भारत और सामुदायिक विद्यालय का उल्लेख कीजिए।
भारत और सामुदायिक विद्यालय (India and Community School ) – हमारे देश में अभी तक विद्यालय तथा समुदाय के सम्बन्धों की स्थिति प्रभाव शून्य-सी है प्राथमिक विद्यालय अधिकांश राज्यों में स्थानीय निकायों के नियन्त्रण में हैं, परत उनमें भी विद्यालय तथा समुदाय के सम्बन्ध सुखद तथा सहायोगपूर्ण होने के स्थान पर अनेक विषमताओं से परिपूर्ण हैं। किसी-किसी विद्यालय में शिक्षक-अथिधावक संघ इस दिशा में कुछ अच्छा कार्य कर रहे है। फिर भी कुल मिलाकर विद्यालय-समुदाय सम्बन्ध अभी तक पुस्तकों तथा प्रशासन की फाइलों तक ही सीमित है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति प्रोग्राम ऑफ एक्शन (1986) के आमुख में लिखा गया है। विद्यालय सुधार कार्यक्रम के लिए शैक्षिक प्रक्रिया में समुदाय की भागीदारी तथा शिक्षा प्रणाली में एक नए प्रकार की जिम्मेदारी सृजित किया जाना आवश्यक है इसके लिए प्राथमिक स्तर से ही विद्यालय का छात्रों के घर और समुदाय के मध्य सम्बन्ध विकसित किया जाना चाहिए। धीमे-धीमे एक अवधि में सांस्कृतिक पड़ोस की संकल्पना को विकसित किया जाए, जिसमें समुदाय से अपेक्षा है कि वह विद्यालयी कार्यक्रमों में विविध प्रकार से सहभागी बनकर अधिक व्यापक भूमिका निर्वाह करे। विद्यालय भी सामुदायिक सम्पर्क के लिए समुदाय के स्थानीय कलाकारों तथ शिल्पियों आदि को आमन्त्रित करें।
माध्यमिक स्तर पर-नीतिगत दस्तावेज में छात्रों को समुदाय में स्थित म्युजियमों तथा जन्तुआलयों में ले जाना, राष्ट्रीय स्मारकों की देखभाल का दायित्व लेना, सफाई एवं स्वच्छता कैम्प आयोजित करना, श्रमनिष्ठा की भावना विकसित करने के लिए श्रमदान कैम्प आयोजित करना, साक्षरता कक्षाओं का आयोन करना, सामाजिक, आर्थिक, भौगोलिक सर्वेक्षण करना तथा इसी प्रकार के अन्य कार्यकलापों की अनुशंसा की गई है।
राष्ट्रीय शिक्षा आयोग (1964-66) ने भी लगभग इसी प्रकार की संस्तुतियां की हैं। आयोग की मान्यता है कि सामान्य शिक्षा के साथ-साथ सामाजिक एवं राष्ट्रीय समस्याओं की वास्तविक समझ विकसित करने तथा सांस्कृतिक धरोहर को आत्मसात् करने हेतु विद्यालयों को स्थानीय समुदाय के सम्पर्क में लाना आवश्यक है। इससे छात्रों में दायितव भावना, सहकार की भावना तथा समाज-सेवा की इच्छा विकसित की जा सकती है। एक प्रशिक्षित तथा उत्साही शिक्षक, जो स्थानीय समुदाय से निकट सम्पर्क रखता है। आसानी से उन संस्थितियों को खोज सकता है, जो सामान्य ग्राम्य विकास से सम्बन्धित हैं। विद्यालय और समुदाय की निकटता का यह आन्दोलन बहुत पुराना है। आज अधिकांश शिक्षाविद् विद्यालय तथा समुदाय के अन्योन्याश्रित सम्बन्ध को स्वीकार करते हैं। कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो इन कार्यक्रमों को एक प्रकार का पागलपन मानते हैं तथा छात्रों और शिक्षकों के समय की बर्बादी ही मानते हैं। ये वे लोग हैं जो राजकीय नियम, सेवा शर्तों तथा बोर्ड द्वारा निर्देशित पाठ्यक्रम तक ही विद्यालयों के कार्यक्रमों को सीमित रखना चाहते हैं, परन्तु 21वीं सदी की भविष्यवाणी करने वालों के अनुसार यह एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है 21वीं सदी के बारे में किए गए प्रारम्भिक चिन्तन में मात्र समुदाय में प्रौढ़ों के लिए सतत् शिक्षा का कार्यक्रम तथा युवाओं के लिए अनुरंजनातमक कार्य करना ही विद्यालय समुदाय कार्यक्रमों में आते थे, परन्तु अब यह समग्र विद्यालय प्रणाली के दर्शन को प्रभावित करती है, जिसके अन्तर्ग विद्यालय की बृहत्तर भूमिका की परिकल्पना की जाती है। जैक मिजे विद्यालय की भूमिका में निम्नलिखित कार्यों को समादृत करते हैं।
(1) समुदाय के लिए संसाधनों का अधिकाधिक उपयोग के अवसर प्रदान करना।
(2) पाठ्यक्रम का समुदाय की आवश्यकताओं के अनुरूप निर्माण करना।
(3) समग्र समुदाय की शैक्षिक आवश्यकताओं की संपूर्ति करना, जिसमें निदानात्मक, उपचारातमक तथा अनुरंजनात्मक कार्यक्रम सम्मिलित हों। इनमें प्रौढ़ों के लिए पर शैक्षिक सुविधाएं प्राथमिक, माध्यमिक, व्यावसायिक तथा अनवरत शिक्षण कार्यक्र व सामाजिक एवं जनसेवा भी सम्मिलित है।
(4) सामुदायिक एवं राजकीय संसाधनों को प्रभावी उपयोग।
(5) सामुदायिक शिक्षण प्रक्रिया का विकास, जिसमें सामुदायिक परिषद् का गठन सम्मिलित है।
शिक्षा देने की परम्परा में आज मुख्य रूप से दो उपागम देखे जाते हैं-
(1) विषय केन्द्रित उपागम
(2) बाल रुचि केन्द्रित उपागम
प्रथम उपागम में अकादमिक विद्यालय हैं तथा दूसरा उपागम मानवी आवश्यकताओं केन्द्रित है, जो सामुदायिक विद्यालय पर बल देते हैं। बाल रूचि केन्द्रित उपागम के समर्थक समुदाय को वस्तुतः एक लेबोरेट्री मानते हैं, जहाँ बलक विद्यालय में पढ़े हुए ज्ञान का परीक्षण व्यावहारिक जगत में करता है। अतः सामुदायिक विद्यालय में जो समुदाय को केन्द्र मानकर चलते हैं, वस्तुतः जीवन की शिक्षा दे सकते हैं।
इस प्रकार का विद्यालय मानव जीवन की गुणवत्ता का विकास करता है, व्यक्तियों की विद्यालय की नीतियों तथा कार्यक्रमों में सम्मिलित करता है। विद्यालय भवन सामुदायिक केन्द्र हो जाता हैं विद्यालय समुदाय के साथ सभी शैक्षिक व सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करता है। इस प्रकार वह जनतंत्रीय मूल्यों और मानव सम्बन्धों का विकास करता है।
कुक के अनुसार-
(1) सामुदायिक विद्यालय युवाओं को जीवन की आधारभूत आवश्यकताओं के सन्दर्भ में शिक्षित करता है।
(2) विद्यालय तथा उससे परे जीवन में जनतन्त्रीय जीवन का विकास करता है।
(3) समुदाय के संसाधनों को विद्यालय के सभी कार्यक्रमों में प्रयोग में लाता है।
(4) सामुदायिक जीवन के सुधार के लिए सामाजिक अभिकरणों के साथ साक्रिय रूप से सहयोग करता है।
(5) युवाओं तथा प्रौढ़ों के समूहों के लिए “सेवा केन्द्र” का कार्य करता है।
बालक के समग्र विकास का कार्य एक सामूहिक सहयोग का कार्य है, जिसमें पड़ोस, समुदाय, विद्यालय तथा बृहत् समाज सभी अपनी-अपनी भूमिकाएँ निर्वाह करते हैं। वस्तुतः इन सभी की अविभाज्य भूमिकाएँ हैं, अतः इनके प्रभाव का विश्लेषण करना भी अत्यन्त कठिन है।
विद्यालय समुदाय की एक अमूल्य निधि है, जो समुदाय के हित में कार्यरत रहती है तथा भावी प्रगति का मार्ग प्रशस्त करती है।
एन.एस.एस.ई. के अनुसार- एक अच्छा विद्यालय होना अपने आप में ठीक है, परन्तु सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार समुदाय सहयोग के प्रति उचित अभिवृत्ति, समुदाय के सुधार के लिए कुछ कर सकना आदि ऐसी बाते हैं, जो सामुदायकि विद्यालय के लिए आवश्यक है।
प्रभावी विद्यालय समुदाय सम्बन्धों के लिए निम्नांकित अभिधारणाओं पर ध्यान दिया जान आवश्यक है-
(1) विद्यालय, समुदाय के लिए है।
(2) विद्यालयों का नैतिक दायित्व है कि वह समुदाय के जीवन व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन के लिए यत्नशील रहे।
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