छात्रावास व्यवस्था के लाभ
हम जानते हैं कि समाज में जो भी व्यवस्था लागू की जाती है वह किसी न किसी रूप में समाज के लिये लाभदायक सिद्ध होती है। इसी प्रकार छात्रावास व्यवस्था छात्रों को आत्मनिर्भर बनाने का कार्य करती है। छात्रावास में, विद्यार्थी अपने गुरुजनों के सम्पर्क में हर समय रहता है इससे उसको बात करने का तरीका आता है। ज्ञान की वृद्धि होती है। चरित्र निर्माण अथवा व्यक्तित्व के निर्माण में छात्रावास अति आवश्यक है, यहाँ पर कड़े अनुशासन में नियमित जीवन व्यतीत करने से आज्ञापालन व नियमितता के गुण आते हैं।
विद्यार्थी का एक बना हुआ व सधा जीवन बन जाता है, बंधी हुयी दिनचर्या से चरित्र उत्कृष्ट कोटि का होता है। छात्रावास में सभी विद्यार्थी एक बड़े परिवार के समान रहते हैं, प्रेम भाईचारा व सहयोग की भावनायें स्फुटित होती हैं, एक-दूसरे के दुःखों में सहानुभूति पैदा होती है। एक दूसरे की आलोचना से गुणों व दोषों की विवेचना की जाती है सबसे बड़ी बात यह होती है कि विद्यार्थी दूसरों की सहायता के बिना कठिनाइयों का सामना करना सीखते हैं।
छात्रावास के जीवन की अनेक खूबियाँ हैं, छात्रावास में रहने वाले विद्यार्थियों को अध्ययन के लिये बहुत सुविधायें मिलती हैं, उनको कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है। इसलिये वे अनुशासन सीखते हैं। उनको प्रत्येक काम एक निश्चित समय पर करना पड़ता है। इस प्रकार वे नियमित आदतें डालते हैं। वे एक-दूसरे को एक परिवार के सदस्य समझते हैं। वे एक-दूसरे के सुख-दुःख में हाथ बटाना सीखते है। छात्रावास चरित्र निर्माण के लिये एक आदर्श स्थान है। छात्रावास का महत्वपूर्ण लाभ यह है कि यह वास्तविक जीवन के लिये उपयोगी प्रशिक्षण देता है जिससे इसमें रहने वाले विद्यार्थी अनुशासित रहकर अपने जीवन में आगे बढ़ सकें।
छात्रावास व्यवस्था से हानि
समाज में लागू होने वाली व्यवस्थायें लाभकारी भी होती हैं और हानिकारक भी, इसी तरह छात्रावास व्यवस्था के लाभ होने के साथ-साथ कुछ हानियाँ भी होती हैं, कोई भी चीज पूर्णतः अच्छी नहीं होती, अतः छात्रावास के जीवन में भी कुछ त्रुटियाँ हैं। छात्रावास में छोटे बच्चे और बच्चियाँ अपने माता-पिता एवं परिवार के अन्य सदस्यों के प्यार एवं संरक्षण से वंचित हो जाते हैं। इसके अलावा छात्रावास में विद्यार्थी प्रायः बहुत खराब भोजन पाते हैं। भोजन रसोइयों द्वारा तैयार किया जाता है और वे ही उसकी व्यवस्था भी करते हैं। वे सस्ता और खराब सामान खरीदते हैं। वे घर की तरह विविध व्यंजन तैयार नहीं कर सकते हैं। अतः छात्रावास जैसी उच्च संस्था भी बिना दोषों के नहीं है, चाँद में भी दाग होता है, छात्रावास में छोटे-बड़े सभी प्रकार के विद्यार्थी प्रवेश करते हैं, बड़े विद्यार्थी की प्रवृत्तियाँ छोटे विद्यार्थियों से भिन्न होती हैं। अच्छा उदाहरण स्थापित करने के विपरीत वे छात्रों को अनियमित व उद्दण्ड बनाने का प्रयास करते है, स्वयं के दुर्गुण दूसरों को भी सिखा देते हैं। प्रायः छात्रावास के अधिकारी अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी तरह से नहीं निभाते हैं, उनके निरीक्षण के अभाव में छात्र उद्दण्ड और शरारती हो जाते हैं, अकेले रहने से छात्र स्वेच्छाचारी और असामाजिक हो जाते हैं, यदि छात्रावास की देखरेख करने वाले अधिकारियों का व्यवहार नियंत्रित नहीं होगा तो छात्रावास में रहने वाले विद्यार्थी भी अनुशासित नहीं होंगे। अतः अधिकारियों को चाहिये कि वे अपने कर्तव्यों का पालन कर छात्रावास का पुनीत नाम ऊँचा रखें व उनके चरित्र को ऊँचे से ऊँचा बनाने का प्रयास करें।
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