संस्कृति एवं व्यक्तित्व के बीच के संबंध
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। मजूमदार ने तो संस्कृति को ही मनुष्य का जीवन माना है, संस्कृति एवं व्यक्ति के व्यक्तित्व के बीच अटूट संबंध है, संस्कृति के बिना व्यक्तित्व का निर्माण नहीं हो सकता है क्योंकि संस्कृति एक सीखा हुआ व्यवहार है, संस्कृति ही मानव के व्यवहारों को नियंत्रित करती हैं। मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति संस्कृति के माध्यम से करते हैं। संस्कृति में धर्म, कला, विज्ञान, विश्वास, रीति-रिवाज, रहन-सहन तथा मानव द्वारा निर्मित सभी वस्तुएं सम्मिलित की जाती है। यही वस्तुएं उसका सांस्कृतिक पर्यावरण कहलाती हैं।
प्रत्येक समाज की अपनी सामूहिक जीवन प्रणाली होती हैं। उसकी कला, ज्ञान, विश्वास आदि विशेष ढंग के होते है जिसे हम सामान्य अर्थों में संस्कृति के अन्तर्गत रख सकते हैं।
चरित्र निर्माण अर्थात् व्यक्तित्व का निर्माण एक ऐसी चीज है जो समाज में ही संभव है। समाज में रहकर ही मानव सांस्कृतिक प्रतिमानों को सीखता है, यह एक विशेष प्रकार के सांस्कृतिक नियमों को अपना लेता है और इसी के अनुरूप अपने चरित्र का निर्माण करता है। व्यक्तित्व का विकास भी समाज की ही देन है। व्यक्तित्व से हमारा अर्थ केवल व्यक्ति की बाह्य बनावट से नहीं है, बल्कि उसका आन्तरिक स्वभाव, उसकी आदतों, उसकी मनोधारणाओं तथा उसके विश्वासों एवं मूल्यों से भी है। व्यक्तित्व की कुछ आदतें प्रबल होती है तथा कुछ उन्हीं पर आधारित । व्यक्तित्व में हमारी जो प्रबल मनोधारणायें होती हैं, उनमें कोई भी परिवर्तन सरलता से नहीं हुआ करता है। व्यक्तित्व के जितने भी गुण होते हैं, उनमें से हम एक को भी जन्म से अपने साथ नहीं लाते बल्कि पूरा व्यक्तित्व ही सामाजिक उपलब्धि होती है। हमारे व्यक्तित्व का निर्माण सीखे हुये व्यवहारों से होता है अर्थात् हम जो अपने आस-पास के वातावरण से, प्रथाओं से, परम्पराओं से सीखते है उसे ही अपने व्यवहारों में ढाल लेते हैं, अच्छे व्यवहारों को सीखने से हमारा व्यक्तित्व भी अच्छा रहता है। हमारे स्व का विकास भी हमारे व्यक्तित्व का आधार है तथा साथ ही हमारी समाजीकरण की प्रक्रिया को संभव बनाता है।
हर एक इंसान एक पत्थर की तरह है, जिसमें एक सुन्दर मूर्ति छिपी होती है, जिसे सिर्फ एक अच्छे शिल्पी की आँखें देख पाती हैं या अच्छे संस्कार ही उसके व्यक्तित्व को निखार पाते हैं। वह शिल्पी उसे तराश कर एक सुन्दर मूर्ति में बदल सकता है क्योंकि मूर्ति तो पहले से ही पत्थर में मौजूद होती है, शिल्पी तो बस उस फालतू पत्थर को, जिससे वह मूर्ति ढकी होती। है, एक तरफ कर देता है और सुन्दर मूर्ति प्रकट हो जाती है। माता-पिता, (Parents) शिक्षक (Teacher), संस्कृति (Culture) और समाज (Society) किसी भी इंसान को इसी प्रकार संवारकर खूबसूरत व्यक्तित्व (Personality) प्रदान करता है।
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