शैक्षिक तकनीकी के उपागम
शैक्षिक तकनीकी के उपागम (Approaches of Educational Technology)– शैक्षिक तकनीकी के तीन उपागम हैं-
(1) कठोर उपागम (Hardware Approaches)
(2) कोमल उपागम (Software Approaches)
(3) प्रणाली उपागम (Systems Approaches)
(1) कठोर उपागम (Hardware Approaches) –
कठोर साधन वे साधन हैं जिनमें यंत्रीकृत साधनों को सम्प्रेषण हेतु प्रयोग में लाया जाता है। जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि इस उपागम के द्वारा शिक्षण प्रक्रिया का यंत्रीकरण करके कम व्यय और कम समय में अधिक-से-अधिक छात्रों को लाभान्वित करने का प्रयास किया जाता है। कठोर या यंत्रीकृत साधनों में प्रायः निम्न आविष्कारित उपकरण आते हैं
(i) आकाशवाणी (रेडियो)
(ii) सीतावाद्य (ग्रामोफोन) ।
(iii) प्रक्षेपक (प्रोजेक्टर) |
(iv) चित्र विस्तारक यंत्र (एपीडायस्कोप) |
(v) ध्वनिलेख यंत्र (टेप रिकॉर्डर) ।
(vii) वीडियो कैसेट।
(vi) दूरदर्शन (टेलीविजन) ।
(viii) संगणक (कम्प्यूटर) ।
(ix) चलचित्र (सिनेमा) ।
(2) कोमल उपागम (Software Approaches) –
शैक्षिक तकनीकी द्वितीय अथवा कोमल उपागम को अनुदेशन तकनीकी (Instructional Technoloby), शिक्षण तकनीकी (Teaching Technology) तथा व्यवहार तकनीकी (Behavioural Teachnology) की संज्ञा दी जाती है। कोमल उपागम विज्ञान व तकनीकी पर आधारित न होकर सामाजिक विज्ञान, मनोविज्ञान और विशेषकर अधिगम के मनोविज्ञान की आधारशिला पर खड़ा है। कोमल उपागम में शिक्षण तथा अधिगम के मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों का प्रयोग किया जाता है, जिससे व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन किया जा सके। कोमल उपागम का सम्बन्ध उद्देश्य के व्यवहारिक रूप, शिक्षण के सिद्धान्तों, शिक्षण की विधियों तथा प्रविधियों, अनुदेशन प्रणाली, पुनर्बलन तथा पृष्ठ-पोषण की युक्तियों एवं मूल्यांकन से होता है। संक्षेप में कोमल उपागम के अन्तर्गत अदा (Input), प्रक्रिया (Process) तथा प्रदा (Output) तीनों पक्षों को विकसित करने का प्रयास किया जाता है।
आर्थर मेल्टन (1959 ) ने कोमल उपागम के सम्बन्ध में अपने महत्त्वपूर्ण विचार व्यक्त किये हैं। उनके अनुसार- “यह तकनीकी सीखने के मनोविज्ञान पर आधारित है तथा अनुभव प्रदान करके छात्रों में अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन की प्रक्रिया का शुभारम्भ करती है। ” सरल शब्दों में हम कह सकते हैं कि तकनीकी एवं मशीनी उपागम के माध्यम से प्रयोग में लाई जाने वाली शिक्षण सामग्री, अभिक्रमित अनुदेशन सामग्री, शिक्षण विधियाँ युक्तियाँ आदि कोमल उपागम हैं।
( 3 ) प्रणाली उपागम (Systems Approaches) –
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् प्रणाली उपागम का विकास हुआ। इसने प्रबन्ध, शासन, व्यापार, उद्योग एवं सेना सम्बन्धी समस्याओं के समाधान के लिए निर्णय लेने के लिए वैज्ञानिक आधार प्रदान किया। इसे शैक्षणिक प्रबन्ध (Educational Management) कहा जाता है। शिक्षा प्रशासन एवं प्रबन्ध को वैज्ञानिक आधार प्रदान कर इसे अधिक प्रभावशाली एवं सुदृढ़ बनाया जा सकता है। प्रणाली उपागम का सम्बन्ध कक्षा के बाह्य परिवेश से होता है जो व्यवस्था में व्याप्त कमियों या समस्याओं को उजागर करता है और वैज्ञानिक पद्धतियों के आधार पर उसका समाधान निकालता है। इस प्रकार प्रणाली उपागम के द्वारा विद्यालय के प्रबन्ध, प्रशासन और व्यवस्था सम्बन्धी समस्याओं का समाधान करके उसे प्रभावशाली और कम खर्चीला बनाया जा सकता है।
इस प्रणाली उपागम में निम्नलिखत चरण होते हैं-
(1) स्थितियों का विश्लेषण ।
(2) वांछित स्थितियों के लिए लक्ष्य निर्धारित करना।
(3) लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए चयनित तकनीक का मूल्यांकन।
(4) विकल्प तैयार करना।
(5) मूल्य एवं लाभ विश्लेषण के आधार पर सर्वोत्तम विकल्प का चयन।
(6) प्रणाली की विस्तृत रूपरेखा तैयार करना।
(7) प्रणाली के नियंत्रण के तरीके की रूपरेखा तैयार करना।
(8) समाधान के लिए कार्य करना।
शिक्षा में प्रणाली उपागम नवीन समस्या समाधान प्रविधि है। यह सभी पक्षों और घटकों के साथ शिक्षा को सम्पूर्णता में देखता है, शिक्षा के घटक, विद्यार्थी, शिक्षक, पाठ्यक्रम, शिक्षण माध्यम, पाठ्यवस्तु, अनुदेशन प्रणाली, भौतिक पर्यावरण तथा अनुदेशनात्मक उद्देश्यों का मूल्यांकन। शिक्षा के क्षेत्र में प्रणाली उपागम के अन्तर्गत निम्नलिखित चरणों का समावेश होता है-
(1) अनुदेशात्मक लक्ष्यों और व्यावहारिक उद्देश्यों को परिभाषित करना और उन्हें व्यवहारिक रूप में लिखना।
(2) विविध संचार माध्यमों एवं प्रकरणों द्वारा इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए विविध क्रिया-कलाप निश्चित करना ।
(3) छात्रों की आवश्यकताओं और विशेषताओं को चिन्हित करना।
(4) विषय के प्रभावशाली अधिगम के लिए समुचित विधियों का चयन करना।
(5) समुचित अधिगम अनुभव का चयन करना।
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