सामाजिक मानवशास्त्र की परिभाषा
सामाजिक मानवशास्त्र की परिभाषा देने से पूर्व हमें मानवशास्त्र के अर्थ को समझना अनिवार्य है। मानवशास्त्र अंग्रेजी के पर्यायवाची शब्द Anthropology का हिन्दी रूप है। यह ग्रीक भाषा के दो शब्दों ‘Anthropos और Logos‘ का मेल है। “एन्थ्रोपोस” का अर्थ है मानव और लोगोस का अर्थ है शास्त्र या विज्ञान। इस प्रकार मानवशास्त्र का अर्थ मनुष्य से संबंध रखने वाला विज्ञान है। इसको दो भागों में विभक्त किया गया है- भौतिक या शारीरिक मानवशास्त्र (Physical Anthropology) तथा सांस्कृतिक मानवशास्त्र (Cultural Anthropology) | सांस्कृतिक मानवशास्त्र को पुनः दो भागों में विभाजित किया जा सकता है – प्रागैतिहासिक पुरातत्व विज्ञान (Prehistoric Anthropology) तथा सामाजिक मानवशास्त्र (Social Anthropology) । शारीरिक मानवशास्त्र की अपेक्षा सांस्कृतिक मानवशास्त्र की दूसरी उपशाखा अर्थात् सामाजिक मानवशास्त्र, समाजशास्त्र के अधिक नजदीक है। रेडक्लिफ ब्राउन ने सामाजिक मानवशास्त्र की परिभाषा करते हुये लिखा है कि, “सामाजिक मानवशास्त्र समाजशास्त्र की वह शाखा है जोकि आदिम समाजों का अध्ययन करती है। “
इसी प्रकार इवान्स प्रिटचार्ड के अनुसार, “सामाजिक मानवशास्त्र समाजशास्त्रीय अध्ययनों की एक शाखा मानी जा सकती है – वह शाखा जो कि मुख्यतः अपने को आदिम समाजों के अध्ययन में लगाती है। इनके अनुसार सामाजिक मानवशास्त्र सामान्यतया संस्थागत स्वरूपों जैसे परिवार, नातेदारी व्यवस्था, राजनैतिक संगठन, वैधानिक विधियाँ, धार्मिक विश्वास इत्यादि में सामाजिक व्यवहार तथा इन संस्थाओं में पारस्परिक संबंधों का अध्ययन करता है, यह इन सबका अध्ययन उन समकालीन या ऐतिहासिक समाजों में करता है जहाँ इस प्रकार के अध्ययन के लिये पर्याप्त सूचनायें उपलब्ध हों।
सामाजिक मानवशास्त्र की विषय-वस्तु
सामाजिक मानवशास्त्र मानवीय समाज का संपूर्ण अध्ययन करता है इसलिये इस शास्त्र की विषय-वस्तु मानवों से संबंधित है। सुविधा के दृष्टिकोण से इसे निम्नलिखित विषय-वस्तु में विभाजित किया जाता है-
1. जैविकीय मानवशास्त्र – मानवशास्त्र को वैज्ञानिक रूप प्रदान करने वाली विषय-वस्तु में इसका स्थान सर्वोपरि है। इसके अंतर्गत प्राचीन मानव का अध्ययन किया जाता है। इसके अंतर्गत कई शाखाओं का अध्ययन किया जाता है। ये शाखायें क्रमशः शारीरिक मानवविज्ञान, जीव विज्ञान, प्राणिविज्ञान, प्राकृतिक विज्ञान आनुवंशिकी मानव विज्ञान आदि।
2. सामाजिक मानवशास्त्र- एक विशेष समुदाय/समूह जिसमें आपस में भाषा, समाज संस्कृति और आर्थिक समानता पाई जाती है। ऐसे विशेष समुदाय को नृजातीय समुदाय कहा जाता है। विशेष नृजातीय समुदाय के अध्ययन के लिये सामाजिक मानवशास्त्र का विकास किया गया है। जिसके अंतर्गत परिवार, विवाह, वंशावली, रीति-रिवाज, परम्परायें और भाषा आदि ।
3. प्रागैतिहासिक मानवशास्त्र- प्रागैतिहासिक मानवशास्त्र का मानव या मनुष्यों से घनिष्ठ संबंध है। इतिहास के दो अंग हैं। एक वह, जो लिखित है दूसरा वह, जो अलिखित है। लिखित का तात्पर्य उस इतिहास से है जो लिपिबद्ध हो चुका है अलिखित इतिहास वह है जिसकी प्राप्ति मानव के प्राचीन प्रस्तारित अस्थियों द्वारा होती है। इतिहास का वह अंग जो मनुष्य के प्रस्तारितों को खोज कर मानव के इतिहास के क्षेत्र को विकसित करता है, उसे प्रागैतिहासिक मानव शास्त्र कहते हैं।
4. भाषाई मानवशास्त्र- भाषाई मानवशास्त्र में मानवों के द्वारा बोले जाने वाली भाषाओं – का तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है। विश्व के प्राचीन भाषा या वर्तमान भाषा के शब्द एक-दूसरे से मिलते-जुलते हैं। जैसे संस्कृत में दुहिता, अंग्रेजी में डॉटर, पर्शिया में दुखतर आदि। इन F समानता के आधार पर यह पता लगाया जाता है कि समान शब्दों वाली भाषाओं को बोलने वाले व्यक्ति किसी काल में एक ही स्थान पर निवास करते होंगे।
सामाजिक मानवशास्त्र का विषय क्षेत्र
सामाजिक मानवशास्त्र का क्षेत्र मानव संस्कृति और समाज है, जैसे परिवार, नातेदारी व्यवस्था, राजनैतिक संगठन, विधि, धार्मिक मत आदि। इस संस्था में परस्पर संबंधों का भी अध्ययन किया जाता है। ऐसा अध्ययन समकालीन समाजों में या ऐतिहासिक समाजों में किया जाता है। सामान्यतः सामाजिक मानवशास्त्री आदिम संस्कृतियों में काम करते हैं इसका अर्थ यह नहीं है कि आदिम समाज दूसरों से हेय है। आदिम समाज में जो जनसंख्या, क्षेत्र, वाह्य संपर्क आदि की दृष्टि से छोटे और सरल हो तथा तकनीकी दृष्टि से पिछड़े हुये हो। आदिम जातियों पर विशेष ध्यान देने के कई कारण हैं। कुछ मानवशास्त्री संस्कृति के विकास का पता लगाने के क्रम में आदिम जातियों का अध्ययन करते थे। ऐसा समझा जाता था कि उन समाजों में ऐसी ही संस्थायें पाई जाती हैं जो दूसरे समाजों में प्राचीनकाल में पाई जाती थीं। आदिम समाजों में सामाजिक बहुरूपता के अनेक उदाहरण मिल सकते हैं उन पर आधारित जो संबंध बनेंगे वे अधिक दृढ़ और व्यापक होंगे। आदिम समाज शीघ्रता से बदलते जा रहे हैं। लुप्त होने के पूर्व उनका अध्ययन आवश्यक है।
सामाजिक मानवशास्त्र का सबसे प्रधान अंग सामाजिक संगठन है जिसमें उन संस्थाओं का विवेचन होता है जो समाज में पुरुष और स्त्री का स्थान निर्धारित करते हैं और उनके व्यक्तिगत संबंधों को दिशा देते है। मोटे तौर पर ऐसी संस्थायें दो प्रकार की होती हैं जो रिश्ते से उत्पन्न होती है और जो व्यक्तियों के स्वतंत्र संपर्क से उत्पन्न होती हैं। रिश्तेदारी की संस्थाओं में परिवार और गोत्र आते हैं। दूसरे प्रकार की संस्थाओं में संस्थाबद्ध मैत्री गुप्त समितियाँ, आयु समूह आते हैं। सामाजिक स्थिति पर आधारित समूह भी इसी के अंतर्गत आते है। सामाजिक संगठन कुछ आधारभूत कारकों पर बना होता है जैसे आयु, यौन भेद, रिश्तेदारी स्थान, सामाजिक स्थिति, राजनैतिक स्थिति, व्यवसाय, ऐच्छिक समितियाँ, जादूवर्ग की प्रक्रियायें आदि।
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