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उद्यमिता के विकास से क्या आशय है? उद्यमिता के विकास में योगदान देने वाले घटकों का वर्णन कीजिए।

उद्यमिता विकास - Entrepreneurial Development in Hindi
उद्यमिता विकास – Entrepreneurial Development in Hindi

उद्यमिता विकास – Entrepreneurial Development in Hindi

उद्यमिता विकास (Entrepreneurial Development ) – उद्यमिता के विकास से तात्पर्य व्यक्तियों की साहसिक क्षमताओं एवं योग्यताओं को पहचानने, विकसित करने तथा उनके प्रयोग हेतु अधिकतम अवसर उपलब्ध करवाने की प्रक्रिया से है। उद्यमिता विकास को निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया गया है।

प्रो. उदय पारीक एवं मनोहर नाडकर्णी के अनुसार, “व्यावहारिक दृष्टिकोण उद्यमिता के विकास से आशय उद्यमियों के विकास तथा साहसिक श्रेणी में व्यक्तियों के प्रवाह को प्रोत्साहित करने से है।”

उद्यमिता के विकास में योगदान देने वाले घटक

उद्यमिता के विकास में योगदान देने वाले घटकों की व्याख्या निम्नलिखित वर्गों के आधार पर की जा सकती है।

(I) व्यक्तिगत घटक-

उद्यमी का महत्त्वपूर्ण घटक व्यक्ति है क्योंकि व्यक्ति के द्वारा ही उद्यमी क्रियाओं की पहल की जाती है। व्यक्ति ही उपक्रम की स्थापना करने या न करने के सम्बन्ध में निर्णय लेता है। व्यक्ति की साहसी भूमिका को निम्न तत्त्व प्रभावित करते हैं-

1. अभिप्रेरणा घटक- उद्यमिता के विकास में अभिप्रेरणा व्यक्ति का महत्त्वपूर्ण घटक है। अभिप्रेरणा के अभाव में व्यक्ति साहसिक कार्यों की तरफ अग्रसर नहीं हो सकता है। कोई व्यक्ति ही अपने संचालन और व्यवहार के द्वारा उपक्रम को सफल बना सकता है। उद्यमिता के सम्बन्ध में अभिप्रेरणा के निम्न तीन तत्त्व अति महत्त्वपूर्ण हैं-

(i) साहसिक अभिप्रेरणा-प्रो. मेक्लीलैंड ने किसी क्षेत्र में कुछ उपलब्धि हासिल करके नवीनता लाने तथा उत्कृष्ट कार्यक्षमता का प्रदर्शन करने इच्छा को विकसित करने की तरफ विशेष जोर दिया है। उन्होंने अन्य व्यक्तियों को प्रभावित करने तथा उन पर नियन्त्रण रखने की इच्छा को उद्यमिता के विकास के लिए महत्त्वपूर्ण बताया है।

(ii) संघर्ष क्षमता- उद्यमी को अपने उपक्रम की योजनायें बनाने, पहल करने, निर्णय लेने, विभिन्न समस्याओं को सुलझाने आदि के लिये काफी समय और ऊर्जा व्यय करनी पड़ती है। उद्यमी को विभिन्न चुनौतियों और बाह्य शक्तियों के प्रति सचेत रहना पड़ता है। इसके परिणामस्वरूप उद्यमी को कई दबावों और तनावों को भी सहन करना पड़ सकता है।

(iii) प्रभावोत्पादकता-जिन व्यक्तियों के अन्दर विभिन्न स्थितियों को प्रभावित करने की योग्यता अधिक होती है उन्हें भी उद्यमिता की तरफ आसानी से प्रेरित किया जा सकता है। यह योग्यता विभिन्न व्यक्तियों में भिन्न-भिन्न होती है।

2. साहसी कौशल- उद्यमी की सफलता में विभिन्न कौशल जैसे-तकनीकी कौशल, प्रबन्धकीय, कौशल, व्यावसयिक कौशल, मानवीय कौशल आदि महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अतः उद्यमियों में आवश्यक कौशल को विकसित करके उद्यमिता को प्रोत्साहित किया जा सकता है। पारीक एवं नाडकर्णी के अनुसार उद्यमी के लिए निम्न तीन प्रकार के कौशल अति महत्त्वपूर्ण हैं-

(i) परियोजना विकास उपक्रम की स्थापना करने के लिए उद्यमी को परियोजना का निर्माण करने, विभिन्न तथ्यों और सूचनाओं को एकत्रित करने, विनियोग निर्णय लेने तथा विभिन्न अवस्थाओं पर विचार करने की योग्यता का होना अत्यन्त आवश्यक है।

(ii) उपक्रम निर्माण उद्यमी में अपने अवसरों का उचित उपयोग करके सृजनात्मक चिन्तन और प्रभावी व्यवहार के माध्यम से अपने उपक्रम की एक विशिष्ट पहचान बनाने का गुण अवश्य होना चाहिए।

(iii) उपक्रम प्रबन्ध-उपक्रम के संचालन और विकास के लिए इसका उचित प्रबन्ध किया जाना अत्यन्त आवश्यक होता है। उद्यमी मे नियोजन, संगठन, निर्णयन, नेतृत्व और नियन्त्रण की योग्यता होनी चाहिए।

3. साहसी ज्ञान- उद्यमिता का विकास काफी सीमा तक उद्यमियों के ज्ञान पर निर्भर करता है। विभिन्न क्षेत्रों के समुचित ज्ञान के द्वारा साहसी अपने कौशल को प्रभावी बना सकता है साथ ही उपक्रम का सुदृढ़ व्यूह रचना को भी तैयार कर सकता है। उद्यमी को निम्न क्षेत्रों का ज्ञान अवश्य होना चाहिए-

(i) वातावरण-उद्यमी को राजनैतिक और आर्थिक वातावरण, सरकार की नीतियों, बैंकों, और वित्तीय संस्थाओं, उद्योगों को उपलब्ध सहायता और प्रेरणाओं आदि का ज्ञान होना आवश्यक होता है।

(ii) उद्योग-उद्यमी के लिये विभिन्न वैकल्पिक उद्योगों, उत्पादन प्रक्रिया, कच्चा माल, उत्पादों की वाणिज्यिक व्यावहारिकता, प्रतियोगिता फमों आदि की जानकारी का होना अत्यन्तआवश्यक होता है।

(iii) प्रौद्योगिकी- उद्यमी को प्रौद्योगिकीय पहलुओं का उचित ज्ञान होना भी आवश्यक है। उद्यमी को निर्माण प्रक्रियाओं में प्रयुक्त तकनीकों, उनकी लागतों और लाभों आदि के बारे में भी पर्याप्त जानकारी का होना अत्यन्त आवश्यक है।

(II) सामाजिक एवं सांस्कृतिक घटक-

उद्यमिता के विकास में योगदान देने वाले सामाजिक एवं सांस्कृतिक घटक निम्नलिखित हैं-

1. आदर्श व्यवहार- उद्यमिता के विकास के लिए आदर्श व्यवहार के निम्न पहलू अत्यन्त प्रासंगिक हैं-

(i) पारिवारिक आकांक्षायें एवं दबाव-उद्यमियों के विकास में परिवार की आकांक्षाओं और दबाव की भूमिका भी काफी महत्त्वपूर्ण होती है। परिवार में स्वतन्त्र कार्य प्रारम्भ करने, बन कमाने, प्रतिष्ठा अर्जित करने आदि इच्छाओं के कारण व्यक्ति उद्योग स्थापित करने की तरफ स्वयं ही आकर्षित होते हैं।

(ii) आत्मनिर्भरता- स्वतन्त्र एवं आत्म निर्भर जीवन जीने की इच्छा व्यक्ति को साहसिक बनाने के लिए प्रेरणा स्रोत का कार्य करती है। ऐसे व्यक्ति दूसरों के प्रभावों और मार्गदर्शन के बिना ही किसी परियोजना को साकार रूप प्रदान करते हैं।

(iii) जोखिम वहन- जोखिम उठाने की चुनौती भी व्यक्ति को साहसिक बना देती

2. समाजीकरण विभिन्न सामाजिक संस्थाओं, जैसे-घर, स्कूल, धार्मिक संगठनों, राजनैतिक दलों, अनौपचारिक समूहों आदि का उद्यमिता के विकास पर काफी प्रभाव है। समाजीकरण से नवयुवकों में साहसी मनोवृत्ति, उपलब्धि-भाव तथा रचनात्मक चिन्तन को प्रोत्साहन मिलता है। ‘समाजीकरण के द्वारा प्रशिक्षण प्रदान करके उद्यमिता के आधार को निर्मित किया जा सकता है। यदि बच्चों को अत्यधिक सुरक्षा और मार्गदर्शन दिया जाता है तो वे स्वतन्त्र रूप से कार्य करने में रुचि नहीं लेते हैं। अतः उद्यमिता के विकास के लिए आत्मनिर्भरता पर सामाजिक प्रशिक्षण प्रारम्भ से ही दिया जाना चाहिए।

(III) वातावरण सम्बन्धी घटक-

उद्यमिता के विकास में वातावरण सम्बन्धी घटक निम्नलिखित हैं-

1. नियम एवं कानून- व्यवसाय के लिए सरकार व्यावहारिक एवं लाभप्रद कानूनों और नियमों का निर्माण करके औद्योगिक क्रियाओं को प्रोत्साहन दे सकती है। कानूनों के द्वारा साहसियों को उनके व्यवसाय, धन सम्पदा एवं सम्पत्तियों की उचित सुरक्षा प्रदान की जा सकती है। उद्योगों के लिए शान्ति और व्यवस्था का विशेष महत्त्व होता है जो कि सिर्फ नियम और कानूनों के द्वारा ही सम्भव है। इस प्रकार उद्यम के विकास के लिए वैधानिक वातावरण तैयार किया जाना आवश्यक हो जाता है।

2. आर्थिक एवं व्यावसायिक वातावरण- हमारे देश में विद्यमान प्रतिस्पर्द्धा, आर्थिक स्थिरता, श्रम दशायें, कीमंत व आम-स्तर, व्यापारिक चक्रों की स्थिति का भी उद्यमिता के विकास पर काफी प्रभाव पड़ता है। उद्यमिता के विकास को प्रोत्साहित करके में समाज के विभिन्न पक्षों जैसे उपभोक्ता, पूर्तिकर्त्ता, श्रमिक, विनियोक्ता आदि का भी उल्लेखनीय योगदान होता है।

3. सरकारी नीतियाँ एवं प्रेरणायें-उद्योगों के सम्बन्ध में सरकार विभिन्न नीतियों जैसे-औद्योगिक नीति, लाइसेंस नीति, वित्त निर्यात, आयात-निर्यात आदि का निर्माण करके उद्यमिता विकास को प्रोत्साहित कर सकती है। पिछड़े हुए क्षेत्रों तथा गाँवों के लिए विशेष छूटों व सहायता की घोषणा करके सरकार उद्यमियों को आकर्षित कर सकती है।

4. राजनैतिक एवं प्रशासनिक प्रणाली- व्यक्तियों की उद्यमशीलता पर देश के राजनैतिक ढाँचे, प्रशासनिक चिन्तन, सरकारी मशीनरी, नौकरशाही, राजनेताओं की विचारधारा आदि का काफी गहरा प्रभाव पड़ता है।

5. तकनीकी विकास- हमारे देश में उपलब्ध प्रौद्योगिकी, वैज्ञानिक क्रियाओं, तकनीकी अनुसंधान आदि का भी उद्यमिता के विकास में काफी योगदान होता है। नवीन तकनीक के माध्यम से नवीन वस्तुओं का निर्माण किया जा सकता है। तकनीकी शोध से उत्पादन क्रियाओं को मितव्ययी बनाया जा सकता है। सरकार तकनीकी विकास के स्तर पर ध्यान देकर साहसियों के विकास को प्रोत्साहन दे सकती है।

6. बड़े साहसियों का दृष्टिकोण-बड़े उद्यमियों का छोटे उद्यमियों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण भी लघु उद्यमियों को काफी प्रोत्साहित कर सकता है। बड़े उद्यमी छोटे उद्यमियों को विभिन्न प्रकार को सुविधायें, जैसे-मशीनें, कच्चा माल, यन्त्र, वित्त, भवन, परामर्श आदि आसानी से उपलब्ध करा सकते हैं। यही दृष्टिकोण साहसी के विकास में काफी सहायक होता है।

(IV) सहायता प्रणाली-

उद्यमिता के विकास के लिए सहायता प्रणाली निम्नलिखित है-

1. आधारभूत सुविधायें- सरकार विभिन्न आधारभूत साधनों और सुविधायें, जैसे औद्योगिक बस्तियों का निर्माण, कच्चे माल तथा शक्ति के साधनों की आपूर्ति, बीमा तथा वित्तीय सुविधायें, परिवहन आदि उपलब्ध कराकर उद्यमिता के विकास को गति प्रदान कर सकती है।

2. साहस अभिमुखी शिक्षा पद्धति-नवयुवकों में शिक्षण संस्थाओं के द्वारा साहसी प्रवृत्तियों का विकास किया जा सकता है। स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, प्रबन्ध संस्थान तथा तकनीकी संस्थान आदि के द्वारा विभिन्न व्यावसायिक एवं उद्यम अभिमुखी पाठ्यक्रमों का संचालन किया जा सकता है।

3. सहायक संस्थान- सरकार उद्यमिता के विकास के लिए कई प्रकार के सहायक संस्थानों, एजेंसियों और संगठनों की स्थापना करती है। इन संस्थानों का मुख्य कार्य साहसियों को निर्यात, प्रशिक्षण, तकनीकी प्रबन्ध, आधुनिकीकरण, विपणन, यन्त्र, कच्चा माल आदि के सम्बन्ध में सुविधायें प्रदान करना होता है। इन संस्थाओं के द्वारा साहस के विकास के लिए कई योजनाओं का आयोजन किया जाता है।

4. बैंकों व वित्तीय संस्थाओं की भूमिका-बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के द्वारा भी रियायती दरों पर वित्त उपलब्ध कराके उद्यमिता को प्रोत्साहित किया जाता है। इसके साथ ही बैंक एवं अन्य वित्तीय संस्थायें रुग्ण इकाइयों जो विशेष ऋण सुविधा, पुनर्वित्त एवं आवश्यक परामर्श प्रदान करके साहस के विकास में योगदान दे सकती है।

5. प्रशिक्षण सुविधायें- विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रमों के द्वारा भी व्यक्तियों में साहसी योग्यताओं और क्षमताओं का विकास किया जा सकता है। विभिन्न संस्थाओं के द्वारा विचारों के आदान-प्रदान के लिए सम्मेलनों एवं विचार गोष्ठियों का भी आयोजन किया जाता है। हमारे देश में राष्ट्रीय साहस एवं लघु विकास संस्थान प्रशिक्षण के कई पाठ्यक्रम संचालित करता है।

6. शोध एवं साहित्य- उद्यमिता के विकास में कई शोध संस्थाओं का भी महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। साहस से सम्बन्धित समस्याओं पर शोध होने तथा उनका प्रकाशन होते रहने से देश में उद्यमियों का काफी विकास होता है। साहसी साहित्य और अनुसंधान से साहसियों को उपक्रम स्थापना में उचित मार्गदर्शन प्राप्त होता है।

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