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पाठ्यचर्या ( Curriculum) क्या है? पाठ्यचर्या का अर्थ, परिभाषा Curriculum in Hindi

पाठ्यचर्या (Curriculum) क्या है

पाठ्यचर्या ( Curriculum) क्या है? पाठ्यचर्या का अर्थ, परिभाषा

पाठ्यचर्या ( Curriculum) क्या है? पाठ्यचर्या का अर्थ, परिभाषा

पाठ्यचर्या ( Curriculum) क्या है? पाठ्यचर्या का अर्थ, परिभाषा Curriculum in Hindi – पाठ्यचर्या शिक्षा का आधार है । पाठ्यचर्या द्वारा शिक्षा के उद्देश्यों की पूर्ति होती है। यह एक ऐसा साधन है जो छात्र तथा अध्यापक को जोड़ता है। अध्यापक पाठ्यचर्या के माध्यम से छात्रों के मानसिक, शारीरिक, नैतिक, सांस्कृतिक, संवेगात्मक, आध्यात्मिक तथा सामाजिक विकास के लिए प्रयास करता है। पाठ्यचर्या द्वारा छात्र को जीवन जीने की शिक्षा प्राप्त होती है। इससे अध्यापकों को दिशा-निर्देश प्राप्त होते हैं। छात्रों के लिए लक्ष्य निर्धारित होने से उनमे एकाग्रता आती है । वे नियमित रहकर कार्य करते हैं । पाठ्यचर्या एक प्रकार से अध्यापक के पश्चात् छात्रों के लिए दूसरा पथ प्रदर्शक है । पाठ्यचर्या में किसी भी कक्षा के निहित विषयों के साथ-साथ स्कूल कार्यक्रम आते हैं। पाठ्यचर्या के सन्दर्भ में सबसे लोकप्रिय परिभाषा कनिंघम की मानी जाती है।

कनिंघम के अनुसार– “पाठ्यचर्या अध्यापक रुपी कलाकार (artist) के हाथ में वह साधन (tool) है जिसके माध्यम से वह अपने पदार्थ रुपी शिष्य (material) को अपने कलागृह रुपी स्कूल (studio) में अपने आदर्श (उद्देश्य) के अनुसार विकसित अथवा रूप (mould) प्रदान करता है।” इसमें संदेह नहीं कि कलाकार को अपने पदार्थ को अपने आदर्शों के अनुरूप ढालने की बहुत स्वतंत्रता है, क्यों कि कलाकार का पदार्थ निर्जीव है, परन्तु स्कूल में अध्यापक का पदार्थ अर्थात् छात्र सजीव है। पुराने समय में जब आवश्यकताएँ सीमित थीं, साधन सीमित थे, तब अध्यापकों को अपने पदार्थ यानि कि छात्रों को नया रूप देने में पूरी स्वतंत्रता थी, परन्तु अब बदलती हुई परिस्थितियों में अध्यापक की यह भूमिका भी बदल गयी है। फिर भी निश्चय ही अध्यापक के हाथ में पाठ्यचर्या बहुत ही महत्वपूर्ण साधन है।

पाठ्यचर्या: अर्थ

पाठ्यचर्या शैक्षिक व्यवस्था का अनिवार्य एवं महत्वपूर्ण अंग है । पाठ्यचर्या की अवधारणा के सन्दर्भ में प्रायः विद्वानों में एकमत राय नहीं है । पाठ्यचर्या को लोग पाठयचर्या (syllabus) या विषय वस्तु (course of study) या जैसे नामों से भी संबोधित करते हैं । पाठ्यचर्या के लिए प्रचलित ये शब्द अलग-अलग अर्थ और सन्दर्भो को प्रकट करते हैं। अतः पाठ्यचर्या को शाब्दिक, संकुचित और व्यापक तीनों अर्थों में समझने की जरुरत है। तब इसके सही स्वरूप को हम समझ सकते हैं।

पाठ्यचर्या शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है- पाठ्य एवं चर्यापाठ्य का अर्थ है- पढ़ने योग्य अथवा पढ़ाने योग्य और चर्या का अर्थ है – नियम पूर्वक अनुसरण । इस प्रकार पाठ्यचर्या का अर्थ हुआ पढ़ने योग्य (सीखने योग्य) अथवा पढ़ाने योग्य (सिखाने योग्य) । विषय वस्तु और क्रियाओं का नियम पूर्वक अनुसरण । पाठ्यचर्या के लिए अंग्रेजी में करीकुलम (Curriculum) शब्द का प्रयोग किया जाता है । यह शब्द लैटिन भाषा के क्यूरेरे (Currere) से बना है जिसका अर्थ है- रनवे (Runway) या रेस कोर्स (Race Course) अर्थात् दौड़ का रास्ता या दौड़ का क्षेत्र अर्थात् किसी निश्चित लक्ष्य तक पहुँचने के लिए मार्ग पर दौड़ना या ऐसे भी कह सकते हैं कि –Curriculum means a course to be run for reaching a certain goal. इस प्रकार शाब्दिक अर्थ में पाठ्यचर्या छात्रों के लिए दौड़ का रास्ता या दौड़ के मैदान के समान है जिस पर चलते हुए छात्र अपने वांछित शैक्षिक उद्देश्यों को पूरा करता है। राबर्ट यूलिच (Robert Ulich) ने लिखा है कि- “शिक्षा के लक्ष्य तक पहुँचने के लिए जिन अध्ययन परिस्थितियों में क्रमिक रुपरेखा बनायी जाती है उसे पाठ्यचर्या कहते हैं। पाठ्यचर्या में शिक्षण के ज्ञानात्मक, भावात्मक एवं क्रियात्मक तीनों पक्ष शामिल होते हैं।”

पाठ्यक्रम (syllabus) और पाठ्यचर्या ( Curriculum) में अंतर

तुलना चार्ट

तुलना के लिए आधार पाठ्यक्रम पाठ्यचर्या
अर्थ सिलेबस वह दस्तावेज है जिसमें किसी विषय में शामिल अवधारणाओं के सभी भाग शामिल हैं। पाठ्यक्रम एक समग्र सामग्री है, जिसे एक शैक्षिक प्रणाली या एक पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता है।
मूल सिलेबस एक ग्रीक शब्द है। पाठ्यक्रम एक लैटिन शब्द है।
तैयार एक विषय एक पाठ्यक्रम
प्रकृति वर्णनात्मक नियम के अनुसार
क्षेत्र संकीर्ण चौड़ा
द्वारा निर्धारित करें परीक्षा समिति सरकार या स्कूल, कॉलेज या संस्थान का प्रशासन।
अवधि एक निश्चित अवधि के लिए, आम तौर पर एक वर्ष। जब तक पाठ्यक्रम रहता है।
वर्दी शिक्षक से शिक्षक तक भिन्न होता है। सभी शिक्षकों के लिए समान।

संकुचित अर्थ में पाठ्यचर्या के लिए एक अन्य शब्द सिलेबस (syllabus) या पाठयचर्या शब्द भी प्रयोग किया जाता है, जिसका अर्थ कोर्स ऑफ स्टडी या कोर्स ऑफ टीचिंग भी है। इसे पाठ्य विवरण या पाठ्य सामग्री या अंतर्वस्तु आदि भी कहते हैं। पाठयचर्या दो शब्दों से मिलकर बना है।

पाठ्य + क्रम अर्थात् किसी विषय या अध्ययन की वह विषयवस्तु जो क्रम से व्यवस्थित हो पाठयचर्या कहलाता है । पहले पाठ्यचर्या के लिए पाठयचर्या शब्द का प्रयोग किया जाता था, लेकिन अब इसके संकुचित मान्यता पर आधारित होने के कारण अब पाठ्यचर्या शब्द का प्रयोग किया जाता है । पाठयचर्या में केवल ज्ञानात्मक पक्ष से सम्बंधित तथ्य ही क्रमबद्ध होते हैं । पाठ्यचर्या तथा पाठयचर्या में सामान्य लोग भेद नहीं करते और उन्हे पर्यायवाची शब्दों के रूप में प्रयोग करते हैं परन्तु इनमे पूर्ण और अंश का भेद है।

पाठ्यचर्या तथा पाठयचर्या में प्रमुख अंतर

पाठ्यचर्या तथा पाठयचर्या में प्रमुख अंतर इस प्रकार हैं.

1. पाठ्यचर्या जहाँ व्यापक संकल्पना है, वहीं पाठयचर्या सीमित संकल्पना है।

2. पाठ्यचर्या में नियोजित शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु विद्यालय और विद्यालय से बाहर, जो कुछ भी संपादित से किया जाता है, वह सब समाहित होता है, जबकि पाठयचर्या केवल विद्यालय की सीमा में कक्षा के भीतर विकसित किये जाने वाले विभिन्न विषयों के ज्ञान की रूपरेखा मात्र होता है।

3. पाठ्यचर्या शब्द का प्रयोग कक्षा विशेष के सन्दर्भ में प्रयोग किया जाता है; जैसे- कक्षा 8 के लिए हिंदी का पाठ्यचर्या; परन्तु पाठयचर्या शब्द का प्रयोग कक्षा विशेष के किसी विषय विशेष तक सीमित होता है; जैसे- कक्षा 8 के लिए हिंदी का पाठयचर्या ।

4. पाठ्यचर्या संपूर्ण विद्यालयी जीवन की चर्या है जबकि पाठयचर्या पठनीय वस्तु का केवल एक क्रम मात्र होता है।

5. पाठ्यचर्या अपने आप में सम्पूर्ण है, जबकि पाठयचर्या पाठ्यचर्या का एक अंग मात्र है।

6. पाठ्यचर्या से सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास संभव है, जबकि पाठयचर्या से व्यक्तित्व के किसी एक पक्ष या किसी एक अंग का ही विकास संभव है।

दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि किसी स्तर की पाठ्यचर्या का वह भाग जिसमें उस स्तर के लिए सैद्धांतिक विषयों के ज्ञान की सीमा निश्चित की जाती है, पाठयचर्या होता है। स्पष्ट है कि पाठ्यचर्या और पाठयचर्या में पूर्ण और अंश का भेद होता है।

व्यापक अर्थ में पाठ्यचर्या (Curriculum) से आशय बालक के बहुआयामी विकास करने तथा शिक्षा के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए शिक्षक द्वारा अपनायी गयी वे तमाम परिस्थितियां होती हैं जिनसे बालक ज्ञान, अनुभव, क्रिया का अर्जन तथा आदत एवं व्यवहार में परिमार्जन करता है। इस प्रकार पाठ्यचर्या में शिक्षक द्वारा पढ़ाये जाने वाले विषय वस्तु या पाठयचर्या की क्रियाएं, प्रयोगशाला के कार्य, सामुदायिक कार्य, लेखन, वाचन, पुस्तकालय आदि सभी के क्रिया-कलाप शामिल होते हैं।

यूनेस्को की रिपोर्ट के अनुसार-“ पाठ्यचर्या में विषय सामग्री का विस्तृत वर्णन (पाठयचर्या ) और कुछ हद तक अध्ययन विधियों (Methodology) को भी शामिल किया जाता है जो कक्षा में सामग्री को ठीक ढंग से प्रस्तुत करने के लिए प्रयुक्त की जाती हैं”।अतः स्पष्ट है कि पाठ्यचर्या अपने व्यापक अर्थ में विद्यालय में तथा विद्यालय के बाहर अपनायी जाने वाली उन सभी सैद्धांतिक, व्यवहारिक, क्रियात्मक पहलुओं का संगठन है जो विद्यार्थियों का बहुपक्षीय विकास के लिए प्रयुक्त किये जाते हैं ।व्यापक अर्थ में पाठ्यचर्या शब्द का प्रयोग अनेक रूपों में किया गया है। सामान्य रूप से इसका आशय इस प्रकार से समझा जा सकता है-

• विद्यालय में अध्ययन के लिए निर्दिष्ट पाठ्यचर्या तथा अन्य सम्बंधित सामग्री।

• विद्यार्थियों को पढ़ाये जाने वाली समस्त विषय सामग्री।

• किसी विद्यालय में किसी निश्चित विषय का पाठयचर्या ।

• विद्यालय में विद्यार्थियों को दिए जाने वाले नियोजित अधिगम अनुभवों का सम्मिलित रूप ।

पाठ्यचर्या के व्यापक अर्थ को को प्रकट करते हुए माध्यमिक शिक्षा आयोग (1952-1953 ई०) में लिखा है कि- “पाठ्यचर्या का अर्थ केवल उन सैद्धांतिक विषयों से नहीं है जो विद्यालय में परंपरागत रूप से पढ़ाये जाते हैं अपितु इसमें अनुभवों की वह सम्पूर्णता भी निहित है जिसमें बालक विद्यालय, कक्षा, पुस्तकालय, प्रयोगशाला, कार्यशाला तथा खेल के मैदान एवं शिक्षक और शिक्षार्थियों के अनगिनत संपर्कों से प्राप्त करता है, इस प्रकार विद्यालय का सम्पूर्ण जीवन पाठ्यचर्या बन जाता है, जो छात्रों के सभी पक्षों को प्रमाणित कर सकता है तथा विकास में सहायता दे सकता है।”

पाठ्यचर्या के सन्दर्भ में कतिपय विद्वानों ने इसे निम्न प्रकार से परिभाषित करने का प्रयास किया है –

क्रो और क्रो के अनुसार- “पाठ्यचर्या में विद्यार्थियों के विद्यालय या उसके बाहर के वे सभी अनुभव शामिल हैं जो अध्ययन कार्यक्रम में रखे जाते हैं जिसका आयोजन बालकों के मानसिक, शारीरिक, संवेगात्मक, सामाजिक, आध्यात्मिक और नैतिक स्तर पर विकास में सहायता करते हैं।”

के० जी० सैयेदेन के अनुसार- “पाठ्यचर्या वह सहायक सामग्री है जिसके द्वारा बच्चा अपने आप को उस वातावरण के अनुकूल ढालता है, जिसमें वह अपना दैनिक कार्य-व्यवहार करता है तथा जिसमें उसके भविष्य की योजनायें और क्रियाशीलता निहित हैं।”

डंकन ग्रिजेल के अनुसार– “विद्यालयी पाठ्यचर्या समाज की परम्पराओं, पर्यावरण एवं आदर्शों का प्रतिरूप है ।” (The school curriculum is the reflection of the traditional environment and ideas of the society)

बैंट तथा कोन्बेर्ग के अनुसार– “पाठ्यचर्याके अंतर्गत छात्रों के लिए प्रस्तुत की गयी विद्यालयीय वातावरण की वह समस्त सामग्री आती है जिसमें सारी पाठ्य-वस्तु, पठन क्रियाएं एवं विषय सम्मिलित हैं।”

कैसवेल के अनुसार- “बालकों एवं उनके माता-पिता तथा अध्यापकों के जीवन में आने वाली समस्त क्रियाओं को पाठ्यचर्या कहा जाता है। बालकों के कार्य करने के समय जो कुछ भी कार्य होता है उस सबसे पाठ्यचर्या का निर्माण होता है। वस्तुतः पाठ्यचर्या को गतियुक्त (dynamic) वातावरण कहा गया है।

रडयार्ड तथा हेनरी के अनुसार- “विस्तृत अर्थ में पाठ्यचर्या के अंतर्गत समस्त विद्यालय का वातावरण आता है, जिसमें विद्यालय में प्राप्त सभी प्रकार के संपर्क, पठन क्रियाएँ एवं विषय सम्मिलित हैं।”

ब्रुवेकर के अनुसार “पाठ्यचर्या एक ऐसा क्रम है जो किसी व्यक्ति को स्थान पर पहुँचने के लिए तय करना पड़ता है।”

ड्यूवी के अनुसार- “पाठ्यचर्या केवल अध्ययन की योजना या विषय सूची ही नहीं बल्कि कार्य और अनुभव की संपूर्ण श्रृंखला है । पाठ्यचर्या समाज में कलात्मक ढंग से परस्पर रहने के लिए बच्चों के प्रशिक्षण का शिक्षकों के पास एक साधन है, सारांशतः पाठ्यचर्या सुनिश्चित जीवन का दर्पण है जो विद्यालय में प्रस्तुत किया जाता है।”

फ्रोबेल के अनुसार- “पाठ्यचर्या को मानव जाति के समस्त ज्ञान और अनुभव का सार समझना चाहिये।”

इस प्रकार पाठ्यचर्या का सम्बन्ध सीखने वाले एवं सिखाने वाले से होता है। यह सीखने और सिखाने वाले को जोड़ने वाली एक अनियार्य कड़ी है।

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