अनुकरणात्मक जादू क्या है ?
श्री फ्रेंजर के अनुसार सर्वप्रथम आदिम मनुष्यों ने जादू-टोने के द्वारा प्रकृति पर नियन्त्रण करके अपने उद्देश्यों की पूर्ति करने का प्रयत्न किया और असफल होने पर यह मान लिया कि संसार’ में उनमें भी कोई अधिक शक्तिशाली है जो उनके प्रयत्नों को व्यर्थ करता है और इस कारण उस शक्ति पर जादू-टोने के द्वारा शासन करना कदापि सम्भव नहीं। इस धारणा के फलस्वरूप ही वह उस शक्ति पर शासन करने की इच्छा त्यागकर, उसकी आराधना करने लगे और इसी से धर्म की उत्पत्ति हुई। संक्षेप में श्री फ्रेजर के अनुसार धर्म की प्राथमिक अवस्था जादू टोना था। जादू-टोना से निराश होकर ही लोगों ने धर्म की शरण ली थी। इस प्रकार धर्म प्रकृति के द्वारा पराजित मनोवृत्ति का ही परिणाम है। फ्रेजर ने जादू के दो प्रकार बताये हैं-
(1) अनुकरणात्मक जादू (2) सांसर्गिक जादू
(1) अनुकरणात्मक जादू
इस प्रकार का जादू इस मान्यता पर आधारित है कि समान क्रिया के समान परिणाम उत्पन्न होते हैं। जब एक प्रकार की विशिष्ट क्रिया की जाती है तो उसी प्रकार के परिणाम प्राप्त होते है। इस प्रकार यह समानता के नियम पर आधारित है। इसे होम्योपैथिक या बिम्बवादी जादू भी कहते हैं डा. एस. सी. दुबे ने लिखा है कि गेलेलारी समाज में जब युवक अपनी प्रमिका के घर मिलने जाता है तब रमशान की मिट्टी लेकर जाता है ताकि उसके माता-पिता गहरी नींद में सोते रहें तथा वह बिना किसी बाधा के अपनी प्रेमिका से बात कर सके।
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