अच्छे अनुशासन स्थापित करने के लिए प्रधानाचार्य और अध्यापक की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
अच्छे अनुशासन स्थापित करने के उपाय – अनुशासन स्थापित करने के लिए यह आवश्यक है कि छात्र उसमें अपना सहयोग प्रदान करें। अब सबसे प्रथम प्रश्न यह उपस्थिति होता है कि छात्रों का सहयोग कैसे प्राप्त किया जाये? इस सम्बन्ध में दो प्रकार के ढंग अपनाये जाते हैं, जिन्हें अनुशासन स्थापित करने के उपाय कहा जाता है,वे उपाय है-
(अ) सकारात्मक उपाय,
(ब) नकारात्मक अथवा दण्डात्मक उपाय।
(अ) सकारात्मक उपाय-
सकारात्मक उपाय द्वारा अनुशासन स्थापित करने के लिए सर्वप्रथम विद्यालय वातावरण को नियन्त्रित किया जाता है, क्योंकि मनोवैज्ञानिक अन्वेषणों द्वारा यह सिद्ध हो चुका है कि छात्रों को व्यक्तित्व पर वातावरण का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। इसलिए वर्तमान समय में विद्यालय का वातावरण इस प्रकार का बना दिया जाता है कि उसमें रहने वाले समस्त छात्र उससे प्रभावित होकर स्वयं अनुशासित हो जाते हैं। विद्यालय में इस प्रकार का वातावरण बनाने के लिए निम्नलिखित बातों का पालन करना आवश्यक हो जाता है-
(1) विद्यालय में खेलकूद की व्यवस्था- सामान्य दृष्टि से देखें तो ऐसा लगता है कि खेल-कूद का अनुशासन से कोई निकट सम्बन्ध नहीं है, किन्तु यदि गम्भीरतापूर्वक विचार करें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि अनुशासन की स्थापना में स्कूल के वातावरण को अनुकूल बनाने के लिए खेल-कूद अत्यन्त सहायक होता है क्योंकि खेल-कूद के अनेक ऐसे लाभ होते हैं, जिनसे छात्र स्वतः अनुशाससित होते हैं, यथा-
(i) यह सर्वविदित तथ्य है कि किशोर अवस्था के बालकों में अपेक्षाकृत अधिक कार्यक्षमता होती है, जिसे यदि उचित ढंग से प्रयुक्त न किया जाये तो उसे बालक उद्दण्डता में लगा देते हैं जिसके फलस्वरूप उनमें अनुशासनहीनता की वृद्धि होती है।
(ii) इस प्रकार खेल-कूद द्वारा स्वास्थ लाभ होने का बालकों की मानसिक स्थिति पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है, क्योंकि यह यथार्थ है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क होता है।
(iii) इसके अतिरिक्त प्रायः यह देखा जाता है कि जिन विद्यालयों में छात्रों को अवकाश काल का सदुपयोग करने की सुविधा उपलब्ध नहीं होती उनमें छात्र अवकाशकाल में व्यर्थ में इधर-उधर घूमते हैं तथा तोड़-फोड़ करते हैं जिससे अनुशासनहीनता बढ़ती है।
(iv) विद्यालय में खेल-कूद का एक लाभ यह होता है कि जब अनेक छात्र मिल-जुलकर खेलते हैं तब उनमें परस्पर मैत्री भाव उत्पन्न हो जाता है तथा इसके फलस्वरूप उनमें सामाजिकता का विकास होता है। इसके अतिरिक्त जब स्कूल की ओर से वे कहीं खेल प्रतियोगिता में भाग लेने जाते हैं तब अपने विद्यालय की प्रतिष्ठा एवं मान-मर्यादा को ऊँचा उठाने के लिए वे अपनी पूरी शक्ति लगा दते हैं, जिसके कारण उनके मन में विद्यालय के प्रति प्रेम उत्पन्न हो जाता है जो कि अनुशासन की व्यवस्था में सहायक होता है।
(2) विद्यालय में पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं का आयोजन— पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं में वाद-विवाद प्रतियोगिता, चित्रकला प्रतियोगिता तथा कविता प्रतियोगिता आदि प्रमुख हैं। इन क्रियाओं का विद्यालय में अनुशासन की स्थापना में अत्यधिक सहयोग होता है क्योंकि इन क्रियाओं से एक ओर छात्रों को आत्म प्रकाशन तथा ज्ञान की वृद्धि का अवसर प्राप्त होता है वहीं दूसरी ओर छात्रों को स्वावलम्बी जीवन व्यतीत करने तथा अपनी रचनात्मक एवं सृजनात्मक शक्तियों को विकसित करने का अवसर भी प्राप्त होता है। जिससे छात्रों में स्वशासन की भावना का विकास होता है।
(3) छात्रों को स्वशासन का अवसर का अवसर प्रदान करना– वर्तमान समय में दमन की नीति के आधार पर अनुशासन की स्थापना को अनुचित माना जाता है। इस नीति को अनुचित मानने का मुख्य कारण यह है कि इससे छात्रों में अनुशासन के प्रति आदर-सम्मान का भाव उत्पन्न नहीं होता वरन् उनमें अनुशासन के प्रति विद्रोह एवं तिरस्कार का भाव उत्पन्न होता है।
(4) विद्यालय में अध्ययन-अध्यापन की उचित व्यवस्था- अध्ययन-अध्यापन की उचित व्यवस्था से यह अभिप्राय है कि विद्यालय में अध्ययन कक्षों में हवा व प्रकाश की व्यवस्था ठीक हो, छात्रों के बैठने के लिए अच्छा व पर्याप्त फर्नीचर हो तथा कमरों की लम्बाई, चौड़ाई छात्रों की संख्या के आधार पर ठीक होने से है। यदि विद्यालय में अध्ययन-अध्यापन की इस प्रकार की व्यवस्था का अभाव होता है तब इसका विद्यालय के अनुशासन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
(5) विद्यालय में नैतिक शिक्षा अनिवार्य हो- अनुशासन का नैतिक शिक्षा से घनिष्ठ सम्बन्ध होता है क्यों नैतिक शिक्षा से छात्रों में सचरित्रता, सद्व्यवहार अध्यापकों का सम्मान करने की भावना तथा अपने कर्तव्यों का पालन करना आदि गुणों का विकास होता है और ये समस्त गुण ही अनुशासन को ठोस आधार प्रदान करते हैं।
(6) स्वस्थ परम्पराओं की स्थापना– परम्पराओं की उपमा नदी के जल के उस प्रवाह से दी जा सकती है जिसमें जो भी वस्तु सम्मिलित होती है वह स्वतः ही उसके साथ बहने लगती है। अतः विद्यालय में वे समस्त क्रिया-कलाप जिनको करने के समस्त अध्यापक एवं छात्र अभ्यस्त हो चुके हों, परम्पराएँ कहलाती है। उदाहरण के रूप में जिन विद्यालयों में अध्यापक समय पर कक्षा में उपस्थित होते हैं, परिश्रम से शिक्षण कार्य करते हैं, प्रधानाचार्य सदैव छात्रों के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार करता है एवं उद्दण्ड छात्रों को उचित दण्ड दिया जाता है तब काफी समय बाद ये सब बातें उस विद्यालय की परम्परा का रूप ग्रहण कर लेती हैं। इससे यह स्पष्ट है कि विद्यालय में परम्पराओं की स्थापना पर्याप्त समय बाद स्थापित होती है किन्तु इसके साथ ही यह भी सत्य है कि स्वस्थ परम्परायें विद्यालय में अनुशासन की स्थापना के मार्ग को अत्यन्त सुगम बना देती हैं।
(7) पर्याप्त नियमों का निर्माण- अधिक एवं अनावश्यक नियमों का निर्माण करना भी अनुशासन की स्थापना में बाधक होता है। इसलिए नियमों का निर्माण करते हुए यह ध्यान रखना चाहिए कि नियम कम से कम हों तथा ऐसे हों जो सुगमता से पालनीय हों।
(ब) नकारात्मक अथवा दण्डात्मक उपाय–
विद्यालय में अनुशासन स्थापित करने का दूसरा नकारात्मक उपाय दण्ड होता है अर्थात् यदि छात्र विद्यालय के नियमों का पालन नहीं करता तथा अनुशासनहीनता करता है तब विद्यालय की ओर से ऐसे छात्रों के लिए दण्डात्मक कार्यवाई की जाती है जिससे वह छात्र भविष्य में उस दण्ड के भय के कारण अनुशासनहीनता नहीं करता। इसी को अनुशासन का नकारात्मक उपाय कहते हैं।
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