स्कूलों में स्वास्थ्य शिक्षा के उद्देश्य
1. प्राथमिक चिकित्सा की जानकारी प्रदान करना- स्वास्थ्य शिक्षा का उद्देश्य छात्रों की प्राथमिक चिकित्सा का ज्ञान कराना भी है। इसके अन्तर्गत छात्रों व स्कूल के अन्य कर्मचारियों को प्राथमिक चिकित्सा के सामान्य सिद्धांतों की तथा विभिन्न परिस्थितियों में जैसे पानी में डूबने पर, जलने पर, जहरीले कीटों व सांप काटने पर, मोच व माँसपेशियों में अकड़न के बारे में प्राथमिक चिकित्सा की जानकारी प्रदान की जाती है ताकि कभी भी ऐसी दुर्घटना होने के समय व्यक्ति के जीवन को बचाया जा सके।
2. स्वास्थ्य तथा स्वास्थ्य विज्ञान की जानकारी प्रदान करना- स्वास्थ्य शिक्षा का उद्देश्य अध्यापकों, कर्मचारी वर्ग तथा छात्रों को शारीरिक गतिविधियों, स्वास्थ्य तथा स्वास्थ्य विज्ञान के नियमों, वैयक्तिक स्वास्थ्य रक्षा के नियमों, रोग से बचाव के उपायों की जानकारी प्रदान करना है। छात्रों की बुरी आदतों, धूम्रपान, मदिरापान आदि व्यसनों से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों की जानकारी देना आवश्यक है।
3. स्वास्थ्य के मापदंड निश्चित करना– स्वास्थ्य अधिकारियों द्वारा अच्छे स्वास्थ्य के कुछ मापदंड निर्धारित करने चाहिए, जिनकी प्राप्ति के लिए प्रत्येक स्कूल को प्रयत्नशील रहना चाहिए। ऐसे मापदंड छात्रों तथा अध्यापकों का अच्छे स्वास्थ्य को प्राप्त करने में मार्गदर्शन करेंगे। इसके अनतर्गत स्कूल का वातावरण, कैंटीन, प्रकाश व्यवस्था, जल व्यवस्था, कमरों व फर्नीचर की सफाई, व्यक्तिगत स्वच्छता तथा स्वास्थ्य सेवाएँ आती हैं।
4. उचित अभिवृत्तियों का विकास- अच्छे स्वास्थ्य के लिए जहां एक ओर ज्ञान की आवश्यकता है, वहीं दूसरी ओर उपयुक्त अभिवृत्तियों के विकास का भी अपना महत्त्व है। कोई भी छात्र अपने लक्ष्यों को सफलतापूर्वक तब तक प्राप्त नहीं कर सकता जब तक उसकी सकारात्मक अभिवृत्ति उस कार्य के प्रति न हो और स्वास्थ्य शिक्षा का उद्देश्य छात्रों में अच्छी सोच, आदतों तथा सकारात्मक अभिवृत्तियों का विकास करना है, उन्हें अपनी क्षमता से अवगत कराना है।
5. सुरक्षात्मक तथा रोकथाम के उपाय करना- स्वास्थ्य शिक्षा का मुख्य उद्देश्य संक्रामक बीमारियों के प्रसार और कारणों के प्रति यथेष्ट सुरक्षा उपाय करना है। इसके अन्तर्गत शौचालयों की सफाई, खाद्य पदार्थों को ढक कर रखना, कमरों व फर्नीचर की सफाई व बीमारी फैलने वाले साधनों के प्रति स्कूली छात्रों को सचेत किया जाना चाहिए।
6. उपचारात्मक उपाय करना— छात्रों के सामान्य स्वास्थ्य की डॉक्टर द्वारा जांच कराने व स्कूल में बच्चों की शारीरिक निरीक्षण से उनकी विकलांगताओं, असमर्थताओं तथा बीमारिकयों का पता चल जाने पर ऐसे बच्चों के लिए सुधारात्मक उपाय सुझाए जाते हैं तथा गहन बीमारी या दोष के बारे में माता-पिता को भी सूचित किया जाता है। कुछ ऐसे शारीरिक अंगों के दोषों को जैसे दृष्टि दोष, दाँतों की बीमारी, तुतलाना, हकलाना, टांसिल, शारीरिक विकृति तथा चपटे पैर आदि का पता लगाना व उन्हें दूर करने के लिए उपयुक्त चिकित्सा की व्यवस्था करना स्कूल का उत्तरदायित्व है।
7. संक्रामक रोगों से बचाव- स्वास्थ्य शिक्षा का मुख्य उद्देश्य संक्रामक रोगों से रक्षा करने सम्बन्धी जानकारी प्रदान करना भी माना गया है। इन रोगों की रोकथाम से पूर्व यह जानना आवश्यक है कि इन रोगों का जन्म किन कारणों से होता है। प्रभाव कितनी देर तक रहता है, इनके लक्षण क्यों हैं? इनसे बचने के उपाय व इनकी रोकथाम कैसे की जा सकती है। क्योंकि ये रोग फैलने के बाद भयंकर रूप धारण कर लेते हैं, जिसे महामारी कहते हैं।
8. व्यक्तिगत तथा सामाजिक सवास्थ्य की रक्षा के नियमों जानकारी देना- स्वास्थ्य शिक्षा के महत्त्वपूर्ण उद्देश्यों में से एक उद्देश्य है, सामाजिक दृष्टि से मानव का रहन सहन क्योंकि यदि कोई व्यक्ति शारीरिक या मानसिक रूप से संक्रमित ह तो वह समाज के लिए खतरा पैदा कर सकता है। केवल अपने कल्याण के लिए ही नहीं अपितु समाज के कल्याण की भावना से व्यक्ति को स्वस्थ रखा जा सकता है। अतः यह आवश्यक है कि सभी नागरिक दायित्व के प्रति उत्तरदायी हों और मनुष्यों को सामाजिक स्वास्थ्य सम्बन्धी उन अपराधों से अवगत कराएँ, जो वे अपने दैनिक जीवन में प्रायः करते हैं। क्योंकि स्वस्थ व्यक्तियों ही स्वस्थ समाज की कामना की जाती हैं स्वास्थ्य शिक्षा का चरम लक्ष्य व्यक्ति के जीवन को सुन्दरमय बनाना है। ऐसे जीवन की रचना करना है जो व्यक्ति को अधिकतम जीने और उत्तम सेवा करने योग्य बना दे। इस प्रकार स्वास्थ्य शिक्षा सामाजिक जीवन में बड़ा योगदान कर सकती है, क्योंकि शिक्षित व स्वस्थ नागरिक सामान्य भलाई के लिए सवास्थ्य सम्बन्धी बातों का महत्त्व समझते हैं। और उन्हें बढ़ावा देते हैं।
9. शारीरिक तथा भावनात्मक विकास- शारीरिक विकास तथा भावनात्मक विकास स्वास्थ्य की गाड़ी के दो पहिए हैं। शारीरिक स्वास्थ्य एक स्वस्थ मनुष्य को वह शक्ति प्रदान करता है, जिससे वह शारीरिक क्रियाओं को सम्पन्न करने, थकान का प्रतिरोध करने तथा रोग से शरीर के मुक्त कराने हेतु प्रतिरोधात्मक शक्ति उत्पन्न करने योग्य बन जाए। ठीक इसी प्रकार भावात्मक स्वास्थ्य मानव को चुस्त, अच्छा स्वभाव, कुशाग्र बुद्धि, सकारात्मक सोच, सामाजिक कुशल व्यवहार, प्रसन्नतापूर्ण तथा सुखद व्यक्तित्व की क्षमता प्रदान करता है। जिस मनुष्य का मस्तिष्क बुद्धिमत्तापूर्ण निर्देश नहीं देता, वह व्यक्ति कभी भी सदमार्ग पर अग्रसर नहीं होगा और जिस व्यक्ति का शरीर अस्वस्थ है वह मनुष्य कभी अपने जीवन में सफल नहीं हो सकता है। इसलिए तो कहा गया है कि- “स्वस्थ शरीर में स्वस्थ दिमाग निवास करता है।
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