वोच्च रखने वाले नीतिगत परिवर्तन का नाम है।”

संक्षेप में, भूमण्डलीय राष्ट्रों की राजनीतिक सीमाओं के आर-पार आर्थिक आदान प्रदान की प्रक्रियाओं और उनके प्रबन्धन का प्रवाह है। विश्व अर्थव्यवस्था में आया खुलापन, आपसी मेलजोल और परस्पर निर्भरता के विस्तार को भूमण्डलीय कहा जाता है।

भूमण्डलीय से तात्पर्य है उन्मुक्त बाजार एवं प्रतिस्पर्द्धा (Open market and com petition): राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का विश्व अर्थव्यवस्था के साथ समायोजन (Adjustment of national economy with the world economy); राष्ट्रीय बाजारों को अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में परिवर्तित करना। (It is conversion of a national market into international one whic facilitiates the International mobility of factors of production or commodities thereby taking the best benefit of the factors of production)। दूसरे शब्दों में इसे राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ एकीकरण की प्रक्रिया कहा जा सकता है।

वैश्वीकरण की विशेषतायें (Characteristice of Globalization)

वैश्वीकरण क्या है? यद्यपि इस प्रश्न का आंशिक रूप से उत्तर वैश्वीकरण के अर्थ में दिया गया है लेकिन इसका पूर्ण रूप से उत्तर वैश्वीकरण की प्रकृति अथवा विशेषताओं के मध्य से ही प्राप्त होता है, जिसका वर्णन निम्न प्रकार से है-

(1) विचारधारा एवं संघर्ष का अभाव (Absence of Conflict and Ideology ) – वैश्वीकरण की यह मान्यता है कि विश्व में विशेष विचारधारा का अस्तित्व नहीं है। विश्व में न तो शुरू से ही साम्यवाद की विचारधारा और न ही पूँजीवाद की विचारधारा स्थापित हो सकती है। बल्कि वैश्वीकरण ने पूँजीवाद और साम्यवाद के अवगुणों को त्याग कर इनके अनिवार्य गुणों को अपना लिया है और इस प्रकार से कोई वैचारिक संघर्ष नहीं है।

( 2 ) एक विस्तृत प्रक्रिया (A Comprehensive Process ) – वैश्वीकरण को यद्यपि विचारधारा और अवधारणा के रूप में भी परिभाषित किया जाता है लेकिन वास्तव में वैश्वीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जो सन् 1990 के बाद से लगातार प्रगतिशील है। यह प्रक्रिया किसी एक क्षेत्र से सम्बन्धित नहीं है, अपितु एक व्यापक प्रक्रिया है जो सामाजिक, आर्थिक, राजनीति, औद्योगिक, व्यापारिक आदि क्षेत्रों से जुड़ी हुई है।

( 3 ) शक्ति गुट का अन्त (End of Power Bloc)- वैश्वीकरण का यह भी लक्षण है कि इसमें किसी प्रकार का कोई शक्ति गुट नहीं है। यह शीत युद्ध अथवा गुटों की व्यवस्था नहीं है बल्कि यह एक ऐसी संरचनात्मक प्रक्रिया है जिसमें प्रत्येक राष्ट्र का भाग है। वारसा पैक्ट के अन्त में शक्ति गुटों के स्थान पर सामूहिक सुरक्षा की प्रणाली को जन्म दिया गया है। वारसा पैक्ट (Warshave Pact) के देश अपनी सुरक्षा के लिए नाटो पर ही निर्भर है।

( 4 ) आर्थिक सहयोग (Economic Co-operation) – वैश्वीकरण की प्रक्रिया ने प्रायः राष्ट्रों को अधिक से अधिक आर्थिक सहयोग के लिए प्रेरित किया है। जिन राष्ट्रों के मध्य परस्पर सीमा और अन्य विवाद बने हुए हैं, उनमें भी संघर्ष के मामलों को अलग करके आर्थिक सहयोग पर बल दिया गया है।

(5) राष्ट्रीय सीमाओं का महत्त्व नहीं (No Improtance to National Bound aries)- वैश्वीकरण के अन्तर्गत राष्ट्रीय सीमाओं का महत्त्व अब नहीं रहा है। व्यक्तियों और वस्तुओं के आवागमन पर प्रतिबन्धों का अभाव देखने को मिलता है।

( 6 ) वैश्वीकरण की आवश्यकतायें (Needs of Globalization)- वैश्वीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें संचालन एवं नियमन के लिए पूँजी, व्यापार और सूचना के मुक्त आदान-प्रदान तथा स्थानीय और राष्ट्रीय बाजार के उदारीकरण की न्यूनतम आवश्यकताओं पर जोर दिया गया है।

(7) सूचना तकनीक (Information Technology)- वैश्वीकरण में हमें सूचना तकनीक का अधिक महत्त्व देखने को मिलता है। राष्ट्र इस बात के लिए प्रयत्नशील है कि वे और उनके नागरिकों और अन्य राष्ट्रों तथा उनके नागरिकों के मध्य अधिक से अधिक सूचनाओं का अदान-प्रदान हो ।

(8) वैश्वीकरण के साधन (Tools of Globalization)- वैश्वीकरण की प्रक्रिया संभव बनाने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund), विश्व बैंक (World Bank), बहु-राष्ट्रीय निगम (Multi-national Corporation) आदि प्रमुख साधन माने गये हैं।

( 9 ) सार्वभौमिक मूल्यों की स्वीकार्यता (Acceptance of Universal Values)- वैश्वीकरण में यह स्वीकार किया गया है कि सभी राष्ट्रों की समस्याओं और इन समस्याओं के समाधान सार्वभौमिक है। प्रत्येक राष्ट्र को मानव अधिकार, पर्यावरण सुरक्षा, नारीवाद, बाल-कल्याण, उदारीकरण, मुक्त व्यापार, प्रौद्योगिकी, उच्च तकनीक जैसे- सार्वभौमिक मूल्यों को स्वीकार करना चाहिये।

(10) व्यक्ति एवं वैश्वीकरण (Individual and Globalization) – वैश्वीकरण व्यक्ति को किसी एक वर्ग, समाज एवं कालोनी से अधिक नहीं है। व्यक्ति को राष्ट्रों में इसी प्रकार से विवरण करना चाहिए जिस प्रकार से वह किसी नगर के विभिन्न भागों में विचरण करता है।

(11) वैश्वीकरण एवं ग्रुप-7 (Globalization and Group-7)- यद्यपि वैश्वीकरण प्रायः कमोवेश सभी राष्ट्रों के द्वारा प्रयत्क्ष अथवा परोक्ष रूप से स्वीकार किया गया है, लेकिन वैश्वीकरण के सबसे बड़े समर्थक देश अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, इटली, फ्रांस, कनाडा और जापान (G-7) को माना गया है। औद्योगिक रूप से विकसित ये राष्ट्र वैश्वीकरण की प्रक्रिया को प्रतिपादित करने के लिए प्रतिबद्ध है।

यद्यपि वैश्वीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसकी प्रकृति में निरन्तर परिवर्तन हो रहे हैं लेकिन फिर भी उपरोक्त लक्षणों एवं विशेषताओं के माध्यम से इसकी प्रकृति को समझा जा सकता है। वैश्वीकरण कोई चिन्तन अथवा विचारधारा नहीं है अपितु यह एक प्रयत्नशील प्रक्रिया है जिसमें विश्व की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक समस्याओं के सार्वभौमिक समाधान खोजने का प्रयास किया गया है।

वैश्वीकरण का प्रभाव (Impact of Globalization)

अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में वैश्वीकरण के निम्न प्रभाव दृष्टिगोचर होते हैं-

(1) वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप क्षेत्रीय संगठनों का प्रभाव कम हुआ है।

(2) वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), विश्व बैंक (World Bank), विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation) आदि की भूमिका प्रभावशाली हुई है।

(3) वैश्वीकरण ने अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में आर्थिक पक्ष की सर्वोच्चता को स्थापित किया है।

(4) वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप विचारधाओं की भूमिका कम हो गई है और उदारवादी लोकतांत्रिक विचारधारा की सर्वोच्चता को स्वीकार किया गया है।

(5) वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप राष्ट्रों की विदेश नीतियाँ सार्वभौमिक मापदण्डों के अनुसार परिवर्तित हो रही हैं।

(6) वैश्वीकरण ने राष्ट्रों को अधिक से अधिक उत्पादन करने के लिए प्रेरित किया। तृतीय विश्व के देश अधिक उत्पादन के द्वारा ही गरीबी के समस्या को समाप्त कर सकते हैं।

(7) वैश्वीकरण अन्तराष्ट्रीय राजनीति के क्षेत्र में खेल सिद्धान्त, संचार प्रतिभाव आदि सिद्धान्तों की ओर अध्ययनकर्ताओं का रुझान बढ़ा है।

(8) वैश्वीकरण ने लोगों के दृष्टिकोण में परिवर्तन किया है। लोगों की सोच विकसित देशों की संस्कृति की अनुपालना सी हो गयी है।

(9) वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप वस्तुओं और व्यक्तियों के आवागमन में वृद्धि हुई है।

(10) वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप अमेरिकन निगमों के साथ-साथ अध्ययन के क्षेत्र में भी अमेरिकन विचारकों का प्रभुत्व स्थापित हुआ।

क्या वैश्वीकरण भारत के हित में है? 

वैश्वीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा अपेक्षाकृत सामाजिक सम्बन्ध दूरी रहित तथा सीमा रहित गुण ग्रहण करते हैं। दूसरी ओर वह अन्तर्राष्ट्रीय सामाजिक क्षेत्रों के मध्य सम्पकों को मजबूत बनाती है। जहाँ पर अन्तर्राष्ट्रीय राष्ट्रों के मध्य सहयोग के क्षेत्र तथा गहनता को शक्तिशाली बनाने की प्रक्रिया है, वहाँ वैश्वीकरण का अर्थ है, मुक्त विश्व व्यवस्था जिसमें मुक्त विश्व व्यापार, विश्व बाजारों में पहुँच की स्वतंत्रता तथा विश्व के सभी लोगों के मध्य सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक सम्बन्धों का विकास करने की प्रक्रिया। वैश्वीकरण केवल शुद्ध आर्थिक प्रक्रिया या संचारों से सम्बन्धित प्रक्रिया नहीं है बल्कि विश्व के सभी भागों में रहने वाले लोगों के मध्य सामाजिक-आर्थिक-औद्योगिक व्यापारिक सांस्कृतिक सम्बन्धों के बढ़ाने की व्यापक प्रक्रिया है। इसमें वह प्रक्रिया भी शामिल रहती है जो विश्व को एक अन्तर्सम्बन्धित तथा आत्मनिर्भर गाँव में परिवर्तित करने के लिए आवश्यक मानी जाती है। यह एक विचारधारा भी है जो न केवल सबके लिए स्वतंत्रता, अन्तर्राष्ट्रीयवाद, सब लोगों के लिए मुक्त व्यापार और मुक्त आर्थिक सम्बन्धों के लाभ तथा इसके साथ-साथ उत्पादकता तथा कुशलता को बढ़ाने की भी वकालत करती है। अतः भारत जैसे विकासशील देश हेतु वैश्वीकरण की नीति उपयुक्त है।

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