धर्म के पहलू (Aspects of Dharma)
1. सार्वभौमिक पहलू (Universal Aspect)
विश्व में अनेकों ऐसे नैतिक कर्तव्य हैं। जिन्हें देश के किसी भी व्यक्ति पर लागू किया जा सकता है। इन नियमों पर नियम, काल, देश, जाति प्रजाति की भिन्नता का प्रभाव नहीं पड़ता है। गौतम ने अपने धर्म सूत्रों में धर्म के सार्वभौमिक स्वरूप की व्याख्या करते हुए आठ प्रकार के आत्मगुणों का वर्णन किया है। इस प्रकार सृष्टि की प्रत्येक वस्तु धर्म पर ही आधारित है।
धर्म को मानव धर्म की संज्ञा भी प्रदान की जा सकती है। मानव धर्म का आशय उस धर्म से है जो जन्म, जाति, वर्ग तथा वर्ण आदि का विचार किए बगैर सम्पूर्ण मानव जाति पर लागू किया जा सकता है।
2. सामाजिक पहलू (Social Aspect)
सामाजिक पहलू की व्याख्या निम्न प्रकार की गयी है –
(i) वर्ण धर्म – धर्म के आदर्शों को प्रत्येक वर्ण के व्यक्ति पर लागू किया जा सकता है तथा धर्मशास्त्रों ने प्रत्येक वर्ण के व्यक्ति के लिए कुछ निश्चित आदर्शों एवं कर्तव्यों का निर्धारण किया है।
(ii) कुल धर्म- पारिवारिक सीमा के अन्तर्गत उससे सम्बन्धित नियमों एवं उत्तरदायित्वों का पालन करना ही कुल धर्म कहलाता है।
(iii) स्वधर्म- समाज में प्रत्येक सदस्य का अपने पद एवं स्थिति के अनुसार आचरण करना तथा कर्तव्य का पालन करना ही स्वधर्म कहलाता है।
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