विद्यालय को समुदाय के निकट लाने के उपाय का वर्णन कीजिए।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। शिक्षा उसे समुदाय का कुशल सदस्य बनाती है। सतत शिक्षा के द्वारा व्यक्ति अपना अधिकतम विकास करता हुआ समाज की सामाजिक, आर्थिक या नैतिक आवश्यकताओं को समझता है और उनकी पूर्ति के प्रयास करता है। इस प्रक्रिया के द्वारा समुदाय का निरन्तर विकास होता रहता है, उसके आदर्शों की रक्षा होती है और नवीन मूल्यों का विकास भी होता है। इसी उद्देश्य की पूर्ति क लिए समुदाय ने विद्यालयों की स्थापना की थी।
चिरकाल से ही विद्यालय सामाजिक सभ्यता और संस्कृति की रक्षा करते रहे हैं तथा उन्हें भावी नागरिकों तक पहुँचाते रहे हैं। विद्यालय की सुविधाओं के अभाव में बालकों को उन सारी सुविधाओं से वंचित रह जाना होगा। शिक्षालय समाज की जटिलता को सरल रूप में छात्र के सम्मुख प्रस्तुत करता है। समाज के रीति-रिवाजों, परम्पराओं, आदर्शों आदि में आवश्यक संशोधन करता और उनका विकास करता समाज इसक बदले विद्यालयों का सरंक्षण करता है और उन्हें सम्पन्न करता है
इस प्रकार हम देखते हैं कि समुदाय और विद्यालय दोनों एक-दूसरे से अभिन्न रूप से सम्बद्ध हैं। दोनों एक-दूसरे के पूरक और पालक हैं। जनतन्त्र में शिक्षा प्राप्त करना प्रत्येक व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार स्वीकार कर लिया गया है। अतः जनतन्त्रीय व्यवस्था में विद्यालयों का कर्तव्य समुदाय के प्रति और समुदाय के कर्तव्य विद्यालय के प्रति और गुरूतर हो गया है। समुदाय विद्यालय से यह आशा करता है कि वह छात्रों में कुशल नागरिकता के गुणों का विकास करें। छात्रों को जनतन्त्रीय समाज के अनुकूल आचरण से सम्बन्धित सिद्धांतों से परिचित कराये और उसमें उपर्युक्त कौशल का अभ्यास करा दें। यदि छात्रों को सामाजिक जीवन का सच्चा प्रशिक्षण देना है तो विद्यालय को एक जनतन्त्रीय समाज के रूप में संगठित करना आवश्यक होगा।
विद्यालय को समुदाय के निकट लाने के उपाय- उपर्युक्त उद्देश्य को पूरा करने के लिए निम्नलिखित कार्यक्रम के आधार पर आगे बढ़ना होगा-
(1) पाठयक्रम
(i) विद्यालय का पाठ्यक्रम परिवर्तनशील हो, जिससे असमें स्थानीय परिस्थिति के अनुसार परिवर्तन किया जा सके।
(ii) पाठ्यक्रम में स्वानुभव द्वारा सीखने के लिए पर्याप्त स्थान हो।
(iii) पाठ्यक्रम में सामाजिक समस्याओं को प्रमुखता दी जाये।
(2) समुदाय का विद्यालय में प्रवेश—
इसके लिए आवश्यक है कि विद्यालय समाज की समस्याओं से पूर्ण परिचित रहे और उसमें होने वाले प्रत्येक परिवर्तन से अवगत होता रहे। समय- समय पर समाज के व्यक्तियों को विद्यालय में आमन्त्रित किया जाना चाहिए। उन्हें विद्यालय की क्रियाओं और उसकी प्रगति से अवगत कराया जाना चाहिए। प्रदर्शनी, गोष्ठी, अभिभावक-दिवस, स्थापना दिवस, पारितोषित वितरण आदि इसके लिए उपयुक्त अवसर होते हैं।
(3) विद्यालय का समुदाय में प्रवेश-
कोई भी एकांगी कार्य सफल नहीं हो सकता है। यदि इस महत्त्वपूर्ण कार्य को सुचारू रूप से संचालन करना है तो यह आवश्यक होगा कि विद्यालय भी अपनी चारदीवारी को पार करके समाज में प्रवेश करे और सामाजिक समस्याओं के समाधान में अपने महत्तवपूर्ण कर्त्तव्य निभाये। सामाजिक उत्सवों तथा शिक्षा से सम्बन्धित सामाजिक कार्यों में खुलकर भाग लें। निकटतम समाज का अध्ययन करें और उसके अनुभवों से छात्र तथा शिक्षक लाभाविन्त हों।
निकटतम समाज का अध्ययन और स्थानीय साधनोंका उपयोग शिक्षण को सजीव बनाने तथा विद्यालय और समाज के बीच निकट का सम्बन्ध स्थापित करने में परम उपयोगी सिद्ध होगा।
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