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अनुशासहीनता के प्रमुख कारण | Major causes of Indiscipline in Hindi

अनुशासहीनता के प्रमुख कारण | Major causes of Indiscipline in Hindi
अनुशासहीनता के प्रमुख कारण | Major causes of Indiscipline in Hindi

विद्यालय में अनुशासन हीनता के कौन-कौन से मुख्य कारण हैं? विद्यालय में अनुशासनहीनता रोकने के लिए आप क्या करेंगे? स्पष्ट कीजिए।

अनुशासहीनता के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं— (1) व्यक्तिगत कारण (2) सामाजिक कारण (3) राजनीतिक कारण (4) शैक्षिक कारण (5) मनोवैज्ञानिक कारण।

(1) व्यक्तिगत कारण

(i) शारीरिक व मानसिक स्वीकृति- शारीरिक रूप से विकृत व मानसिक रूप से पिछड़े छात्र अनुशासन की समस्या उत्पन्न कर सकते हैं। कोई कुरूप, शारीरिक रूप से पुष्ट छात्र अन्य छात्रों को पीट सकता है। वे बच्चे जो मानसिक रूप से अविकसित हैं भी अनुशासन की समस्या उत्पन्न कर सकते हैं क्योंकि उन्हें अपनी शक्ति को खर्च करने का पर्याप्त साधन नहीं मिलता है।

(ii) बौद्धिक वरिष्ठता या निकृष्टता- बौद्धिक रूप से पिछड़े छात्रों की हँसी उड़ाई जाती है, डाँटा जाता है। इससे वे छात्र सबके साथ द्वेषपूर्ण व्यवहार करने लगते हैं, जो Superior होते हैं, वे अपने ऊपर अभिमान करके शिक्षक को भी नजरअंदाज करते हैं।

(iii) किशोरवास्था के संवेग- इस अवस्था में छात्रों में अतिरिक्त ऊर्जा होती है जिसको यदि उचित मार्गदर्शन न दिया जाये तो अनुशासन की समस्या उत्पन्न कर सकती है।

(iv) छात्रों की बुरी आदतें- कुछ छात्रों में सामाजिक या घरेलू कारणों से कुछ बुरी आदतें हैं; यथा–चोरी, झूठ बोलना, विद्यालय से भाग जाना, विद्यालय की सम्पत्ति को नुकसान पहुँचाना आ जाती है। ये छात्र अनुशासन की समस्या पैदा कर देते हैं।

(2) सामाजिक कारण

घर का वातावरण- घर के वातावरण से ही बालक चरित्र का निर्माण होता है। अशान्त वातावरण में पला बालक अशान्ति के अलावा और कुछ नहीं सीख सकता है। वह जहाँ जायेगा अशान्तिं ही पैदा करेगा। ऐसे घरों के बच्चे अनुशासन के लिए बड़ी समस्या पैदा करते हैं।

माँ-बाप का अनपढ़ होना– घर के खराब वातावरण का एक सबसे बड़ा कारण माँ- बाप में शिक्षा का अभाव होना है। आज भी भारत में बहुत से लोग साक्षर भी नहीं हैं। भारत में अधिकांश पुरुष घर-परिवार या बच्चों की सही परवारिश की ओर ध्यान देने के बजाय शराब, जुआ भ्रष्टचार जैसी बुराइयों से ग्रसित हैं। ऐसी अवस्था में बच्चों को क्या शिक्षा देंगें। पैसे की कमी के कारण भी वे बच्चों को जीवन की सभी सुविधाएँ देने में समक्ष नहीं होते हैं।

(3) सामाजिक बुराईयाँ

आज के समाज में पैसा ही मनुष्य की सबसे बड़ी जरूरत या ताकत है। पैसे से आदमी कुछ भी खरीद सकता है। इस पैसे को पाने की लालच ने मनुष्य को इतना अंधा बना दिया कि वह अपनी नैतिकता को भी बेच देता है।

स्कूल में अनुशासनहीनता के रूप तथा उनका निवारण

1. परीक्षा में धोखा देना या नकल करना- धोखे अथवा नकल करने की प्रवृत्ति को रोकने का सबसे उत्तम उपाय है कि शिक्षक हमेशा परीक्षा के समय सतर्क रहे ताकि छात्रों को अनुचित उपाय से काम लेने का अवसर ही न मिले। छात्रों को परीक्षा से पहले ही चेतावनी दी जाये। यदि फिर भी छात्र नकल करें तो उन्हें उचित दण्ड दिया जाये।

2. कक्षा में अध्यापक के पढ़ाते समय छात्रों का आपस में बातचीन करना- कारण का पता लगाया जाये। हो सकता है कि शिक्षक के पढ़ाने की विधि में दोष हो। छात्रों से पाठ-सम्बन्धी प्रश्न पूछे जाने चाहिए।

3. शिक्षालय में प्रायः देर से आना- छात्रों के संरक्षकों से परामर्श किया जाना चाहिए। कारण ज्ञात होने पर उपचार किया जाये।

4. झूठ बोलना- कई बार छात्र केवल भय के कारण झूठ बोलते हैं। छात्रों से प्रेमपूर्ण व्यवहार किया जाये। ठीक-ठाक कारण बताने पर क्षमा कर दिया जाये और भली-भाँति समझा दिया जाये कि इसके बहुत दोष हैं। साथ ही उन्हें चेतावनी भी दी जाये।

5. छोटी वस्तुएँ चुराना– कारण का पता लगाया जाये और उपचार किया जाये।

6. गृह-कार्य करके न लाना- हो सकता है कि कार्य छात्र को समझ में न आया हो अथवा घर में कार्य करने की सुविधा न हो कार्य का परिणाम अधिक हो या विशेष अध्यापक से घृणा हो। कारण ठीक-ठाक मालूम होने से उपचार किया जाना चाहिए।

7. स्कूल की वस्तुओं को गन्दा करना या तोड़ना– छात्रों से हर्जाना वसूल करना चाहिए या यदि वे काम जानते हों तो उनसे मरम्मत करायी जाये।

8. आवारा फिरना- स्कूल से भागने के कई कारण हो सकते हैं बच्चे को कोई अन्य छात्र तंग करता हो, पढ़ाई में अरुचि हो या पढ़ाई पर व्यक्तिगत ध्यान देने की आवश्यकता हो। इस बात का पता लगाया जाये कि विद्यार्थी भागकर कहाँ जाता है।

9. अपने से छोटों की तंग करना— क्षमा माँगने पर क्षमा कर दिया जाये और चेतावनी भी दी जाये।

10. अध्यापक को प्रति धृष्टता का व्यवहार- जहाँ तक हो सके अध्यापक को चाहिए कि स्वयं छात्र को सहानुभूतिपूर्वक व्यवहार से समझायें और मानहानि का प्रश्न न बनायें। यदि छात्र इस पर भी ठीक नहीं होता, तो प्रधानाचार्य के पास इसकी रिपोर्ट करनी चाहिए।

प्रारम्भिक स्तर के विद्यार्थियों के आचरणों से अनुशासनहीनता के लक्ष्ण

1. झूठ बोलना, चुगली करना।

2. सहपाठियों की छोटी-छोटी वस्तुएँ चुरा लेना।

3. सहपाठियों से अपशब्द व मारपीट।

4. समय पर स्कूल न पहुँचना।

5. गृह-कार्य न करके लाना इत्यादि।

माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों में उपर्युक्त लक्षणों के अतिरिक्त कुछ और भी लक्षण

6. माता-पिता व गुरुजनों की आज्ञा का उल्लंघन करना।

7. कक्षा से बना किसी कारण अनुपस्थित रहना।

8. गरुजनों के पीछे उनकी हँसी उड़ाना। परीक्षा में नकल करना।

9. जन्मतिथि अथवा पूर्ण अध्ययन से सम्बन्धी अन्य तथ्यों के विषय में झूठी सूचनाएँ देना इत्यादि।

इण्टरमीडिएट तथा अन्य आगे की कक्षाओं में अनुशासनहीनता के अन्य लक्षण

11.अनुपस्थित सहपाठी को उपस्थिति बोलना।

12.कक्षा में गुरुजनों का अनादर करना।

13.कक्षा के समय में सिनेमा देखना व सभाएँ करना।

14. कक्षा में अनुचित व्यवहार करना (जैसे- खड़े होकर उत्तर न देना, उपन्यास आदि पढ़ना, पीछे बैठकर बातें करना)।

15. छात्राओं से दुर्व्यहार करना।

अनुशासनहीनता दूर करने के उपाय।

  1. मनोवैज्ञानिक ढंग से समस्या सुलझाना।
  2. प्रधानाध्यापक द्वारा प्रभावपूर्ण प्रबन्ध ।
  3. विद्यालय में प्रधानाचार्य तथा अध्यापक वर्ग के पारस्परिक अच्छे सम्बन्ध ।
  4. अध्यापकों की विषय-सम्बन्धी तैयार होना।
  5. पाठशाला में सहगामी क्रियाओं का आयोजन।
  6. वाचनालय में यथेष्ट मात्रा में पत्र-पत्रिकाओं का होना ताकि छात्र अवकाश के समय का सदुपयोग कर सकें।
  7. पुस्तकालय में पर्याप्त पुस्तकों का होना तथा छात्रों को पुस्तकें पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना।
  8. छात्रों को ठीक-ठीक नेतृत्य प्रदान करना।
  9. छात्रों का शैक्षिक तथा व्यावसायिक मार्ग-निर्देशन करना।
  10. छात्रों से सम्बन्धित सभी बातों को पूरा-पूरा ब्यौरा देना।
  11. छात्रों को क्षमतानुसार गृह कार्य देना।

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